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ससम्मान सेवानिवृत पोप बेनेडिक्ट १६वें के निजी सचिव महाधर्माध्यक्ष जॉर्ज गनस्वाईन ने ससम्मान सेवानिवृत पोप बेनेडिक्ट १६वें के निजी सचिव महाधर्माध्यक्ष जॉर्ज गनस्वाईन ने   (@FrancoPiroli)

महाधर्माध्यक्ष गनस्वाईन : पोप बेनेडिक्ट अंत तक प्रभु को प्रेम करते हुए जीये

ससम्मान सेवानिवृत पोप बेनेडिक्ट १६वें के निजी सचिव महाधर्माध्यक्ष जॉर्ज गनस्वाईन ने वाटिकन न्यूज को पोप बेनेडिक्ट के अंतिम दिनों के बारे जानकारी दी। जिन्होंने पोप बेनेडिक्ट १६वें के जीवन के अंतिम दिनों में उनके साथ बिताया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

पोप बेनेडिक्ट १६वें के अंतिम संस्कार के पहले दिन एक साक्षात्कार में उन्होंने वाटिकन न्यूज को पोप बेनेडिक्ट १६वें के अंतिम दिनों के बारे बतलाया। संत पापा बेनेडिक्ट १६वें ने २००५ से २०१३ तक रोम के धर्माध्यक्ष के रूप में विश्व व्यापी काथलिक कलीसिया की अध्यक्षता की। उसके बाद ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए परमाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

प्रश्न: हजारों विश्वासियों ने पोप बेनेडिक्ट के अवशेष के प्रति सम्मान व्यक्त किया है। आपने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा उनके साथ बिताया है। अब आप कैसे हैं?

उत्तर - मानवीय रूप से, मैं बहुत दुःखी हूँ। यह पीड़ादायक है, मैं पीड़ित हूँ... आध्यात्मिक रूप से, ठीक हूँ।  मुझे पता है कि पोप बेनेडिक्ट अब वहीं हैं जहाँ वे जाना चाहते थे।

ससम्मान सेवानिवृत संत पापा बेनेडिक्ट १६वें
ससम्मान सेवानिवृत संत पापा बेनेडिक्ट १६वें

प्रश्न : इन अंतिम दिनों में बेनेडिक्ट सोलहवें कैसे रहे? उनके अंतिम शब्द क्या थे?

उत्तर - मैंने उनके अंतिम शब्द अपने कानों से नहीं सुने, लेकिन उनकी मृत्यु से एक रात पहले उनकी सहायता करनेवाली नर्सों में से एक ने उन्हें सुना। लगभग तीन बजे कह रहे थे: "प्रभु, मैं आपको प्यार करता हूँ।" सुबह जैसे ही मैं बेडरूम में पहुँचा, नर्स ने मुझसे बतलाया, ये उनके आखिरी शब्द थे जो स्पष्ट समझने लायक थे। साधारणतः हम बेड के सामने प्रातः वंदना करते थे, उस दिन भी सुबह मैंने पोप से कहा, आइये हम कल के समान प्रार्थना करें : मैं जोर से प्रार्थना करूँगा और आप मन ही मन मेरे साथ प्रार्थना कीजिए। वास्तव में, यह संभव नहीं था कि वे जोर से प्रार्थना कर सकें, वे मुश्किल से सांस ले रहे थे। उन्होंने हल्की सी आखें खोली – वे सवाल समझ गये थे – और हाँ में अपना सिर हिलाया। इस प्रकार मैंने प्रार्थना शुरू की। 8 बजे के लगभग उन्हें सांस लेने में अधिक कठिनाई होने लगी। वहाँ दो डॉक्टर मौजूद थे। उन्होंने कहा, "हमें डर है कि अब वह पल आएगा जब उन्हें धरती पर अपनी आखिरी लड़ाई लड़नी होगी।" मैंने मेमोरिस दोमिनी और सिस्टर ब्रिजीदा को बुलाया और कहा कि वे आयें क्योंकि उनकी अंतिम व्यथा का समय आ गया है। वे उस समय भी सचेत थे। मैंने पहले ही मरते हुए व्यक्ति को साथ देने की प्रार्थनाएँ तैयार कर ली थीं, हम सभी ने १५ मिनट तक एक साथ प्रार्थना की और इस बीच पोप बेनेडिक्ट अधिक जोर से सांस लेने लगे। यह स्पष्ट मालूम पड़ रहा था कि वे सांस नहीं ले पा रहे थे। अतः मैंने एक डॉक्टर की ओर देखा और पूछा, "पर क्या यह उनकी अंतिम पीड़ा है?" उन्होंने कहा, हाँ यह शुरू हो चुका है लेकिन हम नहीं जानते कि यह कितनी लम्बी होगी।”

सवाल - उसके बाद क्या हुआ?

उत्तर – हम वहीँ थे; हरेक मौन होकर प्रार्थना कर रहा था और करीब 9:34 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। हमने अपनी प्रार्थना जारी रखी, मरते व्यक्ति के लिए नहीं बल्कि एक मृतक के लिए। और अंत में "अल्मा रेदेमतोरिस मातेर" गाया। क्रिसमस के अठवारे के समय उनका निधन हो गया, उनके पसंदीदा पूजन पद्धति काल में, सम्राट कॉन्सटेंटाइन के शासनकाल में उनके पूर्वाधिकारी- संत सिल्वेस्त्रो के पर्व के दिन।

उन्हें उस दिन चुना गया था जिस दिन एल्सेस के एक जर्मन पोप संत लियो ९वें को याद किया जाता है; उनकी मृत्यु एक रोमन पोप, संत सिल्वेस्तर के पर्व दिन हुई। मैंने सभी से कहा, “मैं अभी पोप फ्राँसिस को फोन करता हूँ, उन्हें सबसे पहले इसकी खबर मिलनी चाहिए।” मैंने उन्हें फोन किया उन्होंने जवाब दिया, “मैं तुरन्त पहुँचता हूँ!"

वे शीघ्र पहुँचे, मैंने उन्हें बेडरूम पहुँचाया, जहाँ पोप बेनेडिक्ट को लिटाया गया था और मैंने सब से कहा, कि वे बाहर निकलें। पोप अंदर आये, मैंने उन्हें कुर्सी दी और वे बेड के बगल में बैठ गये एवं प्रार्थना की। उन्होंने उन्हें अपनी आशीष दी और वे विदा हुए। यह ३१ दिसम्बर २०२२ का दिन था।  

प्रश्न: उनके आध्यात्मिक इच्छा पत्र के कौन से शब्द आपको सबसे अधिक प्रभावित करते हैं?

 

आध्यात्मिक इच्छा पत्र ने मुझे गहराई से छुआ है। कुछ शब्दों का चयन करना कठिन है। लेकिन यह इच्छा पत्र पहले ही 29 अगस्त 2006 को ही लिखा जा चुका था: संत योहन बपतिस्ता के पर्व के दिन। यह हस्तलिखित था - बहुत सुपाठ्य, बहुत छोटा लेकिन सुपाठ्य - उनके परमधर्मपीठ के दूसरे वर्ष में। मैं इसके लेखक को जाने बिना ही पहचान सकता था। इसमें बेनेडिक्ट की आत्मा है, इसे पढ़कर या इसपर चिंतन कर कोई भी समझ सकता है कि यह सचमुच उनका है। सब कुछ दो पृष्टों में सम्माहित है।

प्रश्न: संक्षेप में, यह ईश्वर और उनके परिवार के लिए धन्यवाद है ...

उत्तर – यह एक धन्यवाद ज्ञापन है किन्तु विश्वासियों के लिए प्रोत्साहन भी है कि वे परिकल्पना के द्वारा न भटकाये जाएँ, न ईशशास्त्र या दर्शनशास्त्र अथवा किसी अन्य क्षेत्र में। अंततः कलीसिया ही है जो संचार करती, ख्रीस्त का जीवित शरीर है, जो सभी के लिए और सब में विश्वास का संचार करती है। कभी-कभी ईशशास्त्र में भी ऐसे सिद्धांत होते हैं जो बहुत प्रबुद्ध होते हैं, या ऐसा प्रतीत होता है, लेकिन एक या दो साल बाद ही चला जाता है। यह काथलिक कलीसिया की आस्था है, यही वास्तव में हमें मुक्ति की ओर ले जाती है और हमें प्रभु के निकट लाती है।

प्रश्न: उनके परमाध्यक्षीय काल का सबसे कड़ा संदेश क्या था?

उनकी ताकत उस आदर्श वाक्य में निहित है जिसे उन्होंने तब चुना था जब वे म्यूनिख के महाधर्माध्यक्ष बने थे, जिसको जॉन के तीसरे पत्र कोपेरातोरीस वेरितातिस से लिया गया है: यानी "सत्य के सहयोगी", जिसका अर्थ है कि सत्य वह नहीं है जिसे सोचा जाता है, बल्कि एक व्यक्ति है: यह ईश्वर का पुत्र है। ईश्वर ने येसु ख्रीस्त में, नाजरेथ के येसु में शरीरधारण किया, और यह उनका संदेश है: सत्य के सिद्धांत का पालन करने के लिए नहीं, बल्कि प्रभु का अनुसरण करने के लिए, मैं मार्ग, सत्य और जीवन हूँ। यह उनका संदेश है, संदेश जो भार नहीं है, बल्कि यह हरेक दिन के भार को उठाने के लिए एक मदद है और यह आनन्द प्रदान करता है। समस्याएँ हैं लेकिन विश्वास मजबूत है, विश्वास का ही अंतिम शब्द होना चाहिए।

प्रश्न- दुनिया 11 फरवरी 2013 को उनके इस्तीफे की घोषणा को कभी नहीं भूलेगी। कुछ लोग हैं जो आज भी कहते हैं कि उनका यह चुनाव स्वतंत्र नहीं था अथवा वे किसी तरह पोप के रूप में बने रहना चाहते थे। आप क्या सोचते हैं?

उत्तर – मैंने कई अवसरों पर स्वयं उनसे यही सवाल पूछा, यह कहते हुए कि "संत पिता, ११ फरवरी को आपकी घोषणा के पीछे लोग साजिश की खोज कर रहे हैं।” बेनेडिक्ट ने कहा, “वे खोजते हैं, वे खोजते हैं, वे खोजते हैं”..."जो कोई यह नहीं मानता है कि मैंने जो कहा वह इस्तीफा देने का असली कारण है, वह मुझ पर विश्वास नहीं करेगा, भले ही मैं अब कहूँ 'मुझ पर विश्वास करो, ऐसा ही है!" यही एकमात्र कारण है और रहेगा और हमें इसे नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने मुझे इस निर्णय के बारे कहा था: "मुझे यह करना है"। मैं उन पहले लोगों में से था जिसने उन्हें मना करने की कोशिश की थी। और उन्होंने मुझे स्पष्ट उत्तर दिया था: “देखो, मैं तुम्हारी राय नहीं माँग रहा हूँ, लेकिन अपने निर्णय के बारे में बता रहा हूँ। एक प्रार्थना के बाद, दुःखद निर्णय, ईश्वर के सामने (कोरम देओ) लिया गया है।” ऐसे लोग हैं जो विश्वास नहीं करते हैं या सिद्धांत बनाते हैं, यह कहते हुए कि उन्होंने "एक भाग छोड़ दिया लेकिन दूसरा भाग रखा", इत्यादि, वे सभी जो ऐसा कहते हैं वे एक शब्द या दूसरे के बारे में सिद्धांत बना रहे हैं और अंत में वे बेनेडिक्ट पर भरोसा नहीं करते। यह उनका एक प्रत्यक्ष अपमान है। निश्चय ही हरेक व्यक्ति संवेदनशील अथवा कम संवेदनशील बात कहने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन खुली सच्चाई यह है: कि उनके पास अब कलीसिया का नेतृत्व करने की ताकत नहीं थी, जैसा कि उन्होंने उस दिन लैटिन में कहा था। मैंने पूछा : "संत पिता, लैटिन में क्यों?" उन्होंने उत्तर दिया : "यह कलीसिया की भाषा है।" जो कोई भी सोचता है कि वे किसी अन्य कारण को खोज सकते हैं या खोजने की आवश्यकता है, वे गलत हैं। उन्होंने असली वजह बताई है। तथास्तु।

प्रश्न: जब आप बेनेडिक्ट के एमेरिटस के रूप में बिताए गए लंबे समय के दौरान आप उनके करीब थे, तो किस पहलू ने आपको सबसे ज्यादा प्रभावित किया?

उत्तर - करीब दस साल हो गए हैं। बेनेडिक्ट - पहले से ही एक कार्डिनल के रूप में, एक प्रोफेसर के रूप में - एक बहुत बड़ा [आध्यात्मिक] दहेज थे। कई लोग इसे विनम्रता कहते हैं: जी हाँ, यह सच है, लेकिन शायद इसे इतनी अच्छी तरह से नहीं देखा गया – उनमें यह स्वीकार करने की क्षमता भी थी जब लोग उसकी बातों से सहमत नहीं थे। एक प्रोफेसर के रूप में यह सामान्य है: कि विभिन्न तर्कों के बीच तुलना, चर्चा, "संघर्ष" होता है। इस संदर्भ में कटु शब्दों का प्रयोग भी किया जाता है, लेकिन बिना किसी को ठेस पहुँचाए और हो सके तो बिना किसी विवाद के। यह दूसरी बात है जब कोई धर्माध्यक्ष और फिर पोप होता है: वह प्रचार करता है और एक निजी व्यक्ति के रूप में नहीं लिखता है, लेकिन एक ऐसे व्यक्ति के रूप में लिखता है जिसे उपदेश देने और झुंड का चरवाहा बनने का आदेश मिला है। पोप सुसमाचार के पहले गवाह हैं, वे वास्तव में, प्रभु के साक्षी हैं। और हमने देखा कि उनके शब्द, पतरस के उत्तराधिकारी के शब्द, स्वीकार नहीं किए गए। लेकिन यह हमें बताता है कि कलीसिया का नेतृत्व केवल आदेश देने, निर्णय लेने से ही नहीं होता, बल्कि पीड़ा सहने से भी होता है, और उनकी पीड़ा का हिस्सा कोई छोटा नहीं था। जब वे अवकाश प्राप्त किये, निश्चित रूप से, उनके लिए सभी उत्तरदायित्व और संपूर्ण परमाध्यक्ष पद समाप्त हो गए थे।

प्रश्न: क्या उन्होंने सोचा था कि इस्तीफे के बाद वे इतने लंबे समय तक जीवित रहेंगे?

लगभग तीन महीने पहले मैंने उनसे कहा था: "संत पिता, हम धर्माध्यक्षीय पद की दसवीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं: 2013 के प्रभु प्रकाश, 2023 के प्रभु प्रकाश का पर्व। हमें इसे मनाना चाहिए।" लेकिन इसका मतलब उनके इस्तीफे का दस साल भी है। कुछ लोगों ने मुझ से पूछा: “लेकिन यह कैसे संभव है कि उसने यह कहते हुए इस्तीफा दिया कि अब उसके पास ताकत नहीं है और वे दस साल बाद भी जीवित हैं? और उन्होंने जवाब दिया : “मुझे कहना चाहिए कि मैं पहला व्यक्ति हूँ जो हैरान हूँ कि ईश्वर ने मुझे और १० साल समय दिया है। और 95 अच्छी उम्र है किन्तु वर्ष और बुजूर्ग आवस्था के अपने बोझ हैं, सेवानिवृत संत पापा के भी।" उन्होंने आगे कहा, "मैंने स्वीकार किया और वह सब करने की कोशिश की जिसकी मैंने प्रतिज्ञा की थी: प्रार्थना करने, उपस्थित रहने और सबसे बढ़कर मेरे उतराधिकारी के लिए प्रार्थना के द्वारा साथ देने की।" यह बहुत सुन्दर है। मैं भी सलाह देता हूँ कि जिन्हें समस्या है वे बेनेडिक्ट के कथन पर गौर करें जिसको उन्होंने पोप फ्राँसिस को अपने ६५वें पुरोहिताभिषेक के वर्षगाँठ के अवसर पर धन्यवाद देते हुए कहा था। अंततः मैंने मजाक करते हुए एक बार कहा, "संत पिता, आपने अपने मेजबान के बिना गणना की है। तब उन्होंने उत्तर दिया, “मैंने निर्णय नहीं लिया है, मैंने उसे ग्रहण किया जिसे प्रभु ने मुझे दिया। उन्होंने मुझे इसे दिया है; मुझे उन्हें धन्यवाद देना चाहिए। यह मेरा मानना है। दूसरों का विचार, सिद्धांत या मानना अलग हो सकता है लेकिन यह मेरा है।"

प्रश्न: आपके जीवन के लिए सबसे बड़ी शिक्षा क्या थी, और आप जोसेफ रत्जिंगर के बारे में सबसे ज्यादा क्या याद करेंगे?

उत्तर - सबसे बड़ी शिक्षा यह है कि लिखित विश्वास, उच्चारित और घोषित विश्वास, न केवल ऐसे हैं जिन्हें कहा और उपदेश दिया गया, बल्कि उन्होंने उन्हें जीया। अर्थात्, मेरे लिए उदाहरण यह है कि जिस विश्वास को उन्होंने सीखा, सिखाया और घोषित किया वह एक जीवित विश्वास बन गया। और मेरे लिए भी – जो इस क्षण दुःखी हूँ, अकेले नहीं हूँ - यह एक महान आध्यात्मिक सांत्वना है।

प्रश्न: अपने वसीयतनामे में बेनेडिक्ट लिखते हैं: "यदि मेरे जीवन के इस आखिरी घंटे में मैं उन दशकों को देखता हूँ जिन्हें मैंने पार किया है, तो पहली बात यह है कि मुझे आभारी होने के कितने कारण हैं।" क्या वे एक खुशमिजाज, संतुष्ट व्यक्ति थे?

उत्तर - वे एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें इस बात का गहरा विश्वास था कि प्रभु के प्रेम में कोई कभी गलत नहीं होता, भले ही मानवीय रूप से कोई कितनी भी गलतियाँ करता हो। और इस दृढ़ विश्वास ने उन्हें शांति दी और - इसे कहा जा सकता है - विनम्रता और स्पष्टता भी। उन्होंने हमेशा कहा: "विश्वास को एक साधारण विश्वास होना चाहिए, सरलीकृत नहीं, बल्कि सरल। क्योंकि सभी महान सिद्धांतों, सभी महान ईशशास्त्रों की नींव विश्वास में होती है। और यही स्वयं के लिए और दूसरों के लिए भी एकमात्र पोषण है।”

 

 

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05 January 2023, 17:51