'परिवारों की माताएं और पिता' पर, संत पापा पियुस बारहवें
संपादकीय निदेशक अंद्रेया तोर्नेली
संत पापा पियुस बारहवें के विश्वपत्र “मिस्टिकी कॉर्पोरिस” में एक अंश है जो ऐसे समय में विशेष रूप से सामयिक है जब परिवार में विश्वास का हस्तांतरण संकट में है और कलीसिया सिनॉडालिटी पर धर्मसभा के पहले चरण का अनुभव करने वाली है जिसका मिशन इसका लक्ष्य है।
29 जून 1943 को प्रकाशित विश्वपत्र में संत पापा पियुस बारहवें ने कलीसिया को, ईसा मसीह के शरीर का वर्णन "व्यवस्थित रूप से" और "पदानुक्रमिक रूप से" किया। वे हमें यह विश्वास न करने के लिए आमंत्रित करते हैं कि कलीसिया की जैविक संरचना में "केवल पदानुक्रमित तत्व शामिल हैं और उनके साथ पूर्ण है, या जैसा कि विपरीत राय है, कि यह केवल उन लोगों से बना है जो करिश्माई उपहारों का आनंद लेते हैं। (हालांकि चमत्कारी शक्तियों से संपन्न ख्रीस्तीयों की कलीसिया में कभी भी कमी नहीं होगी)"
एक ओर न केवल धर्माध्यक्ष और पुरोहित, तो दूसरी ओर विशेष करिश्मा वाले व्यक्ति।
संत पापा कहते हैं, "वास्तव में, विशेष रूप से हमारे दिनों में, परिवारों के पिता और माता, धर्म माता पिता और विशेष रूप से लोक धर्मियों के वे सदस्य जो मुक्तिदाता प्रभु के साम्राज्य को फैलाने में कलीसियाई धर्मगुरुओं के साथ सहयोग करते हैं, ख्रीस्तीय समुदाय में एक सम्मानजनक, एक नम्र स्थान प्राप्त करें और यहां तक कि वे ईश्वर के आवेग के तहत और उनकी मदद से, सर्वोच्च पवित्रता की ऊंचाइयों तक पहुंच सकते हैं, जिसे येसु मसीह ने वादा किया हैं।"
"हमारे दिनों में", अर्थात्, द्वितीय विश्व युद्ध की भयावहता से चिह्नित वर्ष 1943 में, पेत्रुस के उत्तराधिकारी ने "सम्मान के स्थान" का संकेत दिया है जिस पर "परिवारों के पिता और माताओं" का अधिकार है (या होना चाहिए), ईश्वर के लोग जो ख्रीस्तीय जीवन और उसके संस्कारों की सामान्यता को जीते हैं।
संत पापा पियुस बारहवें न केवल उनके लिए पवित्रता के मार्ग को याद करते हैं, बल्कि वे राज्य के विस्तार, यानी मिशन में उनके मौलिक योगदान पर जोर देते हैं।
आज, शायद अस्सी साल पहले की तुलना में कहीं अधिक सच है, परिवारों के पिताओं और माताओं की दैनिक और छिपी हुई गवाही को विश्वास की गवाही देने का मिशन सौंपा गया है।
धर्मसभा की संरचना को फिर से डिज़ाइन करके और इसे धर्माधयक्षों के साथ-साथ लोकधर्मियों के प्रभावी योगदान के लिए खोलकर, संत पापा फ्राँसिस ने उस जागरूकता को गहरा करना जारी रखा है जो दूर से आती है और जिसकी आधारशिला द्वितीय वाटिकन महासभा थी।
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