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चालीसा काल के तीसरे सप्ताह का उपदेश सुनते वाटिकन के सदस्य चालीसा काल के तीसरे सप्ताह का उपदेश सुनते वाटिकन के सदस्य 

चालीसा काल के तीसरे उपदेश में ख्रीस्त की ईश्वरीयता पर चिंतन

वाटिकन के उपदेशक कार्डिनल रानिएरो कांतालामेस्सा ने 2021 के चालीसा काल के तीसरे उपदेश में येसु की ईश्वरीयता पर चिंतन किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शनिवार, 13 मार्च 21 (रेई)- विगत सप्ताहों में ख्रीस्त की मानवता पर चिंतन करने के बाद कार्डिनल कांतालामेस्सा ने चालीसा काल के अपने तीसरे उपदेश में येसु की ईश्वरीयता पर चिंतन किया।

कार्डिनल ने कहा कि इस साल रोमन कूरिया के लिए प्रवचनों की श्रृंखला में कलीसिया के बारे में बोलने की प्रवृत्ति पर प्रतिक्रिया व्यक्त की गई है, "मानो कि ख्रीस्त थे ही नहीं"। हालांकि, हम एक असामान्य तरीके से उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करना चाहते हैं ˸ दुनिया और मीडिया को उनकी गलती को समझाने की कोशिश करके नहीं, बल्कि ख्रीस्त में हमारे विश्वास को नवीनीकृत और तेज करके।”  

ख्रीस्त की ईश्वरीयता का धर्मसिद्धांत (डोगमा)

कार्डिनल कांतालामेस्सा ने ख्रीस्त की मानवता पर अपने पूर्व के प्रवचन को ख्रीस्त की ईश्वरीयता के धर्मसिद्धांत की पृष्टभूमि पर रखा था। इस डोगमा की घोषणा कलीसिया के आरम्भिक दिनों में नाईसीन की महासभा द्वारा की गई थी।    

प्रोटेस्टंट सुधार के दौरान यह डोगमा बरकरार रही और एक अर्थ में अपनी केंद्रीय भूमिका में बढ़ी। हालाँकि, एक ओर  प्रोटेस्टंट नेताओं के व्यक्ति के लिए ख्रीस्त के लाभों के लाभ की ओर ध्यान खींचने से ख्रीस्त के बारे धर्म सैद्धांतिक सच्चाई एवं उद्देश्य के बीच अंतर दिखाई दिया और दूसरी ओर, ख्रीस्त के व्यक्तिपरक एवं अंतरंग ज्ञान का मार्ग प्रशस्त हुआ।    

इसके बाद कार्डिनल ने बतलाया कि आत्मज्ञान तर्कवाद ने ख्रीस्त को एक लौकिक गुरू के रूप में प्रस्तुत करने पर जोर दिया और उनकी ईश्वरीयता से इंकार किया।

तुम क्या कहते हैं कि मैं कौन हूँ

कार्डिनल गौर करते हैं कि येसु इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं देते कि दुनिया उनके बारे क्या सोचती है बल्कि ध्यान देते हैं कि उनके शिष्य उन्हें किस तरह देखते हैं। सुसमाचार में येसु अपने शिष्यों से पूछते हैं, पर तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ? कार्डिनल ने कहा कि यह बहुत महत्वपूर्ण सवाल है जिसका हम इस चिंतन में उत्तर देने की कोशिश कर रहे हैं।

सुसमाचार का हर पृष्ठ “मसीह के दिव्य पारगमन को दर्शाता है" तथापि यह योहन रचित सुसमाचार है जो येसु की ईश्वरीयता को प्राथमिकता देता है। कार्डिनल ने बतलाया कि वे संत योहन रचित सुसमाचार में येसु के वाक्य "मैं ही हूँ" से किस तरह गहराई से प्रभावित हुए थे। उन्होंने कहा, "यह विश्वास की एक साधारण भावना थी और ज्यादा कुछ नहीं थी फिर भी एक अमिट छाप छोड़ दी।"   

येसु की ईश्वरीयता में विश्वास की रक्षा

कार्डिनल ने जोर दिया कि ख्रीस्त की ईश्वरीयता का यह गहरा अनुभव, पहले से कहीँ अधिक अभी आवश्यक है। इससे हमें येसु ईश्वर हैं की वस्तुनिष्ठ सच्चाई को देखने में मदद मिल सकती है जो इस शिक्षा के व्यक्तिपरक और कार्यात्मक दृष्टिकोण को बढ़ा सकते हैं। विश्वास को, व्यक्त करने से पहले हृदय में शुरू होना चाहिए।

कार्डिनल कांतालामेस्सा ने कहा, "ख्रीस्त की ईश्वरीयता सबसे ऊंची शिखर है यह विश्वास की एवरेस्ट चोटी है। और आज हमें ख्रीस्त की ईश्वरीयता में विश्वास की रक्षा करने के लिए स्थिति को फिर से बनाना है। विश्वास को पुनः जागृत करना है जिसने निकेया के डोगमा को जन्म दिया।"  

आज कोई भी ईश्वर की मानवता पर संदेह नहीं करता। हालांकि विश्वासियों को गैरख्रीस्तीयों से यही बात अलग करती है कि वे येसु की ईश्वरीयता पर विश्वास करते हैं। ईश्वर की ईश्वरीयता ही ख्रीस्तीय विश्वास है।

जीवन का अर्थ

उपदेश के अंत में कार्डिनल ने इस धर्मसिद्धांत में विश्वास के व्यक्तिपरक लाभ के बारे आधुनिक सोच की ओर पुनः लौटते हुए कहा कि इसके विपरीत, दावे के बावजूद, आधुनिक व्यक्ति जीवन के अर्थ के सवाल से संघर्ष कर रहा है। यह सवाल महामारी के समय में अधिक प्रबलता से उठी है।

ख्रीस्त की ईश्वरीयता में विश्वास, हमें आधुनिक प्रलोभन कि जीवन का कोई अर्थ नहीं है की धारणा से बचने में मदद देता है। खासकर, इसलिए कि ख्रीस्त सच्चे ईश्वर हैं और अनन्त जीवन प्रदान करते हैं।

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13 March 2021, 16:25