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कनाडा के आदिवासी प्रतिनिधियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस कनाडा के आदिवासी प्रतिनिधियों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस 

कनाडा के आदिवासियों को संत पापा का संदेश

संत पापा फ्राँसिस ने 1 अप्रैल को कनाडा के तीनों आदिवासी दलों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की। उन्होंने उन्हें अपना हृदय खोलने और एक साथ यात्रा करने की इच्छा व्यक्त करने के लिए धन्यवाद दिया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022 (रेई) ˸ संत पापा फ्राँसिस ने सोमवार 28 मार्च को कनाडा के मेतिस राष्ट्र और इनसुईट तपिरित कनातामी दलों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की और बृहस्पतिवार को तीसरे दल प्रथम राष्ट्र के प्रतिनिधियों से मिले थे।

संत पापा ने प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए उन बातों को उनके सामने रखा जिनसे वे प्रभावित हैं। उन्होंने आदिवासियों की कहावत से शुरू करते हुए कहा "हर विचार-विमर्श में, हमें सातवीं पीढ़ी पर प्रभाव का ध्यान रखना चाहिए।" संत पापा ने कहा कि ये ज्ञानपूर्ण शब्द हैं, दूरदर्शी और हमारे समय में जो हो रहा है, उसके ठीक विपरीत, जहां हम भविष्य एवं आनेवाली पीढ़ी को सोचे बिना व्यावहारिक एवं तत्काल लक्ष्य की ओर दौड़ रहे हैं। बुजूर्गों एवं युवाओं के बीच संबंध महत्वपूर्ण है अतः उनकी देखभाल एवं रक्षा की जानी चाहिए अन्यथा हम अपना इतिहास एवं अपनी पहचान खो देंगे। जब कभी यादों एवं पहचानों की रक्षा की जाती है, हम अधिक मानवीय बनते हैं।

एक पेड़ की डाली

आदिवासी खुद को एक पेड़ की डाली से तुलना करते हैं। संत पापा ने कहा कि इन पेड़ों की तरह वे विभिन्न दिशाओं में फैले हुए हैं विभिन्न परिस्थितियों, ऋतुओं एवं आंधी से घिरे होने का अनुभव किया है। फिर भी वे मजबूत रहकर जड़ से जुड़े हैं जो उन्हें बल प्रदान करता है। इस तरह वे फल ला रहे हैं क्योंकि पेड़ तभी बढ़ता है जब उसकी जड़ें गहरी हों। संत पापा ने उन फलों का जिक्र किया जिनको बेहतर जानने एवं सराहना किये जाने की आवश्यकता है।

पूरी मानवता की विरासत

संत पापा ने कहा कि वे भूमि की देखभाल करते हैं और उसे शोषण की वस्तु के रूप में नहीं देखते बल्कि स्वर्ग की ओर से एक वरदान समझते हैं। उनके लिए जमीन उनके पूर्वजों की याद दिलाती है जो वहाँ विश्राम करते हैं। यदि इसे वृहद स्तर पर देखा जाए तो यह सृष्टिकर्ता, मानव समुदाय, जीव-जन्तुओं और पृथ्वी, हमारे आमघर के बीच आपसी संबंध को दर्शाता है। उन्होंने कहा, "ये सब आपको आंतरिक और बाहरी सद्भाव की तलाश करने, परिवार के लिए प्यार दिखाने और समुदाय की जीवंत भावना को बनाये रखने के लिए प्रेरित करता है।" संत पापा ने उनकी भाषा, संस्कृति, परम्परा एवं कला की समृद्धि की भी याद की जो न केवल उनकी बल्कि पूरी मानवता की विरासत है क्योंकि वे हमारे आमघर को व्यक्त करते हैं।  

उखाड़े जाने का दर्द

संत पापा ने उनकी दुखद कहानियों के लिए खेद प्रकट करते हुए कहा कि यद्यपि वे एक फलदार पेड़ की तरह हैं तथापि उन्हें उखाड़े जाने का दर्द सहना पड़ा है। ज्ञान एवं भूमि के साथ जीवन के तरीकों से गुजरनेवाली श्रृंखला को उपनिवेशवाद के द्वारा तोड़ा गया है जो उनका सम्मान नहीं की एवं उनमें दूसरी मानसिकता डालने की कोशिश की। इस तरह उनकी पहचान और संस्कृति को क्षति पहुँचायी गई, कई परिवार अलग हो गये एवं उनके बच्चे एकरूपता के शिकार हुए। उपनिवेशवादियों का विचार था कि विकास उपनिवेशी विचारधारा से होता है, लोगों के जीवन का सम्मान करने की इच्छा के बजाय कार्यालयों में तैयार किए गए कार्यक्रमों का अनुसरण किया गया। उपनिवेशवादी विचारधारा दुर्भाग्यपूर्ण है एवं विभिन्न स्तरों पर आज भी जारी है। आज भी कई तरह के राजनीतिक, विचारधारा एवं आर्थिक उपनिवेशवाद दुनिया में हैं, जो लालच एवं लाभ की त्रृष्णा से प्रेरित हैं और लोगों, उनके इतिहास, परम्परा एवं आमघर की देखभाल पर ध्यान नहीं देते। संत पापा ने खेद प्रकट करते हुए कहा कि दुर्भाग्य से यह मानसिकता आज भी फैला हुआ है। उन्होंने आह्वान किया कि हम एक साथ इससे ऊपर उठने में एक-दूसरे की मदद करें।

शोषण की कहानी

संत पापा ने आवासीय स्कूल में आदिवासियों की पीड़ा पर दुःख प्रकट करते हुए कहा, "आपकी आवाज सुनकर मैं आपकी दुखद, कठिन, भेदभावपूर्ण एवं विभिन्न तरह के शोषण की कहानी में घुसा और आपकी गहरी पीड़ा को महसूस कर पाया, खासकर, आवासीय स्कूलों में। लोगों में हीनता की भावना पैदा करने, उनकी सांस्कृतिक पहचान को लूटने, उनकी जड़ों को तोड़ने और उन सभी व्यक्तिगत एवं सामाजिक प्रभावों पर विचार करने के लिए दृढ़ प्रयासों के बारे में सोचना अत्यन्त दुःखदायी है: एक अनसुलझा आघात जो अंतरपीढ़ी आघात बन गया है।"

संत पापा ने कहा कि उनकी कहानियों को सुनने के बाद उन्हें बहुत अधिक आक्रोश और शर्म महसूस हो रहा है। आक्रोश इसलिए क्योंकि बुराई को स्वीकार नहीं किया जा सकता और उससे भी बुरा उसमें आदी हो जाना। वास्तविक आक्रोश, ऐतिहासिक स्मृति और पिछली गलतियों से सीखने की प्रतिबद्धता के बिना, समस्याएँ अनसुलझी रहती हैं और वापस आती रहती हैं। हम युद्ध में इसे देख रहे हैं। अतीत की यादों को कथित प्रगति की वेदी पर बलि नहीं चढ़ाना चाहिए।

सुसमाचार के मूल्यों के विपरीत

संत पापा ने कहा, "मैं लज्जा भी महसूस कर रहा हूँ।" काथलिक जिन्हें शैक्षणिक जिम्मेदारी मिली थी उनकी भूमिका के लिए दुःख और शर्म अनुभव कर रहा हूँ। इन सभी चीजों ने उन्हें चोट पहुंचाई, दुःख दी और उनकी पहचान, उनकी संस्कृति और यहां तक कि उनके आध्यात्मिक मूल्यों के लिए सम्मान को कम किया। ये सभी येसु ख्रीस्त के सुसमाचारी मूल्यों के विपरीत हैं। संत पापा ने माफी मांगते हुए कहा, "मैं काथलिक कलीसिया के उन सदस्यों के निंदनीय आचरण के लिए ईश्वर से क्षमा याचना करता हूँ और आप सभी से पूरे हृदय से कहना चाहता हूँ ˸ 'मैं बहुत शर्मिंदा हूँ।' काथलिक धर्माध्यक्षों के साथ मिलकर आप सभी से माफी मांगता हूँ।" विश्वास के विपरीत विश्वास को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता। येसु ने स्वागत, प्रेम, सेवा करने एवं अन्याय नहीं करने की शिक्षा दी है।

"तुम्हारा भाई कहाँ है?"

संत पापा ने आदिवासी प्रतिनिधियों से कहा कि उनके अनुभवों ने उन्हें बाईबिल के पहले पन्ने पर प्रथम पाप के बाद ईश्वर के सवाल, "तुम कहाँ हो?" (उत्प. 3:9) और उसके बाद "तुम्हारा भाई कहाँ है?" (उत्प.4,9) पर चिंतन करने के लिए प्रेरित कर रहा है। संत पापा ने कहा कि ये ऐसे सवाल हैं जिन्हें हमें पूछते रहना चाहिए। वे आवश्यक सवाल हैं और अंतकरण से उठते हैं क्योंकि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम इस पृथ्वी पर जीवन की पवित्रता के संरक्षक हैं और इस तरह हमारे भाई-बहनों के संरक्षक हैं।  

संत पापा ने उन लोगों के प्रति आभार प्रकट किया जिन्होंने विश्वास के नाम पर सम्मान, प्रेम और करुणा से उनके इतिहास को सुसमाचार से जोड़ा। संत पापा ने गौर किया कि वे येसु की नानी संत अन्ना की विशेष भक्ति रखते हैं। उन्होंने कहा, "इस साल मैं उन दिनों आपके साथ रहना चाहूँगा। आज हमें दादा-दादी और नाती-पोतों के बीच, बुजुर्गों और युवाओं के बीच की अनुबंध को फिर से स्थापित करने की जरूरत है, क्योंकि यह हमारे मानव परिवार में एकता को विकसित करने हेतु एक बुनियादी शर्त है।"

संत पापा ने अंत में आशा व्यक्त की कि यह मुलाकात एक साथ चंगाई के रास्ते पर आगे बढ़ने हेतु नया रास्ता दिखायेगी। किन्तु चंगाई की प्रभावशाली प्रक्रिया के लिए ठोस कारर्वाई की आवश्यकता है अतः उन्होंने धर्माध्यक्षों एवं ख्रीस्तीय समुदाय को प्रोत्साहन दिया कि वे सच्चाई की पारदर्शी खोज जारी रखें तथा चंगाई एवं मेल-मिलाप को बढ़ावा दें। उन्होंने कहा कि कलीसिया आपके साथ है एवं आपके साथ यात्रा करती रहेगी। संवाद ज्ञान और साझा करने की कुंजी है।

संत पापा ने उनके शब्दों एवं साक्ष्यों के लिए धन्यवाद दिया तथा उनसे मिलने उनकी भूमि जाने का आश्वासन दिया। अंत में, उन्होंने उन्हें, उनके परिवारों एवं समुदायों के लिए प्रार्थना एवं ईश्वर के आशीष की कामना की।

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01 April 2022, 16:33