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एफएबीसी के सम्मेलन में भाग लेते लोकधर्मी एफएबीसी के सम्मेलन में भाग लेते लोकधर्मी 

एफएबीसी सम्मेलन में लोकधर्मियों की आवाज

बैंकॉक में हो रहे एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षों के सम्मेलन में कुछ लोकधर्मी भी भाग ले रहे हैं जिन्हें अतिथि के रूप में निमंत्रित किया गया है। वे पूरे एशिया से आये हैं। उनकी उपस्थिति ईश प्रजा को "पूर्ण" बनाती है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों के संघ (एफएबीसी) के सम्मेलन में भाग ले रहे 4 लोकधर्मियों ने अपने विचार वाटिकन न्यूज के साथ साझा किये। उन्होंने बतलाया कि इस सम्मेलन में उनकी उपस्थिति एवं सहयोग क्यों महत्वपूर्ण है।  

हम लोगों की वास्तविक चिंताओं को समझते हैं

सिंगापूर महाधर्मप्रांत के अंतरधार्मिक वार्ता एवं ख्रीस्तीय एकतावर्धक वार्ता के लिए काथलिक समिति के कार्यकारी सचिव जेराल्ड कोंग ने कहा, "हम सम्मेलन में जमीनी स्तर पर रहनेवाले व्यक्तियों के विचारों को लाते हैं।" उनका कहना है कि पुरोहितों की तुलना में लोकधर्मियों का सम्पर्क सामान्य लोगों से अधिक होता है। एक कार्यकारी सचिव के रूप में वे न केवल नेतृत्व करनेवाले लोगों से मिलते हैं बल्कि जमीनी स्तर पर भी लोगों से मुलाकात करते हैं – साधारण बौद्ध, मुस्लिम, अंगलिकन, प्रेसबिटेरियन, एवंजेलिकल आदि लोगों से। यह अधिक रंग लाता और हमारा दृष्टिकोण बढ़ाता है, साथ ही हमारी अंतरधार्मिक एवं ख्रीस्तीय एकता संबंध को गहरा बनाता है। इस तरह वे एफएबीसी सम्मेलन में जमीनी स्तर के लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

अंतरधार्मिक संवाद एवं ख्रीस्तीय एकतावर्धक वार्ता के संबंध में जेराल्ड ने कहा कि यह हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा होना चाहिए, दूसरे दर्जे या सहायक के रूप में नहीं। जीवन के हर क्षेत्र में काथलिकों को "एक ख्रीस्तीय के रूप में समाज में अपनी भूमिका के बारे अधिक जागरूक होना चाहिए"। इसका अर्थ है अन्य धर्मों के लोगों से "पहले अच्छी दोस्ती बनाना", और फिर संभावित "गरीबों, कमजोरों की मदद और इस तरह के कामों को करने के लिए सहयोग" की खोज करना।

उन्होंने कहा कि सम्मेलन में लोकधर्मियों की आवाज महत्वपूर्ण है ताकि सामान्य लोगों के मामलों को प्रस्तुत किया जा सके तथा कलीसिया के नेतृत्व को प्रोत्साहन देने के लिए "व्यावहारिक निहितार्थ" क्या हैं, उसे प्रदर्शित करने के लिए कि "एक दूसरे को भाइयों और बहनों के रूप में देखा जा सकता है, वर्ग मतभेदों के आधार पर नहीं बल्कि  ईश्वर के एक परिवार के रूप में हम एक-दूसरे को प्रोत्साहित कर सकते हैं।

हम ईशशास्त्रीय नहीं बल्कि यथार्थ रूप में सोचते हैं

युवाओं के लिए आयोजित सिनॉड में भाग लेनेवाले एवं इन दिनों सिनॉड के कार्यप्रणाली आयोग के सदस्य पेरसिवल होल्ट ने कहा, "हम अपने स्वयं के दृष्टिकोण को सामान्य लोगों से जोड़ते हैं, हम सामान्य लोगों के अनुभव और उनकी वास्तविकताओं के आधार पर सोचते हैं, न कि ईशशास्त्रीय रूप में।" उनका कहना है कि वे कलीसिया किस तरह लोगों के साथ चलती है और लोग किस तरह उसे देखते हैं दोनों को देख सकते हैं। "हम संस्कृति, अलग-अलग पृष्टभूमि, आदिवासी, विभिन्न आस्था के लोगों की वास्तविकताओं को लाते हैं यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यह धर्माध्यक्षों के दृष्टिकोण को बढ़ाता है। उन्होंने बतलाया कि एक बार, एक धर्माध्यक्ष को आश्चर्य हुआ था जिन्होंने उनके कहा था, "मैं सोचता हूँ कि लोग ऐसा चाहते हैं पर आप बिलकुल अलग बात बतलाते हैं।" यह इस प्रकार का परिप्रेक्ष्य है जिसे हम इस सम्मेलन में जोड़ते हैं।

हम तस्वीर के हिस्से हैं

समग्र मानव विकास हेतु गठित विभाग से अलविन मकालालाद ने कहा, "मैं यहाँ आया और अपनी पत्नी एवं बेटी को घर में छोड़ दिया। सम्मेलन में उनकी उपस्थिति ईश प्रजा को पूर्ण बनाती है।

उन्होंने कहा, "एक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन में, सिर्फ धर्माध्यक्षों एवं कार्डिनलों के बीच बातचीत नहीं हो सकती। यह एक अधूरा तस्वीर होगा। मैं तस्वीर का हिस्सा हूँ। अलविन सोचते हैं कि उनकी उपस्थिति महत्वपूर्ण है जो ईश प्रजा के हिस्से हैं जिन्हें वे हमेशा लक्ष्य बनाते है और वास्तविक होने के लिए उन्हें वहाँ रहना जरूरी था।"

एल्विन ने धर्माध्यक्षों के साथ संबंध न केवल पदानुक्रमित स्तर पर बल्कि व्यक्तिगत एवं मैत्री स्तर पर भी बनाने की बात कही। उनकी आशा है कि यह अनुभव उन्हें धर्माध्यक्षों के साथ बेहतर तरीके से काम करने में एवं उनका समर्थन करने जानने में मदद देगा।

जब हम काम करते हैं कलीसिया काम करती है

भारत के काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के काथलिक युवा आंदोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अंतोनी जूडी ने गौर किया कि जब धर्माध्यक्ष निर्णय लेते या परिवर्तन देखना चाहते हैं तो जो लोग उन निर्णयों या प्रभाव को क्रियान्वित करते हैं, वे लोकधर्मी ही हैं। अंततः उनके निर्णय वास्तविक लोगों की जीवंत वास्तविकता को प्रभावित करते हैं। सिनॉड के मामले में हमें बदलाव की आवश्यकता है और परमधर्मपीठ चाहती है कि यह बतलाव परिवारों में हो। यहाँ सम्मेलन में धर्माध्यक्ष एवं कार्डिनल सुन रहे हैं। इस तरह लोकधर्मी वास्तविकों को सामने लाकर उन्हें सहयोग दे सकते हैं कि किन प्रक्रियाओं को लागू किया जाए, कौन सा नया रास्ता अपनाया जाए ताकि लक्ष्यों को हासिल किया जाए।

अंतोनी ने कहा कि भविष्य की ओर आगे देखते हुए लोकधर्मियों की सहभागिता महत्वपूर्ण है, क्योंकि यदि आप गौर करें तो पायेंगे कि कलीसिया में अधिकांश चीज लोकधर्मियों के द्वारा किया जाता है। यदि लोकधर्मी काम करते हैं तो कलीसिया काम करती है। "यदि लोकधर्मी काम नहीं कर रहे हैं, यदि लोकधर्मी सो रहे हैं..." लोकधर्मी और युवा जैसे मुद्दे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। “लोकधर्मियों के लिए विचार, समर्थन और स्वीकृति की आवश्यकता है। अगर लोकधर्मी गिरजा आते हैं", तो हम एक साथ होंगे और साथ-साथ चलेंगे। नेतृत्व करनेवाला कोई नहीं है। हम एक साथ चल रहे हैं। हम लक्ष्य प्राप्ति हेतु एक साथ यात्रा कर रहे हैं। जो कुछ रोम पहुँचता है तो उसकी शुरूआत पल्ली में होती है। इसका अर्थ है कोई भी बड़ा नहीं है।

 

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27 October 2022, 11:28