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सलोने देल गुस्तो  के 14वें उत्सव का समापन सलोने देल गुस्तो के 14वें उत्सव का समापन 

तेर्रा माद्रे सालोने देल गूस्तो का 14वाँ फेस्टिवल तूरिन में

इटली के तूरिन शहर में तेर्रा माद्रे सालोने देल गूस्तो का 14वाँ फेस्टिवल 22-26 सितम्बर 2022 को सम्पन्न हुआ। फेस्टिवल में राँची से अजम एम्बा रेस्टोरेंट की ओनर अरूणा तिरकी ने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए आदिवासी खान-पान को पेश किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 10 अ्क्टूबर 2022 (वीआर हिन्दी) :  स्लो फूड नेटवर्क का सबसे बड़ा उत्सव तेर्रा माद्रे (धरती माता), इस बात का जीवंत उदाहरण है कि कैसे भोजन शांति का सेतु बन सकता है। यह दिखाता है कि समावेश और विनिमय के माध्यम से, हम कैसे एक साथ बेहतर भविष्य प्राप्त कर सकते हैं। खाद्य राजनीति, टिकाऊ कृषि और पर्यावरण को समर्पित सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम स्लो फूड, पियेदमोंते क्षेत्र और तूरिन शहर द्वारा आयोजित किया गया था।

भोजन के लिए एक अलग भविष्य का निर्माण

स्लो फूड, तूरिन में दुनिया भर के खाद्य उत्पादकों और कार्यकर्ताओं को फिर से एक साथ लाकर, अपने वैश्विक आंदोलन की ऊर्जा का उपयोग करना चाहता है। इस आयोजन का लक्ष्य है भोजन के लिए एक अलग भविष्य का निर्माण करना, एक ऐसा भविष्य बनाना जो व्यक्तियों की दैनिक पसंद, समुदायों के सामूहिक प्रयासों और सार्वजनिक एवं निजी दोनों संस्थानों की नीतियों को आकार दे।

तेर्रा माद्रे स्लो फूड फेस्टिवल
तेर्रा माद्रे स्लो फूड फेस्टिवल

अजम एम्बा की ओनर अरूणा तिरकी ने तेर्रा माद्रे सालोने देल गूस्तो सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने बतलाया कि वे राँची में आदिवासी खानपान पे पुनः जागरूकता लाने और उसको बढ़ावा देने पर काम कर रही हैं। उन्होंने झारखंड के आदिवासी खानपान के लुप्त होने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि "आनेवाली पीढ़ी तक ये खानपान लुप्त ही हो जाएगा।"

उन्होंने कहा कि खानपान की जिस विधि का प्रयोग हमारे पुर्वजों ने किया है। उसे फिर से हमारे खानपान में लाना और उसको लोकप्रिय बनाना जरूरी है।

अरूणा ने बताया कि अजम एम्बा के द्वारा वे जो काम कर रही हैं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्लो फूड का लक्ष्य भी वही है। उन्होंने कहा, "मैं अंतरराष्ट्रीय स्लो फूड की मेंबर बन गई हूँ। मुझे लोगो मिला है झारखंड अजम एम्बा स्लो फूड क्यूनिटी। मैं उसमें जुड़के विश्वस्तर पर, इस अभियान में और अच्छा से काम कर पा रही हूँ। इसी के तहत अभी 2022 में तूरिनो में इंटरनैशनल स्लो फूड फेस्टिवल मनाया गया। जहाँ मैं फेस्टिवल को सेलेब्रेट करने आयी थी। इंडिया की ओर से इंडिया के आदिवासी फूड को रिप्रेजेंट करने आयी थी।"

अरूणा ने बतलाया कि फेस्टिवल में दुनियाभर से करीब 160 देशों से करीब 1000 की संख्या में लोगों ने भाग लिया। जिनका मुख्य विषय था, "हम अपने अनाज को कैसे फिर से रीजेनेरेट (पुनः उत्पादन) करें।"

अजम एम्बा की ओनर अरूणा तिरकी के साथ सिस्टर उषा मनोरमा
अजम एम्बा की ओनर अरूणा तिरकी के साथ सिस्टर उषा मनोरमा

आदिवासियों ने अपने प्लेट से खाना निकाल दिया

अरूणा ने झारखंड के आदिवासियों के खानपान के बारे बतलाते हुए कहा, "किसी भी समाज की संस्कृति की पहचान उसके खानपान से होती है लेकिन झारखंड के आदिवासियों ने अपने प्लेट से अपना खानपान निकाल दिया है और बहुत सारा खानपान विलुप्त हो चुका है।"

अरूणा अजम एम्बा नामक एक रेस्टोरेंट चलाती हैं जिसके द्वारा वे आदिवासी खानपान को लोकप्रिय बनाने को कोशिश कर रही हैं। उन्होंने कहा, "हमारा खाना अभी तक मेन स्ट्रीम में नहीं था। हर क्षेत्र की पहचान उसके खानपान से होती है यदि आप गुजरात जाएँ तो गुजराती खाना है, लेकिन झारखंड का खाना कुछ भी नहीं है। हमलोग कनफ्यूज्ड थे। चूँकि हम आदिवासियों ने हमारे खानपान को नीचे ही रखा। हम यदि सूकटी खाते हैं, चकोड़ झोर खाते हैं मड़ुवा खाते हैं गोंदली खाते हैं। लोग सोचते हैं मड़ुआ नहीं खायेंगे क्योंकि काले हो जायेंगे। मैंने लोगों को कहते सुना है, डेफिकेशन काला हो जाएगा इसलिए मड़ुवा नहीं खाना है। मोटा अनाज है। पचने में देरी होता है। मैंने गाँव में जब बुजूर्गों से पूछा कि क्यों छोड़ा आप लोगों ने खाना? क्यों नहीं खाते हैं? तो उन्होंने जवाब दिया कि सादा चावल आया। पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) का चावल आया।

अपने खानपान पर आदिवासियों की मानसिकता

अरूणा ने बतलाया कि उन्होंने आदिवासियों से जानने की कोशिश की लोगों ने अपना खानपान क्यों छोड़ किया। इसपर उन्हें जवाब मिला कि आनाज मोटा था। पीडीएस से चावल मिलने के बाद लोग गोंदली को पशुओं को खिलाने हैं। अरूणा ने पूछा कि आप क्यों नहीं खाते हैं? तब उन्होंने कहा, "यदि हमलोग खायेंगे तो हमें गरीब बोला जाएगा।" मतलब हमारे खानपान को एक गरीबीवाला खानपान बतलाया गया।

अरूणा को शक है कि लोगों के मन में ऐसा विचार "ऊपर की सोसाईटी" ने डाली है। उनके अनुसार लोगों को बताया गया कि मड़वा और  मोटा आनाज खानेवाले लोग आदिवासी हैं और ये गरीब लोग हैं इसलिए ऐसा खाना खाते हैं। खानपान से लोगों को पहचाना जाने लगा। आदिवासी हैं इसलिए मोटा आनाज खाते हैं क्योंकि ये गरीब हैं। ये बहुत वर्षों से फैलाया जा रहा था। अभी दुनिया इसपे क्यों फिर वापस हो रही है।

आदिवासी खानपान को बदलने का कारण

अरूणा ने कहा, "हमारे खानपान को हमारे प्लेट से निकाल के कोलोनियल फूड बना दिया गया है, और इसे मोल में लगाया जा रहा है सूपर फूड के रूप में। आप फाईवस्टार हॉटेल जाओ तो एक सूपर फूड का सेक्शन अलग रहता है। सारे तथाकथित एलिट लोग होते हैं जिन्हें अपने स्वस्थ की चिंता होती है वे उसी कोने में जाते हैं। गोंदली एक कोने में रहेगा। मड़ुवा का पाऊडर रहेगा और लोग उसको लेकर खायेंगे। जो फल हैं हमारे यहाँ महुँआ है चार है हमलोग उसको दारू बनाने में प्रयोग करते हैं महुँआ चार में कितना पौष्टिक मूल्य है उसको जानते हुए भी उसे इसीलिए छोड़ा गया कि यदि हम उसे खायेंगे तो हमको गरीब बोला जाएगा या आदिवासी बोला जाएगा तो आदिवासियत को हम क्यों हटाना चाहते हैं। और ये समय के साथ बहुत ज्यादा हुआ है। बाकी चीज तो हमारा हटाया गया, खानपान को भी हटाया गया।"

चावल लेने के लिए लीबया में लोगों की लाईन
चावल लेने के लिए लीबया में लोगों की लाईन

भोजन के भविष्य के लिए एक सामूहिक दृष्टिकोण

स्लो फूड की उप-अध्यक्ष एडी मुकिबी ने "तेर्रा माद्रे सलोन डेल गुस्टो 2022 को, उन सवालों का जवाब तलाशने के लिए एक महान अवसर कहा, जिनको वर्तमान पर्यावरण, जलवायु और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट ने उठाये हैं... हमारा लक्ष्य है भोजन के भविष्य के लिए एक सामूहिक दृष्टिकोण का निर्माण करना जो राजनीतिक सीमाओं से परे, उन समुदायों पर ध्यान केंद्रित करे, जो हमें और उनके साथ हमारे संबंधों को मानवता और बाकी प्राकृतिक जगत के बीच व्यापक संबंध पर ध्यान केंद्रित करते हैं।"

उन्होंने कहा, "स्लो फूड के लिए पुनर्जनन एक अनुप्रस्थ विषय है। जिस तरह एक पेड़ जिसने अपनी एक शाखा खो दी है, उसे वापस उगा सकता है, उसी तरह मिट्टी जो कि मोनोकल्चर और रासायनिक खादों से खराब हो गई है, भूमि को पोषण देनेवाली कृषि पद्धतियों से, पौष्टिक फसलों, विविध आहार और सम्मानजनक आजीविका सुनिश्चित कर सकती है।"

स्थायी पशुधन प्रजनन और चरागाह के माध्यम से, परित्यक्त पर्वतीय क्षेत्रों में पुन: उत्पादन किया जा सकता है और उच्चभूमि के उजाड़पन को भी बदला जा सकता है।

मीठे पानी और खारे पानी के पारिस्थितिक तंत्र को उन संस्कृतियों के पारंपरिक ज्ञान से पुनर्जीवित किया जा सकता है जिन्होंने सदियों से अपनी तकनीकों को हमें सौंप दिया है। खाद्य उत्पादन और उपभोग के बीच की दूरी को कम करके शहरों को पुनर्जीवित किया जा सकता है। यह दूरी, जो शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दोनों है, पिछली शताब्दी में चौड़ी हुई है, जिससे हमारे भोजन का उत्पादन काफी हद तक हमारे लिए अदृश्य हो गया है।

तेर्रा माद्रे स्लो फूड फेस्टिवल
तेर्रा माद्रे स्लो फूड फेस्टिवल

तेर्रा माद्रे की स्थापना

तेर्रा माद्रे को 2004 में दुनिया भर के खाद्य उत्पादकों के वैश्विक सम्मेलन के रूप में लॉन्च किया गया था, और यह दुनिया भर में स्लो फूड दर्शन को विकसित करने और लागू करने का एक साधन बन गया।

यह नाम पचामामा के सम्मान में चुना गया था, जिसको दक्षिण अमेरिका के आदिवासी धरती माता के लिए करते हैं, और यह फेस्टिवल अब दुनिया भर के लाखों किसानों द्वारा मनाया जाता है। जब से तेर्रा माद्रे उत्सव की शुरूआत हुई है, स्लो फूड आंदोलन इसका धड़कता हुआ दिल बन गया है, और तेर्रा माद्रे के द्वारा स्लो फूड 160 से अधिक देशों में फैल गया है।

 

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10 October 2022, 16:01