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आमदर्शन ˸ बुजूर्ग अधिक न्यायपूर्ण एवं मानवीय समाज की प्रेरणा देते हैं

संत पापा फ्राँसिस ने 1 जून को वृद्धावस्था के महत्व पर अपनी धर्मशिक्षा माला जारी रखते हुए याद दिलाया कि बुजूर्ग हमें प्रार्थना में दृढ़ता एवं आशा के साथ अपने आपको प्रभु को समर्पित करने की प्रेरणा देते हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 1 जून 2022 (रेई)˸ संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रागंण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को सम्बोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।

बुजूर्ग व्यक्ति की सुन्दर प्रार्थना जिसको हम स्तोत्र 71 में पाते हैं हमें गहरे तनाव के बारे चिंतन करने हेतु प्रोत्साहित करता है जो बुढ़ापे की स्थिति में आता है, जब परिश्रम की याद चली जाती है और प्राप्त कृपाओं पर विश्वास एवं आशा की परीक्षाएँ आ जाती हैं।

गहरा तनाव

परीक्षा पहले से ही खुद को कमजोरी के साथ प्रस्तुत करती है जो वृद्धावस्था के दुर्बल और असहाय स्थिति तक पहुँत जाती है। स्तोत्रकार – जो एक बुजूर्ग व्यक्ति है प्रभु को सम्बोधित करता – सच्चाई को स्पष्ट रूप से प्रकट करता है कि यह प्रक्रिया परित्याग, धोखे, पूर्ववर्ती और अहंकार के लिए अवसर बनती है, कई बार बुजूर्ग इसके शिकार होते हैं। यह एक प्रकार की कायरता है जिसमें हम अपने समाज में माहिर हैं। यह सच है कि फेंकने की संस्कृति में, बुजूर्गों को एक किनारे रखा जाता है और वे इन सबका सामना करते हैं। निश्चय ही, उन लोगों की कमी नहीं है जो बुजूर्गों का फायदा उठाते, उन्हें धोखा देते और उन्हें कई तरीकों से डराते हैं। हम अक्सर समाचार पत्रों में पढ़ते हैं या बुजूर्गों के बारे समाचारों में सुनते हैं जो अपनी बचत के लिए बेईमानी से छल किये जाते हैं, अथवा बिना सुरक्षा एवं देखभाल के छोड़ दिये जाते हैं, या अपने अधिकारों को त्यागने के लिए मजबूर किये जाते हैं। यह गंभीर बात है किन्तु ऐसी क्रूरता परिवारों में भी होती है, बुजूर्गों को घर से निकाल दिया जाता, उन्हें वृद्धाश्रमों में छोड़ दिया जाता है जहाँ उनके बच्चे कभी-कभार अथवा साल में एक- दो बार ही उनके पास जाते हैं। उन्हें कोने में रख दिया जाता है। ऐसा, आज भी परिवारों में हो रहा है। हमें इसपर विचार करना चाहिए।

बुजूर्गों के प्रति समाज की जिम्मेदारी

संत पापा ने समाज का आह्वान करते हुए कहा, "समाज को अपने बुजूर्गों की देखभाल हेतु आगे आना चाहिए जिनकी संख्या बहुत अधिक है और जिनमें से अधिकांश परित्यक्त हैं। जब हम ऐसे बुजूर्गों के बारे सुनते हैं जो अपनी स्वायत्तता, सुरक्षा, अपने घर आदि से बेदख़ल होते हैं तब हम समझते हैं कि बुढ़ापे के संबंध में आज के समाज की महत्वाकांक्षा सामयिक आपात स्थितियों की समस्या नहीं है, बल्कि कचरे की संस्कृति की विफलता है जो दुनिया जहाँ हम रहते हैं उसे विषक्त कर रही है। स्तोत्र ग्रंथ का वृद्ध व्यक्ति ईश्वर के प्रति अपनी निराशा को गुप्त रूप से प्रकट करता है। "मेरे शत्रु मेरी निंदा करते हैं; जो मेरी घात में बैठे हैं, वे आपस में परामर्श करते हैं। वे कहते हैं, ईश्वर ने उसे त्याग दिया है, उसका पीछा करो और उसे पकड़ लो; क्योंकि उसे कोई नहीं छुड़ायेगा।"(स्तोत्र 71,10-11) संत पापा ने कहा, "परिणाम घातक हैं। वृद्धावस्था न केवल प्रतिष्ठा खो देती है बल्कि संदेह भी करने लगती है कि वह इसके योग्य है अथवा नहीं। इस तरह हम सभी अपनी दुर्बलता, अपनी बीमारी, अपनी उम्र और वरिष्ठता को छिपाते हैं क्योंकि इन्हें हमारी प्रतिष्ठा को खोने के कारण समझते हैं। हम अपने आप से पूछें ˸ क्या यह मानवीय है कि इस भावना से प्रेरणा ली जाए? यह कैसी मजबूरी है कि आधुनिक सभ्यता, इतनी उन्नत और कुशल होकर भी, बीमारी और बुढ़ापे से बहुत असहज है? यह बीमारी और बुढ़ापे को छिपाती है? और यह किस प्रकार की विडम्बना है कि राजनीति जो प्रतिष्ठित जीवन की सीमाओं को परिभाषित करने हेतु प्रतिबद्ध है, बुजूर्ग और बीमारों के साथ प्रेमपूर्ण सहअस्तित्व की गरिमा के प्रति असंवेदनशील है?

ईश्वर की दया पर भरोसा

स्तोत्र ग्रंथ का बुजूर्ग जिसको हमने सुना है, इस उम्र को एक पराजय के रूप में देखता है एवं ईश्वर पर भरोसा को पुनः जागृत करता है। वह महसूस करता है कि उसे सुना जाना चाहिए और वह ईश्वर की ओर लौटता है। इस स्तोत्र पर टिप्पणी करते हुए संत अगुस्टीन बुजूर्गों का आह्वान करते हैं ˸ "डरो मत कि तुम भी वृद्धावस्था में उसी दुर्बलता में पड़ जाओ...क्यों डरते हो कि वे तुम्हें त्याग देंगे, तुम्हें बुढ़ापे की अवस्था में फेंक देंगे, जब तुम्हारी शक्तियाँ असमर्थ हो जायेंगी।" स्तोत्रकार प्रार्थना करता है, "मुझे छुड़ा और मेरा उद्धार कर, मेरी सुन और मुझे बचा। तू मेरे लिए आश्रय की चट्टान और रक्षा का सुदृढ़ गढ़ बन जा।” (पद. 2-3) यह पुकार, ईश्वर के प्रति निष्ठा का परिचय देता है और उसकी क्षमता को बतलाता है कि वह चेतना जगाता जो नैतिक जीवन की असंवेदनशीलता से भटक गया है जिसकी पूरी तरह से रक्षा की जानी चाहिए। वे पुनः प्रार्थना करते हैं कि ˸ प्रभु मुझ से दूर न जा, मेरे ईश्वर, शीघ्र ही मेरी सहायता कर। जो मेरे प्राणों के घातक हैं वे लज्जित होकर पीछे हटें। जो मेरी दुर्गति चाहते हैं वे तिरस्कृत और कलंकित हों।" (पद. 12-13)

संत पापा ने कहा, "निश्चय ही उन लोगों को शर्म आनी चाहिए जो बीमारी और वृद्धावस्था की कमजोरी का फायदा उठाते हैं। प्रार्थना बुजूर्गों के हृदय में ईश्वर की निष्ठा एवं उनके आशीर्वाद की प्रतिज्ञा को नवीकृत करता है। बुजूर्ग व्यक्ति में प्रार्थना करने की चाह उत्पन्न होती और वह उसकी शक्ति का साक्ष्य देता है। सुसमाचार में येसु उन लोगों की प्रार्थना को कभी नहीं ठुकराते हैं जो जरूरतमंद होते। बुजूर्ग अपनी दुर्बलता में जीवन की दूसरी अवस्था के लोगों को सीख दे सकते हैं कि हम सभी को अपने आपको प्रभु पर छोड़ देना चाहिए, उनसे मदद मांगनी चाहिए। इस अर्थ में हम सभी को बुजूर्गों से सीखना चाहिए, जी हाँ, बुजूर्ग होना एक वरदान है, जहाँ हम अपने आपको दूसरों की देखभाल में छोड़ देते हैं, जिसकी शुरूआत खुद ईश्वर से होती है।"

पोप की धर्मशिक्षा

"दुर्बलता के लिए पोप की धर्मशिक्षा है" कि उसे नहीं छिपाया जाना चाहिए। यह सच है और इसमें वास्तविकता है। धर्मशिक्षा, जिसमें बुजूर्ग अवस्था हमें मानव जीवन की पूरी अवधि के लिए एक विश्वसनीय तरीके की याद दिलाती है। बुजूर्ग अवस्था को न छिपायें, बुढ़ापे की कमजोरी को न छिपायें। यह हम सभी के लिए एक सीख है। यह सीख हमारी अपनी सभ्यता के सुधार के लिए एक निर्णायक क्षितिज को खोलती है। बुजूर्गों को वैचारिक और व्यवहारिक दोनों रूपों में हाशिये पर रखना – न केवल बुढ़ापे को बल्कि जीवन के हर आयाम को भ्रष्ट करता है। आज हम परिवार के बुजूर्गों के बारे सोचें ˸ मैं उनके साथ कैसा संबंध रखता हूँ, क्या मैं उन्हें याद करता हूँ, उनसे मुलाकात करने जाता हूँ? क्या उनके लिए ऐसा सुनिश्चित करता कि उन्हें किसी चीज की कमी न हो। क्या मैं उनका आदर करता हूँ? बुजूर्ग जो मेरे परिवार के सदस्य हैं ˸ मेरी माँ, मेरे पिताजी, दादा-दादी, चाचा-चाची, मित्र...क्या मैंने उन्हें अपने जीवन से दूर कर दिया है? अथवा क्या मैं उनके पास जाता हूँ ताकि विवेक पा सकूँ, जीवन की प्रज्ञा सीख सकूँ? याद रखें आप भी बूढ़े होंगे। वृद्धावस्था हर व्यक्ति के लिए आती है।

संत पापा ने कहा, "बुजूर्गों से वैसा ही व्यवहार कीजिए जैसा आप वृद्धावस्था में व्यवहार किया जाना चाहते हैं। वे परिवार की स्मृति हैं, मानवता की यादगारी, देश की यादगारी। बूढ़ों की रक्षा करें, उनमें प्रज्ञा है। प्रभु बुजूर्गों को इस आह्वान और प्रेरणा की उदारता प्रदान करे जो कलीसिया के हिस्से हैं। प्रभु पर यह भरोसा हम सभी में हो और यह सभी के लिए हो उनके और हमारे एवं हमारे बच्चों के लिए भी।"  

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की तथा हे हमारे पिता प्रार्थना का पाठ किया।           

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01 June 2022, 15:59