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मृत्युदण्ड की क्रूरता, प्रतीकात्मक तस्वीर मृत्युदण्ड की क्रूरता, प्रतीकात्मक तस्वीर  

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन और गरिमा का सम्मान हो, वाटिकन अधिकारी

न्यू यार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में जारी 77 वीं आम सभा में परमधर्मपीठ के स्थायी पर्यवेक्षक तथा वाटिकन के वरिष्ठ महाधर्माध्यक्ष गाब्रिएल काच्या ने राष्ट्रों के प्रतिनिधियों का आह्वान किया कि वे हर स्थिति में मानव जीवन एवं उसकी गरिमा का सम्मान करें।

जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी

न्यू यॉर्क, शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022 (रेई, वाटिकन रेडियो): न्यू यार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में जारी 77 वीं आम सभा में परमधर्मपीठ के स्थायी पर्यवेक्षक तथा वाटिकन के वरिष्ठ महाधर्माध्यक्ष गाब्रिएल काच्या ने राष्ट्रों के प्रतिनिधियों का आह्वान किया कि वे हर स्थिति में मानव जीवन एवं उसकी गरिमा का सम्मान करें।  किसी भी मामले में मृत्युदंड को स्वीकार न करने तथा सभी व्यक्तियों को मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा पत्र द्वारा मान्यता प्राप्त सभी मौलिक मानवाधिकारों की गारंटी देना उन्होंने आवश्यक बताया।  

प्राणदण्ड पर परमधर्मपीठ

महाधर्माध्यक्ष गाबिरएल काच्या ने कहा कि " परमधर्मपीठ मौत की सज़ा के उन्मूलन का दृढ़ समर्थक है।" सबसे पहले तो उन्होंने कहा कि किसी भी मामले में मानव व्यक्ति की गरिमा पर प्रहार नहीं किया जासकता, भले ही सबसे जघन्य अपराधों के अपराधी को भी बात ही क्यों न हो। द्वितीय, उन्होंने कहा कि प्राणदण्ड की सज़ा का सहारा लिए बिना "सार्वजनिक व्यवस्था और लोगों की सुरक्षा के लिए" पर्याप्त साधनों की उपस्थिति है, जिसका सहारा लेकर अधिकारी अपराधी को दण्डित कर सकते हैं तथा समाज की भलाई के लिये न्याय की बहाली कर सकते हैं।  

महाधर्माध्यक्ष गाबिरएल काच्या ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जीवन का अधिकार व्यक्ति की गरिमा और हर दूसरे अधिकार की नींव का परिणाम है। इसका अर्थ, उन्होंने कहा, "समाज में "विशेष रूप से बीमारों, बुजुर्गों और विकलांग लोगों की सहायता के लिए जिम्मेदार क्षेत्रों में" महत्वपूर्ण परिणाम होता है। इस अधिकार की मान्यता के बिना, कोई भी "मृत्यु की संस्कृति के तर्क" में आसानी से फिसल सकताहै, जिसकी ओर आज दुनिया झुकती प्रतीत हो रही है।"

प्राणदण्ड के उन्मूलन का आग्रह

महाधर्माध्यक्ष काच्या ने कहा, ज़रूरत है "कुशल और निष्पक्ष" न्याय की जो पीड़ितों का सम्मान करता हो, अपराधी को दण्डित करता हो और अपराधों को रोकता हो, और सामान्य भलाई और जनकल्याण की रक्षा के लिये अपराध को "प्रतिशोध से प्रेरित एक निजी उद्यम" बनने से रोकता हो। हालांकि, उन्होंने कहा कि मृत्युदण्ड के मामले में न्यायिक त्रुटि की सम्भावना हमेशा बनी रहती है जिसे कदापि न भुलाया जाये।

महाधर्माध्यक्ष काच्या ने उस कथित न्याय की भी निन्दा की जिसका उपयोग "अधिनायकवादी और तानाशाही शासनों द्वारा किया जाता है, जो इसे राजनीतिक असंतोष को दबाने या धार्मिक और सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने के साधन के रूप में करते हैं" तथा निर्दोष व्यकत्तियों को "अपराधी" मानते हैं।

महाधर्माध्यक्ष ने इस बात को स्पष्ट किया कि मृत्युदंड को लागू न करने का मतलब है कि उसी विनाशकारी शक्ति के प्रलोभन में न पड़ना जिसने इतनी अधिक पीड़ा दी है। जीवन की रक्षा और मानव गरिमा की प्रधानता के संबंध में उन्होंने राष्ट्रों का आह्वान किया कि वे "एक सुसंगत स्थिति" अपनायें।

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21 October 2022, 12:50