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वाटिकन न्यूज के साथ एक साक्षात्कार में जेस्विट फादर फेदरिको लोम्बारदी वाटिकन न्यूज के साथ एक साक्षात्कार में जेस्विट फादर फेदरिको लोम्बारदी 

पोप रतज़िगर ने कलीसिया में बुराई को छिपाने की कोशिश कभी नहीं की

जोसेफ रतज़िगर फाऊँडेशन के निदेशक एवं सम्मान सेवानिवृत संत पापा बोनेडिक्ट 16वें के पूर्व प्रवक्ता जेस्विट फादर फेदरिको लोम्बारदी ने कहा है कि "एक सहयोगी के रूप में मैं कह सकता हूँ कि उनके लिए सत्य की सेवा ही पहले स्थान पर थी, चाहे यह कष्टदायक ही क्यों न हो।"

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 8 फरवरी 2022 (रेई)-  फादर फेदरिको लोम्बारदी ने ससम्मान सेवानिवृत संत पापा द्वारा जारी पत्र पर टिप्पणी करते हुए कहा है, "मैं उनकी ईमानदारी, उनकी प्रगाढ़ता एवं विचार-गंभीर्य से अत्यन्त प्रभावित था।"

गाब्रिएला चेरासो के साथ एक साक्षात्कार में फादर लोम्बारदी ने ये बातें कहीं हैं।

इस पत्र में आपको क्या प्रभावित करता है?

उत्तर – मैं उसकी ईमानदारी, उनकी प्रगाढ़ता एवं विचार-गंभीर्य से अत्यन्त प्रभावित था। जैसा कि वे पत्र में कहते हैं, उन्होंने एक पीड़ादायक दौर में जीया, जिसमें उन्होंने अंतःकरण की, अपने आपकी, अपने जीवन की, अपने व्यवहार तथा आज की कलीसिया की स्थिति की जाँच की। उन्होंने इसपर चिंतन किया। पत्र जो ईश्वर के सामने एक गहरे, पीड़ादायक ईमानदारी से की गई जाँच का परिणाम है। वे एक बुजूर्ग व्यक्ति हैं वे जानते हैं कि वे प्रभु से मुलाकात की ओर आगे बढ़ रहे हैं अतः ईश्वर के न्याय आसन्न की ओर जा रहे हैं और वे बड़ी ईमानदारी से बोलते हैं। पत्र की गहराई और जिस तरह वे जीते हैं, उत्तर देता है कि उन्होंने सचमुच चिंतन किया है एवं पीड़ा का अनुभव किया है, बल्कि कलीसिया के विवादों, उलझनों एवं घबराहट को झेला है...वे एक मदद के रूप में अपना साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं, ताकि परिस्थिति एवं संभावनाओं को सच्चाई से, निष्पक्ष रूप से एवं ईमानदारी तथा शांति के साथ देखा जा सके।

पत्र में उनकी क्षमायाचना का क्या अर्थ है?

ससम्मान सेवानिवृत संत पापा बेनेडिक्ट अपने आपको उस स्थिति में प्रस्तुत करते हैं जिसमें वे हर दिन जीते हैं, पवित्र मिस्सा बलिदान अर्पित करना। मिस्सा के आरम्भ में, प्रभु से मुलाकात हेतु क्षमायाचना की जाती है जिसको वे हमेशा गहराई से महसूस करते हैं। और इसमें उनकी व्यक्तिगत स्थिति एवं कलीसिया की स्थिति पर चिंतन दिखाई पड़ती है। अतः वे इन शब्दों को रखते हैं जिनको हमने अनगिनत बार दुहराया है – मेरे कसूर से, मेरे कसूर से, मेरे भारी कसूर से- इसका विशेष अर्थ है। वे स्पष्ट रूप से देखने की कोशिश करते हैं कि भारी कसूर की प्रकृति क्या है जिसमें पूरी कलीसिया के साथ वे भी फंसे हुए महसूस करते हैं। वे स्पष्ट करते हैं कि यह एक सवाल है इस समय और उनके चिंतन के समय कि भारी कसूर पूरे यौन दुराचार के मामले के लिए है। वे अपने इस पछतापी चिंतन को दुराचार के सभी पीड़ितों के सामने प्रस्तुत करते हैं। वे पीड़ितों के साथ अपनी मुलाकातों की भी याद करते और पीड़ितों की पीड़ा की गंभीरता को भी महसूस करते हैं। वे बड़ी ईमानदारी एवं स्पष्ट रूप से, अपनी लज्जा, दुःख एवं क्षमायाचना हेतु आग्रह करते हैं। इन अभिव्यक्तियों को हमने हाल में संत पापा फ्राँसिस की यात्रा के दौरान उनके मुख से भी सुना था। वे लोगों की भी गहराई से याद करते हैं जो दुर्व्यवहार के विषय पर, म्यूनिक महाधर्मप्रांत में उनके शुरुआती अनुभवों से लेकर रोम में उनकी ज़िम्मेदारी तक, यहां तक कि परमधर्मपीठ में भी, उनके पूरे इतिहास की थोड़ी समीक्षा की हैं।  

दुराचार, रतज़िगर ˸ 'शर्म, दुःख, सारे दिल से क्षमा की याचना'  

इस चिंतन को भावात्मक या सामान्य नहीं बल्कि ठोस समझा जाना चाहिए। उन्होंने पीड़ितों के प्रति ध्यान नहीं दिये जाने को, येसु की पीड़ा के सामने शिष्यों के सो जाने के समान कहा है जिससे पीड़ितों को स्वाभाविक रूप से अधिक दुःख हुआ है। इस कष्ट एवं अपराध से लड़ने के लिए पर्याप्त प्रतिबद्धता नहीं दिखाई गई है। अतः वे सच्ची घटना का जिक्र करते हैं, वे कोई निराकार या सामान्य विवाद उत्पन्न नहीं करते। क्षमा की याचना के अंत में वे अपने लिए प्रार्थना की मांग करते हैं। वे ईश्वर किन्तु अपने भाइयों एवं बहनों को भी सम्बोधित करते हैं, इस प्रकार पीड़ितों एवं पूरी कलीसिया को सम्बोधित करते हैं कि वे इस भारी कसूर में ईश्वर के सामने फंसे हुए हैं।  

यह एक विस्तृत सवाल है जिसमें वे फंसे हुए महसूस करते एवं पूरी सच्चाई की गंभीरता को देखते हैं जिसके लिए उन्हें क्षमा मांगना है, अपने आपको शुद्ध करना और अपनी पूरी शक्ति से मन-परिवर्तन एवं सुसमाचार की मांग के लिए अधिक निष्ठावान बनना है।  

पोप बेनेडिक्ट 16वें पर आरोप है कि उन्होंने जनवरी 1980 की सभा में भाग लिया था, जिसमें एक दुराचारी पुरोहित को म्यूनिक महाधर्मप्रांत में स्वीकार करने का निर्णय लिया गया था, क्या हुआ?

ससम्मान सेवानिवृत पोप के पत्र में इसके संदर्भ में भी बात की गई है और उसके बाद पूरक अंश में अधिक विस्तार से व्याख्या प्रकाशित की गई है, जिसपर सलाहकारों और कानूनी विशेषज्ञों द्वारा हस्ताक्षर किया गया है, जिन्होंने पोप के दावों में उनके जवाब की मदद की है, पहले उत्तर और अब इस मामले में निर्णायक स्थिति पर। पहले जवाब में एक गलती थी – यह लम्बी थी 82 पृष्टों की- जिसे उन्हें सौंपी गई थी जो रिपोर्ट का मसौदा तैयार कर रहे थे। उसमें कहा गया था कि पोप ने बैठक में भाग नहीं लिया था। कुछ दिनों बाद रिपोर्ट की प्रकाशना पर स्वयं संत पापा बेनेडिक्ट 16वें ने स्वभाविक रूप से एक बयान में कहा था, "नहीं, यह सही नहीं है। मैंने इस सभा में भाग लिया था, और मैं इसके लिए स्पष्टीकरण मांगूँगा कि यह भूल किस तरह हुई। जिसने निश्चित रूप से एक उलझन और एक गूँज उत्पन्न की।" पूरक अंश में, जिन्होंने इस उत्तर का मसौदा तैयार किया था, बतलाया कि किस तरह इस लम्बे उत्तर का मसौदा तैयार करते समय ऐसा हो गया था। उन्होंने स्पष्टीकरण दिया कि इससे सच्चाई के अर्थ में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा कि महाधर्माध्यक्ष रतज़िगर, पुरोहित के खिलाफ यौन दुराचार की वास्तविकता को नहीं जानते थे और इसलिए गलती (सभा में नकी उपस्थिति) प्रारूपण में निरीक्षण का परिणाम था, न कि जानबूझकर उनकी उपस्थिति को इंकार किया गया था (जो किसी भी मामले में बैठक के प्रोटोकॉल और अन्य विचारों से स्पष्ट था) और इसलिए इससे इंकार करने का कोई कारण नहीं था।  

दिल की गहराई से एक व्यक्तिगत दोष-स्वीकृति

यहाँ, मैं, बहुत विस्तार में नहीं जाऊँगा। संकेत यह है कि ससम्मान सेवानिवृत संत पापा बेनेडिक्ट 16वें इस आरोप से दुःखी हुए कि उन्हें झूठा करार दिया गया कि ठोस परिस्थिति को जानते हुए भी उन्होंने झूठ बोला। इतना ही नहीं, पूरे रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि वे जानबूझकर, दुराचारी व्यक्तियों को ढंके और इसलिए, पीड़ित लोगों की पीड़ा एवं उनके लिए अवमानना ​​के प्रति उनमें ध्यान की कमी थी। इसपर सेवानिवृत संत पापा जवाब देते हैं कि "मैं झूठा नहीं हूँ। इस आरोप ने मुझे बड़ा दुःख दिया है किन्तु में प्रमाणित करता हूँ कि मैं झूठा नहीं हूँ। मुझे कहना चाहिए कि मैं व्यक्तिगत स्तर पर भी पूरी तरह आश्वस्त हूँ।" मैं सोचता हूँ कि यह सही ही है कि वे अपनी सत्यता साबित करें। क्योंकि यह उनके व्यक्तित्व की विशेषता है और उनके पूरे जीवन में उनका व्यवहार रहा है जिसको मैं भी कई सालों तक सहयोगी के रूप में उनके काफी करीब रहने के कारण प्रमाणित कर सकता हूँ। सत्य की सेवा हमेशा पहले स्थान पर थी। उन्होंने कभी भी उन चीजों को रद्द करने की कोशिश नहीं की जिन्हें कलीसिया को स्वीकार करने में पीड़ा हो; उन्होंने कभी भी कलीसिया के स्वभाव या क्या हो रहा है उसकी गलत छवि देने की कोशिश नहीं की। अतः मैं पूर्ण विश्वास करता हूँ कि उनकी सत्यता पर किसी तरह से संदेह नहीं किया जाना चाहिए। और वे इसका साक्ष्य देते हैं एवं मैं मानता हूँ कि इसे भरोसे और दृढ़ विश्वास के साथ स्वीकार किया जाना चाहिए।  

क्या आप सोचते हैं कि यह पत्र, खासकर इस कठिन समय में कलीसिया के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है?

निश्चित रूप से, यह पत्र पीड़ितों की पीड़ा के साथ होने और उसे साझा करने के एक बहुत ही गहरे और सच्चे पश्चातापपूर्ण मनोभाव को प्रकट करता है, बल्कि इसका अर्थ न केवल पीडितों के लिए किन्तु कलीसियाई समुदाय के लिए भी है। और मैं मानता हूँ कि ईश्वर के सामने यह सच्चे पश्चाताप की भावना, एक महान ख्रीस्तीय साक्ष्य है जिसको उन्होंने हमारे लिए दिया है।  

एक अंतिम आयाम, जिसको वे पत्र में व्यक्त करना चाहते थे और जिसको मैं महत्वपूर्ण मानता हूँ, यद्यपि - भारी कसूर - की गंभीरता एवं हमपर इसके परिणाम के भार को स्वीकार करना सही है, तथापि आध्यात्मिक रूप से हमें आशा नहीं खोनी चाहिए। ईश्वर के न्याय का सामना करने का अनुभव, जो निकट है, उनके जीवन के अंत में, वे कहते हैं˸ "लेकिन इस परिस्थिति में, मैं न्याय से कितना भी डरूं या घबराऊँ? ईश्वर के सामीप्य को एक एक मित्र, एक भाई के रूप में महसूस करता हूँ और ईश्वर की कृपा का एहसास करता हूँ कि यह मुझे मृत्यु के द्वार से पार होने और प्रभु से मुलाकात करने में मदद देगा। अतः हम जिस बड़े अपमान की परिस्थिति में जी रहे हैं, पीड़ितों के साथ एवं जो कुछ हुआ है इसके लिए कलीसिया के एक बड़े दुःख का सामना कर रहे हैं, यह हमें हताश न करे। हमें प्रभु की कृपा को देखते रहना है, उनपर भरोसा रखना है।

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09 February 2022, 12:17