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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट  

भारत मानवाधिकार संगठनों पर पाबन्दियाँ, कार्यकर्ताओं की गिरफतारी

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने भारत सरकार से मानवाधिकारों के पैरोकारों और ग़ैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के कार्यकर्ताओं के अधिकारों की गारण्टी सुनिश्चित करने की अपील की है। साथ ही इन कार्यकर्ताओं के लिये ऐसा माहौल भी सुनिश्चित किया जाए जिसमें वो ऐसे अनेक संगठनों व समूहों की ख़ातिर किया जाने वाला काम जारी रखने योग्य हों, जिनका वो प्रतिनिधित्व करते हैं।

माग्रेट सुनीता मिंज – वाटिकन सिटी

न्यूयॉर्क, बुधवार 21 अक्टूबर 2020 (यूएन न्यूज) : संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने मंगलवार को जारी एक वक्तव्य में भारत में ख़ासतौर से, मानवाधिकारों की ख़ातिर काम करने वाले ग़ैर-सरकारी संगठनों के लिये स्थान सीमित किये जाने पर अफ़सोस जताया।

स्थान सीमित करने के इन प्रयासों में ऐसे उलझे हुए और अस्पष्ट शब्दों से भरे क़ानून भी शामिल हैं जो ग़ैर-सरकारी संगठनों की गतिविधियों और विदेशी चन्दे के रास्ते में बाधाएँ खड़ी करते हैं.

मानवाधिकार संगठनों पर पाबन्दियाँ

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा, “भारत में सिविल सोसायटी बहुत मज़बूत रही है, जो देश में और वैश्विक स्तर पर भी मानवाधिकारों की रक्षा के लिये असाधारण रूप में अग्रिम मोर्चों पर रही है। लेकिन मैं बहुत चिन्तित हूँ कि इन आवाज़ों को दबाने के लिये उलझे हुए और अस्पष्ट शब्दों वाले क़ानूनों का इस्तेमाल किया जा रहा है।”

मिशेल बाशेलेट ने विदेशी चन्दा नियामक अधिनियम (एफसीआरए) के इस्तेमाल पर चिन्ता जताई है। बहुत से मानवाधिकार संगठनों व संस्थाओं ने भी यही चिन्ता ज़ाहिर की है कि इस क़ानून की शब्दावली उलझी हुई और अस्पष्ट होने के साथ-साथ इसके उद्देश्य भी बहुत कठोर हैं।"

"इस अधिनियम में ऐसी किसी भी गतिविधि के लिये विदेशी चन्दा स्वीकार करने पर पाबन्दी लगाई गई है, “जो जनहित के लिये हानिकारक हों”.

वर्ष 2010 में वजूद में आए इस अधिनियम में सितम्बर 2020 में संशोधन किया गया है, जिसके बाद सभाएँ करने वे संगठन बनाने की स्वतन्त्रता के अधिकार, और मानवाधिकार संगठनों व ग़ैर-सरकारी संगठनों के अभिव्यक्ति के अधिकारों पर बहुत नकारात्मक प्रभाव हुआ है। परिणामस्वरूप, भारत में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी सुरक्षा के पैरोकारों के रूप में काम करने की उनकी क्षमता बुरी तरह प्रभावित हुई है।

अभी हाल ही में, अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इण्टरनेशनल को भारत में अपना कामकाज बन्द करना पड़ा क्योंकि एफ़सीआरए के कथित उल्लंघन के आरोप में उसके बैंक खाते सील कर दिये गए थे।

मिशेल बाशेलेट ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकार के बहुत ही ज़्यादा आक्रामक उपायों को न्यायसंगत ठहराने के लिये एफ़सीआरए का सहारा लिया गया है। “मैं भारत के राष्ट्रीय संस्थानों से ऐसी सामाजिक व क़ानूनी सुरक्षाओं को मज़बूत करने के लिये अनुरोध करती हूँ जिनके तहत सिविल सोसायटी स्वतन्त्र होकर काम कर सके और प्रगति में अपना योगदान करे।”

इनमें ग़ैर-सरकारी संगठनों के कार्यालयों पर छापे मारे जाने, उनके बैंक खाते ज़ब्त किये जाने, उनके पंजीकरण रद्द किये जाने जैसे उपाय शामिल हैं। इनमें ऐसे सिविल सोसायटी संगठनों को भी निशाना बनाया गया है जो यूएन मानवाधिकार संस्थाओं के साथ सम्बद्ध रहे हैं।

रचनात्मक आलोचना

उन्होंने कहा, “मैं चिन्तित हूँ कि ‘जनहित’ की अस्पष्ट और उलझी हुई परिभाषा के आधार पर इस तरह की कार्रवाइयाँ इस क़ानून के दुरुपयोग का रास्ता खोलती हैं और वास्तव में इस क़ानून का इस्तेमाल मानवाधिकारों की हिमायत और पैरोकारी के लिये काम करने वाले ग़ैर-सरकारी संगठनों को उनका कामकाज रोकने या उन्हें दण्डित करने के लिये किया जा रहा है। मानवाधिकार संगठनों का ये कामकाज सरकारी अधिकारियों की नज़र में आलोचनात्मक प्रकृति के समझे जाते हैं.”

“रचनात्मक आलोचना लोकतन्त्र को जीवित रखने वाली रक्त वाहिका है। अगर इस तरह की आलोचना सरकारी अधिकारियों को असहज भी लगती है, तो भी इसे कभी भी इस तरह आपराधिक या ग़ैर-क़ानूनी नहीं ठहराया जाना चाहिये।”

भारत की ज़िम्मेदारी

भारत भी उस यूएन मानवाधिकार कमेटी का एक सदस्य या पक्ष है जो देशों में सिविल व राजनैतिक अधिकारों पर अन्तरराष्ट्रीय सन्धि के क्रियान्वयन पर नज़र रखती है।

इस समिति ने पाया है कि जब कोई देश नागरिकों द्वारा सभाएँ करने के अधिकार को सीमित करने के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था की सुरक्षा को एक कारण बताता है तो उस देश को इस तरह के ख़तरों के पुख़्ता सबूत दिखाने होंगे और ऐसे ख़तरों का सामना करने के लिये इस्तेमाल की जाने वाली कार्रवाई आनुपातिक और ऐसी हो जो बहुत ज़रूरी ही समझी जाए।

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी

हाल के महीनों में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पैरोकारों पर बहुत दबाव डाला गया है, ख़ासतौर से नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के ख़िलाफ़ जन प्रदर्शनों के मामलों में, जो साल 2020 के शुरू से, देश भर के अनेक स्थानों पर हुए थे।

इन जन प्रदर्शनों के सम्बन्ध में 1500 से ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार किया गया है, जिनमें से बहुत से लोगों पर अवैध गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) का आरोप लगाया गया है। ये एक ऐसा क़ानून है जिसकी अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के साथ तालमेल नहीं होने के कारण, व्यापक आलोचना की गई है।

इस क़ानून के तहत अनेक व्यक्तियों पर 2018 में हुए प्रदर्शनों के सम्बन्ध में भी आरोप निर्धारित किये गए हैं। हाल के समय में, 83 वर्षीय एक काथलिक पुरोहित स्टैन स्वामी पर आरोप लगाए गए हैं और उनके ख़राब स्वास्थ्य के बावजूद, उन्हें बन्दी बनाकर रखा गया है फादर स्टैन स्वामी हाशिये पर धकेले गए लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिये काम करते रहे हैं।

मिशेल बाशेलेट ने कहा कि यूएन मानवाधिकार कार्यालय मानवाधिकारों की सुरक्षा और उन्हें प्रोत्साहन देने के मुद्दे पर भारत सरकार के साथ सम्पर्क जारी रखेगा, और ऐसी गतिविधियों की निगरानी करना भी जारी रखेगा जिनसे नागरिक स्थान और बुनियादी अधिकारों व स्वतन्त्रताओं पर सकारात्मक और नकारात्मक असर पड़ता है।

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21 October 2020, 14:36