इराक में पोप की उपस्थिति ने ईसाई समुदाय के लिए "भय के घेरे" को तोड़ा
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
इराक, बृहस्पतिवार, 15 अप्रैल 2021 (वीएनएस)- इराक में संत पापा फ्राँसिस की प्रेरितिक यात्रा के बाद बेबीलोन के खदलेई प्राधिधर्माध्यक्ष कार्डिनल मार लुईस रफाएल साको ने इस सप्ताह मध्यपूर्वी कलीसियाओं के परिषद के साथ एक ऑनलाइन सभा में भाग लिया। सभा में महासचिव डॉ. मिखाएल अब्स, सहायक महासचिव फादर डॉ. निकोलस बुसट्रोस एवं विभाग के निदेशक ने भी भाग लिया।
सभा पर प्रकाश
मध्यपूर्वी कलीसियाओं के परिषद के वेबसाईट के अनुसार, सभा का मुख्य उद्देश्य था इस ऐतिहासिक यात्रा के लक्ष्यों को प्राप्त करने और मध्यपूर्व में ख्रीस्तीयों की उपस्थिति, अंतरधार्मिक वार्ता और इराक में शांति एवं नागरिकता की संस्कृति के प्रसार में मध्य पूर्वी कलीसियों की परिषद की भूमिका पर गौर करना।
संत पापा की यात्रा का सकारात्मक प्रभाव
सभा में हुई चर्चाओं के बारे बतलाते हुए कार्डिनल साको ने प्रेरितिक यात्रा के सकारात्मक प्रभाव पर प्रकाश डाला। उन्होंने बतलाया कि संत पापा फ्राँसिस की उपस्थिति ने किस तरह ख्रीस्तीय समुदाय के प्रति डर के घेरे को तोड़ दिया है और उन्हें साहस प्रदान की। उन्होंने कहा, "संत पापा से मुलाकात करने के लिए सभी इराकी जमा हुए थे जो उनसे मुलाकात के दौरान कई बार अपने आँसू नहीं रोक पाये, खासकर, मोसुल के होश अल बाया में, जहाँ आईएसआईएस ने चार गिरजाघरों (सीरियाई, खलदेई, सीरियाई काथलिक और अर्मेनिया ऑर्थोडॉक्स) पर बम बरसाया था।
इराक में मध्यपूर्वी कलीसियाओं के परिषद की नई योजना
सभा के प्रतिभागियों ने परिषद के ख्रीस्तीय एकता सहयोग तथा युवाओं की भूमिका पर प्रकाश डाला, साथ ही साथ, एक ऐसे समाज में अंतरधार्मिक वार्ता को समर्थन देने का विचार किया, जो धार्मिक असहिष्णुता, आतंकवाद एवं हिंसा के कारण तोड़ दिया गया है।
डॉ. अब्स ने कहा कि यात्रा और इसके मिशन को देखते हुए परिषद एक नयी योजना में संलग्न होना चाहता है ताकि इराकी लोगों एवं ख्रीस्तीय समुदाय को समर्थन दिया जा सके, जिससे कि धर्मों एवं सभ्यताओं के चौराहे मेसोपोटेमिया में उनकी उपस्थिति मजबूत हो।
मध्यपूर्वी कलीसियाओं के परिषद के सदस्य
मध्यपूर्वी कलीसियाओं के परिषद की स्थापना 1974 में साईप्रस के निकोशिया में की गई थी और यह लेबनान के बेरूत में स्थित है। परिषद जो कलीसियाओं के विश्व परिषद का हिस्सा है, इसके मार्गदर्शक सिद्धांत हैं ˸ अपने सदस्य कलीसियाओं की मित्रता को मजबूत करना, आपसी सहयोग को बढ़ावा देना, ख्रीस्तियों एवं अन्य धर्मों के लोगों के बीच सम्मान एवं समझदारी को प्रोत्साहित करना, सेवा की भावना बढ़ाना तथा मध्यपूर्व के ख्रीस्तियों एवं कलीसियाओं को विश्व के अन्य ख्रीस्तीय भाई-बहनों से जोड़ना।
मध्यपूर्वी कलीसियाओं के परिषद ने "कलीसियाओं के परिवारों" के मॉडल को अपनाया है। पूर्वी ऑर्थोडोक्स, ऑरियंटल ऑर्थोडोक्स और प्रोटेस्टंट तीन मूल परिवार हैं। 1990 में काथलिक कलीसिया (लातीनी रीति) ने परिषद में दाखिला लिया और परिषद के अंदर अपना परिवार बनाया। हरेक परिवार को प्रशासनिक ईकाई और महासभा के सामने समान रूप से प्रस्तुत किया जाता है और वह अपने स्वयं के प्रतिनिधित्व पर निर्णय लेता है।
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