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एफएबीसी को सम्बोधित करते कार्डिनल ताग्ले एफएबीसी को सम्बोधित करते कार्डिनल ताग्ले 

एशियाई धर्माध्यक्षों को कार्डिनल ताग्ले का संदेश

एशिया के काथलिक धर्माध्यक्षों के सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए संत पापा फ्राँसिस के विशेष दूत कार्डिनल लुइस अंतोनियो ताग्ले ने सोशल मीडिया के युग में अध्ययन के महत्व पर जोर दिया ताकि आलोचनात्मक सोच और सहानुभूति विकसित की जा सके।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों के संघ के सम्मेलन में संत पापा फ्राँसिस के विशेष दूत कार्डिनल ताग्ले ने शनिवार सुबह को धर्माध्यक्षों को सम्बोधित किया। उन्होंने युवाओं के विकास में अध्ययन के महत्व पर प्रकाश डाला, तथा सोशल मीडिया और एआई पर ध्यान केंद्रित किया क्योंकि वे हमारे "सुसमाचार प्रचार की बुलाहट" को प्रभावित कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, "सोशल मीडिया दुनिया के लिए एक वरदान है क्योंकि अब सूचनाएँ समाज के अभिजात वर्ग से परे जाती हैं। सोशल मीडिया ने हमें महामारी के समय जोड़े रखा और कई माता-पिताओं ने महसूस किया कि वे शिक्षक और धर्मशिक्षक दोनों हैं।"

मनुष्य बदल रहा है

उन्होंने कहा, "हमें सोशल मीडिया के उपयोग में सावधानी करने के लिए कहा गया है, क्योंकि इससे मानव व्यक्ति के बारे में हमारा दृष्टिकोण बहुत जटिल रूप से बदल रहा है।" यह हमारे संबंधों और समाज के बदलाव में हमारी सहभागिता को भी प्रभावित कर रहा है।

कार्डिनल ताग्ले ने एआई (आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस) की ओर खींचते हुए कहा, , "एआई मानव का काम करता है", यह मानव कार्य के कुछ पहलुओं को अप्रचलित बना रहा है। हिज्जों की जांच ने वर्तनी और वाक्य-विन्यास की कला का स्थान ले लिया है; कैलकुलेटर हमारा गणित बनाते हैं। टाइपिंग के कारण लिखावट को कम पढ़ा जा रहा है, और शायद यह गायब हो रही है। अतः कार्डिनल ने "नये प्रकार की निरक्षरता" पर सवाल किया जो अल्पविकास की ओर ले रही है, हमें आलोचनात्मक सोच के गायब होने की संभावना की ओर अग्रसर कर रही है।

युवाओं एवं सोशल मीडिया के साथ संबंध पर कार्डिनल ने एक जानकारी साझा की जिसको ग्रभिसिमुम एदूकासियोनिस (ख्रीस्तीय शिक्षा पर वाटिकन द्वितीय महासभा की घोषणा) ने एक सर्वे में पाया है। पहला सवाल है कि युवा अपने आपको कैसे देखते हैं, हमें कैसे देखते हैं और दूसरों को देखते हैं।

"मैं"

"मैं" के संबंध में, "पहचान जो [अध्ययन में] सामने आई है वह है आत्मनिर्भरता का भ्रम।" "एक आत्मनिर्भरता जो भ्रामक है।" इस भ्रम का स्रोत पोस्ट की गई तस्वीरों से प्राप्त पुष्टि है। "यह प्रदर्शनी का एक रूप है - आपको खुद का विज्ञापन देना होगा", यहाँ तक ​​कि उत्तेजक छवियों को पोस्ट करके कि "कितने लोग आपको लाईक या पसंद करते हैं," पसंद प्राप्त करने के लिए और देखने के उद्देश्य से, "लगातार अपने सर्कल में फोटो पोस्ट करना"। यह मजबूरी बन जाती है। "सोशल मीडिया इस तथाकथित भ्रमपूर्ण आत्मनिर्भरता के लिए एक उपकरण बन गया है"। इस तरह युवा अपने "पसंद" करनेवाले लोगों के साथ मिलकर अपनी दुनिया बना रहे हैं और पसंद नहीं करनेवालों को हटा देते हैं।

"हम"

शोध पर गौर करते हुए कार्डिनल ने बतलाया कि इस तरह उपस्थित हुए बिना भीड़ जमा की जाती है। जो लोग इकट्ठा होते हैं वे सोचते हैं कि वे एक साथ हैं, लेकिन वे इकट्टा हुए हैं। "एक साथ आने का अर्थ है आंतरिक रूप से मिलना और इकट्ठा बाह्य रूप से भी हुआ हो सकता है। इसके द्वारा उस "हम" की कमी हो रही है जिसमें "एक साथ कार्य करना" संभव होता। इसके विपरीत हम दूसरों की उपस्थिति में भी अकेले रह जाते। वर्तमान समाज की विशेषता भीड़ नहीं रह गयी है बल्कि एकाकीपन है क्योंकि अंतरिकता ही हमें एक साथ समुदाय में ला सकती है।  

"उनके"

कार्डिनल ताग्ले ने कहा कि अध्ययन में इस बात पर भी गौर किया गया है कि लोग अधिक जुड़े हुए हैं किन्तु विडंबना यह है कि हम दूसरों के बारे में कम सोचते और कम परवाह करते हैं। यद्यपि हम अधिक जुड़े हुए हैं किन्तु अधिक व्यक्त नहीं करते।

इसके द्वारा दूसरों के प्रति सहानुभूति में कमी आ रही है, जिन्हें हम नहीं जानते "उनसे" हमदर्दी नहीं रह जाती।" जबकि, सोशल मीडिया हमारे दोस्तों के छोटे समूह के बीच निष्ठा की खोज को जन्म देती है।  

प्रवृत्तियाँ

कार्डिनल ने अपने श्रोताओं को याद दिलाया कि ये सामान्य रूप से युवाओं के बीच एक चलन हैं, और हर युवा के बारे में यह सच नहीं हो सकता है। हालाँकि, यह ऐसी दुनिया है जिसमें उन्होंने [युवा लोगों] रहना सीखा है", जो सोशल मीडिया के प्रयोग द्वारा इस दिशा में एक जटिल परिवर्तन की ओर बढ़ा रहे हैं। यदि दूसरे मुझे पसंद नहीं करते हैं तो इसका मुझे कोई मतलब नहीं...मैं उनकी चिंता तभी करूँगा यदि वे मेरी सर्कल में आयेंगे। जो लोग मेरे सर्कल में नहीं हैं वे मेरी आत्मनिर्भरता में बाधा पहुँचायेंगे।" लोगों में ये मनोभाव उभर रहा है।

कलीसिया की मंच में शिक्षा

युवा और सोशल मीडिया के बीच संबंध पर दूसरे बिन्दू में कार्डिनल ने कहा कि चूँकि कलीसिया शिक्षा की प्रेरिताई से जुड़ी हुई है, शिक्षा युवाओं के साथ सम्पर्क बनाना है। वर्तमान तकनीकी के प्रयोग के कारण कई युवा अब आलोचनात्मक रूप से नहीं सोच पाते एवं उनमें सहानुभूति की कमी है। मनोवैज्ञानिकों और न्यूरोलॉजिस्टों ने यह भी प्रकट किया है कि इसके परिणामस्वरूप, कई युवा अब पढ़ नहीं सकते। कार्डिनल ने कहा, "हम प्रौद्योगिकी को एक बाहरी उपकरण के रूप में सोच सकते हैं," लेकिन वह चेतना को बदल सकता है।"

अध्ययन करने की आवश्यकता

कुछ शोधकर्ताओं ने उल्लेख किया है कि पढ़ना स्वाभाविक रूप से नहीं आता, जीवित रहना स्वाभाविक है। दुनिया भर में लोग विभिन्न खाद्य पदार्थों और पानी को पहचानते हैं; लेकिन अक्षर को सीखा जाता है, पढ़ना एक प्राप्त किया जानेवाला कौशल है जिसके माध्यम से हमारे दिमाग और इसकी विश्लेषणात्मक एवं चिंतन क्षमता विकसित होती है।

डिजिटल रूप से सीखना, सूचनाओं के त्वरित अधिग्रहण के साथ, बारीकियों और जटिलता के नुकसान की ओर ले जाता है। जब हम उपन्यास पढ़ने में तल्लीन होते हैं तो मानवीय सहानुभूति उत्पन्न होती है; जब हम एक लेखक के विचारों के साथ अपने विचारों पर ध्यान देते हैं तो हम सोच कौशल प्राप्त करते हैं। कार्डिनल ने बताया कि दृश्य सामग्रियों को देखने से ऐसा नहीं होता।

भविष्य के लिए निहितार्थ

यदि हम नहीं समझते कि हमारे युवाओं के विकास में क्या हो रहा है तो भविष्य में इसका परिणाम होगा कि वे आलोचनात्मक सोच-विचार करना नहीं जानेंगे, और यह एक सहानुभूतिहीन पीढ़ी बन जायेगी। जब हम इसे हमारे स्कूलों में लागू करते हैं तो कार्डिनल ताग्ले ने अपने श्रोताओं से पूछा कि क्या अध्ययन में उन चीजों को ध्यान दिया जाता है जिनपर पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए?

कार्डिनल ने धर्माध्यक्षों से कहा कि यदि ध्यान नहीं दिया जाता है तो इसका प्रभाव भावी समाज पर पड़ेगा। क्या हम ऐसे नागरिकों को बढ़ा रहे हैं जो आलोचनात्मक बुद्धि और सहानुभूति की भावना का विकास कर रहे हैं?  

उन्होंने कहा कि अतः सोशल मीडिया को ही सुसमाचार प्रचार के लिए प्रेरित करना है, क्योंकि यह पूरी दुनिया में एक सर्वव्यापी है।

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29 October 2022, 17:18