ईसाई धर्मगुरूओं द्वारा भारत की सरकार से अपील
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
भारत, मंगलवार, 14 जनवरी 2020 (रेई)˸ भारत के सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता की गारांटी दी जाए, सांप्रदायिक सदस्यता के आधार पर नहीं बल्कि व्यक्ति के आधार पर, इसकी मांग कर्नाटक के काथलिक एवं प्रोटेस्टंट पुरोहितों के एक दल ने की है। उन्होंने सरकार से अपील की है कि वह नागरिकता संशोधन कानून पर पुनर्विचार करें।
अपील एक ज्ञापन के द्वारा जारी किया गया है जिसपर कर्नाटक के मानव अधिकार के लिए ख्रीस्तीय एकता मंच के अध्यक्ष बैंगलोर के महाधर्माध्यक्ष पीटर मचाडो ने हस्ताक्षर किये हैं। नागरिकता संशोधन विधेयक में बौद्ध, हिन्दू, ख्रीस्तीय, जैन, फारसी और सिक्ख लोगों को सुरक्षा की गारांटी दी गयी है किन्तु मुस्लमानों को नहीं, खासकर, मुस्लिम बहुल देशों, पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान से आने वाले शरणार्थियों को नागरिकता पाने से वंचित रखा गया है।
ख्रीस्तीय धर्मगुरूओं ने भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ अधिकारी से मुलाकात कर इस बात पर जोर दिया कि भारत जैसे धर्मनिर्पेक्ष देश में मुसलमानों के साथ भेदभाव स्वीकार्य नहीं है। किसी भी कानून में भेदभाव नहीं होनी चाहिए। सभी लोग समान हैं अतः कोई भी कानून व्यक्ति पर आधारित होनी चाहिए न कि धर्म अथवा किसी अन्य मानदंड पर। हम एक ही खुली बांह से सभी का स्वागत करना चाहते हैं। विश्वास की अभिव्यक्ति देश में नागरिकता पाने का मापदंड कभी नहीं होना चाहिए। जब विचारों में भिन्नता हो तो हिंसा इसका समाधान नहीं होना चाहिए। अतः यह उचित है कि कानून के लिए संघर्ष कर रहे लोगों के साथ बैठकर, जल्द से जल्द "न्याय, निष्पक्षता और ईमानदारी को आगे बढ़ाने के रास्ते पर एक समझौता किया जाए।
धर्मगुरूओं ने कहा है कि यदि भारत और हमारे लोगों की भलाई के लिए यह आवश्यक है तो पीछे लौटकर नियम में बदलाव लाने में कोई हानि नहीं है।
जैसा कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की है यह भारतीय कानून में समानता और समान अवसरों की रक्षा के लिए एक और अल्पसंख्यक, ईसाई दलितों के पक्ष में अपील की जांच करेगा। आवेदन, दलित ईसाइयों की राष्ट्रीय परिषद द्वारा प्रस्तुत किया गया जिसका समर्थन काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन ने किया है।
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