हिंदुओं को दीपावली की शुभकामनाएँ: न्याय और सत्य शांति के स्तंभ हैं
वाटिकन न्यूज
वाटिकन सिटी, मंगलवार, 7 नवंबर 2023 (रेई) : परमधर्मपीठ के अंतरधार्मिक परिसंवाद विभाग ने 7 नवम्बर को जारी संदेश में महापर्व की शुभकामनाएँ देते हुए कहा है कि “ईश्वर जो परम प्रकाश हैं, आपके दिल और दिमाग को रोशन करें, आपके घरों और आस-पड़ोस को आशीर्वाद दें, और आपके जीवन को शांति और खुशियों से भर दें!”
परमधर्मपीठीय अंतरधार्मिक परिसंवाद विभाग के अध्यक्ष मिगुएल एंगेल कार्डिनल अयुसो गिक्सोत एम सीसीजे एवं सचिव मोनसिन्योर इंदुनिल कोडिथुवाक्कु जनकरन्ते कंगनामलगे ने संदेश पर हस्ताक्षर किया है।
बुराई पर अच्छाई की जीत की याद दिलाने वाले इस महोत्सव के उपलक्ष्य में प्रेषित संदेश में “शांति और सार्वभौमिक लोक कल्याण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की जानेवाली पहलों” को बनाये रखने और “निराशावाद, हतोत्साह और त्याग देने की भावना से प्रभावित नहीं” होने का प्रोत्साहन दिया गया है।
एक शांतिपूर्ण विश्व के निर्माण में योगदान देने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, “परिवारों में माता-पिता और बुजुर्गों के सदुदाहरण के साथ-साथ शैक्षणिक संस्थानों और मीडिया की प्रत्येक युग के पुरुषों एवं महिलाओं में शांति की इच्छा को प्रेरित करने और शांति निर्माण के मूल्यों को सिखाने” की बात को प्रमुखता दी गई है।
संदेश के अंत में, मानव कल्याण के लिए हिन्दूओं और ख्रीस्तीयों के मिलकर काम करने तथा “सत्य, न्याय, प्रेम और स्वतंत्रता की स्थायी नींवों पर दुनिया का निर्माण करने के लिए एकजुट होकर काम करने” की सद्इच्छा व्यक्त की गई है।
नीचे पूरे संदेश को प्रकाशित किया जा रहा है :
प्रिय हिंदू मित्रो,
सम्पूर्ण विश्व में इस वर्ष 12 नवंबर को मनाये जा रहे दीपावली महोत्सव के उपलक्ष्य में परमधर्मपीठीय अंतरधार्मिक परिसंवाद विभाग आपको हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ अर्पित करता है। ईश्वर जो परम प्रकाश हैं, आपके दिल और दिमाग को रोशन करें, आपके घरों और आस-पड़ोस को आशीर्वाद दें, और आपके जीवन को शांति और खुशियों से भर दें!
इस वर्ष सन्त पापा जॉन 23वें के विश्व पत्र, पाचेम इन टेर्रिस (पृथ्वी पर शांति) की साठवीं वर्षगांठ है। 1963 में जब विश्व बुरी तरह से परेशान था और परमाणु युद्ध के कगार पर था, उस दस्तावेज़ ने यथासमय जोशपूर्ण और अति आवश्यक अपील जारी कर विश्व के नेताओं और लोगों से आपसी विश्वास की भावना, बातचीत और वार्ता के माध्यम से शांति हेतु मिलकर काम करने और समस्याओं का सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने का आग्रह किया। काथलिक कलीसिया द्वारा सन्त घोषित पोप जॉन 23वें ने यह भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि "शांति एक खोखला शब्द ही है यदि वह एक ऐसी व्यवस्था पर आधारित न हो... जो सत्य पर आधारित, न्याय पर निर्मित, प्रेम से पोषित और अनुप्राणित तथा स्वतंत्रता के माहौल में प्रभाव में लाया गया हो" (अंक 167)। पाचेम इन टेर्रिस ने शांति स्थापना के लिए जो उदात्त दृष्टिकोण प्रस्तावित किया था, उससे प्रेरित होकर हम इस अवसर पर, सत्य, न्याय, प्रेम और स्वतंत्रता की भावना से शांति निर्माण करने के विषय पर आपके साथ कुछ विचार साझा करना चाहेंगे।
पाचेम इन टेर्रिस की शिक्षा ने विगत छह दशकों में व्यक्तियों की पारलौकिक गरिमा, उनके वैध अधिकारों का सम्मान और जन कल्याण के लिये एकजुटता की भावना से काम करने की उनकी साझा ज़िम्मेदारी की आवश्यकता के बारे में, हालांकि अलग-अलग मात्रा में, विश्व भर के लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाई है। इसने उन आंदोलनों को भी जन्म दिया है जो पूरी लगन के साथ मानवाधिकारों की सुरक्षा और बचाव तथा संवाद और बातचीत के माध्यम से शांति को बढ़ावा देने में संलग्न हैं। बहरहाल, पूर्ण शांति प्राप्ति सम्बन्धी भविष्यवाणी एक दूर का सपना ही बनी हुई है, जिसे केवल प्रत्येक धार्मिक परम्परा और समाज के सभी क्षेत्रों के पुरुषों और महिलाओं के सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से ही साकार किया जा सकता है। ये प्रयास जारी रहने चाहिए और इनमें उत्तरोत्तर प्रगति होती रहनी चाहिए।
शांति और सार्वभौमिक लोक कल्याण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की जानेवाली पहलें निराशावाद, हतोत्साह और त्याग देने की भावना से प्रभावित नहीं होनी चाहिए। ये दृष्टिकोण मानवीय गरिमा के प्रति अवमानना की घटनाओं से उद्वेलित हो सकते हैं; धार्मिक अधिकारों सहित नागरिकों को उनके अपने मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता का इनकार या कटौती; तथा असहिष्णुता और घृणा, अन्याय और भेदभाव, जो जातीय, सांस्कृतिक, आर्थिक, भाषाई और धार्मिक रूप से भिन्न हैं, या समाज के अधिक कमज़ोर सदस्य हैं उनके प्रति निर्देशित हिंसा और आक्रामकता हो सकते हैं। निराशावाद और हतोत्साह आज भी मौजूद हो सकते हैं, जैसे वे 1963 में थे, फिर भी, गहरी आशा रखनेवाले व्यक्ति के रूप में, संत जॉन 23वें आश्वस्त रहे कि शांति संभव है, बशर्ते कि यह सत्य, न्याय, प्रेम और स्वतंत्रता पर आधारित हो। जैसा कि लोकप्रिय संत जॉन पॉल द्वितीय ने कहा था, ये मूल्य "शांति के लिए आवश्यक शर्तें" और मौलिक "शांति के स्तंभ" (दे. 2003 के विश्व शांति दिवस के लिए प्रकाशित संदेश - पाचेम इन टेर्रिस: एक स्थायी प्रतिबद्धता, अंक 3-4) हैं। आस्थावान व्यक्तियों के रूप में, हमें उन स्तंभों के प्रति अटल निष्ठा पर आधारित लगातार तथा ठोस और सतत प्रयासों द्वारा, शांति हेतु अपनी आकांक्षा व्यक्त करने की आवश्यकता है।
एक शांतिपूर्ण विश्व के निर्माण में यथाशक्ति योगदान देने के अपने प्रयासों में हमें शांति के उन स्तंभों को मजबूत करने की आवश्यकता है। इसमें परिवारों में माता-पिता और बुजुर्गों के सदुदाहरण के साथ-साथ शैक्षणिक संस्थानों और मीडिया की प्रत्येक युग के पुरुषों एवं महिलाओं में शांति की इच्छा को प्रेरित करने और शांति निर्माण के मूल्यों को सिखाने में प्रमुख भूमिका है।
अंतरधार्मिक संवाद में अंतरधार्मिक समुदायों के बीच परस्पर विश्वास और सामाजिक मैत्री को पोषित करने की महान क्षमता है, और वास्तव में यह "विश्व शांति में योगदान देने के लिए एक आवश्यक शर्त" बन गया है (सन्त पापा फ्राँसिस, 'इमौना फ्रेटरनिटे एलुमनी' एसोसिएशन के प्रतिनिधिमंडल को संबोधन, 23 जून 2018)। अस्तु, धर्मों और धार्मिक नेताओं का यह दायित्व है कि वे अपने अनुयायियों को ऐसे व्यक्ति बनने के लिए प्रोत्साहित करें जिनका जीवन सत्य, न्याय, प्रेम और स्वतंत्रता पर निर्मित हो।
मानवता के कल्याण के लिए समान विश्वास और साझा ज़िम्मेदारी की भावना रखनेवाले हम सभी ईसाई और हिंदू आइए अपने-अपने धर्म के अनुयायियों और नेताओं के रूप में, ईमानदारी से शांति के कारीगर बनने का प्रयास करें। अन्य धार्मिक परंपराओं के अनुयायियों और शुभचिन्तकों से हाथ मिलाते हुए, हम सत्य, न्याय, प्रेम और स्वतंत्रता की स्थायी नींवों पर दुनिया का निर्माण करने के लिए एकजुट होकर काम करें जिससे कि हर कोई वास्तविक और स्थायी शांति का आनंद ले सके!
आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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