आमदर्शन समारोह में पोप ˸ बुजूर्ग हमें विश्वास में बने रहना सिखाते हैं
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बुधवार, 18 मई 2022 (रेई) ˸ संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रागंण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, "प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।"
हमने बाईबिल से पाठ सुना है जिससे योब का ग्रंथ समाप्त होता है। हमारी धर्मशिक्षा की यात्रा में, हमारी मुलाकात योब से होती है जो एक बुजूर्ग व्यक्ति बन चुका है। उनसे हम विश्वास के साक्षी के रूप में मिलते हैं जो ईश्वर के व्यंग चित्र को स्वीकार नहीं करता किन्तु बुराई के सामने तब तक विरोध करता है जब तक कि ईश्वर उत्तर नहीं देते एवं अपना चेहरा नहीं दिखाते।
विश्वास में दृढ़ बने रहें
अंत में ईश्वर उन्हें उत्तर देते हैं, हमेशा की तरह एक विस्मयजनक तरीके से- वे योब को कुचले बिना अपनी महिमा प्रकट करते, अपनी कोमलता दिखलाते हैं। संत पापा ने कहा, "इस ग्रंथ के पन्नों को अच्छी तरह पढ़ा जाना चाहिए, बिना पूर्वाग्रह एवं पूर्व धारणा के, ताकि योब की पुकार की शक्ति को समझा जा सके। यह हमारे लिए अच्छा होगा कि हम सब कुछ खोने के दर्द की बेचैनी और कड़वाहट के कारण नीतिवाद के प्रलोभन से ऊपर उठें।
इस पुस्तक के अंतिम भाग में हम कहानी की याद करते हैं – योब जिसने जीवन में सब कुछ खो दिया; अपनी सम्पति, परिवार, संतान, स्वस्थ तथा घायल होकर तीन मित्रों के साथ विवाद करता है।
ईश्वर का न्याय
और इस पाठ में अंततः ईश्वर उनसे बातें करते हैं– योब को ईश्वर की छिपी योजना को समझने के लिए उनकी सराहना की जाती है क्योंकि उसने मौन में छिपी ईश्वर की कोमलता के रहस्य को समझा। ईश्वर ने योब के उन मित्रों को फटकारा, जिन्होंने यह मान लिया था कि वे ईश्वर के बारे और दुःखों के बारे सब कुछ जानते हैं, और, योब को सांत्वना देने के लिए, अपने पूर्वकल्पित प्रतिमानों के साथ उसका न्याय कर बैठते हैं। ईश्वर हमें पाखंडी और अभिमानी धार्मिकता से बचाते हैं। इस प्रकार ईश्वर उनसे बात करते हैं और कहते हैं: “मेरा कोप [तुम] […] पर भड़का है, क्योंकि तुमने मेरे दास योब के समान मेरे विषय में धर्म की बातें नहीं कही।" मेरा सेवक योब तुम्हारे लिए प्रार्थना करेगा, मैं उसकी प्रार्थना स्वीकार करूँगा और तुम्हारी मूर्खता के अनुसार तुम्हारे साथ व्यवहार नहीं करूँगा यद्यपि तुम लोगों ने मेरे सेवक योब की तरह मेरे विषय में सच नहीं कहा।" (42,7-8)
कठिनाइयों के बीच विश्वास
संत पापा ने कहा कि ईश्वर की घोषणा हमें विस्मित करती है क्योंकि हमने योब की आपत्ति के बारे में पढ़ा है, जिसने हमें निराश किया। फिर भी, प्रभु कहते हैं कि योब ने अच्छी बात बोली है क्योंकि उन्होंने ईश्वर को एक अत्याचारी के रूप में स्वीकार करने से इन्कार किया। पुरस्कार के रूप में ईश्वर ने उन्हें उनकी सम्पति का दोगुणा वापस कर दिया एवं उन बुरे मित्रों के लिए प्रार्थना करने को कहा। विश्वास के परिवर्तन का मोड़ ठीक योब के क्रोध की चरमसीमा पर होता है, जहाँ वह कहता है: "मैं यह जानता हूँ कि मेरा रक्षक जीवित है और वह अंत में पृथ्वी पर खड़ा हो जायेगा। जब मैं जागूँगा और खड़ा हो जाऊँगा, तब मैं इस शरीर में ईश्वर के दर्शन करूँगा। मैं स्वयं उनके दर्शन करूँगा। मेरी आँखें उन्हें देखेंगी। मेरा हृदय उनके दर्शनों के लिए तरसता है।"(योब19,25-27) संत पापा ने कहा कि यह सुन्दर है क्योंकि हर प्रकार के दुःख के बाद भी वह कहता है कि मेरा रक्षक जीवित है।
संत पापा ने योब के उस कथन पर प्रकाश डाला जिसमें वे कहते हैं, "मेरे ईश्वर, मैं जानता हूँ कि तू अत्याचारी नहीं है, मेरा ईश्वर आयेगा और मेरा न्याय करेगा।" संत पापा ने कहा कि यह ईश्वर के पुनरूत्थान पर सरल विश्वास है, येसु ख्रीस्त पर सहज विश्वास, एक ऐसा विश्वास जो हमेशा हमारा इंतजार करता है।
योब के ग्रंथ का दृष्टांत हमारे लिए सामान्य जीवन का उदाहरण प्रस्तुत करता है। अर्थात् एक व्यक्ति, एक परिवार या कुछ लोग जब कठिन संघर्ष करते हैं, अपने में नगण्य और कमजोर मानव होने का अनुभव करते हैं, वहीं कुछ लोग बहुत सारी बुराइयों से अभिभूत होते जो वास्तव में अन्यायपूर्ण प्रतीत होता है। संत पापा ने कहा कि ऐसे बहुत से लोग हैं।
हम सभी ऐसे लोगों को जानते हैं। हम उनके दुःखों से प्रभावित हैं किन्तु कई बार मौन में उनके प्रेम एवं विश्वास की दृढ़ता हमें अचंभित करती है। संत पापा ने विकलांग बच्चों और उनके माता-पिताओं की स्थिति कर चिंता व्यक्त की। आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण स्थितियाँ अक्सर विकट हो जाती हैं। कोविड-19 महामारी के समय और इन दिनों यूक्रेन में युद्ध में कुछ इसी तरह हुआ है। क्या इन ज्यादतियों को प्रकृति एवं इतिहास का तर्क मना जा सकता है? क्या हम पीड़ितों के पापों के लिए उचित प्रतिक्रिया के रूप में उन लोगों को आशीर्वाद दे सकते हैं, जो इसके लिए जिम्मेदार हैं? जी नहीं। पीड़ित लोगों का एक अधिकार है कि वे बुराई के रहस्य का विरोध करें। यह अधिकार ईश्वर हरेक व्यक्ति को प्रदान करते हैं, वे स्वयं हमें प्रेरित करते हैं। संत पापा ने कहा कि जब इस तरह से विरोध किया जाता है तो यह एक प्रार्थना है। जब बच्चे अपने माता –पिता का विरोध करते हैं तब यह उनका ध्यान अपनी ओर खींचना है कि वे उनकी देखभाल करें। यदि आपके हृदय में कुछ घाव है और आप विरोध करना चाहते हैं चाहे यह ईश्वर के विरूद्ध ही क्यों न हो, ईश्वर उसे सुनते हैं। ईश्वर पिता हैं। वे हमारे विरोधात्मक प्रार्थना से नहीं घबराते, वे इसे समझते हैं। हम अपनी प्रार्थना में खुले हों, अपनी प्रार्थना को पूर्वकल्पित पद्धति में न डालें। आपकी प्रार्थना स्वतः होनी चाहिए, जैसा कि एक बेटा अपने पिता से बातें करता, उन्हें अपना सब कुछ बतलाता है क्योंकि वह जानता है कि उसका पिता उसे समझता है। ईश्वर के मौन का यही अर्थ है। ईश्वर आमने-सामने आने से नहीं घबराते किन्तु शुरू में वे योब को उसके विरोध के लिए छोड़ देते हैं, ईश्वर सुनते हैं। हम इस सम्मान एवं कोमलता को ईश्वर से सीखें।
बुजूर्ग और उनका साक्ष्य
योब के विश्वास की अभिव्यक्ति जो ईश्वर से निरंतर अर्जी करता, वह अंत में रहस्यात्मक अनुभव के साथ पूर्ण होता है। वे कहते हैं, मैंने दूसरों से तेरी चर्चा सुनी थी अब मैंने तुझे अपनी आँखों से देखा है। (42,5) कितने लोग बुरे अनुभव के बाद प्रकाश का अनुभव करते हैं जिसके द्वारा वे ईश्वर को पहले से अधिक अच्छी तरह पहचानते हैं। हम भी योब की तरह कह सकते हैं, मैंने दूसरों से तेरी चर्चा सुनी थी अब मैंने तुझे अपनी आँखों से देखा है, आपसे मुलाकात की है। बुजूर्ग लोग अपने जीवन में बहुत सारी चीजें देखते हैं, लोगों के वादों को टूटते हुए भी देखा है।
बुजूर्ग लोग जो इस साक्ष्य का रास्ता खोजते हैं, जो नुकसान के लिए आक्रोश को ईश्वर की प्रतिज्ञा की प्रतीक्षा करने के लिए तप में परिवर्तित करते हैं - एक बदलाव है। जिन विश्वासियों की नजर क्रूस की ओर जाता है वे इसे सीखते हैं। और हम भी इसे सीख सकते हैं हमारे बहुत सारे, दादा-दादी और बुजूर्गों से जो मरियम के समान, अपनी प्रार्थना को ईश्वर के पुत्र के साथ मिलाते हैं जिन्होंने अपने आपको क्रूस पर पिता के लिए अर्पित कर दिया। हम बुजूर्गों को देखें। संत पापा ने कहा कि हम उन्हें प्यार से देखें, उनके व्यक्तिगत अनुभवों को देखें। उन्होंने जीवन में बहुत कुछ सहा है, बहुत कुछ सीखा है, उन्हें बहुत कुछ पार किया है किन्तु अंत में शांति महसूस किया है। यह ईश्वर के साथ मुलाकात की शांति है जो कह सकते हैं, "मैंने दूसरों से इसकी चर्चा सुनी थी किन्तु अब मैंने अपनी आँखों से तुझे देखा है।" संत पापा ने कहा कि इन बुजूर्गों की शांति उस शांति के समान है जिसको ईश्वर के पुत्र ने क्रूस पर खुद को पिता को समर्पित करने के बाद पाया।
इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की तथा सभी को आशीर्वाद देते हुए हे हमारे पिता प्रार्थना का पाठ किया।
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