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संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  (ANSA)

देवदूत प्रार्थना में पोप : येसु के शिष्य होने की खुशी खोजें

देवदूत प्रार्थना के पूर्व अपने संदेश में संत पापा ने हमें प्रभु के शिष्यों के रूप में अपनी खुशी को नवीनीकृत करने के लिए प्रोत्साहित किया है, और याद दिलाया है कि कैसे पहले प्रेरित प्रभु की तलाश में निकले थे और उन्हें पाने के बाद उन्होंने अपनी खुशी दूसरों के साथ साझा की थी।

वाटिकन न्यूज

वाटिकन सिटी, रविवार, 14 जनवरी 24 (रेई) : वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 14 जनवरी को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, प्रिय भाइयो एंव बहनो, शुभ रविवार।

आज का सुसमाचार पाठ प्रथम शिष्यों के साथ येसु की मुलाकात को प्रस्तुत करता है। (यो.1,35-42) यह दृश्य हमें येसु के साथ हमारी पहली मुलाकात को याद करने के लिए आमंत्रित करता है।

संत पापा ने कहा, “हममें से प्रत्येक की येसु से पहली मुलाकात हुई है, एक बच्चे के रूप में, एक किशोर के रूप में, एक युवा के रूप में, एक वयस्क के रूप में,... मैं पहली बार येसु से कब मिला, उसकी याद करें और इस स्मृति के बाद, उनका अनुसरण करने की खुशी को नवीनीकृत करें। तथा अपने आप से पूछें कि प्रभु के शिष्य होने का क्या मतलब है? येसु का अनुसरण करने का अर्थ है येसु का शिष्य होना। आज के सुसमाचार के अनुसार हम चिंतन के लिए तीन शब्द ले सकते हैं: येसु को खोजना, येसु के साथ रहना और येसु की घोषणा करना।”

प्रभु को खोजना

दो शिष्य योहन बपतिस्ता के साक्ष्य पर येसु और उनका अनुसरण करना शुरू करते हैं। "यह देखते हुए कि वे उसका पीछा कर रहे हैं, येसु उनसे पूछते हैं: "क्या ढूँढ़ रहे हो? (38) ये पहले शब्द हैं जिनसे येसु उन्हें संबोधित करते हैं: वे सबसे पहले उन्हें अपने अंदर झाँकने, अपने आप से उन इच्छाओं के बारे में जाँच करने के लिए आमंत्रित करते हैं जो उनके दिल में है।

संत पापा ने कहा, “प्रभु धर्मांतरण कराना नहीं चाहते, वे सतही "अनुयायियों" को पसंद नहीं करते, बल्कि ऐसे लोगों को चाहते हैं जो खुद से सवाल करते हैं और खुद को उनके वचन से चुनौती मिलने देते हैं। इसलिए, येसु के शिष्य बनने के लिए हमें सबसे पहले उन्हें खोजना होगा, एक खुला, खोजी हृदय रखना होगा, तृप्त या संतुष्ट हृदय नहीं। अतः आइये हम देखें कि प्रथम शिष्य क्या खोज रहे थे।

प्रभु के साथ रहना

दूसरी क्रिया साथ रहने पर चिंतन करते हुए संत पापा ने कहा, “प्रथम शिष्य क्या खोज रहे थे। वे ईश्वर के बारे समाचार या जानकारी की खोज नहीं कर रहे थे, न ही चिन्ह अथवा चमत्कार चाहते थे, लेकिन वे मसीह, ईश्वर के अभिषक्त के साथ मिलना चाहते थे, ताकि उनके साथ रह सकें, उन्हें सुन सकें। वे येसु से पहला प्रश्न करते हैं : “आप कहाँ रहते हैं?”(39)

संत पापा ने कहा, “उनके साथ होना, उनके साथ रहना, प्रभु के शिष्यों के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण चीज है। हम इसलिए उनके शिष्य हैं कि हम उनके पास जाते हैं, उनके वचन सुनते, प्रार्थना में उसके साथ बातचीत करते, उनकी आराधना करते, उनसे प्यार करते और अपने भाई-बहनों में उनकी सेवा करते हैं। संक्षेप में, विश्वास एक सिद्धांत नहीं है, बल्कि एक मुलाकात है, यह देखना है कि ईश्वर कहाँ रहते हैं और उनके साथ रहना है।

अंतिम शब्द है, घोषणा करना। संत पापा ने कहा, “शिष्य येसु की तलाश कर रहे थे, वे उसके साथ गए और पूरी शाम उसके साथ बिताई, और अब घोषणा करने के लिए वापस लौटे। खोजना, रहना और घोषणा करना।” चिंतन हेतु प्रेरित करते हुए संत पापा ने कहा, “क्या मैं येसु की तलाश कर रहा हूँ? क्या मैं येसु के साथ रहता हूँ? क्या मुझमें येसु की घोषणा करने का साहस है? येसु के साथ पहली मुलाकात का इतना गहरा अनुभव था कि उन दो शिष्यों ने उस समय को हमेशा याद रखा, “उस समय शाम के लगभग चार बज रहे थे।” (39) इससे उस मुलाकात की ताकत का पता चलता है।

दूसरों को बतलाना

उनका दिल खुशी से इतना भरा हुआ था कि उस उपहार को वे तुरन्त बांटने की आवश्यकता महसूस करते हैं। वास्तव में, दोनों में से एक, अंद्रेयस, ने अपने भाई सिमोन को बतलाया और उन्हें येसु के पास ले गया।

संत पापा ने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, “भाइयो एवं बहनो, आज हम भी प्रभु के साथ अपनी पहली मुलाकात की याद करें। हममें से प्रत्येक की पहली मुलाकात हुई है, परिवार के भीतर और बाहर दोनों जगहों में...।”  

हमारे आनन्द की पुनःखोज

“मैं प्रभु से कब मिला? प्रभु ने मेरे हृदय को कब छुआ? और हम अपने आप से पूछें: क्या हम अब भी प्रभु के प्रेमी शिष्य हैं, क्या हम प्रभु की खोज करते हैं या क्या हम आदतों से बने विश्वास में बस गए हैं? क्या हम प्रार्थना में उसके साथ बने रहते हैं, क्या हम जानते हैं कि उसके साथ कैसे मौन रहना है? और अंततः, हम प्रभु के साथ मुलाकात की इस सुंदरता को साझा करने, घोषणा करने की इच्छा महसूस करते हैं?”

तब माता मरियम से प्रार्थना करते हुए संत पापा ने कहा, “पवित्र माता, येसु की प्रथम शिष्य, उन्हें खोजने, उनके साथ रहने एवं उनकी घोषणा करने की चाह हममें उत्पन्न कर दे।”

इतना कहने के बाद उन्होंने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

देवदूत प्रार्थना - 14 जनवरी 2024

 

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14 January 2024, 16:45

दूत-संवाद की प्रार्थना एक ऐसी प्रार्थना है जिसको शरीरधारण के रहस्य की स्मृति में दिन में तीन बार की जाती है : सुबह 6.00 बजे, मध्याह्न एवं संध्या 6.00 बजे, और इस समय देवदूत प्रार्थना की घंटी बजायी जाती है। दूत-संवाद शब्द "प्रभु के दूत ने मरियम को संदेश दिया" से आता है जिसमें तीन छोटे पाठ होते हैं जो प्रभु येसु के शरीरधारण पर प्रकाश डालते हैं और साथ ही साथ तीन प्रणाम मरियम की विन्ती दुहरायी जाती है।

यह प्रार्थना संत पापा द्वारा रविवारों एवं महापर्वों के अवसरों पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में किया जाता है। देवदूत प्रार्थना के पूर्व संत पापा एक छोटा संदेश प्रस्तुत करते हैं जो उस दिन के पाठ पर आधारित होता है, जिसके बाद वे तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हैं। पास्का से लेकर पेंतेकोस्त तक देवदूत प्रार्थना के स्थान पर "स्वर्ग की रानी" प्रार्थना की जाती है जो येसु ख्रीस्त के पुनरूत्थान की यादगारी में की जाने वाली प्रार्थना है। इसके अंत में "पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा की महिमा हो..." तीन बार की जाती है।

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