संत पापाः सुसमाचार के साक्ष्य में शांति और खुशी है
वाटिकन सिटी
संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रागँण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।
पवित्रीकरण और करिश्मों के वर्णन उपरांत आज मैं पवित्र आत्मा की एक तीसरी सच्चाई जो उनके कार्य से जुड़ी है- “आत्मा के फलों” की चर्चा करना चाहूँगा। पवित्र आत्मा के फल क्या हैंॽ संत पौलुस गलातियों के नाम अपने पत्र में इसके बारे में एक सूची प्रदान करते हैं। वे लिखते हैं, आप इस पर ध्यान दें, “आत्मा के फल हैं, प्रेम, आनंद, शांति, सहनशीलता, मिलनसारी, दयालुता, ईमानदारी, सौम्यता और संयम।” हम पवित्र आत्मा के “नौ फलों” को पाते हैं, लेकिन ये फल क्या हैंॽ
पवित्र आत्मा में स्वतंत्रता और सहयोगिता
संत पापा ने कहा कि करिश्माओं से विपरीत इसे आत्मा जिसे चाहते और जब चाहते लोगों को कलीसिया की भलाई के लिए प्रदान करते हैं, संत पापा ने पुनः पवित्र आत्मा के फलों को दुहराते हुए कहा कि पवित्र आत्मा के फल कृपा और हमारी स्वतंत्रता के बीच सहयोगिता के कारण होते हैं। ये फल सदैव व्यक्ति की क्रियाशीलता को व्यक्त करते हैं जहाँ हम विश्वास को प्रेम से, कभी-कभी आश्चर्यजनक और खुशी में कार्य करता पाते हैं। कलीसिया में सभी कोई प्रेरित नहीं हो सकते हैं, सभी नबी, सुसमाचार लेखक नहीं हो सकते हैं, लेकिन हममें से हर कोई बिना किसी भेदभाव के दयालु, धैर्यवान,शांति के शिल्पकार हो सकते हैं। हम सबों को अपने जीवन के द्वरा इन कार्यं को करने की जरुरत है, हम युद्ध नहीं बल्कि शांति के संस्थापक बनें।
येसु से मिलन का प्रभाव
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि पवित्र आत्मा के फलों के संबंध में जिसकी चर्चा संत पौलुस करते हैं उनमें से एक का उल्लेख मैं करना चाहूँगा जो विश्व प्रेरितिक पत्र एभेंजेल्ली गौदियुम के शुरू में आता है, “सुसमाचार की खुशी उन सबों के हृदयों और जीवन को भरती है जिनका मिलन येसु से होता है। वे जो उनसे मिलने वाली मुक्ति को स्वीकारते हैं वे अपने पाप, दुःख, आंतरिक खलीपन और अकेलेपन से मुक्त किये जाते हैं। येसु ख्रीस्त में हमारी खुशी निरंतर नवीन होती है।” बहुत बार हमारे जीवन में दुःख व्याप्त होते लेकिन हम अपने में शांति का अनुभव करते हैं। येसु में हम खुशी और शांति को पाते हैं।
खुशी का रहस्य
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि खुशी पवित्र आत्मा में मिलने वाले फलों में से एक वह सामान्य अनुभूति है जो हमारे लिए पूर्णतः का अनुभव लाती है, जिसके संबंध में हमारी चाह यही होती कि यह हमेशा हमारे साथ बनी रही। हम अपने अनुभव से जानते हैं यद्यपि ऐसा नहीं होता है, क्योंकि इस धरती पर सारी चीजें जल्द खत्म हो जाती हैं- युवावास्था,स्वास्थ्य, शक्ति, भलाई, मित्रता, प्रेम...शायद सौ सालों तक बने रहते हों, लेकिन उसके बाद उससे अधिक नहीं। वे जल्द खत्म हो जाती हैं। इसके साथ ही, यद्यपि ये चीजें जल्द विलीन नहीं होती, थोड़े समय के बाद वे हमारे लिए प्रर्याप्त नहीं रह जाती या हम उनके द्वारा ऊब जाते हैं जैसे कि संत अगुस्टीन इसे ईश्वर से कहते हैं, “तूने हमें अपने लिए बनाया है, और हमारा हृदय तेरे लिए तरसता है जब तक वह तुझ में आराम न करें।” हम अपने हृदय को सुन्दरता, शांति, प्रेम और खुशी की खोज में बेचैन पाते हैं।
खुशी पवित्र आत्मा का उत्तम फल
सुसमाचार की खुशी, किसी अन्य दूसरी खुशी के विपरीत, प्रति दिन के जीवन में नवीन बनाई जा सकती है जो अपने में फैलती है। हम ईश्वर से इस मिलन- उनके प्रेम हेतु कृतज्ञता के भाव प्रकट करते हैं, जो हमारे लिए एक समृद्ध मित्रता में प्रस्फुटित होती है, इसके द्वारा हम अपने संकीर्णपन और स्वयं में खोये रहने से मुक्त होते हैं। यहाँ हम सुसमाचार प्रचार हेतु अपने प्रयास के संबंध में एक प्रेरणा और स्रोत को पाते हैं। क्योंकि यदि हमने प्रेम का अनुभव किया है जो हमारे जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है, तो हम उसे दूसरों के संग साझा करने में कैसे पीछे रह सकते हैंॽ यह खुशी की दोहरी विशेष है जो हमारे लिए पवित्र आत्मा का फल है, यह समय के साथ विलुप्त नहीं होती बल्कि इसे दूसरों के संग साझा करने से इसमें बढ़ोतरी होती है।
संत फिलिप नेरी का साक्ष्य
संत पापा ने कहा कि पाँच शताब्दी पूर्व संत फिलिप नेरी रोम में रहते थे। वे इतिहास में एक खुशी के संत स्वरूप देखे जाते हैं। वे अपने प्रवचनों में गरीबों औऱ परित्यक्त बच्चों से कहा करते थे,“मेर बच्चों, आप खुश रहें, मैं कोई शोक या उदासी नहीं चाहता, मेरे लिए यह काफी है कि आप पाप न करें।” पुनः वे कहते थे, “यदि हो सके तो आप अच्छा बनें।” हम, यद्यपि उनमें खुशी के स्रोत के बारे में कम जानते हैं। संत फिलिप नेरी का ईश्वर के प्रति प्रेम इतना अधिक था कि कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता कि उसका हृदय छाती के अंदर फट जायेगा। उनकी खुशी सम्पूर्ण अर्थ में पवित्र आत्मा का फल था। संत ने 1575 की जयंती में भाग लिया, जिसे उन्होंने सात महागिरजाघरों की यात्रा के अभ्यास से समृद्ध किया, जिसे आज भी जारी रखा गया है। वह अपने समय में, खुशी के माध्यम से एक सच्चे सुसमाचार के प्रचारक थे। संत पापा ने कहा कि उन्होंने इस मनोभाव को धारण किया कि येसु सारी चीजों को क्षमा करते हैं। हममें से बहुत से लोग यह सोचते हैं कि मैंने वह पाप किया है जो अपने में अक्षम्य है। संत पापा ने जोर देते हुए कहा कि ईश्वर सारी चीजों को, सदैव क्षमा करते हैं। यह हमारी लिए खुशी का कारण बनती है कि हम क्षमा किये गये हैं। उन्होंने पुरोहितों और पापस्वीकार सुनने वालों से आग्रह किया कि वे अधिक सवाल न करें, बल्कि सारी चीजों को सदैव क्षमा करें।
खुशी सुसमाचार का संदेश
सुसमाचार का अर्थ खुशी का संदेश है। अतः यह उदासी भरे चेहरे से प्रसारित नहीं किया जा सकता है बल्कि खुशी के उस खजाने और मूल्यवान मोती द्वारा जिसे हम अपने में प्राप्त करते हैं। संत पापा ने संत पौलुस के कथन की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा, “हम येसु ख्रीस्त में सदैव आनंदित हो, मैं पुनः कहता हूँ आनंदित हो। आपकी दयालुता सभों के लिए ज्ञात हो। हम अपने हृदयों में येसु की खुशी को वहन करते हुए सदैव खुश रहें।
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