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एक ग्रह जिसकी देखभाल आवश्यक, एक पुकार जिसको सुना जाना है

यदि पृथ्वी एक व्यक्ति होती, तो शायद वह किसी अस्पताल के बेड पर अपने हाथ में मॉर्फिन ड्रिप (दर्द निवारक) लेकर पड़ी होती ताकि उसे अनेक कष्टदायी दर्दों से राहत मिल सके।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

विगत चार दशकों में, खासकर, व्यक्ति खुद डॉक्टर की भूमिका निभाने का प्रयास कर रहा है, रोगी के चिकित्सा इतिहास का जायजा ले रहा है, उसे विशेष नैदानिक परीक्षणों में डाल रहा है, और एक अशुभ निदान तैयार कर रहा है ˸ प्रदूषण; जलवायु परिवर्तन; जैव विविधता का गायब होना; वैश्विक उत्तर और दक्षिण के बीच पारिस्थितिक ऋण आर्थिक असंतुलन से जुड़ा होना; मानव-केंद्रितता; प्रौद्योगिकी और वित्त का प्रभुत्व एवं एक बड़े पैमाने पर "कचरे की संस्कृति" जो बच्चों के शोषण, बुजुर्गों का परित्याग, कमजोर लोगों की गुलामी, अंग व्यापार आदि की ओर ले जाता है। एक शब्द में इसे "कैंसर का अंतिम चरण" कहा जा सकता है जो ऊपर वर्णित बीमारी से भी अधिक भयावाह है किन्तु हम उदासीन बने रहते हैं क्योंकि यह हमारे परिवार के किसी सदस्य या मित्र पर प्रभाव नहीं डाला है। डॉक्टर जो नैदानिक चरण से पूरी तरह अवगत है इसकी चिकित्सा करना भूल गया है अथवा कम से कम प्रतिदिन धीरज एवं प्रेम से भर्ती करना छोड़ दिया है। सात साल पहले 24 मई 2015 को प्रेरितिक विश्व पत्र लौदातो सी प्रकाशित कर संत पापा फ्राँसिस ने पृथ्वी की बीमारी से चंगाई हेतु तत्काल लक्षित चिकित्सा करने की आवश्यकता पर जोर दिया था। 

उनकी अपील पेशेवर डॉक्टरों के लिए नहीं थी बल्कि सद्इच्छा रखनेवाले सभी स्त्रियों एवं पुरूषों के लिए थी। 221 पृष्ठों, एक भूमिका, 6 अध्यायों और दो अंतिम प्रार्थनाओं के साथ इसने न केवल कलीसिया के सामाजिक सिद्धांत पर अपनी छाप छोड़ी है बल्कि राजनीतिक, आर्थिक और हमारे वैश्वीकृत समाजों की पारिस्थितिक प्रक्रियाओं पर भी प्रभाव डाला है।    

भविष्यवाणी के शब्द

आज, महामारी और युद्ध के भयांकर अनुभव के आलोक में, जिसने हमें अपने घुटनों पर ला दिया है तथा अपना खौफ और विनाश दिखा रहा है, संत पापा के दस्तावेज की "भविष्यवाणी" की अंतर्दृष्टि और इसकी ताकत स्पष्ट हो गई है। एक ओर यह सृष्टि के भजन के पदों के समान सरल है जहाँ से दस्तावेज का नाम लिया गया है; दूसरी ओर इसके हरेक शब्द इतने प्रभावशाली हैं, मानो कि विश्वास के साथ ईश्वर को सम्बोधित किये गये हों। वास्तव में, संत पापा फ्राँसिस के प्रेरितिक पत्र के फल स्वरूप कई फलप्रद प्रक्रियाओं को गति मिली है और कुछ योजना में हैं। इसके शब्द कई क्षेत्रों को छूते एवं विश्व के नेताओं सहित बच्चों को चुनौती देते हैं एवं हम सभी को अपने हिस्से की जिम्मेदारी को पूरा करने हेतु प्रेरित करते हैं।

संत पापा ने जिन सांस्कृतिक एवं धर्मसिद्धांतों की पृष्टभूमि पर चिंतन किया है वह संत पापा पौल छटवें के दस्तावेज पर आधारित है जिन्होंने पर्यावरण के मुद्दों को उद्धृत किया है, इसे संकट के रूप में प्रस्तुत किया है जो संत पापा जॉन पौल द्वितीय एवं संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें के अनुसार मानव के अनियंत्रित क्रिया-कलापों का एक "नाटकीय परिणाम" है, जो हमें चिंता के साथ सृष्टि को पहचानने का निमंत्रण देते हैं, जहाँ सब कुछ हमारी सम्पति है जिसका उपभोग हम सिर्फ अपने लिए करते हैं। फिर भी ईश्वर की कृति में कोई हिंसक जानवर, स्वार्थी, मालिक और सेवक, कोई भी पर्यावरण नहीं है जिसका शोषण किया जाए, बल्कि यह एक स्थान या घर है जिसको सौहार्दपूर्वक बांटा जाना चाहिए।

संत पापा ने कहा है कि बाईबिल हमें सिखलाती है कि दुनिया अव्यवस्था अथवा संयोग से उत्पन्न नहीं हुई है बल्कि ईश्वर के निर्णय से, जो इसे बुलाते हैं, हमेशा प्यार से अस्तित्व में रखना चाहते हैं। दुनिया सुन्दर और अच्छी है एवं इसपर चिंतन करने पर हमें इसके सृष्टिकर्ता की अनन्त सुन्दरता एवं अच्छाई की झलक दिखाई पड़ती है। हर सृष्टि, चाहे यह कितना ही अल्पायु क्यों न हो पिता की कोमलता को दर्शाता है जो उन्हें दुनिया में स्थान देते हैं।          

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24 May 2022, 16:55