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झारखंड के आदिवासी झारखंड के आदिवासी 

नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज को रद्द कराने के लिए पदयात्रा

नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज को रद्द कराने के लिए 21 से 25 अप्रेल को पद यात्रा का आयोजन किया गया है। पदयात्रा टूटवापानी से शुरू करते हुए गुमला के रास्ते राँची तक की जायेगी, जहाँ झारखंड के राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा जाएगा। यह आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन की रक्षा का आंदोलन है, जो ऐसे समय में किया जा रहा है जब 22 अप्रेल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

गुमला, बृहस्पतिवार, 21 अप्रेल 2022 (वीएन हिन्दी) – केद्रीय जनसंघर्ष समिति पिछले 28 सालों से नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज, टूडूरमा डैम और 2017 के पलामू व्याघ्र परियोजना से संभावित विस्थापन के खिलाफ चल रहे आन्दोलन का नेतृत्व कर रही है। इसके साथ ही इन परियोजनाओं से प्रभावित इलाकों में मानव अधिकार के संबंधित मामलों, समाजिक मुद्दों, देश एवं राज्य के ज्वलंत समस्याओं तथा आंदोलनों पर भी अपनी पैनी नजर रख रही है। जिस पर कार्य करते हुए वह प्रभावी क्षेत्र के लोगों के साथ मिलकर आम जनता के सवालों को उठाता एवं अहिंसात्मक आंदोलन करता आ रहा है।

नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज को रद्द कराने के लिए 21 से 25 अप्रेल को पद यात्रा का आयोजन किया गया है। पदयात्रा टूटवापानी से शुरू करते हुए गुमला के रास्ते राँची तक की जायेगी, जहाँ झारखंड के राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा जाएगा।

ज्ञापन की विषयवस्तु है, "नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को विधिवत अधिसूचना द्वारा रद्द कराना।"

समिति ने बतलाया है कि एकीकृत बिहार के समय में 1954 में मैनूवर्स फील्ड फायरिंग अर्टिलरी प्रैक्टिस एक्ट 1938 की धारा 9 के तहत नेतरहाट पठार के 7 राजस्व ग्राम को तोपाभ्यास (तोप से गोले दागने का अभ्यास) के लिए अधिसूचित किया गया था। जिसके तहत चोर मुंडा हुसम्बू, हरमुंडाटोली, नवाटोली, नैना, अराहंस और गुरदारी गाँव में सेना तोपाभ्यास करती आ रही थी। 1991 और 1992 में तत्कालीन बिहार सरकार ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए अधिसूचना जारी की जिसमें उन्होंने अवधि का विस्तार करते हुए इसकी अवधि 1992 से 2002 तक कर दी। इस अधिसूचना के तहत केवल अवधि का ही विस्तार नहीं किया गया बल्कि क्षेत्र का विस्तार करते हुए 7 गाँव से बढ़ाकर 245 गाँव को भी अधिसूचित किया गया।

इस मामले में सरकार ने जनता के साथ कोई भी जानकारी साझा नहीं की और छुप-छुप कर अधिसूचनाएँ जारी करती रही, पिपल्स यूनियन फोर डेमोक्रेटिक राईट्स (दिल्ली, अकटूबर 1994) की रिपोर्ट से समिति को मालूम हुआ था कि सरकार की मंशा पायलट प्रोजेक्ट के तहत स्थायी विस्थापन एवं भूमि-अर्जन की योजना को आधार दिया जाना था। तब से नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के खिलाफ आंदोलन जारी है।

जन संघर्ष समिति ने क्षेत्र की महिलाओं की अगुवाई में 22 मार्च 1994 को फायरिंग अभ्यास के लिए आई सेना को बिना अभ्यास के वापस जाने पर मजबूर किया था। तब से आज तक सेना नेतरहाट के क्षेत्र में तोपभ्यास के लिए नहीं आई है। आंदोलन के साथ साथ, हमेशा बात-चीत का रास्ता खुला रखा गया है। इस जोरदार विरोध को देखते हुए स्थानीय प्रशासन गुमला और पलामू की पहल पर प्रशासनिक अधिकारी, सेना के अधिकारी, और केंद्रीय जन संघर्ष समिति के साथ तीन बार वार्ता हुई। इस बातचीत के पूर्व समिति ने नेतरहाट पठार में 1964 से 1994 (30 वर्षों) तक फायरिंग अभ्यास के दौरान के अनुभवों को जानने के लिए सर्वेक्षण कराया। इस सर्वेक्षण से जो तथ्य सामने आए वे दिल दहलानेवाले थे।

-    सैनिकों के सामूहिक बलात्कार से मृत महिलाओं की संख्या -2

-    सैनिकों द्वारा महिलाओं का बलात्कार -28

-    तोपाभ्यास के दौरान गोला विस्फोट से मृत लोगों की संख्या -30

-    गोला विस्फोट से अपंग लोगों की संख्या -3

वार्ता के दौरान जन संघर्ष समिति के प्रतिनिधि ने कहा कि समिति किसी भी तरह के फायरिंग अभ्यास को पायलट प्रोजेक्ट नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का ही रूप मानती है, अतः समिति बिहार सरकार के द्वारा पायलट प्रोजेक्ट को विधिवत अधिसूचना प्रकाशित कर रद्द करने की मांग करती है।

नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज प्रोजेक्ट को आदीवासी रद्द कराना चाहते हैं क्योंकि नेतरहाट पठार में बसे 245 गाँव के इलाके में सरकार 180 वर्ग किलोमीटर के सघन क्षेत्र का भूमि अर्जन करना चाहती है जिससे ढाई लाख लोगों के विस्थापित होने की आशंका है। यहाँ बसे कुल आबादी के 90 से 95 प्रतिशत लोग आदीवासी है। नेतरहाट केंद्रीय जनसंघर्ष समिति 1994 से ही सेना द्वारा रूटीन फायरिंग को बंद करने और नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को पूरी तरह समाप्त करने के लिए संघर्ष कर रही है।

आदिवासियों के सत्याग्रह के कारण नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज प्रोजेक्ट को 2022 तक के लिए स्थगित किया गया था। इसके बाद सरकार नया कदम उठा सकती है। अतः आदिवासी नेताओं ने लोगों से अधिक जागरूक होने का आह्वान किया है। 

राँची की ओर पाँच दिनों की पदयात्रा करते लोग

 

 

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21 April 2022, 17:16