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विशेषज्ञों का दल जिसने फ्रस्काती की सभा में भाग लिया विशेषज्ञों का दल जिसने फ्रस्काती की सभा में भाग लिया 

सिनॉड के महाद्वीपीय चरण के लिए दस्तावेज में बहिष्कृतों की आवाज

सिनॉड के धर्माध्यक्षों ने एक दस्तावेज प्रकाशित किया है जो 2021 में पोप फ्राँसिस द्वारा जारी सिनॉडल रास्ते के एक "संदर्भ का ढांचा" एवं दूसरे चरण में काम करने का आधार प्रस्तुत करता है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

महादेशीय चरण के लिए कार्यकारी दस्तावेज का आधार, विश्वासियों और अन्य लोगों के परामर्श के बाद पांच महाद्वीपों की कलीसियाओं से आनेवाला विश्लेषण है। दस्तावेज में प्रमुखता दिये गये केंद्रीय मुद्दों में महिलाओं की भूमिका, "एलजीबीटी" लोगों का स्वागत, दुराचार के मामले, नस्लवाद की चुनौतियाँ शामिल हैं।

महादेशीय चरण के लिए कार्यकारी दस्तावेज में गरीब, आदिवासी, परिवार, पुनर्विवाह तलाकशुदा, एकल माता, एलजीबीटीक्यू एवं बहिष्कृत महसूस करनेवाली महिलाएँ शामिल हैं। मानव तस्करी के शिकार, नस्लवाद के शिकार लोग हैं। पुरोहित हैं, पुरोहिताई छोड़नेवाले पुरोहित हैं लोकधर्मी हैं, ख्रीस्तीय विश्वासी हैं, कलीसिया से दूर चले गये लोग हैं, पुरोहिताई में सुधार और महिलाओं की भूमिका चाहनेवाले लोग हैं, ऐसे लोग भी हैं जो "द्वितीय वाटिकन महासभा के धार्मिक विकास का अनुसरण करते हुए, सहज महसूस नहीं करते।" यहाँ वे लोग भी शामिल हैं जो शहादत के देशों में रहते हैं जो हर दिन हिंसा एवं संघर्षों का सामना करते। जादू टोना एवं जनजातीयता के खिलाफ संघर्ष कर रहे लोग भी हैं। संक्षेप में, यहाँ लगभग 45 पृष्ठों के भीतर, पूरी मानवता है, जो अपनी अपूर्णताओं और मांगों एवं अपने घावों और भय के साथ हैं।  

दुनियाभर की कलीसियाओं से संकलन

यह दस्तावेज 2021 में संत पापा फ्राँसिस द्वारा घोषित सिनॉडल रास्ते के दूसरे चरण के कार्य को आधार प्रदान करेगा। पहले चरण में विश्वासी – और न केवल विश्वासी- बल्कि दुनिया के हर धर्मप्रांत ने "सुनने एवं आत्मपरख" करने की प्रक्रिया में भाग लिया, तथा सभाओं, समाह्वान, वार्ता एवं नवीनीकरण प्रयासों के परिणामों – सबसे बढ़कर डिजिटल सिनॉड संश्लेषण या सारांश को धर्मसभा के महा सचिवालय को भेजा है। अब उन्हें एक ही दस्तावेज में संकलित किया गया है ˸ महाद्वपीय चरण के दस्तावेज के रूप में।

संदर्भ का एक ढांचा

विभाग ने बतलाया कि दो भाषाओं (इतालवी और अंग्रेजी) में एक साथ विकसित, दस्तावेज "स्थानीय कलीसियाओं और विश्वव्यापी कलीसियाओं के बीच वार्ता कराना चाहता है।" इस प्रकार यह न तो सार है और न धर्मादेशपूर्ण दस्तावेज, न ही स्थानीय अनुभवों का साधारण रिपोर्ट है, न सामाजिक विश्लेषण, न लक्ष्य को प्राप्त करने का दिशानिर्देश ˸ "यह कार्यकारी दस्तावेज है जो ईश प्रजा की आवाज को उनकी अंतर्दृष्टि, उनके सवालों और असहमति के साथ लाना चाहती है। विशेषज्ञ जिन्होंने सितम्बर के अंत और अक्टूबर के शुरू में फ्रस्काती में मुलाकात की, दस्तावेज का एक मसौदा तैयार किया, जो रोम में 2023 और 2024 में सम्पन्न होनेवाले तीसरे और अंतिम चरण के मद्देनजर, स्थानीय कलीसियाओं एवं धर्माध्यक्षों के सम्मेलन के लिए संदर्भ की संरचना के बारे बतलाता है।"

कोई भी बहिष्कृत नहीं

दस्तावेज में उल्लेख किया गया है कि एक तनाव की श्रृंखला है जिसको सिनॉडल रास्ते ने सामने लाया है ˸ "हमें उनसे नहीं डरना है बल्कि लेकिन उन्हें निरंतर सामुदायिक विवेक की प्रक्रिया में स्पष्ट करना है ताकि उन्हें विनाशकारी बनाये बिना ऊर्जा के स्रोत के रूप में उपयोग किया जा सके।" इसके लिए सबसे पहले जरूरी है पूर्ण समावेश के साथ स्वागत हेतु खुला होकर सुनना। "कोई भी बहिष्कृत नहीं है" वास्तव में दस्तावेज का एक प्रमुख वाक्य है।   

सारांश दिखलाता है कि कई समुदायों ने सिनॉडालिटी को कलीसिया के बाहर होने का एहसास करनेवालों को सुनने के पहल के रूप में समझ लिया है। ऐसे कई लोग हैं जो "अपमानित, उपेक्षित, गलत समझे" जाते, खासकर, वे महिलाएँ और युवा, जो यह महसूस नहीं करते हैं कि उनके गुणों और क्षमताओं को पहचाना जाता है।" इसलिए गंभीरता से सुना जाना एक "परिवर्तनकारी" अनुभव है।

समलैंगिकों का स्वागत

ऐसे लोग जो अधिक तीव्र संवाद और अधिक स्वागत करनेवाले स्थान की मांग करते है, उदाहरण के लिए; वे पुरोहित हैं जिन्होंने शादी करने के लिए पुरोहिताई छोड़ दी है। अन्य लोगों में ऐसे लोग भी हैं जो "विभिन्न कारणों से, कलीसिया के साथ और अपने स्वयं के प्रेम संबंधों के बीच तनाव महसूस करते हैं, जैसे "विवाहित तलाकशुदा, एकल माता-पिता, बहुविवाह में रहनेवाले लोग, और एलजीबीटीक्यू के लोग।"

अमरीका से मिले सहयोग में कहा गया है कि लोग चाहते हैं कि कलीसिया घायलों और टूटे हुए लोगों के लिए शरणस्थल बने, पूर्णता का स्थान नहीं। जबकि लेसोथो ने विश्वव्यापी कलीसिया से आत्मपरख करने की मांग की है। "कलीसिया में एक नई घटना है जो लेसोथो में बिल्कुल नई है: समलैंगिक संबंध। [...] यह नवीनता, काथलिकों के लिए और इसे पाप माननेवालों के लिए परेशान करनेवाली है। हैरानी की बात है कि लेसोथो में कुछ काथलिक ऐसे हैं जिन्होंने इस व्यवहार का अभ्यास करना शुरू कर दिया है और उम्मीद करते हैं कि कलीसिया उन्हें और उनके व्यवहार के तरीके को स्वीकार करेगी। [...] यह कलीसिया के लिए एक समस्यात्मक चुनौती है क्योंकि ये लोग खुद को बहिष्कृत महसूस करते हैं।"

सामूहिक और भिन्नता में अंक

दक्षिणी अफ्रीका से कहा गया है कि सांस्कृतिक मतभेदों के बावजूद, समाज और ख्रीस्तीय समुदाय में "बहिष्कृत" के रूप में माने जानेवाले लोगों के संबंध में महाद्वीपों में पर्याप्त समानताएँ देखी जा सकती हैं। दूसरी ओर, एक ही महाद्वीप या देश के भीतर भी इन मामलों में बहुलवाद है। "गर्भपात, गर्भनिरोधक, महिलाओं के समन्वय, विवाहित पुरोहित, ब्रह्मचर्य, तलाक और पुनर्विवाह, पवित्र परमप्रसाद, समलैंगिकता, एलजीबीटीक्यूआईए + पर कलीसिया की शिक्षा, जैसे मुद्दों को ग्रामीण और शहरी दोनों धर्मप्रांतों में उठाया गया है। बेशक, इन पर अलग-अलग विचार हैं और इनमें से किसी भी मुद्दे पर एक निश्चित सामुदायिक रुख देना संभव नहीं है।

गरीबों की आवाज

कई विश्लेषण, खेद और चिंता व्यक्त करते हैं कि कलीसिया हमेशा और हर जगह, "सीमाओं और सबसे दूरस्थ स्थानों में गरीबों तक प्रभावी ढंग से पहुंचने में सक्षम नहीं है" – गरीबों को न केवल निराश्रित के रूप में समझा जाता है, बल्कि बुजुर्ग, आदिवासी, आप्रवासी, सड़क पर रहनेवाले बच्चे, शराब और नशीली दवाओं के व्यसनी, मानव तस्करी के शिकार, यौन दुराचार से पीड़ित, कैदी, भेदभाव का सामना करनेवाले लोग, जो जाति और लिंग के भेदभाव और हिंसा के शिकार होते हैं। उनकी आवाजें सबसे अधिक बार प्रकट होती हैं क्योंकि वे दूसरों के द्वारा रिपोर्ट किये जाते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि उनकी आवाजें अधिकांश बार इसलिए उठती हैं क्योंकि वे दूसरों के द्वारा रिपोर्ट किये जाते।

दुराचार का संकट

ऑस्ट्रेलिया के योगदान का हवाला देते हुए दस्तावेज में कहा गया है कि कई स्थानीय कलीसियाई रिपोर्ट करते हैं कि वे एक ऐसे सांस्कृतिक पृष्टभूमि का सामना कर रहे हैं जो पुरोहितों के दुर्व्यवहार के कारण विश्वसनीयता और विश्वास में गिरावट से चिह्नित है। "यह खुले घाव हैं जो पीड़ितों, उनके परिवारों और उनके समुदायों पर अभी भी दर्द दे रहे हैं।" कहा गया है कि "आतंक और क्षति को स्वीकार करने और कमजोर लोगों की रक्षा के प्रयासों को मजबूत करने, कलीसिया के नैतिक अधिकार की क्षति को सुधारने और विश्वास के पुनर्निर्माण के लिए एक मजबूत कारर्वाई की आवश्यकता हैं।" "दुराचार पर सावधानीपूर्वक और दर्दनाक चिंतन ने कई सिनॉड समूहों को अधिक पारदर्शिता, जवाबदेही और सह-जिम्मेदारी की दृष्टि से कलीसिया में सांस्कृतिक परिवर्तन का आह्वान करने हेतु प्रेरित किया है।"

महिलाओं की पहचान एवं सहभागिता

कलीसिया की संस्कृति में बदलाव का आह्वान ... नई प्रथाओं और संरचनाओं एवं दृष्टिकोणों के साथ एक नई संस्कृति की स्थापना की संभावना से ठोस शर्तों से जुड़ा हुआ है।" यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है जो विभिन्न रूपों में, सभी सांस्कृतिक संदर्भों में मौजूद है, और धर्मसमाजी महिलाओं और महिलाओं की भागीदारी एवं मान्यता से संबंधित है। वास्तव में, "सभी महाद्वीपों से काथलिक महिलाओं के लिए एक अपील आयी है कि उन्हें सबसे पहले और खासकर बपतिस्मा प्राप्त एवं ईश्वर की प्रजा के सदस्यों के रूप में महत्व दिया जाए।"

पवित्र भूमि के सारांश अनुसार, "लगभग सर्वसम्मत से पुष्टि की गई है" कि कई महिलाएँ "उदासी महसूस करती हैं क्योंकि उनके जीवन को अक्सर अच्छी तरह से समझा नहीं जाता है, और उनके योगदान और करिश्मे को हमेशा महत्व नहीं दिया जाता है।" "कलीसिया में जहां लगभग सभी निर्णय लेनेवाले पुरुष होते हैं, ऐसे बहुत कम स्थान होते हैं जहाँ महिलाएँ अपनी आवाज उठा सकती हैं। फिर भी वे कलीसियाई समुदायों की रीढ़ हैं, क्योंकि वे धार्मिक अभ्यास करनेवाले सदस्यों के बहुमत का प्रतिनिधित्व करती हैं और क्योंकि वे कलीसिया के सबसे सक्रिय सदस्यों में से हैं।"

दिव्यांग लोगों के साथ भेदभाव

लोकधर्मी, परिवार और जीवन के लिए गठित विभाग की रिपोर्ट अनुसार, विकलांग लोगों ने भी भागीदारी और मान्यता की कमी की बात की है: "भेदभाव इस तरह सूचीबद्ध हैं - सुनने की कमी, चुनने के अधिकार का उल्लंघन कि कहां और किसके साथ रहना है, संस्कारों का खंडन, जादू टोना का आरोप, दुर्व्यवहार - और अन्य, विकलांग व्यक्तियों के प्रति अस्वीकृति की भावना है। "वे संयोग से नहीं पैदा होते, लेकिन एक ही मूल से आते हैं: यह विचार विकलांग व्यक्तियों के जीवन को दूसरों की तुलना में कम मूल्यवान मानता है।"

अत्याचार एवं शहादत 

दस्तावेज में यह भी प्रमुख है कि कुछ देशों में विश्वास की गवाही शहादत से देनी पड़ रही है, जहाँ ख्रीस्तीय, विशेषकर युवा, "अन्य धर्मों के द्वारा जबरन धर्मांतरण की चुनौती का सामना कर रहे हैं।"

"ऐसी कई रिपोर्टें हैं जो असुरक्षा और हिंसा का उदाहरण पेश करती हैं जिसमें अल्पसंख्यक ख्रीस्तीयों को अत्याचार का सामना करना पड़ रहा है।" जैसा कि मैरोनाइट कलीसिया, जिसे कट्टरता, नरसंहार या यहाँ तक कि, "सांप्रदायिक और जातीय उत्तेजनाओं" के कारण सशस्त्र और राजनीतिक संघर्षों का भी सामना करना पड़ता है, जिसने दुनिया भर में बहुत सारे विश्वासियों के जीवन को दर्दनाक बनाया है।

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27 October 2022, 17:54