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सिनॉड के उद्घाटन के दौरान चिंतन प्रस्तुत करते संत पापा फ्राँसिस सिनॉड के उद्घाटन के दौरान चिंतन प्रस्तुत करते संत पापा फ्राँसिस 

सिनॉड पर पोप ˸ हरेक की सहभागिता, पवित्र आत्मा से प्रेरित

संत पापा फ्रांसिस ने शनिवार 9 अक्टूबर को वाटिकन के सिनॉड हॉल में, सिनॉड का उद्घाटन करते हुए धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के प्रतिभागियों के सामने चिंतन प्रस्तुत किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शनिवार, 9 अक्तूबर 2021 (रेई)- संत पापा फ्राँसिस ने 9 अक्टूबर को धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के उद्घाटन पर सिनॉड हॉल में चिंतन प्रार्थना में भाग लिया। 10 अक्टूबर को संत पेत्रुस महागिरजाघर में समारोही ख्रीस्तयाग के साथ, रोम धर्मप्रांत के सिनॉड का उद्घाटन किया जाएगा। 17 अक्टूबर को पूरे विश्व के धर्मप्रांतों में स्थानीय स्तर पर सिनॉड का उदघाटन होगा।

आगामी 16वीं धर्माध्यक्षीय धर्मसभा की विषयवस्तु है, "एक सिनॉडल कलीसिया के लिए ˸ एकता, सहभागिता एवं मिशन।”  सिनॉडालिटी एक साथ चलने और एक-दूसरे को सुनने का संकेत देता है किन्तु सबसे बढ़कर पवित्र आत्मा को सुनने के लिए प्रेरित करता है। सिनॉड में सभी विश्वासी भाग ले सकें, इसी उद्देश्य से सुनने की प्रतिज्ञा के साथ, इसकी शुरूआत विश्वभर की स्थानीय कलीसियाओं में विश्वासियों के साथ हो रही है। यह सिनॉड 2 साल का है जिसकी शुरूआत 10 अकटूबर 2021 को होगी और समापन अक्टूबर 2023 को होगा।

हमें एकता को संभालना और सुदृढ़ रखना है

संत पापा ने चिंतन के दौरान सिनॉड के प्रतिभागियों को सम्बोधित कर कहा, "मैं आप सभी को सिनॉड के उद्घाटन में उपस्थित होने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ। आप अलग-अलग रास्तों एवं विभिन्न कलीसियाओं से अपने सवालों एवं उम्मीदों को लेकर आये हैं। मैं विश्वास करता हूँ कि एक-दूसरे को सुनने और समय जिसमें हम जी रहे हैं उसकी समझ प्राप्त करने, सारी मानवता के संघर्षों और आकांक्षाओं के साथ एकजुटता में पवित्र आत्मा हमारा मार्गदर्शन करेगा और एक साथ आगे बढ़ने की कृपा प्रदान करेगा। इस सिनॉड में हम, येसु के अपने शिष्यों की ओर से पिता के पास की गई प्रार्थना ˸ "कि वे सब के सब एक हो जाएँ" (यो.17˸21) की भावना से प्रेरित होकर, हम एकता, समन्वय और भ्रातृत्व के लिए बुलाये गये हैं। जो इस भावना से उत्पन्न हुआ है कि हम बिना किसी भेदभाव के सभी ईश्वर के एक ही प्रेम से आलिंगन किये गये हैं। जैसा कि संत सिप्रियन ने लिखा है ˸ "हमें इस एकता को संभालना और सुदृढ़ बनाए रखना है, सबसे बढ़कर, हम धर्माध्यक्षों को जो कलीसिया का संचालन करते हैं, यह दिखाने के लिए कि धर्माध्यक्षीय वर्ग ही अपने आप में एक और अविभाजित है। हम ईश्वर की प्रजा हैं अतः हम एक साथ आगे बढ़ें ताकि हम एक ऐसी कलीसिया को महसूस कर सकेंगे जो एकता के वरदान को ग्रहण करती एवं जीती है, तथा जो पवित्र आत्मा की आवाज के लिए खुली है।"

सिनॉड के तीन शब्द

सिनॉड के तीन शब्द हैं ˸ एकता, सहभागिता और मिशन। एकता और मिशन ईशशास्त्रीय शब्द हैं जो कलीसिया के रहस्य के बारे बतलाते हैं। द्वितीय वाटिनक महासभा ने स्पष्ट सिखलाया है कि एकता कलीसिया का स्वभाव है, जिसे "सभी लोगों के बीच मसीह और ईश्वर के राज की घोषणा करने एवं उसे स्थापित करने का मिशन प्राप्त है और वह पृथ्वी पर उस राज का बीज बोती और उसकी शुरुआत करती है।" (लुमेन जेनसियुम, 5)

इन दो शब्दों से कलीसिया पवित्र तृत्वमय ईश्वर के जीवन पर चिंतन करती एवं उसका अनुकरण करती है, जो एकता के रहस्य में प्रवेश करती और मिशन के लिए प्रेषित है।

संत पौल छटवें के अनुसार "एकता, जो सामंजस्य और कृपा, सच्चाई एवं सहयोग ...तथा मिशन में आंतरिक परिपूर्णता है, आज के विश्व के प्रति प्रेरितिक प्रतिबद्धता है।" संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने जोर दिया है कि सेवा (कोईनोनिया) ईश्वर के साथ मानव परिवार की संयुक्ति के चिन्ह स्वरूप कलीसिया की सेवा के मिशन को बढ़ाती है।

यही कारण है कि पोप फ्रांसिस ने कहा कि सिनॉड को अच्छी तरह तैयार किया जाना चाहिए, खासकर, स्थानीय स्तर पर सभी लोगों की सहभागिता के साथ।  

सभी सहभागी होने के लिए बुलाये गये हैं

उन्होंने कहा कि "एकता" और "मिशन" व्यर्थ हो सकते हैं यदि सिनॉड की यात्रा और कार्यों के हर चरण में सिनॉडालिटी को ठोस रूप से व्यक्त न किया जाए तथा सभी की सहभागिता को प्रोत्साहित न किया जाए। हर बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति कलीसिया के जीवन और मिशन में भाग लेने के लिए बुलाया गया है। उन्होंने धर्मप्रांतों और पल्लियों में प्रेरिताई कार्य में लगे कई ईकाईयों और महिलाओं की निराशा और अधीरता को स्वीकार किया जो बहुधा किनारे रह जाते हैं। संत पापा ने जोर देते हुए कहा, "सभी लोगों की सहभागिता को संभव बनाना कलीसिया मुख्य कर्तव्य है।"

तीन खतरों से दूर रहना

संत पापा ने चेतावनी दी कि एक सिनॉड "सच्ची आध्यात्मिक समझ की एक प्रक्रिया" होने के बदले, सिर्फ एक औपचारिक बाह्य घटना बनकर रह सकता है, जिसको हम अपनी सुन्दर छवि को दिखाने के लिए नहीं बल्कि इतिहास में ईश्वर के कार्य को अधिक प्रभावशाली ढंग से सहयोग देने के लिए करते हैं। यही कारण है कि हमें उन सामग्रियों, साधनों और संरचनाओं की जरूरत है जो ईश्वर की प्रजा के बीच संवाद एवं विचार-विमर्श को प्रोत्साहित कर सकें, खासकर, पुरोहितों एवं लोकधर्मियों के बीच। इसके लिए कलीसिया, पुरोहितों की सेवा, लोकधर्मियों की भूमिका, कलीसियाई जिम्मेदारियों, प्रशासन की भूमिका, आदि की अत्यधिक ऊर्ध्वाधर, विकृत और आंशिक दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है।     

दूसरा खतरा है सिनॉड का बौद्धिक बनना, कलीसिया की समस्याओं और हमारी दुनिया के बारे में प्रबुद्ध किन्तु अमूर्त दृष्टिकोण पेश करना। जो ईश्वर की पवित्र प्रजा और दुनिया के समुदायों के ठोस जीवन की वास्तविकता से बहुत दूर हो।  

संत पापा ने कहा कि तीसरा खतरा जिससे सिनॉड को दूर रहना है, वह है आत्मसंतुष्टि का प्रलोभन। "हमने हमेशा इसी तरीके से किया है और बेहतर होगा कि इसे न बदला जाए।" इस तरह की विचारधारा के लोग नई समस्या में पुराना समाधान लागू करने की कोशिश करते हैं। संत पापा ने जोर दिया कि सिनॉडल प्रक्रिया ठीक इसी तरह बनने की एक प्रक्रिया है जिसमें स्थानीय कलीसियाएँ, विभिन्न चरणों में और नीचे से ऊपर तक, एक रोमांचक और आकर्षक प्रयास में शामिल हैं जो मिशन के लिए निर्देशित सहभागिता और भागीदारी की शैली बना सकते हैं।"

तीन अवसरें

संत पापा ने कहा कि मुलाकात, सुनने और चिंतन की सिनॉडल प्रक्रिया, ईश प्रजा या कलीसिया की मदद करती है कि वह तीन अवसरों को पहचानें। सबसे पहले, इसे कभी-कभी नहीं बल्कि संरचनात्मक रूप से एक सिनॉडल कलीसिया की ओर बढ़ना चाहिए, जिसमें सभी सहज महसूस कर सकें और भाग ले सकें।

दूसरा, सिनॉड हमें सुननेवाली कलीसिया बनने का अवसर प्रदान करती है, हमें हमारी आदतों को तोड़ना है ताकि हम रूकें और सुन सकें। पहले आराधना एवं प्रार्थना की भावना और उसके बाद हमारे भाई एवं बहनों में, उनकी आशा, दुनिया में विश्वास की पुकार, नवीकृत प्रेरितिक जीवन की आवश्यकता में हम इसे कर सकते हैं।

सिनॉड एक अवसर है जब कलीसिया एक सामीप्य बनती है किन्तु यह अपनी उपस्थिति के द्वारा समाज और दुनिया के साथ मित्रता का अधिक गहरा संबंध स्थापित करती है। संत पापा ने कहा कि कलीसिया को लोगों के जीवन से दूर नहीं होना चाहिए बल्कि उसे अपने आपको आज की समस्याओं में डालना चाहिए, घावों पर पट्टी बांधना और ईश्वर के मलहम से टूटे हृदयों को चंगा करना चाहिए।  

दूसरी कलीसिया नहीं बल्कि एक अलग कलीसिया

यही कारण है कि संत पापा ने कहा है कि हमें ईश्वर के नये सांस की, आत्मा की जरूरत है, जो हमें हर प्रकार की आत्‍मलीनता से मुक्त कर दे, जो मरणासन्न हैं उसे पुनर्जीवित कर दे, बेड़ियों को तोड़ दे और आनंद फैलाये। दोमिनिकन फादर यूवेस मारिया जोसेफ कोंगार के शब्दों का हवाला देते हुए संत पापा ने कहा, "दूसरी कलीसिया बनाने की कोई जरूरत नहीं है बल्कि एक अलग कलीसिया बनाना है।" संत पापा ने "अलग कलीसिया" के लिए सभी लोगों को, पवित्र आत्मा से अधिक उत्साह, आवृत्ति और नम्रतापूर्वक सुनने की कृपा की याचना करने का आह्वान किया।

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09 October 2021, 16:26