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आमदर्शन समारोह ˸ कृपा की शक्ति करुणा के कार्य करने हेतु प्रेरित करे

बुधवार को आमदर्शन समारोह के दौरान धर्मशिक्षा माला में संत पापा फ्रांसिस ने संत पौलुस की न्यायसंगत ठहराये जाने की शिक्षा पर चिंतन किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 22 सितम्बर 2021 (रेई)- संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर, वाटिकन के पौल षष्ठम सभागार में "संत पौलुस की शिक्षा" पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ाते हुए, हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को सम्बोधित कर कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

संत पौलुस की शिक्षा को बेहतर रूप से समझने की हमारी यात्रा में, आज हम एक कठिन किन्तु महत्वपूर्ण विषय पर गौर करेंगे, यह विषय है न्यायसंगत ठहराया जाना। न्यायसंगत ठहराया जाना क्या है? हम पापी, न्यायसंगत सिद्ध किये जाते हैं। कौन न्यायसंगत सिद्ध करता है? परिवर्तन की यह प्रक्रिया ही न्यायसंगत ठहराया जाना है। हम ईश्वर के सामने न्यायसंगत ठहराये जाते हैं। यह सच है कि हमारे व्यक्तिगत पाप हमारे साथ रहते हैं किन्तु मूल रूप से हम धर्मी हैं यही न्यायसंगत ठहराया जाना है।

ईश्वर के साथ मेल-मिलाप

इस विषय पर प्रेरित के विचार की अधिक सटीक व्याख्या करने हेतु बहुत अधिक बहस हो चुका है। और जैसा कि अक्सर होता है, इस बहस का अंत भी एक विरोधाभासी स्थिति से होता है। गलातियों के नाम संत पौलुस के पत्र में, रोमियों के पत्र के समान पौलुस उस सच्चाई पर जोर देते हैं कि न्यायसंगत ठहराया जाना ख्रीस्त में विश्वास से आता है। संत पापा ने कहा कि हमारे मन में विचार आ सकता है कि हम धर्मी हैं क्योंकि हम सभी आज्ञाओं का पालन करते हैं – यह ठीक है पर इससे न्यायसंगत सिद्ध नहीं किये जा सकते। इसके लिए चाहिए कि कोई आपको ईश्वर के सामने न्यायसंगत ठहराये। हमारे मन में यह भी विचार आ सकता है कि मैं पापी हूँ कैसे धर्मी कहला सकता, यह भी सही है किन्तु मूल में हम धर्मी हैं। हमें किसने न्यायसंगत सिद्ध किया है? संत पापा ने कहा कि ख्रीस्त ने हमें न्यायसंगत ठहराया है। यही धार्मिक माना जाना है।    

"न्यायसंगत" शब्द के पीछे क्या छिपा हुआ है जो विश्वास के लिए बहुत अधिक निर्णयक है? पूर्ण परिभाषा तक पहुँचना आसान नहीं है किन्तु संत पौलुस के विचार को लेते हुए ऐसा कहा जा सकता है कि न्यायसंगत ठहराया जाना ईश्वर की करुणा का परिणाम है जो क्षमा प्रदान करते हैं। और वे हमारे ईश्वर हैं, अत्यन्त भले, करुणावान, धैर्यशील, करुणा से पूर्ण हैं जो लगातार हमें क्षमा प्रदान करते हैं।

कृपा द्वारा बचाये गये

वास्तव में, ईश्वर ने येसु की मृत्यु से पाप को नष्ट कर दिया और हमें पूर्ण रूप से क्षमा एवं मुक्ति प्रदान की है। इस तरह न्यायसंगत ठहराये गये पापी ईश्वर के द्वारा स्वागत किये जाते और उनके साथ मेल-मिलाप करते हैं। यह सृष्टिकर्ता एवं सृष्टि के बीच पुनः संबंध जोड़ना है जैसा कि यह अवज्ञ के कारण पाप करने से पहले मूल रूप में था। ईश्वर के द्वारा न्यायसंगत ठहराया जाना, पाप द्वारा खोये गये निर्दोषता को वापस पाना है। किस तरह न्यायसंगत ठहराया जाता है? इस प्रश्न का उत्तर देने का अर्थ है संत पौलुस की दूसरी शिक्षा की घोषणा को समझना ˸ कि न्यायसंगत ठहराया जाना कृपा द्वारा संभव है। सिर्फ कृपा द्वारा हम न्यायसंगत ठहराये जाते हैं। कोई कह सकता है कि मैं दूसरों की तरह न्यायधीश के पास जाकर, पैसे चुका कर न्याय प्राप्त नहीं कर सकता? संत पापा ने कहा कि इसके लिए मूल्य चुकाना नहीं है। हम सभी के लिए एक व्यक्ति, ख्रीस्त ने कीमत चुकायी है। ख्रीस्त जो हमारे लिए मरे, उनसे हम सभी के लिए पिता प्रदत्त वरदान प्राप्त होता है। न्यायसंगत ठहराया जाना कृपा के द्वारा प्राप्त होता है।

प्रेरित के मन में वह अनुभव हमेशा रहा, जिसने उनके जीवन को बदल दिया था ˸ दमिश्क के रास्ते पर पुनर्जीवित प्रभु से मुलाकात। पौलुस स्वभिमानी, धर्मी और उत्साही व्यक्ति थे। वे इस बात पर यकीन करते थे कि न्याय सहिंता के निष्ठापूर्ण पालन से आता है। हालांकि अब वे ख्रीस्त के द्वारा जीते जा चुके थे और विश्वास ने उन्हें गहराई से बदल दिया था और अब तक छिपी सच्चाई को खोजने के लिए उन्हें प्रेरित किया था। संत पापा ने कहा, "हम अपने प्रयास से धर्मी नहीं बनते, हम नहीं बल्कि ख्रीस्त अपनी कृपा से हमें धर्मी बनाते हैं। अतः पौलुस येसु के रहस्य का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए सब कुछ का त्याग करना चाहते हैं (फिली.3,7) क्योंकि उन्होंने महसूस किया है कि सिर्फ ईश्वर की कृपा हमें बचा सकती है। हम न्यायसंगत ठहराये गये हैं, अपनी क्षमता से नहीं बल्कि सिर्फ ईश्वर की कृपा से। यही हमें दृढ़ता प्रदान करता है। हम पापी है सही बात है किन्तु हम ईश्वर की कृपा से जीवन की राह पर आगे बढ़ते हैं जो हमें उतनी ही बार न्यायसंगत ठहराता है जितनी बार क्षमा याचना करते हैं। हम न्याय संगत ठहराये जा चुके हैं किन्तु वे दूसरी बार क्षमा करने आयेंगे।

प्रेरित के लिए विश्वास का एक सर्वव्यापी मूल्य है। यह विश्वासी के जीवन के हर क्षण एवं हर आयाम को छूता है ˸ बपतिस्मा से लेकर दुनिया से विदा लेने तक, सब कुछ येसु की मृत्यु और पुनरूत्थान पर सम्माहित है जिनसे मुक्ति मिलती है। विश्वास द्वारा न्यायसंगत ठहराये जाने में कृपा की प्राथमिकता है जिसको ईश्वर उन लोगों को प्रदान करते हैं जो बिना किसी भेदभाव के उनके पुत्र पर विश्वास करते हैं।

पर हमें इस निष्कर्ष पर नहीं आना चाहिए कि संत पौलुस के लिए मूसा की सहिंता का कोई मतलब नहीं था, निश्चय ही यह ईश्वर का अटल वरदान है। संत पौलुस लिखते हैं – यह पवित्र है। (रोम. 7,12) हमारे आध्यात्मिक जीवन के लिए भी अच्छा है कि हम आज्ञाओं का पालन करें। किन्तु हम इसे भी अपनी शक्ति पर आधारित नहीं मान सकते। ख्रीस्त में ईश्वर प्रदत्त कृपा ही आधार है कि यह कृपा जो हमें न्यायसंगत सिद्ध किये जाने पर प्राप्त होती है ख्रीस्त द्वारा प्राप्त होती है जिन्होंने इसके लिए कीमत चुकायी है। उनके द्वारा हम मुफ्त प्रेम किये जाते हैं जो हमें अपनी ओर से उन्हें ठोस रूप में प्रेम करने के लिए प्रेरित करता है।   

मुक्ति के कार्य में सहयोग

इस पृष्टभूमि पर, प्रेरित संत याकूब की शिक्षा को याद करना अच्छा है जो लिखते हैं, "व्यक्ति केवल विश्वास से नहीं बल्कि कार्यों से धार्मिक बनता है। यह उलटा लग सकता है किन्तु उलटा नहीं है – जिस तरह आत्मा के बिना शरीर निर्जीव है उसी तरह कर्मों के अभाव में विश्वास निर्जीव। (याकूब 2,24-26) यदि धार्मिकता हमारे कार्यों से प्रकट नहीं होता, तब यह जमीन के अंदर निर्जीव अवस्था में पड़ा है। हमें इसे कार्य के द्वारा मूर्त रूप देना है। इस तरह याकूब के शब्द पौलुस की शिक्षा को पूरा करते हैं। विश्वास का उत्तर देने के लिए ईश्वर एवं पड़ोसी दोनों के प्रेम में सक्रिय होने की जरूरत है। संत पापा ने प्रश्न किया, "उस प्रेम में क्यों सक्रिय होना है?" क्योंकि प्रेम ने ही हम सभी का उद्धार किया है, हमें मुफ्त में धार्मिक माना गया है।

न्यायसंगत ठहराया जाना हमें मुक्ति के लम्बे इतिहास में प्रवेश कराता है जो हमारे लगातार गिरने और अयोग्यता के सामने ईश्वर के न्याय को दिखलाता है जिन्होंने हमें नहीं छोड़ा बल्कि हमें धार्मिक बनाना चाहा और उसे कृपा द्वारा, येसु ख्रीस्त की मृत्यु एवं पुनरूत्थान के दान से पूरा किया।  

संत पापा ने ईश्वर के कार्य करने के तीन तरीकों के बारे बतलाते हुए कहा, ईश्वर का तरीका है सामीप्य, सहानुभूति और कोमलता। वे हमेशा हमारे नजदीक हैं। वे दयालु और कोमल हैं। धार्मिकता वास्तव में ईश्वर का हमारे सबसे नजदीक होना है। पिता की कोमलता हमारे लिए बहुत अधिक है। ख्रीस्त ने हमें न्यायसंगत ठहराया है। हमें दण्ड नहीं दिया जाता है। संत पापा ने कहा कि मूल में हम संत हैं किन्तु हमारे कार्यों से हम पापी हो जाते हैं। हम ख्रीस्त को न्यायसंगत ठहराने दें और उस धार्मिकता की कृपा से हम आगे जा सकेंगे। इस तरह विश्वास का प्रकाश हमें यह समझने में मदद देगा कि ईश्वर की दया कितनी असीम है जो हमारी भलाई के लिए कार्य करती है। किन्तु यही प्रकाश हमें जिम्मेदारी को भी दिखाता है जिसको हमें मुक्ति के कार्य हेतु ईश्वर के साथ सहयोग करना है। कृपा की शक्ति को दया के कार्यों में बदलने की आवश्यकता है जिसके लिए हम ईश्वर के प्रेम का साक्ष्य देते हुए जीने हेतु बुलाये गये हैं। संत पापा ने कहा कि आइये हम इसी विश्वास के साथ आगे बढ़ें कि हम सभी न्यायसंगत ठहराये गये हैं। ईश्वर की नजरों में हम धार्मिक हैं। हमें इसे अपने कार्यों द्वारा सिद्ध करना है।    

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और विश्व के विभिन्न देशों से आये सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया।

अंत में, संत पापा ने सभी विश्वासियों और उनके परिवारों पर प्रभु येसु ख्रीस्त के आनन्द एवं शांति की कामना की तथा उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

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29 September 2021, 15:41