खोज

पर्यावरण कार्यकर्ता वंदना शिवा पर्यावरण कार्यकर्ता वंदना शिवा 

"फ्राँसिस की अर्थव्यवस्था" : वंदना शिवा, बांटने की अर्थव्यवस्था की जरूरत है

वंदना शिवा ने एक साक्षात्कार में अर्थव्यवस्था में सृष्टि की देखभाल के महत्व पर प्रकाश डाला है। वे फ्राँसिस की अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख वक्ता हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वंदना शिवा भारत की एक दार्शनिक, पर्यावरण कार्यकर्ता, पर्यावरण संबंधी नारी अधिकारवादी एवं कई पुस्तकों की लेखिका हैं। वर्तमान में दिल्ली में स्थित, शिवा अग्रणी वैज्ञानिक और तकनीकी पत्रिकाओं में 300 से अधिक लेखों की रचनाकार हैं। वे फ्राँसिस की अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख वक्ता हैं।

वंदना शिवा ने एक साक्षात्कार में अर्थव्यवस्था में सृष्टि की देखभाल के महत्व पर प्रकाश डाला है।

-आपने संत पापा फ्राँसिस के विश्व पत्र लौदातो सी को पढ़ा ही होगा, यह आपको किस तरह प्रभावित करता है?

मैंने कुछ ही दिनों पहले पोप फ्राँसिस के विश्व पत्र लौदातो सी को पढ़ा है, मैंने वाटिकन में अर्थव्यवस्था को पुनर्परिभाषित करने एवं उदासीनता की अर्थव्यवस्था के परे जाने पर वार्ताओं में भाग लिया है। जब मैंने लौदातो सी को पढ़ा तो मुझे लगा कि मैं हमारे पुराने वेद धर्मग्रंथ को पढ़ रही हूँ, विशेषकर, अथर्ववेद, जिसमें पृथ्वी और सभी प्राणियों के लिए हमारे सम्मान के कर्तव्य का जिक्र है।    

- असीसी के कार्यक्रम से आपको क्या उम्मीद है?

कार्यक्रम की योजना मार्च में कोविड और लॉकडाऊन के पहले बनायी गई थी। पारिस्थितिक संकट, सामाजिक संकट एवं आर्थिक असमानता के कारण, मैं इसे बहुत महत्वपूर्ण अवसर के रूप में देख रही हूँ। मार्च में ही यह स्पष्ट था कि हमें हमारे आमघर में सभी प्राणियों के कल्याण के लिए देने और बांटने की अर्थव्यवस्था की जरूरत है। कोविड और तालाबंदी के साथ फ्राँसिस की अर्थव्यवस्था, ग्रह एवं लोगों के अस्तित्व और कल्याण हेतु एक नैतिक एवं पर्यावरणीय अनिवार्यता बन गई है। मैं इसमें भाग लेने का इंतजार कर रही हूँ।   

-किस तरह विभिन्न धर्मों ने सृष्टि के साथ यथार्थ संबंध पुनःस्थापित करने के लिए योगदान दिया है? क्या उत्पत्ति की धारणाओं और सृष्टि के ईशशास्त्र की खोज करना रूकावट है?

अपने मूल में सभी आस्थाएँ हमें एक-दूसरे की सृष्टि की देखभाल करने की शिक्षा देती हैं। कोई भी आस्था यह नहीं करता कि पृथ्वी को नष्ट करो, अपने पड़ोसी को भूखे रहने दो। सृष्टि की कहानियाँ अलग हो सकती हैं किन्तु सृष्टि के लिए हमारा कर्तव्य एक समान है। आस्था हमारे कर्तव्य पर ध्यान दिलाती और हमें आम मानवता में एक साथ लाती है। बांटो और शासन करो की नीति विभाजन उत्पन्न करती है।

मेरे लिए, ईशोपनिषद और गांधी की शिक्षा में महत्वपूर्ण प्रासंगिकता है, जिससे मैं पारिस्थितिक सीमा और पृथ्वी की चीज वस्तुओं के पारिस्थितिक साझा को समझ सकती हूँ।

ईशोपनिषद की शिक्षा को स्पष्ट करते हुए गाँधी स्मरण दिलाते हैं कि पृथ्वी के पास हरेक की जरूरत के लिए पर्याप्त संसाधन है न कि यह कुछ लालची लोगों के लिए है।

ईशावास्यं इदं सर्वं यत् किञ्च जगत्यां जगत।

तेन त्यक्तेन भुञ्जिथाः मा गृधः कस्य स्विद् धनम् ॥१॥

(यहाँ जो कुछ है, परमात्मा का है। हमारा यहाँ कुछ नहीं है- हमें पृथ्वी के संसाधनों का, त्याग के माध्यम से आनंद लेना चाहिए, न कि असक्ति और शोषण के लालच के माध्यम से। हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए हमारे हिस्से से अधिक लेने से अन्य प्रजातियों, अन्य मनुष्यों और भविष्य से चोरी होती है।)

परस्पर एक-दूसरे से जुड़ी इस दुनिया में, जो जीवन उत्पन्न करती है उत्पति की पारिस्थितिक सीमा को लांघते हुए अपने हिस्से से अधिक लेने पर पारिस्थितिक संकट उत्पन्न होती है और न्याय के नैतिक सीमा को पार करने पर समाज में अभाव, गरीबी और भूखमरी बढ़ती है। यदि शक्तिशाली व्यक्ति पृथ्वी के संसाधनों को, उत्पादन और उपभोग प्रणाली के माध्यम से अधिक ले लेता है तब दूसरों के लिए संसाधन कम रह जाते हैं। एक दुनिया जो लालच पर आधारित है, सिर्फ लेती है, धनियों, करोड़पतियों और शक्तिशाली का साथ देती है तो इसके संसाधन पृथ्वी और इसके लोगों के लिए कम रह जायेंगे।       

-कुछ सालों पहले आपने 'नवधान्य' नामक संस्था की स्थापना की जो स्थानीय किसानों और विलुप्त हो रही फसलों व पौधों के संवर्धन की दिशा में कार्यरत है। आप इस संघर्ष में अपने आपको किस पड़ाव पर पाती हैं?

मैंने नवधान्य की स्थापना की क्योंकि मैं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के झूठ को स्वीकार नहीं कर सकी कि बीज एक मशीन है जिसका उन्होंने आविष्कार किया और इसलिए वे इसका लाईसेंस ले सकते हैं। मेरे लिए यह सृष्टि की अखंडता एवं उनके जीव जंतुओं का हनन था। मेरे लिए नवधान्य सृष्टि और किसानों के सामान्य अधिकार के लिए मेरी सेवा है।

हमने 150 समुदाय बीज बैंक का निर्माण किया है। मैंने हमारे नियम को सहयोग दिया है जो कहता है कि पौधे और बीज मानव के अनुसंधान नहीं हैं अतः इसके लिए लाईसेंस प्राप्त नहीं किया जा सकता। मैं उन नियमों को लिखने में मदद दी है जो किसानों के अधिकारों को मान्यता देते हैं।

आज, टेक अरबपतियों के साथ काम करनेवाली बायोटेक कंपनियाँ किसानों के साथ डिजिटल कृषि और खेती करना चाहती हैं। वे वास्तविक भोजन एवं जीवन की रोटी को लाईसेंस प्राप्त भोजन प्रयोगशाला में बदलना चाहते हैं। गरीबी और भूखमरी तथा संक्रमक बीमारियाँ निगमों के लालच का परिणाम है जो रसायन और जहर द्वारा  भोजन तैयार करते हैं। इसके द्वारा अब प्रयोगशालाओं में झूठे और कृत्रिम भोजन बनाने की कोशिश हो रही है जो अर्कवाद के नए रास्ते में योगदान देगा और भोजन तथा स्वास्थ्य संकट को और बढ़ाएगा। दोहन की ओर बढ़ने का प्रत्येक कदम पृथ्वी के संसाधनों पर अधिक जटिलता, अधिक हेरफेर, अधिक एकाग्रता की मांग पैदा करता है, तथा अन्य प्रजातियों और लोगों से उनका हिस्सा ले लेता है।

इस समय, नवधान्य समुदायों को अपनी खाद्य संप्रभुता, अपने ज्ञान संप्रभुता, आर्थिक संप्रभुता की रक्षा की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। हमें अब सामुदायिक बीज बैंक बनाने की आवश्यकता है ताकि जीवन के बीज, जीवन के लिए भोजन, ग्रामीण जाविका और भोजन की विशुद्धता की रक्षा की जा सके।

-क्या इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लाभ के तर्क को छोड़ने के लिए आश्वस्त किया जा सकता है?

लालच और शक्ति, लोगों को अरबपति बना देता है जो अंधे और बहरे के रूप में निगमों पर नियंत्रण करते हैं। मैं नहीं सोचती कि हमें उन्हें आश्वस्त करने की जरूरत है। हमें व्यक्ति और समुदाय के रूप में आश्वस्त होने की जरूरत है जिससे कि हम पृथ्वी से प्रेम करने, उसकी रक्षा करने एवं हरेक प्राणी के प्रति दया दिखाने और बांटने के लिए सही कदम उठा सकें। देने और बांटने के आधार पर विकल्प बनाना एक साझा समृद्धि उत्पन्न करता है, और हमें कॉर्पोरेट नियंत्रण से मुक्त बनाता है।

-    क्या आप उम्मीद करते हैं कि ऐसा हो सकता है?

मैं आशावान हूँ क्योंकि मैं हरेक दिन आशा एवं लचीलापन के बीज की रक्षा करती और बोती हूँ।

-कुछ मामलों में ऐसा लगता है कि गरीब एवं कम सौभाग्याशाली देशों को तकनीकी विकास का अवसर देती है इस प्रकार गरीबी की स्थिति जिसमें वे अपने आपको पाते हैं उसे कम किया जा सकता है। आपके विचार से क्या यह सही है कि तकनीकी का सहारा लिया जाए अथवा क्या यह बेहतर है कि पृथ्वी को सुना जाए जब यह बतलाती है कि कुछ स्थान स्वाभाविक रूप से खेती के लिए अनुकूल नहीं हैं?  

विगत कुछ दशकों में, मैंने अध्ययन किया है कि कई देशों में लगाई गई प्रौद्योगिकी और मेरा देश भी दावा कर सकता है कि वे विकास उत्पन्न करेंगे और भूखमरी एवं गरीबी दूर कर देंगे। हरित क्रांति पर मैंने एक किताब लिखी है जिसने उर्वरक उद्योग के लिए नए बाजार बनाए, मिट्टी, पानी को नष्ट किया और जलवायु परिवर्तन को बढ़ाया। इसने कर्ज में फंसे किसानों को छोड़ दिया। कीटनाशक जहर से सैंकड़ों किसानों की मौत हो गई। तकनीकी का अर्थ है उपकरण। उपकरण के लिए आवश्यक है कि उसे जिम्मेदारी के साथ प्रयोग किया जाए। उन्हें मानव के कल्याण के साधन के रूप में प्रयोग किया जाना चाहिए, पारिस्थितिकी के नियम के अनुरूप कार्य करना चाहिए।

बड़े तकनीकी के मालिक उपकरणों को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं जिसके द्वारा वे हमारे आंकड़ों को दफना कर बहुत अधिक लाभ कमाना सकें तथा हमारे बीज, हमारे भोजन, हमारे आंकड़े को एक नये धर्म के रूप में लाईसेंस प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं।   

हमें उपकरणों और तकनीकियों को उनके उच्चतम उद्देश्यों के लिए सही स्थानों पर पहुँचा देना चाहिए।

-इस पारिस्थितिक परिवर्तन के दौर में महिलाओं की क्या भूमिका है?

एक क्वांटम भौतिकी विज्ञान शास्त्री के रूप में, मैं अनिवार्यतावाद को स्वीकार नहीं करती। मेरे जीवन के अनुभवों ने मुझे सिखलाया है कि महिलाओं को अपने परिवारों और समुदायों की देखभाल के लिए छोड़ दिया गया था। देखभाल करने के काम को काम नहीं समझा जाता था और इसे सम्मानरहित और मूल्यहीन समझा जाता था। परन्तु चाहे यह महामारी हो या पृथ्वी के नवीनीकरण का निमंत्रण अथवा भूखमरी, बेरोजगारी और गरीबी का सामना करनेवाले समुदाय की देखभाल, देखभाल करने में महिलाओं की निपुणता और समर्पण पारिस्थितिक बदलाव का नेतृत्व करेगा। हरेक पारिस्थितिक आंदोलन जिनमें मैंने भाग लिया है वे महिलाओं के द्वारा संचालित की गयी हैं। महिलाएँ देखभाल करना कभी नहीं भूलती हैं। वे सभी लोगों को देखभाल, प्रेम और दया के मूल्यों की शिक्षा दे सकती हैं।       

19 November 2020, 17:27