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2023.10.25 धर्माध्यक्षीय धर्मसभा (सिनॉ़ड) की 16वीं महासभा 2023.10.25 धर्माध्यक्षीय धर्मसभा (सिनॉ़ड) की 16वीं महासभा  (Vatican Media)

ईश प्रजा के लिए सिनॉड महासभा: 'कलीसिया को हर किसी की बात सुननी चाहिए'

धर्माध्यक्षीय धर्मसभा की 16वीं साधारण महासभा में प्रतिभागियों ने अपने अनुभवों के लिए ईश्वर को धन्यवाद देते हुए, पिछले कुछ हफ्तों के काम का विवरण दिया है और ईश प्रजा के लिए एक पत्र को मंजूरी दी है एवं आशा व्यक्त की है कि आनेवाले महीनों में हर कोई "धर्मसभा' शब्द से निर्दिष्ट मिशनरी समन्वय की गतिशीलता में ठोस रूप से भाग लेने" में सक्षम होगा।

धर्माध्यक्षीय धर्मसभा की 16वीं महासभा का

ईश प्रजा के लिए पत्र

प्रिय बहनो, प्रिय भाइयो,

धर्माध्यक्षों की धर्मसभा की 16वीं महासभा के पहले सत्र की कार्यवाही जब समाप्त होनेवाली है, हम इस सुंदर और समृद्ध अनुभव के लिए आप सभी के साथ ईश्वर को धन्यवाद देना चाहते हैं। हमने इस पवित्र समय को आप सभी के साथ गहन संवाद में बिताया। हमें आपकी प्रार्थनाओं का समर्थन मिला, आपकी उम्मीदों, आपके सवालों और साथ ही आपके डर का भी साथ मिला। जैसा कि संत पापा फ्राँसिस ने दो साल पहले अनुरोध किया था, पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन में "एक साथ यात्रा" करने के लिए, सुनने और समझने की एक लंबी प्रक्रिया शुरू की गई थी, जो ईश्वर के सभी लोगों के लिए खुली थी, किसी को भी बाहर नहीं रखा गया था, मिशनरी शिष्य ख्रीस्त के अनुसरण में लगे हुए थे।

30 सितंबर से रोम में जिस सत्र में हम एकत्रित हुए हैं वह इस प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण चरण है। कई मायनों में यह एक अभूतपूर्व अनुभव रहा है। पहली बार संत पापा फ्राँसिस के निमंत्रण पर, पुरुषों और महिलाओं को उनके बपतिस्मा के आधार पर धर्माध्यक्षों की धर्मसभा में न केवल चर्चाओं में एक ही मेज पर बैठने के लिए बल्कि मतदान प्रक्रिया में भी भाग लेने हेतु आमंत्रित किया गया है। साथ मिलकर, हमारी बुलाहटों, हमारे करिश्मे और हमारी प्रेरिताई की संपूरकता में, हमने ईश्वर के वचन और दूसरों के अनुभव को गहनता से सुना है। आत्मपरख की प्रतिक्रिया में वार्ता का प्रयोग करते हुए, हमने अपने समुदायों की समृद्धि और गरीबी को हर महाद्वीप से साझा किया है, यह समझने की कोशिश की है कि पवित्र आत्मा आज कलीसिया को क्या कहना चाहती है। इस प्रकार हमने लैटिन परंपरा और पूर्वी ख्रीस्तीय परंपराओं के बीच पारस्परिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के महत्व को भी अनुभव किया है। अन्य कलीसियाओं और कलीसियाई समुदायों के प्रतिनिधियों की भागीदारी ने हमारी चर्चाओं को गहराई से समृद्ध किया।

हमारी धर्मसभा संकटग्रस्त विश्व की पृष्टभूमि में हुई, जिसके घाव और निंदनीय असमानताएँ ने हमारे दिलों को दर्द से भर दिया है, जिससे हमारे काम में एक विशेष गंभीरता आई, खासकर हममें से कुछ लोग उन देशों से आते हैं जहाँ युद्ध छिड़ा हुआ है। हमने घातक हिंसा के पीड़ितों के लिए प्रार्थना की, उन सभी को भूले बिना जिन्हें दुःख और भ्रष्टाचार ने प्रवास की खतरनाक राह अपनाने के लिए मजबूर किया है। हमने दुनिया भर में उन महिलाओं और पुरुषों के साथ अपनी एकजुटता और प्रतिबद्धता का आश्वासन दिया, जो न्याय और शांति के निर्माण हेतु काम कर रहे हैं।

संत पापा के निमंत्रण पर, हमने एक दूसरे को सुनने और हमारे बीच आत्मा में एकता की इच्छा को बढ़ावा देने हेतु मौन के लिए महत्वपूर्ण जगह बनाई। धर्मसभा के उद्घाटन के दौरान एकतावर्धक जागरण प्रार्थना में, हमने अनुभव किया कि क्रूस पर चढ़ाए गए मसीह के मौन चिंतन में एकता की प्यास कैसे बढ़ती है। वास्तव में, क्रूस ही उनका एकमात्र सिंहासन है, जिन्होंने दुनिया के उद्धार के लिए खुद को समर्पित करते हुए, अपने शिष्यों को अपने पिता को सौंपा, ताकि "वे सभी एक हो जाएँ।" (योहन 17:21) उनके पुनरुत्थान द्वारा लाई गई आशा में दृढ़ता से एकजुट होकर, हमने उन्हें अपना आमघर सौंपा, जहाँ पृथ्वी और गरीबों की पुकार तेजी से बढ़ती जरूरत बनती जा रही है: "लौदाते देउम!" ("ईश्वर की स्तुति करो!"), जैसा कि संत पापा फ्राँसिस ने हमें हमारे काम की शुरुआत में याद दिलायी थी।

दिन-ब-दिन, हमने प्रेरिताई और मिशनरी मनपरिवर्तन के लिए दबाव महसूस किया। क्योंकि कलीसिया की बुलाहट खुद पर ध्यान केंद्रित करना नहीं, बल्कि खुद को उस अनंत प्रेम की सेवा में रखकर सुसमाचार का प्रचार करना है जैसा कि ईश्वर ने दुनिया से प्यार किया (योहन 3:16)। जब संत पेत्रुस महागिरजाघर के पास बेघर लोगों से इस धर्मसभा के अवसर पर कलीसिया से उनकी अपेक्षाओं के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने उत्तर दिया: "प्रेम!"

यह प्रेम हमेशा कलीसिया का उत्साही हृदय, त्रित्वमय और यूखारीस्तीय प्रेम बना रहना चाहिए, जैसा कि संत पापा ने 15 अक्टूबर को हमारी महासभा के मध्यम अवधि में, बालक येसु की संत तेरेसा के संदेश का आह्वान करते हुए याद दिलाई थी। यह "विश्वास" ही है जो हमें साहस और आंतरिक स्वतंत्रता देता है जिसे हमने अनुभव किया है, स्वतंत्र रूप से और विनम्रतापूर्वक, अपने अभिसरणों, मतभेदों, इच्छाओं और प्रश्नों को व्यक्त करने में संकोच नहीं करते हैं।

और अब? हमें उम्मीद है कि अक्टूबर 2024 में दूसरे सत्र से पहले आनेवाले महीनों में हर किसी को "धर्मसभा" शब्द से निर्दिष्ट मिशनरी सहभागिता की गतिशीलता में ठोस रूप से भाग लेने की अनुमति मिलेगी। यह विचारधारा नहीं, बल्कि प्रेरितिक परंपरा में निहित अनुभव पर आधारित है। जैसा कि संत पापा ने हमें इस प्रक्रिया की शुरुआत में याद दिलायी थी, "सहभागिता और मिशन कुछ हद तक अमूर्त बने रहने की जोखिम उठा सकते हैं, जब तक कि हम एक कलीसियाई अभ्यास विकसित नहीं करते जो धर्मसभा के ठोस होने को व्यक्त करता है (...) जो प्रत्येक व्यक्ति और सभी की ओर से वास्तविक भागीदारी को प्रोत्साहित करता है" (9 अक्टूबर, 2021)। कई चुनौतियाँ और कई प्रश्न हैं: पहले सत्र के संकलित रिपोर्ट उन सहमतियों के बिंदुओं को निर्दिष्ट करेंगे जिन पर हम पहुँचे हैं, खुले प्रश्नों पर प्रकाश डालेंगे और संकेत देंगे कि हमारा काम कैसे आगे बढ़ेगा।

अपने आत्मनिरिक्षण में प्रगति करने के लिए, कलीसिया को सबसे गरीब से लेकर हर किसी की बात सुनने की जरूरत है। इसके लिए अपनी ओर से मन-परिवर्तन के मार्ग को अपनाने की आवश्यकता है, जो प्रशंसा का मार्ग भी है: "हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं आपको धन्यवाद देता हूँ, कि आपने इन बातों को बुद्धिमानों और समझदारों से छिपाया और छोटे बच्चों पर प्रकट किया है" (लूक 10:21)!

इसका मतलब है उन लोगों की बात सुनना जिन्हें समाज में बोलने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है या जो कलीसिया द्वारा भी बहिष्कृत महसूस करते हैं; उन लोगों की बात सुनना जो विभिन्न प्रकार के नस्लवाद के शिकार हैं - विशेष रूप से कुछ क्षेत्रों में उन आदिवासी लोगों की, जिनकी संस्कृतियों का तिरस्कार किया गया है। सबसे बढ़कर, हमारे समय की कलीसिया का कर्तव्य है कि वह मन-परिवर्तन की भावना से उन लोगों की बात सुने, जो कलीसियाई शरीर के सदस्यों द्वारा किए गए दुर्व्यवहार के शिकार हैं, और यह सुनिश्चित करने के लिए खुद को ठोस और संरचनात्मक रूप से प्रतिबद्ध करें कि दोबारा ऐसा न हो।

कलीसिया को लोकधर्मियों, महिलाओं और पुरुषों की बात भी सुनने की जरूरत है, जिन्हें उनके बपतिस्मा के आह्वान के आधार पर पवित्रता के लिए बुलाया गया है: प्रचारकों की गवाही; बच्चों की सरलता और सजीवता, युवाओं के उत्साह, उनके सवालों, उनकी दलीलों; बुजुर्गों के सपनों, ज्ञान और स्मृति को सुनना है जो कई स्थितियों में सुसमाचार के पहले उद्घोषक हैं।

कलीसिया को परिवारों, उनकी शैक्षिक चिंताओं, आज की दुनिया में उनके द्वारा दिये जानेवाले ख्रीस्तीय साक्ष्य को सुनने की जरूरत है। उन्हें उन लोगों की आवाजों का स्वागत करने की आवश्यकता है जो लोकधर्मी प्रेरिताई में शामिल होना और आत्मनिरिक्षण एवं निर्णय लेनेवाली संरचनाओं में भाग लेना चाहते हैं।

एक साथ आत्मनिरिक्षण में आगे बढ़ने के लिए, कलीसिया को विशेष रूप से अभिषिक्तों : पुरोहितों, धर्माध्यक्षों के प्रथम सहयोगियों के शब्दों एवं अनुभवों को और अधिक इकट्ठा करने की आवश्यकता है, जिनकी, संस्कारों का अनुष्ठान करने की प्रेरिताई पूरी कलीसिया के जीवन के लिए अपरिहार्य है; और उपयाजक, जो अपनी प्रेरिताई के माध्यम से, सबसे कमजोर लोगों के लिए समस्त कलीसिया की देखभाल का चिन्ह प्रकट करते हैं।

उसे समर्पित जीवन की भविष्यसूचक आवाज, आत्मा की पुकार के सजग प्रहरी द्वारा स्वयं से सवाल किये जाने की आवश्यकता है। उसे उन सभी पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है जो उसके विश्वास को नहीं अपनाते लेकिन सत्य की तलाश कर रहे हैं, और जिसमें आत्मा, जो "हर किसी को इस पास्का रहस्य से जुड़े होने की संभावना प्रदान करता है" भी मौजूद और क्रियाशील है।(गौदियुम एत स्पेस 22)

“दुनिया जिसमें हम जीते हैं, और जिसमें हम प्यार करने और सेवा करने के लिए बुलाये जाते हैं, यहाँ तक ​​कि अपने विरोधाभासों के बावजूद, मांग करती है कि कलीसिया अपने प्रेरिताई के सभी क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करे। यही वास्तव में एक साथ चलने का रास्ता है जिसकी अपेक्षा ईश्वर तीसरी सहस्राब्दी की कलीसिया से करते हैं।” (पोप फ्राँसिस, अकटूबर 17, 2015) हमें उनकी आवाज का प्रत्युत्तर देने से नहीं घबराना चाहिए। संत मरियम कलीसिया की माता, जो यात्रा में पहली हैं, हमारी तीर्थयात्रा में साथ दें। खुशी और गम में, वे हमें अपने पुत्र को दिखलाती हैं और निमंत्रण देती हैं कि हम उनपर भरोसा रखें। और वे, येसु हमारे एकमात्र उम्मीद हैं।  

वाटिकन सिटी, अक्टूबर 25, 2023

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27 October 2023, 13:24