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एफएबीसी का समापन ख्रीस्तयाग एफएबीसी का समापन ख्रीस्तयाग 

एशियाई धर्माध्यक्षों की चुनौतियाँ

एशिया के काथलिक धर्माध्यक्षों ने कहा है कि उन्हें गरीबों, पृथ्वी, महिलाओं, युवाओं और संघर्षरत परिवारों की आवाजों से "चुनौती" मिली है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

फेडरेशन ऑफ एशियन बिशप्स कॉन्फ्रेंस (एफएबीसी) के सम्मेलन के रविवार को समाप्त होने के बाद, आयोजकों ने इस क्षेत्र में प्रेरिताई के लिए "नये रास्ते" बताते हुए एक संदेश जारी किया है।

उन्होंने कहा कि उन्हें गरीबों, पृथ्वी, महिलाओं, युवाओं और संघर्षरत परिवारों की आवाजों से "चुनौती" मिली है।

उन्होंने यह बात दो सप्ताह के लिए आयोजित 17 एशियाई धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों की सभा के अंत में कहा है जिसमें सिरो-मलाबार और सिरो मलांकरा काथलिक कलीसिया की धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के सदस्यों ने भी भाग लिया।

हाशिये पर जीवनयापन करनेवालों की आवाज

कार्डिनल चार्ल्स बो, कार्डिनल ऑस्वल्ड ग्रेसियस और फ्राँसिस जेवियर क्रिएंगसाक कोविथवानिज, साथ ही साथ एफएबीसी के महासचिव महाधर्माध्यक्ष तारचिसियो ईसाओ किकुची के द्वारा हस्ताक्षरित संदेश में, कहा गया है कि सम्मेलन के दौरान, "हमें अपने बहुआयामी महाद्वीप की विभिन्न आवाज़ों से चुनौती मिली है कि हम मदद और न्याय के लिए पुकारनेवालों को सुनें।"

दस्तावेज में सबसे बढ़कर जोर दिया गया है कि हमें गरीबों, वंचितों एवं हाशिये पर जीवनयापन करनेवाले लोगों, शरणार्थियों, आप्रवासियों, विस्थापितों एवं आदिवासियों की परेशानियों, पृथ्वी की कराह, बेदखल युवाओं के सपनों, कलीसिया में अधिक समावेशी होने के लिए महिलाओं की आवाजों और उन परिवारों की आवाजों को सुनना है जो बेहतर स्थिरता की चाह रखते हैं।

इसके साथ ही, महादेश के कुछ हिस्सों में पीड़ित कलीसिया के बारे भी जिक्र किया गया है, जहाँ चरमपंथ बढ़ रहा है, जीवन के सम्मान की जरूरत है, हिंसा एवं संघर्ष बढ़ रहे हैं, डिजिटल क्रांति जिसका प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूपों में हो रहे है ये सभी चिंता के विषय हैं।   

आगे का रास्ता

दस्तावेज में कहा गया है कि "सुसमाचार एवं संत पापा फ्राँसिस की शिक्षा से प्रेरित होकर सम्मेलन के समापन संदेश ने "प्रेरिताई हेतु कई नये रास्ते" बतलाये हैं जो "सच्चे रूप में सुनने एवं वास्तविक आत्मपरख करने" पर आधारित है।  

इसके लिए प्रतिबद्धता की जरूरत है, सुदूर क्षेत्रों तक पहुँचना है, प्रेरितिक एवं पर्यावर्णीय बदलाव की आवश्यकता है जिससे कि पृथ्वी की पुकार एवं गरीबों की पुकार का प्रत्युत्तर दिया जा सके। साथ ही दूसरे धर्मों, सरकारी और गैरसरकारी तथा नागरिक संगठनों के साथ आम विषयों पर वार्ता करने एवं आपस में एक-दूसरे को सुनने की संस्कृति बढ़ाने की आवश्यकता है।

जकेयुस के साथ यात्रा

सम्मेलन के समापन ख्रीस्तयाग में संत पापा के विशेष दूत कार्डिनल ताग्ले ने सुसमाचार पाठ पर चिंतन किया जहाँ चुंगी जमा करनेवाले जकेयुस से येसु की मुलाकात की कहानी का वर्णन है। उन्होंने कहा, सम्मेलन की विषयवस्तु के आलोक में – "एशिया के लोगों के रूप में एक साथ यात्रा करना" – यह कहानी एशिया की कलीसिया को तीन शिक्षा देती है।

कार्डिनल ने गौर किया कि शुरू में येसु जकेयुस के शहर से पार होनेवाले थे लेकिन उनसे मिलने के बाद, उनसे कहते हैं मुझे आपके यहाँ ठहरना है। यह एक साथ यात्रा करने की एक महत्वपूर्ण सच्चाई को प्रकट करता है। "इसकी चाह रखनी, इसे चुना जाना एवं इच्छा करना चाहिए। हम इसे संयोग के लिए नहीं छोड़ सकते।"

दूसरा, येसु ने अपनी यात्रा के साथी के रूप में चुना, सबसे शुद्ध या धर्मी के रूप में नहीं, न ही निर्दोष के रूप में, ऐसे व्यक्ति के रूप में भी नहीं जो सभी को खुश कर सकता और न ही अपने सर्कल में होने के कारण। उन्होंने जकेयुस को चुना जो चुंगी जमा करनेवालों का मुख्य था। ईश्वर चाहते हैं कि हम उन लोगों के साथ यात्रा करें तो हमसे अलग हैं।

अंततः कार्डिनल ताग्ले ने कहा कि "यह किस तरह का एक साथ चलना होगा?" इसका लक्ष्य कहा है? येसु के साथ, यह दया और करुणा की यात्रा होगी, निंदा की नहीं; धैर्य की यात्रा होगी, विनाश का नहीं।"

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01 November 2022, 17:54