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करुणा को ग्रहण करने के बाद, अब हम भी दयालु बनें, पोप

संत पापा फ्रांसिस ने रविवार 11 अप्रैल को दिव्य करुणा महापर्व के अवसर पर रोम के संतो स्पीरितो (पवित्र आत्मा) गिरजाघर में समारोही ख्रीस्तयाग किया। यह गिरजाघर दिव्य करुणा के लिए समर्पित है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, रविवार, 11 अप्रैल 2021 (रेई)- संत पापा ने उपदेश में कहा, "पुनर्जीवित प्रभु शिष्यों को कई बार दिखाई दिये। धीरज पूर्व उनके निराश हृदय को सांत्वना देते रहे। उनके पुनरूत्थान के बाद शिष्यों का भी पुनरूत्थान हुआ और वे येसु के साथ जी उठे, उनके जीवन में परिवर्तन आया। प्रभु के कई शब्दों एवं उदाहरणों ने भी उनके हृदयों को बदल नहीं पाया था। अब पास्का में कुछ नया होता है और यह करुणा के चिन्ह स्वरूप होता है। येसु अपनी करुणा से उन्हें ऊपर उठाते हैं और वे भी करुणा प्राप्त कर, करुणामय बन जाते हैं।" संत पापा ने कहा कि दयालु बनना बहुत कठिन है यदि व्यक्ति दया किया गया महसूस नहीं करता।

शांति

सबसे पहले वे तीन वरदानों द्वारा दया किये जाते हैं : शांति, पवित्र आत्मा और येसु के घाव। पहले स्थान पर वे उन्हें शांति प्रदान करते हैं। वे शिष्य परेशान थे। वे भय से एक कमरे में बंद थे। उन्हें डर था कि कहीं वे भी गिरफ्तार न किये जाएँ और गुरूजी के समान उनका अंत हो जाए। वे न केवल घर में बंद थे बल्कि आत्मा ग्लानि के द्वारा भी बंद थे। उन्होंने येसु को छोड़ दिया था और उनका बहिष्कार कर दिया था। वे असमर्थ, शक्तिहीन एवं गलत होने का एहसास कर रहे थे। येसु उनके बीच प्रकट होकर दो बार कहते हैं : तुम्हें शांति मिले। यह शांति बाहर की समस्याओं को दूर करनेवाली नहीं थी बल्कि एक ऐसी शांति थी जो अंदर में दृढ़ता जगाती है। यह बाहरी शांति नहीं है किन्तु हृदय की शांति है। वे कहते हैं : तुम्हें शांति मिले! जिस तरह पिता ने मुझे भेजा है उसी तरह में तुम्हें भेजता हूँ। (यो. 20,21) यह ऐसा कहने के समान है, "मैं तुम्हें भेज रहा हूँ क्योंकि तुमपर विश्वास करता हूँ।" उन निराश शिष्यों ने अपने आपमें शांति महसूस किया। येसु की शांति ने उन्हें आत्म-ग्लानि की ओर पार किया। येसु की शांति वास्तव में मिशन के लिए तत्परता उत्पन्न करता है। यह मौन नहीं है, न ही आरामदायक, यह अपने आप से बाहर निकलना है। येसु की शांति उस बंद से मुक्ति दिलाती है जो व्यक्ति को विकलांग बनाता, उस जंजीर को तोड़ती है जो हृदय में बंद रखता है। इस तरह शिष्य दया किये गये महसूस करते हैं। वे महसूस करते हैं कि ईश्वर दण्ड नहीं देते, अपमानित नहीं करते बल्कि उनपर विश्वास करते हैं। वे हमपर इतना विश्वास करते हैं जितना हम खुद अपने आप पर विश्वास नहीं करते। वे हमें इतना प्यार करते हैं जितना हम अपने आपको प्यार नहीं करते।” (न्यूमन, चिंतन और भक्ति, III,12,2) ईश्वर के लिए कोई भी गलत नहीं है, कोई भी व्यर्थ और बहिष्कृत नहीं है। येसु आज पुनः दुहरा रहे हैं: तुम्हें शांति मिले, तुम मेरी नजरों में मुल्यवान हो। तुम्हें शांति मिले जो मेरे लिए मूल्यवान हो। तुम्हें शांति मिले जिनका एक मिशन है। तुम्हारास्थान कोई नहीं ले सकता, और मैं तुम पर विश्वास करता हूँ।

संतो स्पीरितो गिरजाघर
संतो स्पीरितो गिरजाघर

पवित्र आत्मा द्वारा क्षमाशीलता

दूसरे स्थान पर येसु अपने शिष्यों को पवित्र आत्मा प्रदान करते हुए दया दिखाते हैं। वे इसे पापों की क्षमा के लिए प्रदान करते हैं। (22-23) शिष्य दोषी थे, वे अपने गुरू को छोड़कर चले गये थे। पाप उन्हें परेशान कर रहा था, बुराई की अपनी कीमत होती है। स्तोत्र कहता है, "मेरा पाप निरंतर मेरे सामने है।" (स्तोत्र 51,5) हम अपने आप से इसे हटा नहीं सकते। सिर्फ ईश्वर अपनी दया से इसे दूर करते हैं और हमें अपनी दयनीय स्थिति के गर्त से बाहर निकलने में मदद देते हैं। इन शिष्यों के समान हम भी उन्हें क्षमा करने दें। दिल से कहें, प्रभु क्षमा कर। क्षमा किये जाने के लिए हृदय को खोलना। पवित्र आत्मा द्वारा प्राप्त क्षमा दान अंदर से जी उठने के लिए पास्का का दान है।

 हम उसे ग्रहण करने, क्षमाशीलता के संस्कार को प्राप्त करने और यह समझने के लिए कृपा मांगे कि पापस्वीकार संस्कार में हम अपने पापों के साथ नहीं बल्कि ईश्वर अपनी करुणा के साथ केंद्र में होते हैं। हम पापस्वीकार संस्कार में तोड़ने के लिए नहीं जाते किन्तु समाधान करने जाते हैं, जिसकी हम सभी को अत्यधिक आवश्यकता है। इसकी आवश्यकता हमें छोटे बच्चों के समान है। जब कभी हम गिर जाते हैं हमें पिता के द्वारा उठाये जाने की जरूरत है। हम भी बहुत बार गिरते हैं। और पिता का हाथ हमें उठाने एवं आगे बढ़ाने के लिए तैयार है। पापस्वीकार संस्कार में यह हाथ निश्चित एवं विश्वास योग्य है। यही वह संस्कार है जो हमें पुनः उठाता है और कड़े जमीन पर रोते हुए पड़े रहने नहीं देता है। पुनरूत्थान का संस्कार शुद्ध करुणा है। अतः जो पापस्वीकार संस्कार ग्रहण करते हैं उन्हें करुणा की कोमलता को महसूस करना चाहिए। येसु की करुणा को महसूस करना जो सभी को क्षमा कर देते हैं। ईश्वर सभी को क्षमा करते हैं।   

येसु के घाव  

शांति प्रदान करने एवं क्षमा देने के बाद, तीसरे दान में करुणावान येसु शिष्यों को घाव अर्पित करते हैं। उन्हीं घावों के द्वारा हम चंगे हो गये हैं। (1 पीटर 2,24; इसा. 53,5) पर किस तरह घाव हमें चंगा करते हैं? वे हमें करुणा से चंगा करते हैं। थोमस के समान हम भी अपने हाथों से उन घावों का स्पर्श करें जिनके द्वारा ईश्वर ने हमें अंत तक प्यार किया है, हमारे घावों को अपना बना लिया है, अपने शरीर में हमारी दुर्बलता को धारण किया है। ये घाव उनके और हमारे बीच एक चैनल के समान है जो हमारी दयनीय स्थिति में हमारे लिए करुणा बरसाते हैं। वे रास्ते हैं जिन्हें ईश्वर ने चौड़ा कर दिया है कि हम उनकी कोमलता में प्रवेश कर सकें और अपने हाथों से उनका स्पर्श करें, ताकि उनकी करुणा पर कभी संदेह न हो। हम उनके घावों की आराधना करते, उन्हें चूमते हैं क्योंकि हमारी हर दुर्बलता उनकी कोमलता में स्वीकार किया गया है। यह हर मिस्सा में होता है जहाँ येसु अपने घायल एवं जी उठे शरीर को अर्पित करते हैं। हम उनका स्पर्श करते हैं और वे हमारे जीवन को छूते हैं और इसके द्वारा स्वर्ग हममें उतर आता है। उनके घावों के प्रकाश हमारे अंदर के अंधकार को दूर करते हैं और हम थॉमस के समान ईश्वर को पाते हैं, हम उन्हें अपने आपसे संयुक्त एवं निकट में पाते हैं और उनसे प्रेरित होकर कहते हैं, "मेरे प्रभु और मेरे ईश्वर।" (यो.20,28)

ख्रीस्तीय यात्रा की शुरूआत

यहीं, दया किये जाने की कृपा से सब कुछ शुरू होता है। यहीं से ख्रीस्तीय यात्रा शुरू होती है। दूसरी ओर यदि हम अपनी क्षमता, अपने कौशल, अपनी संरचना एवं हमारी योजनाओं पर आधारित हों तो हम अधिक दूर नहीं जा पायेंगे। सिर्फ यदि हम ईश्वर के प्रेम को ग्रहण करेंगे तो हम दुनिया को फिर से कुछ दे पायेंगे।  

शिष्यों ने ऐसा ही किया : दया किये जाकर, वे भी दयालु बन गये। इसको हम पहले पाठ में देख सकते हैं। प्रेरित चरित बतलाता है कि कोई अपनी सम्पति अपनी ही नहीं समझता था। (4,32). यह समुदायवाद नहीं था, यह शुद्ध ख्रीस्तीयता थी। यह और भी आश्चर्यजनक है यदि हम उन शिष्यों की याद करते हैं जो कुछ समय पहले कीमत और सम्मान पर झगड़ा कर रहे थे और आपस में कौन बड़ा है की बात कर रहे थे। (मार. 10:37; मार 22:24). अब वे अपने पास जो कुछ था सबको साझा कर रहे थे और वे एक हृदय एवं एक प्राँण के हो गये थे।" (प्रे.च. 4:32)

वे किस तरह ऐसे बदल गये? उन्होंने दूसरों को उसी दया से देखा जिस दया से उनका जीवन बदल गया था। उन्होंने महसूस किया कि मिशन, क्षमाशीलता और येसु का शरीर उन सभी के लिए है अतः पृथ्वी की चीजों को बांटना एक स्वभाविक बात हो गई। आगे कहा जाता है कि "उनमें से कोई जरूरतमंद नहीं था।" (34) उनका भय प्रभु के घाव का स्पर्श करन के कारण समाप्त हो गया था, अब वे दूसरों के घावों को चंगा करने में डर महसूस नहीं कर रहे थे। क्योंकि वे येसु को देखते हैं, क्योंकि येसु वहाँ उपस्थित हैं।

संत पापा ने कहा, "बहनों एवं भाइयो क्या आप प्रमाण चाहते हैं कि ईश्वर ने आपके जीवन का स्पर्श किया है? दूसरों के घावों की ओर झुकें और आप उसे प्रमाणित कर पायेंगे।" आज अपने आप से पूछने का दिन है : मैंने ईश्वर की शांति, उनकी क्षमा और उनकी करुणा को कई बार प्राप्त किया है, पर क्या मैं दूसरों के प्रति दयालु हूँ? मैंने कई बार उनके शरीर को ग्रहण किया है क्या मैं गरीबों को खिलाने के लिए कुछ करता हूँ? हम उदासीन न रहें। हम विश्वास को आधा न जीयें जो पाता तो है मगर देता नहीं, जो कृपा को ग्रहण करता तो है किन्तु दूसरों को उपहार नहीं देता। हम दया किये गये हैं इसलिए दूसरों के प्रति भी दयालु बनें, क्योंकि यदि प्रेम हम ही तक सीमित रहे, विश्वास फलहीन रहे तो दूसरों के लिए कर्मों के अभाव में विश्वास निर्जीव है। (याकूब 2,17) आइये, हम शांति, क्षमाशीलता और करुणावान येसु घावों के द्वारा पुनर्जीवित होने दें। और करुणा के साक्षी बनने के लिए कृपा की याचना करें। सिर्फ इसी के द्वारा विश्वास जीवित रहेगा और जीवन सामंजस्यपूर्ण होगा। केवल इस तरह हम ईश्वर के सुसमाचार की घोषणा कर पायेंगे जो करुणा का सुसमाचार है।  

 

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11 April 2021, 16:19