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म्यूनिख महाधर्मप्रांत में पीडोफिलिया रिपोर्ट की किताबें म्यूनिख महाधर्मप्रांत में पीडोफिलिया रिपोर्ट की किताबें  (AFP and licensors) संपादकीय

म्यूनिख रिपोर्ट और कार्डिनल रात्ज़िंगर की दुर्व्यवहार के खिलाफ लड़ाई

जांच के प्रकाशन के बाद, सेवानिवृत बवेरियन संत पापा के धर्माध्यक्षीय वर्ष सुर्खियों में हैं। संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें के परमाध्यक्षीय काल में पुरोहितों के पीडोफिलिया के खिलाफ लड़ाई और पीड़ितों से मिलने, उनकी बातें सुनने और उनसे क्षमा मांगने की इच्छा को याद करना उचित है।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार 26 जनवरी 2022 (वाटिकन न्यूज) : प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान म्यूनिख महाधर्मप्रांत में दुर्व्यवहार पर रिपोर्ट पेश करने के लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल किया गया था, साथ ही कार्डिनल जोसेफ रात्ज़िंगर के संक्षिप्त बवेरियन धर्माध्यक्ष को समर्पित दस्तावेज़ के बहत्तर पृष्ठों ने बीते सप्ताह के समाचार पत्रों को भर दिया है और कुछ बहुत ही मजबूत टिप्पणियों को पेश किया है। सेवानिवृत संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें, अपने सहयोगियों की मदद से, म्यूनिख महाधर्मप्रांत द्वारा कमीशन की गई कानूनी फर्म के सवालों का जवाब दिया है, जो एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए कार्डिनल माइकल वॉन फॉल्हाबर के धर्माध्यक्षीय समय से लेकर वर्तमान कार्डिनल रेनहार्ड मार्क्स तक लंबे समय की जांच करता है। धर्मप्रांतीय अभिलेखागार में कुछ दस्तावेजों की जांच करने में सक्षम होने के बाद, संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने 82-पृष्ठ की प्रतिक्रिया प्रदान की। अनुमानतः बवेरियन धर्मप्रांत के शीष के रुप में धर्माध्यक्ष रात्ज़िंगर के साढ़े चार साल थे जिसने टिप्पणीकारों का ध्यान आकर्षित कर लिया।

कुछ आरोप दस वर्षों से अधिक समय से ज्ञात हैं और महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मीडिया द्वारा पहले ही प्रकाशित किए जा चुके हैं। आज, रात्ज़िंगर के खिलाफ चार मामले लड़े जा रहे हैं और उनके निजी सचिव, महाधर्माध्यक्ष जॉर्ज गेन्सविन ने घोषणा की है कि संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें रिपोर्ट की जांच पूरी करने के बाद एक विस्तृत बयान जारी करेंगे। इस बीच, हालांकि संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें द्वारा इन अपराधों की बार-बार की गई निंदा को दोहराया जा सकता है और हाल के वर्षों में कलीसिया द्वारा उठाए गए कदमों को उनके परमाध्यक्षीय काल से शुरू किया जा सकता है।

बाल शोषण एक जघन्य अपराध है। पुरोहितों द्वारा नाबालिगों के खिलाफ किया गया दुर्व्यवहार संभवतः एक और भी अधिक जघन्य अपराध है और यह पिछले दो परमाध्यक्षों द्वारा अथक रूप से बारंबार कहा गया है: यह एक ऐसा पाप है जो ईश्वर के सामने प्रतिशोध की गुहार लगाता है कि छोटे लोग पुरोहितों या धर्मसंघियों की ओर से हिंसा के शिकार होते हैं जिन्हें उनके माता-पिता ने विश्वास में शिक्षित होने के लिए उन्हें सौंपा है। यह अस्वीकार्य है कि वे धर्मगुरुओं के वेश में छिपे यौन शिकारियों का शिकार हो जाते हैं। इस विषय पर सबसे उचित शब्द येसु द्वारा उच्चारित किए गए हैं: जो छोटों को बदनाम करते हैं, उनके गले में चक्की का पाट लटकाना और समुद्र में फेंक देना ही बेहतर है।

यह नहीं भुलाया जा सकता है कि विश्वास एवं धर्म सिद्धांत के लिए बनी परमधर्मपीठीय परिषद के अध्यक्ष के रूप में, कार्डिनल रात्ज़िंगर, पहले से ही संत पापा जॉन पॉल द्वितीय के परमाध्यक्षीय काल के अंतिम चरण में इस घटना से लड़ चुके थे, जिनके वे एक करीबी सहयोगी थे और एक बार जब वे परमाध्यक्ष बने तो पीडोफिलिया से निपटने के लिए विशेष कानून और याजकीय दुर्व्यवहार करने वालों के खिलाफ बहुत कठोर मानदंड प्रख्यापित किया। इसके अलावा, अपने ठोस उदाहरण द्वारा संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने मानसिकता के उस परिवर्तन की तात्कालिकता की गवाही दी, जो दुर्व्यवहार की घटना का मुकाबला करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है: पीड़ितों को सुनना और उनसे निकटता बनाये रखना। पीड़ितों से हमेशा क्षमा मांगी जानी चाहिए। बहुत लंबे समय तक प्रताड़ित बच्चों और उनके रिश्तेदारों का स्वागत करने और पीड़ित व्यक्तियों के उपचार करने के बजाय उनसे फासला बनाये रखा गया है। दुर्भाग्य से, उन्हें अक्सर दूर रखा गया है और यहां तक​​कि उन्हें कलीसिया के "दुश्मन" के रूप में इंगित किया गया है।

अपनी प्रेरितिक यात्राओं के दौरान कई बार दुर्व्यवहार के शिकार लोगों से मिलने वाले पहले परमाध्यक्ष थे। संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने आयरलैंड और जर्मनी में दुर्व्यवहार घोटालों के तूफान के बीच, एक पश्चातापी कलीसिया के चेहरे को बरकरार रखा, जो माफी मांगने हेतु खुद को विनम्र करती है,  जो दर्द, करुणा,पश्चाताप और निकटता महसूस करती है।

इस पश्चातापपूर्ण छवि में संत पापा बेनेडिक्ट के संदेश का सार निहित है। कलीसिया एक व्यवसाय नहीं है, यह केवल अच्छी प्रथाओं या आवेदन द्वारा नहीं बचायी जाता है, भले ही यह सख्त और अनिवार्य प्रभावी मानदंड हो। कलीसिया को प्रभु से क्षमा, सहायता और मुक्ति मांगने की आवश्यकता है। उन्हें क्रूसित प्रभु ही क्षमा दे सकते हैं जो हमेशा पीड़ितों के पक्ष में रहते हैं, न कि जल्लादों के।


मई 2010 में लिस्बन जाने वाली उड़ान में अत्यधिक स्पष्टता के साथ, संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने स्वीकार किया कि "कलीसिया के कष्ट कलीसिया के अंदर से आते हैं, कलसिया के भीतर मौजूद पाप से। हम हमेशा से जानते हैं, लेकिन अब हम इसे वास्तव में भयावह तरीके से देखते हैं: कलीसिया का सबसे बड़ा उत्पीड़न बाहरी दुश्मनों से नहीं आता है, लेकिन कलीसिया के भीतर पाप से पैदा होता है और कलसिया को फिर से गहराई से पश्चाताप सीखने की जरूरत है। शुद्धिकरण को स्वीकार करें, एक तरफ क्षमा मांगना सीखें और दूसरी तरफ न्याय की आवश्यकता को देखें। क्षमा न्याय की जगह नहीं ले सकती।" इन शब्दों द्वारा पहले और बाद के याजकीय पीडोफिलिया के संकट के खिलाफ लड़ाई में ठोस तथ्य सामने आए। यह सब न तो भुलाया जा सकता है और न ही मिटाया जा सकता है।

इसे याद रखना चाहिए कि म्यूनिख रिपोर्ट में निहित ब्योरे, एक न्यायिक जांच नहीं है और न ही एक अंतिम वाक्य, जो कलीसिया में पीडोफिलिया से निपटने में मदद करेगा, अगर उन्हें आसान बलि का बकरा और सारांश निर्णय की तलाश में कम नहीं किया जाता है। केवल इन जोखिमों से बचकर ही वे सत्य में न्याय की खोज और अतीत की त्रुटियों पर अंतःकरण की सामूहिक परीक्षा में योगदान दे सकेंगे।

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27 January 2022, 10:59