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प्रदर्शन करते ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी प्रदर्शन करते ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी 

आदिवासी बच्चों की आत्महत्या पर ऑस्ट्रेलियाई कलीसिया की चिंता

काथलिक समाज सेवा ऑस्ट्रेलिया ने एक रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि आदिवासी एवं टोर्रेस स्ट्रेट द्वीप के बच्चों की आत्महत्या देश के लिए शर्मनाक है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

ऑस्ट्रेलिया, बृहस्पतिवार, 21 अक्टूबर 2021 (वीएनएस)- काथलिक समाज सेवा ऑस्ट्रेलिया ने एक रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि आदिवासी एवं टोर्रेस स्ट्रेट द्वीप के बच्चों की आत्महत्या देश के लिए शर्मनाक है।

ऑस्ट्रेलियाई सांख्यिकी ब्यूरो द्वारा प्रकाशित एक नये रिपोर्ट में दिखलाया गया है कि साल 2016 से 2020 के बीच 5 - 17 साल के बच्चों की मौत हुई है। यह भी पाया गया है कि आदिवासी बच्चों की एक तिहाई मौत आत्महत्या के कारण हुई है। रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि साल 2020 में कुल 223 आदिवासी नाबालिगों ने आत्महत्या की।

उच्च आत्महत्या दर

आत्महत्या करनेवालों में ऑट्रेलिया के अन्य लोगों की अपेक्षा युवा आदिवासियों की संख्या अधिक है। आंकड़ा से पता चला है कि आदिवासी आस्ट्रेलियाई लोगों में प्रति 100,000 लोगों पर आत्महत्या की दर क्रमशः 0-24 और 25-44 वर्ष की आयु के लोगों में 16.7 और 45.7 थी। ये दरें संबंधित आयु समूहों में गैर-आदिवासी आस्ट्रेलियाई लोगों की तुलना में 3.2 और 2.8 गुना अधिक थीं।

देश के लिए शर्म की बात

काथलिक समाज सेवा ऑस्ट्रेलिया ने इसे देश के लिए शर्मनाक कहा है। काथलिक समाज सेवा के अध्यक्ष फ्राँसिस सुलीवन ने कहा, "आदिवासी लोग हमें बतला रहे हैं कि समस्या क्या है और हमें इसे सुनना चाहिए।" उन्होंने कहा कि आदिवासी लोगों की आत्महत्या के कारण हो सकते हैं – मानसिक रोग से ग्रसित लोगों का इलाज नहीं होना, बाल यौन शोषण से सदमा और दुराचार आदि, इनके साथ ही वे भूमि एवं संस्कृति के खोने के कारण, अंतरपीढ़ी आघात, जातिवाद और सामाजिक शोषण की तबाही से पीड़ित हैं।

मेल-मिलाप हेतु कलीसिया की प्रतिबद्धता

ऑस्ट्रेलिया की कलीसिया लम्बे समय से प्रथम राष्ट्रीय समुदायों के ऐतिहासिक घावों की चंगाई के लिए सक्रिय रूप से समर्पित है। आदिवासी लोगों के साथ एकात्मता एवं मेल-मिलाप ऑस्ट्रेलिया की पाँचवीं आम समिति की कार्यसूची है जिसकी शुरूआत अक्टूबर के आरम्भ में हुई है।

24 सितम्बर को ऑस्ट्रेलिया के काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अध्यक्ष महाधर्माध्यक्ष मार्क कोलेरिज ने याद किया कि आदिवासी दो शताब्दियों से हाशिये पर जीवनयापन करने, भेदभाव एवं कठिनाइयों का सामना करने के लिए मजबूर हैं। "सिर्फ पत्थर का हृदय" उन्हें इस तरह जीने दे सकता है कि वे अपनी ही भूमि में अजनबी, निर्वासित और शऱणार्थी बनकर रह रहे हैं।   

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21 October 2021, 14:52