उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, शनिवार, 28 नवम्बर 2020 (रेई)- कार्डिनल चरनी ने अपने भाषण में कहा कि समाज जो कोरोनोवायरस महामारी के बाद उभरेगी, उसको आकार देने में युवाओं की भूमिका दुनिया में केंद्रीय होगी। हम इस संकट के बाद तभी बेहतर रूप में उभर पायेंगे, जब हम व्यक्तिवाद से ऊपर उठेंगे और कमजोर एवं हाशिए पर जीवनयापन करनेवाले लोगों, खासकर, शरणार्थी और अप्रवासियों को भी अपने साथ शामिल करेंगे।
आप्रवासियों पर महामारी का प्रभाव
ऑनलाईन सेमिनार का आयोजन संत पापा फ्राँसिस की जापान में प्रेरितिक यात्रा के एक साल बाद किया गया है जिसमें संत पापा फ्राँसिस के शब्दों पर चिंतन किया गया खासकर, जीवन की रक्षा और कोविड-19 के कारण विश्व की चुनौतियों पर।
संत पापा के विगत महिनों के संदेश एवं विश्व पत्र फ्रातेल्ली तूत्ती से प्रेरणा लेते हुए कार्डिनल चरनी ने सेमिनार में भाग लेनेवालों को निमंत्रण दिया कि वे इन बातों पर चिंतन करें कि कोविड संकट आप्रवासियों, शरणार्थियों, विस्थापितों और मानव तस्करी के शिकार लोगों को किस तरह प्रभावित कर रहा है। इसने इन लोगों की असामान्य स्थिति को प्रकट किया है। हालांकि सामान्य समय भी उनके लिए सामान्य नहीं होती है। वे महीनों और आम तौर पर, सालों तक अनिश्चितताओं, अत्यधिक चिंता, भोजन और आवास, कमजोर स्वास्थ्य, बेरोजगारी, शोषण एवं दुराचार के शिकार होने के खतरे में जीते हैं, यदि उन्हें रोजगार नहीं मिल पाता है।
वे अपने देश भी वापस नहीं लौट पाते हैं क्योंकि सीमा बंद होते और उनके पास जीने के साधन बहुत कम होते हैं। सरकारें अपने नागरिकों की समस्याओं का समाधान करतीं हैं तथा शरणार्थी और प्रवासी दोहरे होने के खतरे में रहते हैं और कई बार जानबूझकर उन्हें भूला दिया जाता है। जबकि इस समय में समाज के लिए उनका योगदान महत्वपूर्ण है : खेती-बारी करनेवाले मजदूरों की बात करें अथवा जो समानों को बांटने और पहुँचाने का काम करते हैं, उनमें से कई गरीबों की बस्ती में, शिविरों या जेल में बिना सामाजिक दूरी के रहते हैं।
अन्याय का "वायरस"
कार्डिनल चरनी ने गौर किया कि महामारी ने एक ऐसे समाज को मारा है जहाँ पहले से ही बहुत अधिक अन्याय है – जो कोविड-19 महामारी से भले ही छोटा है किन्तु अधिक खतरनाक है। इसके अलावा, सामाजिक अन्याय, अवसरों की असमानता, हाशिये पर जीवनयापन और कमजोर लोगों के लिए सुरक्षा का अभाव एक बड़ा वायरस है।
उन्होंने पोप फ्राँसिस की अन्याय की परिभाषा की याद करते हुए कहा कि न्याय, स्पष्टता एवं एकात्मता की औषधियों से ही इस महामारी से अपनी रक्षा की जा सकती है। इस तरह महामारी ने हमारी कमजोरी और दूसरों पर निर्भरता को उजागर किया है।
ये खराब नहीं भी हो सकते हैं क्योंकि ये ही दो बातें हैं जो हमें एक साथ लाते हैं और यदि हम इस संकट से बेहतर रूप से उबरना चाहते हैं तब हमें व्यक्तिवाद के प्रलोभन से बचना होगा, चाहे यह व्यक्तिगत हो अथवा सामूहिक, अक्सर यह राजनीतिक राष्ट्रवाद एवं संकीर्ण आर्थिक लाभ के रूप में प्रकट होता है।
फ्रातेल्ली तूत्ती की शिक्षा
कार्डिनल ने कहा कि संकट का जवाब ख्रीस्तीय परम्परा की प्राचीन शिक्षा में मिल सकती है जैसा कि फ्रातेल्ली तूत्ती में स्पष्ट किया गया है, जहाँ संत पापा हमें सभी लोगों एवं राष्ट्रों के बीच भ्रातृत्व एवं मित्रता स्थापित करने की सलाह देते हैं। यह स्पष्ट रूप से शरणार्थियों एवं आप्रवासियों जैसे कमजोर लोगों पर भी लागू होता है।
उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा अधिकार है जो न केवल आप्रवासियों पर बल्कि सभी स्त्रियों और पुरूषों पर लागू होता है कि वे भूख, युद्ध और जलवायु परिवर्तन के कारण, नये अवसरों एवं बेहतर भविष्य की तलाश में पलायन करने के लिए मजबूर न हों। उन्होंने राष्ट्रवादी और लोकलुभावन शासन से शुरू होनेवाली कई बाधाओं की निंदा की, जो आप्रवासियों को बाहर करने की कोशिश करती, रक्षात्मक दीवारों के पीछे उलझी हुई हैं और एक जातीयता की मानसिकता धारण करती है, जिसको उन्होंने ख्रीस्तीयता के प्रतिकूल मनोभाव कहा।
युवाओं की भूमिका
भाईचारा, एकात्मता और उदारता की संस्कृति बनाने में युवाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। इतिहास, बुजूर्गों, सृष्टि के लिए सम्मान और पीढ़ियों के बीच सामाजिक वार्ता के प्रति प्रतिबद्धता एवं एकात्मता आदि एक बेहतर समाज के लिए मूल सदगुण हैं जो हमेशा खुलापन के साथ आप्रवासियों एवं शरणार्थियों की ओर बढ़ती है।
उन्होंने कहा, "महामारी ने हम सभी को संकट में डाल दिया है किन्तु जैसा कि संत पापा फ्राँसिस कहते हैं, हम याद रखें कि संकट के बाद व्यक्ति पहले समान नहीं होता। हम या तो बेहतर बन सकते हैं अथवा बदतर, हमारा विकल्प यही है।"