कलीसिया कला और संस्कृति के संरक्षण के प्रति समर्पित है, कार्डिनल
जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी
माल्टा, शुक्रवार, 12 मई 2023 (रेई, वाटिकन रेडियो): "यूरोपीय कैथेड्रल माल्टा 2023: संरक्षण और आध्यात्मिकता के बीच संतुलन" शीर्षक के अन्तर्गत आयोजित सम्मेलन के उद्घाटन पर, गुरुवार को, वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पिएत्रो पारोलिन ने कहा कि कलाकारों ने हमेशा से ही कलीसिया को अपने दिव्य संदेश को दृश्यमान भाषा में अनुदित करने में मदद की है।
सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण
"कला और आध्यात्मिकता के बीच गहन संबंध" को बरकरार रखने और "तकनीकी लोकतांत्रिक प्रतिमान" के सीमित क्षितिज के विपरीत सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की कार्डिनल पारोलीन ने अपील की, जिसे उन्होंने, विशेष रूप से, राजनीतिक नीति निर्धारकों को सम्बोधित किया।
"यूरोपीय कैथेड्रल माल्टा 2023, संरक्षण और आध्यात्मिकता के बीच संतुलन", सम्मेलन माल्टा के सेन्ट जॉन्स महागिरजाघर में शुक्रवार तक जारी रहेगा।
अपने संबोधन में, कार्डिनल पारोलिन ने स्मरण दिलाया कि कलात्मक वस्तुओं की बहाली और संरक्षण की लक्ष्य प्राप्ति हेतु किये जा रहे प्रयासों में "ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक वस्तुओं को व्यक्त करने वाले मूल्यों के संरक्षण" की अवहेलना नहीं की जा सकती।
माईकल एंजेलो और कैंडिंस्की का हवाला देते हुए, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि कलाकारों ने हमेशा से ही कला की पवित्रता के संबंध में, "आंतरिक आवश्यकता", "आध्यात्मिक आवेग" तथा मानव की "आध्यात्मिक भूख" को ध्यान में रखा और इसी वजह से "ग़ैर-ईसाई सहित सभी प्रमुख आध्यात्मिक आंदोलनों ने सदियों के अन्तराल में कला को गहनतम ढंग से प्रभावित किया है।"
कार्डिनल ने कहा कि "यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि संरक्षण का एक मूल्य-आधारित विज्ञान अपने स्वभाव से ही आध्यात्मिकता का एक रूप है, क्योंकि इसका उद्देश्य समय के साथ हमारी सांस्कृतिक विरासत के मूर्त और अमूर्त दोनों आयामों के मूल्यों का विस्तार करना है।” उन्होंने कहा कि इस दिशा में कलीसिया को "पवित्र कला के प्रवर्तक और संरक्षक" के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
वाटिकन की पहलें
कला और संस्कृति के संरक्षण की दिशा में वाटिकन एवं परमधर्मपीठ की पहलों का उल्लेख कर कार्डिनल पारोलीन ने 1962 में परमधर्मपीठ का यूरोपीय सांस्कृतिक सम्मेलन में प्रवेश, 1984 में बर्लिन में सांस्कृतिक उद्देश्यों पर यूरोपीय घोषणा पर हस्ताक्षर, और 1993 में कलीसिया की कलात्मक और ऐतिहासिक विरासत के संरक्षण के लिए परमधर्मपीठीय आयोग की स्थापना का हवाला दिया।
सन् 1964 में सन्त पापा पौल षष्टम द्वारा कलाकारों से कहे शब्दों को उन्होंने याद किया, सिस्टीन आराधनालय में कलाकारों से सन्त पापा पौल षष्टम ने कहा थाः "आपका शिल्प, आपका मिशन, आपकी कला आत्मा के स्वर्गिक क्षेत्र के खज़ाने को जब्त करने और उन्हें शब्दों, रंगों, रूप और पहुंच में शामिल करने की है" ताकि "विश्व की अक्षमता को संरक्षित किया जा सके तथा इसकी श्रेष्ठता और पारलौकिकता की भावना और साथ ही इसकी आभा के रहस्य को हर युग में आसानी से सब लोगों तक पहुँचाया जा सके।
कार्डिनल ने सन्त जॉन पौल द्वितीय के शब्दों का भी स्मरण किया: "कलाकार अपने कलात्मक कार्यों के माध्यम से ईश्वर के रचनात्मक शिल्प कौशल में भाग लेते हैं"।
साथ ही सन्त पापा फ्राँसिस के लाओदातोसी विश्व पत्र का स्मरण दिलाकार उन्होंने इस तथ्य पर खेद व्यक्त किया कि "आज कैसे शिल्पतंत्र अथवा तकनीकी तंत्र दक्षता, लाभ और उपभोक्तावाद की खोज में कला की वस्तुओं के महत्व को कम कर रहे हैं।"
कार्डिनल पारोलिन ने कहा कि "राजनीतिक निर्णयकों के बीच एक सामान्य जागरूकता और नैतिक संवेदनशीलता सुनिश्चित करना तथा "मुलाकात की संस्कृति के प्रसार हेतु कला की सांस्कृतिक विरासत को बरकरार रखना आज नितान्त आवश्यकता है।"
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