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संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  (ANSA)

आमदर्शन समारोह : प्रेरितिक उत्साह ख्रीस्तीय जीवन का ‘ऑक्सीजन’

संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में धर्मशिक्षा के एक नये चक्र की शुरूआत करते हुए “सुसमाचार प्रचार के उत्साह” पर प्रकाश डाला। उन्होंने याद दिलाया कि ख्रीस्त की कलीसिया का जन्म मिशनरी उत्साह में हुआ है जो पवित्र आत्मा के द्वारा ख्रीस्त के प्रकाश को दुनिया के अंतिम छोर तक ले जाने के लिए भेजी गई है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 11 जनवरी 2023 (रेई) - संत पापा ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्ठम सभागार में एकत्रित, सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आज हम धर्मशिक्षा के नये चक्र की शुरूआत करते हैं जो ख्रीस्तीय जीवन के एक तत्काल और निर्णायक विषय के लिए समर्पित है : सुसमाचार प्रचार के लिए उत्साह, अर्थात् प्रेरितिक उत्साह। संत पापा ने कहा कि यह कलीसिया का एक महत्वपूर्ण आयाम है। येसु के शिष्यों का समुदाय वास्तव में, शुरू से ही प्रेरितिक है, जन्म से ही मिशनरी। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह धर्मांतरण नहीं है और हमें शुरू से ही इसका फर्क स्पष्ट करना चाहिए। मिशनरी होना, प्रेरितिक एवं सुसमाचार प्रचार करना, धर्मांतरण के समान नहीं है, दोनों एक-दूसरे से भिन्न हैं।

पवित्र आत्मा ने इसे बाह्य रूप से गठित किया है ताकि यह अपने आप में बंद न रहे बल्कि बाहर निकले, येसु की गवाही दें, उनके प्रकाश को दुनिया के अंतिम छोर तक पहुँचाये।

सुसमाचार के लिए उत्साह

संत पापा ने सुसमाचार प्रचार में उदासीनता के खतरे के प्रति सचेत करते हुए कहा, “हालांकि ऐसा भी हो सकता है कि प्रेरितिक उत्साह, सुसमाचार के संदेश के साथ

 दूसरों तक पहुँचने की चाह घट सकती है। कभी-कभी इसमें ग्रहण लग सकता है। लेकिन जब ख्रीस्तीय जीवन उद्घोषणा के क्षितिज से ओझल हो जाता है, तो वह बीमार पड़ जाता है: वह अपने आप में बंद जो जाता, आत्मकेंद्रित बनता, और कमजोर पड़ जाता है।”

उन्होंने कहा, “प्रेरितिक उत्साह के बिना, विश्वास बिखर जाता है। दूसरी ओर, मिशन ख्रीस्तीय जीवन के लिए ऑक्सिजन है। यह सबल बनाता एवं शुद्ध करता है। आइये, हम प्रेरितिक उत्साह को पुनः प्राप्त करने की यात्रा की शुरू करें, धर्मग्रंथ एवं कलीसिया की शिक्षा के द्वारा, इसके स्रोत से प्रेरितिक उत्साह प्राप्त करें। तब हम जीवित स्रोत तक पहुँचेंगे, उन साक्ष्यों तक जिन्होंने सुसमाचार के लिए उत्साह के द्वारा कलीसिया को पुनः आलोकित किया है। इस तरह हम उस आग को प्रज्वलित करने में मदद कर पायेंगे जिसको पवित्र आत्मा हमारे अंदर सुलगाना चाहता है।”

येसु व्यक्ति पर नजर डालते हैं उसकी खामियों पर नहीं

प्रेरितिक उत्साह को पुनः प्राप्त करने की यात्रा शुरू करने के लिए रास्ता बतलाते हुए संत पापा ने कहा, “और आज मैं इसकी शुरूआत सुसमाचार की एक घटना से करना चाहता हूँ जो एक चिन्ह स्वरूप है : प्रेरित मत्ती का बुलावा, जिसको वे खुद अपने सुसमाचार वृतांत में बतलाते हैं।”

सब कुछ की शुरूआत येसु से होती है, जो “एक व्यक्ति को देखते हैं”। कुछ लोग मत्ती को वैसा ही देखते थे जैसा वह था, वे उन्हें एक चुंगी जमा करनेवाले के रूप में जानते थे। वास्तव में वह चुंगी जमा करनेवाला था। जो फिलीस्तीन पर कब्जा करनेवाले रोमी सम्राठ की ओर से चुंगी जमा करता था। दूसरे शब्दों में वह उनका सहयोगी था, लोगों के साथ गद्दारी करने वाला। हम कल्पना कर सकते हैं कि उस समय लोग उनके बारे क्या सोचते थे, लोग उन्हें नाकेदार पुकारते थे। किन्तु येसु की नजर में मत्ती एक व्यक्ति था जिसमें उसकी खामियाँ और अच्छाईयाँ थीं। संत पापा ने कहा, “येसु विशेषण पर नहीं रूकते : कि यह पापी है बल्कि संज्ञा की खोज करते हैं। येसु व्यक्ति तक जाते हैं, उनके हृदय तक, कि वह एक व्यक्ति है, एक पुरूष है, एक महिला है। येसु मूल में जाते हैं।” मती और लोगों के बीच दूरी है क्योंकि उन्होंने विशेषण को देखा उसे सिर्फ एक नाकेदार के रूप में देखा।

येसु उनके पास आये क्योंकि ईश्वर हरेक व्यक्ति को प्यार करते हैं; इस नीच व्यक्ति को भी। वास्तव में, वे नीच लोगों के लिए ही आये जैसा कि सुसमाचार कहता है: "मैं धर्मियों के लिए नहीं पापियों के लिए आया हूँ, जो दूसरों को एक प्रेम के पात्र के रूप में देखता है यहीं सुसमाचार के उत्साह की शुरूआत होती है। सब कुछ इसी नजरिये से शुरू होती जिसको हम येसु से सीखते हैं।

मत्ती का साक्ष्य

हम अपने आप से पूछ सकते हैं : दूसरे के प्रति हमारा नजरिया क्या है? कितनी बार हम उनकी गलतियों को देखते हैं जबकि उनकी जरूरतों को नहीं देख पाते। कितनी बार हम लोगों को उनके कार्यों और सोच के अनुरूप देखते हैं। एक ख्रीस्तीय होकर भी हम पूछते हैं क्या वे हमारे साथ हैं? संत पापा ने कहा कि यह येसु की नजर नहीं है: वे हमेशा हम प्रत्येक को करुणा और दया की नजर से देखते हैं। और हम ख्रीस्तीय भी ख्रीस्त के समान आचरण करने के लिए बुलाये गये हैं, येसु के समान देखने खासकर, दूसरे समझे जानेवाले लोगों को। मती के बुलावे की घटना का अंत येसु के उस कथन से होता है जिसमें वे कहते हैं : “मैं धर्मियों को नहीं बल्कि पापियों को बुलाने आया हूँ। इसलिए यदि हम अपने को धर्मी मानते हैं तो हम येसु से दूर रहेंगे जो हमारी कमजोरियों और दुर्बलताओं को चंगा करने के लिए हमारे पास पहुँचते हैं।”  

इस तरह, मिशनरी उत्साह की यात्रा येसु की नजर से शुरू होती है और आगे बढ़ती है। उसके बाद दूसरा कदम है, गति। मती उस समय टेक्स ऑफिस के पास बैठा था तभी येसु ने उससे कहा, “मेरे पीछे चले आओ”। और वह उठा एवं उनके पीछे हो लिया। हम गौर करते हैं कि पाठ "वह उठा" पर जोर देता है। क्यों इसको विस्तार से बतलाया जाना महत्वपूर्ण है? क्योंकि उन दिनों जो बैठता था उसे दूसरों पर अधिकार होता था जबकि उसने येसु को सुनने के लिए उठा अर्थात् उन्हें सम्मान दिया। संक्षेप में, वही बैठता था जिसे अधिकार दी जाती थी। यहाँ येसु पहला काम करते हैं कि वे मती को अधिकार से अनासक्त करते हैं: उन्हें बैठे रहने से दूसरों के स्वागत हेतु उठने के लिए प्रेरित करते हैं। इस तरह वे उन्हें अधिकार की भावना से मुक्त कर, भाइयों से समानता रखने एवं उनकी सेवा करने की क्षितिज को खोलने में मदद करते हैं।

ख्रीस्त के समान आचरण

संत पापा ने ख्रीस्तीयों को सम्बोधित कर कहा, “येसु यही करते हैं और ख्रीस्तीयों के लिए भी यही आधारभूत है: हम येसु के शिष्य, अर्थात् कलीसिया, क्या हम बैठकर लोगों के आने का इंतजार कर रहे हैं, अथवा क्या हम उठना और दूसरों की ओर बढ़ना, दूसरों की ओर देखना जानते हैं? यह कहना एक गैरख्रीस्तीय मनोभाव है कि उन्हें आना चाहिए, मैं यहाँ हूँ वे आयें।” संत पापा ने कहा, “जी नहीं, आप उनके पास जायें, आप पहले कदम उठायें।”  

तीसरा है, लक्ष्य। उठने और येसु का अनुसरण करने के बाद मति को कहाँ जाना था? हम कल्पना कर सकते हैं कि जब व्यक्ति का जीवन बदल जाता है तब प्रभु उसे एक नया आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करते हैं। सबसे पहले येसु उनके घर जाते हैं, वहाँ मती उनके लिए एक बड़ा भोज तैयार करता है, जिसमें बड़ी संख्या में चुंगी जमा करनेवाले व्यक्ति भाग लेते हैं अर्थात् उन्हीं की तरह के लोग। मती अपने माहौल में लौटता है लेकिन एक बदले हुए व्यक्ति के रूप में और येसु के साथ। उनका प्रेरितिक उत्साह कहीं दूर, एक नये, शुद्ध एवं आदर्श स्थान में शुरू नहीं होता बल्कि वहीं जहाँ वह जीता था और उन्हीं के बीच जिन्हें वह जानता था। हमारे लिए संदेश यही है: कि हमें एक पूर्ण व्यक्ति बनने का इंतजार नहीं करना चाहिए और न ही साक्ष्य देने के लिए येसु के साथ होने का लम्बा अनुभव।

सुसमाचार प्रचार प्रेम की सुन्दरता का साक्ष्य देने में

हमारी घोषणा आज और वहीं शुरू होती है जहाँ हम रहते हैं। यह दूसरों को यकीन दिलाने से भी शुरू नहीं होती बल्कि हर दिन उस प्रेम की सुन्दरता का साक्ष्य देने के द्वारा होती है जिसने हमें देखा और हमें उठाया है। प्रेम की सुन्दरता का यही साक्ष्य लोगों को यकीन दिलायेगा। हमें अपने बारे नहीं बल्कि प्रभु का साक्ष्य देना है। हम प्रभु का प्रचार करते हैं, अपनी नहीं अथवा किसी राजनीतिक पार्टी या विचाराधारा की नहीं। हमें येसु से साथ सम्पर्क करने में यकीन दिलाये बिना लोगों की मदद करनी चाहिए। जैसा कि संत पापा बेनेडिक्ट १६वें सिखलाते हैं, “कलीसिया धर्मांतरण नहीं करती बल्कि आकर्षण से बढ़ती है।" (लातीनी अमरीकी एवं कारेबियन धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की ५वीं महासभा के उद्घाटन में उपदेश, अपारेचिदा, १३ मई २००७)

ख्रीस्तीय साक्ष्य हेतु निमंत्रण

संत पापा ने कहा, “आप इसे न भूलें, यदि आप किसी ख्रीस्तीय को धर्मांतरण करते देखते हैं, जो अपने पास आने के लिए लोगों की सूची बनाता, वे ख्रीस्तीय नहीं हैं, वे गैरख्रीस्तीय हैं जो ख्रीस्तियों की बदनामी करते हैं जबकि दिल से ख्रीस्तीय नहीं हैं। कलीसिया धर्मांतरण से नहीं बढ़ती, यह आकर्षण से बढ़ती है।” संत पापा ने एक घटना द्वारा उदाहरण देते हुए कहा, “एक बार मैं याद करता हूँ, बोयनोस आयरेस के अस्पताल में धर्मबहनें जो वहाँ काम करती थीं अस्पताल छोड़ दीं क्योंकि उनकी संख्या कम थी और वे अस्पताल नहीं चला पा रही थीं। उनके स्थान पर कोरिया से धर्मबहनों का एक दल आया। आते ही उन्होंने अस्पताल को अपने अधिकार में लिया और दूसरे ही दिन मरीजों को देखने गयीं। वे स्पानी भाषा बिलकुल नहीं बोल पा रही थीं सिर्फ कोरियाई बोलती थीं, फिर भी मरीज खुश थे, और कह रहे थे, ‘ये धर्मबहनें बहुत अच्छी हैं।’” संत पापा ने कहा किन्तु धर्मबहनों ने उनसे कुछ नहीं कहा था सिर्फ अपनी नजरों से उन्हें देखा था, उन्होंने उन्हें येसु को दिया।” संत पापा ने कहा, “हम अपने बारे न बतलायें बल्कि येसु का प्रचार करें, अपनी नजर और अपने हावभाव से। यह आकर्षण है जो धर्मांतरण के विपरीत है।”     

उन्होंने कहा, “आकर्षक ही साक्ष्य, आनन्दमय गवाही का अंतिम लक्ष्य है जिसकी ओर बढ़ने हेतु येसु हमें अपनी प्रेमी नजर से अग्रसर करते हैं और पवित्र आत्मा हमारे हृदय को गति प्रदान करता है।” संत पापा ने चिंतन करने हेतु प्रेरित करते हुए कहा, “क्या मेरी नजर येसु के समान है जो लोगों को कलीसिया के निकट लाता है­?”    

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और हे हमारे पिता प्रार्थना का पाठ किया एवं अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

आमदर्शन समारोह में संत पापा की धर्मशिक्षा

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11 January 2023, 16:25