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एशियाई धर्माध्यक्ष एशियाई धर्माध्यक्ष 

एशियाई धर्माध्यक्ष किस एशिया का सपना देख रहे हैं?

एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के संघ (एफएबीसी) ने 17 अक्टूबर को अपनी सभा के दूसरे सप्ताह में प्रवेश किया। वे एक ऐसी एशिया का सपना देख रहे हैं जिसमें ख्रीस्तीय समुदाय शामिल हों जो गरीबों के अधिकारों को बढ़ावा देते और स्थानीय संस्कृति एवं प्राकृतिक सौंदर्य की रक्षा करते हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 18 अकटूबर 2022 (रेई) ˸ सप्ताह की शुरूआत ख्रीस्तयाग के साथ की गई जिसकी अगुवाई कार्डिनल पैट्रिक डी रोजारियो सी एससी ने की।  

कार्डिनल ऑस्वल्ड ग्रेसियस ने सप्ताहभर के कार्यक्रमों की जानकारी देते हुए बतलाया कि इस सप्ताह खासकर, संत पापा के दस्तावेजों एवं एशिया की उभरती वास्तविकताओं की विषयवस्तु पर चिंतन किया जाएगा।

एफएबीसी के ईशशास्त्र विभाग के सदस्य विशप जेराल्ड मत्तियस और वियतनाम के ईशशास्त्री फादर नगुयेन हाई तिन्ह येसु समाजी ने महामारी के बाद की कलीसिया एवं ख्रीस्त के शरीर विषयों पर प्रकाश डाला।

महामारी की वजह से लगे झटके एवं इसके द्वारा प्रदान किये गये अवसरों के बारे बोलते हुए धर्माध्यक्ष मातियस ने स्पष्ट किया कि ख्रीस्त का शरीर, कलीसिया महामारी से किस तरह पीड़ित हुई लेकिन अब चंगी हो रही है। फादर तिन्ह ने बतलाया कि महामारी ने प्रकट किया कि कलीसिया दुःख, पीड़ा और परिवर्तन के सामने कितना कमजोर है लेकिन यह कलीसिया का पास्का रहस्य एवं सिनॉडालिटी थी जिसके द्वारा यह चंगाई एवं एकता की ओर आगे बढ़ रही है।

धर्माध्यक्ष मतियास ने एक नये प्रेरितिक रास्ते को प्रस्तुत किया जिसको महामारी ने प्रकट किया है – वार्ता, प्रशिक्षण, डीजिटल सुसमाचार प्रचार, पर्यावणीय बदलाव और हरेक के लिए व्यक्तिगत रूप से धर्मविधि में जागरूकता।

वकील, शिक्षक और पर्यावरण नीति विशेषज्ञ अंतोनियो ला विना और भारत की पर्यावरण कार्यकर्ता रिधिमा पाण्डे ने जलवायु संकट एवं एशिया में इसके प्रभाव पर प्रकाश डाला।

जलवायु संकट की वर्तमान स्थिति से अवगत कराते हुए ला विना ने स्थिति के बहुत अधिक बिगड़ने से पहले ही वापस लौटने के महत्व पर जोर दिया तथा प्रतिनिधियों का आह्वान किया कि वे प्रबंधक और नेतृत्व की अपनी भूमिका को निभायें। साथ ही उन्हें लौदातो सी और फ्रातेल्ली तूत्ती के ढांचे पर विश्व से स्थानीय योजना पर ध्यान देने की सलाह दी।

रिधिमा पाण्डे ने जलवायु संकट से जूझ रहे बच्चों के लिए अपने प्रयास के बारे बतलाते हुए वृहद स्तर पर हो रहे बदलाव को रेखांकित किया। उन्होंने गौर किया कि किस तरह आज बच्चे सड़कों पर आ रहे हैं क्योंकि पुरानी पीढ़ी ने इसपर ध्यान नहीं दिया है। उन्होंने तापमान बढ़ने को देकर जोर दिया कि "एक-एक डिग्री मायने रखती है।" उन्होंने प्रतिनिधियों से कहा, "हमें आपकी मदद की जरूरत है।" मिस पाण्डे ने 'द लेटर' फिल्म का भी जिक्र किया जो विश्व के लिए संत पापा फ्राँसिस का संदेश है।

एफएबीसी के जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रमुख धर्माध्यक्ष अलविन डीसूजा ने "लौदातो सी" विषय पर "जिम्मेदार प्रबंधन के लिए एक बुलावा" प्रस्तुत किया। उन्होंने सभी लोगों से आग्रह किया कि वे सृष्टि के भजन को एक साथ गायें।

तत्पश्चात् उन्होंने पृथ्वी हमारे आमघर पर प्रकाश डाला जिसकी देखभाल करने की जिम्मेदारी उत्पति ग्रंथ में प्रभु ने मनुष्यों को सौंप दी है। इसका अर्थ है कि हमें पृथ्वी की देखभाल करना है। परन्तु मिस माण्डे के शब्दों में उन्होंने कहा कि हम अगली पीढ़ी के लिए किस तरह की दुनिया छोड़ रहे हैं? उन्होंने बतलाया कि "लौदातो सी" कलीसिया की धर्मशिक्षा से गहराई से जुड़ी है।

अपने वक्तव्य का समापन उन्होंने प्रतिनिधियों से यह आह्वान करते हुए किया कि वे एक ऐसी एशिया का सपना देखें जिसमें ख्रीस्तीय समुदाय शामिल हों जो गरीबों के अधिकारों को बढ़ावा देते और स्थानीय संस्कृति एवं प्राकृतिक सौंदर्य की रक्षा करते हैं।

याजकों के विभाग के अध्यक्ष कार्डिनल लाजारो यू ह्यूंग सिक ने 'पुरोहितीय प्रशिक्षण एक युग परिवर्तन' पर चिंतन किया। उन्होंने सवाल किया कि कौन सी कलीसिया, किस तरह के पुरोहित और किस प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता है?

उन्होंने कहा कि सब कुछ का केंद्रविन्दु बाईबिल में है- आपसी प्रेम और एक प्रभु ईश्वर के प्रति प्रेम में। कार्डिनल यू ने कहा कि बदलाव के इस समय में कलीसिया को सिनॉडल (एक साथ चलने) होने की जरूरत है, एक घर और सहभागिता के स्कूल की। पुरोहितों को सच्चे शिष्य बनना है, वे सेवा के लिए बुलाये गये हैं एक परिवार के रूप में काम करने के लिए। अतः प्रशिक्षण, घर और सेमिनरी दोनों जगह होनी चाहिए।

कार्डिनल यू ने जोर दिया कि ईश वचन हमारे प्रतिदिन के जीवन का हिस्सा बने। सभा के दौरान विचार-विमार्श के लिए नये दल बनाये गये। संध्या वंदना में एक हिन्दी भजन को भी सामिल किया गया।   

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18 October 2022, 17:29