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पोप ˸ कलीसिया को देखना, द्वितीय वाटिकन महासभा से सीखें

द्वितीय वाटिकन महासभा के उद्घाटन की 60वीं वर्षगाँठ के अवसर पर अर्पित ख्रीस्तयाग में संत पापा फ्राँसिस ने संत पेत्रुस के लिए येसु के कहे शब्दों को दुहराते हुए कहा, "क्या तुम मुझे प्यार करते हो? मेरे मेमनों को चराओ", यह आज की कलीसिया से भी कहा जा रहा है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्राँसिस ने द्वितीय वाटिकन महासभा के उद्घाटन की 60वीं वर्षगाँठ के अवसर पर 11 अक्टूबर को संत पेत्रुस महागिरजाघर में ख्रीस्तीयाग अर्पित करते हुए प्रवचन में कहा, "क्या तुम मुझे प्यार करते हो? मेरे मेमनों को चराओ।" ये शब्द सबसे पहले संत पेत्रुस के लिए कहे गये थे, उन्हें आज कलीसिया के रूप में हमारे लिए भी कहा जा रहा है।"

उन्होंने कहा, "वास्तव में, महासभा प्रभु के प्रश्न, 'क्या तुम मुझे प्यर करते हो?' का एक बड़ा जवाब था।" प्रभु के लिए अपने प्रेम को पुनः जागृत करने हेतु कलीसिया ने अपने इतिहास में पहली बार, महासभा का आयोजन किया, ताकि अपने आप को परख सके तथा अपने स्वभाव एवं मिशन पर चिंतन कर सके।

संत पापा ने उसके बाद तीन रास्ते बतलाये जिनके द्वारा हम महासभा से कलीसिया को देखना सीख सकते हैं, इसके लिए सबसे पहले ईश्वर के दृष्टिकोण से देखना है, "ऊपर से देखना", "ईश्वर की नजर से देखना", "प्रेम भरे नजर से देखना।"

संत पापा ने उन लोगों को चेतावनी दी जो कलीसिया को अपनी दृष्टिकोण से देखते हैं तथा "प्रगतिवाद" और "परंपरावाद" दोनों की निंदा करते हुए इसे बेवफाई कहा, कलीसिया के स्वार्थी धर्मविरोध का प्रकार बतलाया जो अपनी पसंद एवं योजना को ईश्वर के प्रेम के ऊपर रखते हैं।

इसके बदले, संत पापा ने कहा, "आइये हम ईश्वर की प्रधानता को बनाये रखने के लिए महासभा को फिर एक बार देखें जो एक कलीसिया के लिए अति आवश्यक है ˸ ताकि वह अपने प्रभु के प्रेम से सराबोर हो सके एवं उन सभी स्त्री पुरूषों को प्यार कर सके जिन्हें वे प्यार करते हैं।"

उन्होंने कहा, "आइये हम महासभा के उत्साह को पुनः जागृत करें एवं महासभा के लिए हमारे उत्साह को नवीकृत करें।"

कलीसिया प्रेम के लिए अस्तित्व में है

"चाराओ" शब्द पर गौर करते हुए संत पापा ने कहा कि यह एक तरह का प्रेम है जिसकी चाह येसु पेत्रुस से करते हैं। मूल रूप से मछुवारा पेत्रुस एक चरवाहा बनाया गया, जो अपनी भेड़ों के बीच रहने और उन्हें प्यार करने के लिए बुलाया गया।   

संत पापा ने कहा कि यह कलीसिया को दूसरी तरह से देखना है। आसपास नजर डालना, दूसरों को निचले रूप में देखे बिना दुनिया में रहना। महासभा कितनी सामयिक है जो हमें अपने स्वयं के आराम और विश्वासों की सीमाओं के भीतर खुद को बंद करने के प्रलोभन को अस्वीकार करने में मदद करती है तथा ईश्वर के उदाहरणों पर चलकर, खोयी हुई भेड़ को खोजने तथा उन्हें झुण्ड में लाने में सहायता करती है।    

उन्होंने कहा कि कलीसिया हमारी पवित्र माता, तृत्वमय ईश्वर से उत्पन्न हुई है, प्रेम के लिए जीवित है और विश्वास के लिए बुलायी गई है कि वह आत्‍मलीनता के प्रलोभन से बच सके। ईश प्रजा, प्रेरितिक प्रजा है जो गरीबों एवं बहिष्कृत लोगों की देखभाल करने के लिए बुलायी गई है।

एकल, प्रभु से संयुक्त

संत पापा ने अपने उपदेश का समापन कलीसिया में एकता के लिए आग्रह करते हुए किया।

उन्होंने कहा, "ईश्वर हम सभी को पूरे रूप में देखना चाहते हैं और यही तीसरा रास्ता है जिससे कलीसिया को देखा जाना चाहिए। संत पापा ने ख्रीस्तियों की उस प्रवृति के लिए खेद प्रकट किया जिसमें वे सभी के सेवक होने के बदले कलीसिया में अपने पक्ष का चुनाव करते हैं।" उन्होंने कहा, "हम उनकी भेड़े हैं, उनके झुण्ड, और हम तभी एक साथ एवं एक हो सकते हैं।"  

संत पापा ने कहा कि हम हर प्रकार के ध्रुवीकरण से बाहर निकलें और एकता बनाये रखें।    

अंततः संत पापा ने "महासभा के उपहार के लिए" प्रभु को धन्यवाद दिया तथा प्रार्थना की कि वे हमें आत्मनिर्भरता की कल्पना एवं दुनियावी आलोचना की भावना से बाहर निकालें... हमें आत्म-अवशोषण की छाया से आगे ले चलें... [और] हमें उस ध्रुवीकरण के रूपों से बचाएँ जो शैतान के करतूत हैं।"

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12 October 2022, 16:48