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बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा  फ्रांसिस बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा फ्रांसिस  (ANSA)

संत पापाः दृढ़करण संस्कार बहुतायत कृपाओं का स्रोत

संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह की धर्मशिक्षा माला में कलीसिया में पवित्र आत्मा की उपस्थिति और कलीसिया में उसके कार्यों पर प्रकाश डाला।

वााटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

आज की धर्मशिक्षा में हम संस्कारों के माध्यम कलीसिया के जीवन में पवित्र आत्मा की उपस्थिति  और कार्यों पर अपना चिंतन जारी रखेंगे।

ईश वचन और संस्कार

पवित्र आत्मा द्वारा पवित्रिकरण का कार्य मुख्यतः दो रूपों में हमारे लिए होता है- ईश्वर का वचन और संस्कार। और सभी संस्कारों में से एक, दृढ़करण का संस्कार जो पवित्र आत्मा का सर्वोत्कृष्ट संस्कार है, आज मैं इसी पर ध्यान केंद्रित करना चाहूँगा।

संत पापा ने कहा कि नये विधान में, जल से बपतिस्मा के परे एक अन्य धर्मविधि- हस्तारोपण की चर्चा है जिसका उद्देश्य पवित्र आत्मा को प्रत्यक्ष और करिश्माई रूप से संप्रेषित करना है, जिसका प्रभाव हम पेन्तेकोस्त के समय प्रेरितों द्वारा उत्पन्न होता पाते हैं। इस संदर्भ में प्रेरित चरित एक अति विशिष्ट घटना की चर्चा करता है। यह सुनते हुए कि समारिया के कुछ लोगों ने ईश्वर के वचन को स्वीकार किया है, प्रेरितों ने येरुसालेम से पेत्रुस और योहन को वहाँ भेजा। “वे वहाँ गये और उनके लिए प्रार्थना की जिससे उन्हें पवित्र आत्मा प्राप्त हो, क्योंकि वह उनके ऊपर अब तक नहीं उतरा था, उन्होंने येसु के नाम पर सिर्फ बपतिस्मा ग्रहण किया था। उन्होंने उन पर अपना हाथ रखा और उन्हें पवित्र आत्मा प्राप्त हुआ।

पवित्र आत्मा शाही मुहर

इसके साथ ही संत पौलुस कुरिथिंयों ने नाम अपने दूसरे पत्र में लिखते हैं, “ईश्वर ने आप लोगों के साथ हम को मसीह में सुदृढ़ बनाये रखता है और उसी ने हमारा अभिषेक किया है। उसी ने हम पर अपनी मुहर लगायी और हमारे हृदयों को पवित्र आत्मा प्रदान किया है।” पवित्र आत्मा एक “शाही मुहर” स्वरूप हैं जिसके द्वारा मसीह अपनी भेड़ों को चिन्हित करते हैं, जो इस संस्कार द्वारा प्रदान किए गए “अमिट चिन्ह” के सिद्धांत का आधार है।

दृढ़करण सभी ख्रीस्तीयों के लिए

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि समय बीतने के साथ विलेपन की विधि अपने आपमें एक संस्कार स्वरूप स्थापित हुई, तथा कलीसिया के विभिन्न धर्मविधियों और युगों में इसने विविध रूपों और विषयवस्तु को आलिंगन किया। हम यहाँ उसके जटिल इतिहास की खोज नहीं कर सकते हैं। कलीसिया में दृढ़करण संस्कार की समझ को मैं एक सरल और स्पष्ट रुप में यह कह सकता हूँ जिसे इतालवी धर्माध्यक्षीय सम्मेलन व्यस्कों की धर्मशिक्षा में परिभाषित किया है,“दृढ़करण संस्कार सभी विश्वासियों के लिए है जो पेंतेकोस्त पूरी कलीसिया के लिए था... यह मसीह और कलीसिया में हमारे बपतिस्मा को मजबूती प्रदान करता है और हमारी भविष्यवाणी, राजकीय प्रजा और पुरोहितक प्रेरिताई के समर्पण को प्रगाढ़ बनाता है।

विकास का संस्कार

यह हमारे लिए पवित्र आत्मा के उपहारों को बहुतायत में लेकर आता है। इसलिए, बपतिस्मा यदि जन्म का संस्कार है, तो दृढ़करण विकास का संस्कार है। यही कारण है कि इसे साक्ष्य के संस्कार स्वरुप भी माना जाता है क्योंकि यह ख्रीस्तीय अस्तित्व की परिपक्वता से गहराई से जुड़ा हुआ है।

संत पापा ने कहा कि हम यह कैसे सुनिश्चित करें कि दृढ़करण का संस्कार सिर्फ “अंतिम धर्मविधियों” तक ही सीमित होकर न रह जाता हो, अर्थात कलीसिया से बाहर निकलने का संस्कार क्योंकि एक बार युवा इसे ग्रहण कर कलीसिया से दूर चले जाते हैं और विवाह संस्कार के लिए ही लौटते हैं, बल्कि यह कलीसियाई जीवन के कार्यों में सक्रिय रुप से सहभागी होने का संस्कार बनें। यह एक ऐसा मील का पत्थर है जो कलीसिया की वर्तमान स्थिति को देखते हुए असंभव-सा लगता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमें ऐसा करने से तटस्थ होना चाहिए। यह सभी दृढ़करण ग्रहण करने वाले बच्चों या व्यस्कों के संग नहीं होता है, यह महत्वपूर्ण है कि कुछ लोग हैं जो कलीसियाई समुदाय को आगे बढ़ने हेतु इसके कार्य में अपने को सहभागी करते हैं।

संत पापाः पवित्र आत्मा हमें असंख्य कृपाएं देते हैं

दृढ़करण, संस्कारों का पुष्पिकरण

यह इस उद्देश्य के लिए उपयोगी हो सकता है, वे जिनका ख्रीस्त और पवित्र आत्मा के संग एक व्यक्तिगत मिलन की अनुभूति हुई है वे लोकधर्मियों को इस संस्कार की दीक्षा हेतु तैयारी करने में मदद कर सकते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि बच्चों के रूप में दृढ़करण संस्कार ग्रहण करना संस्कारीय जीवन में पुष्पित होने की अनुभूति प्रदान करता है।

संत पापा ने कहा कि यह भविष्य में दीक्षांत लेने वालों से केवल संबंधित नहीं है बल्कि यह हम सभों के लिए हर क्षण लागू होता है। दृढ़करण और विलेपन दोनों के द्वारा हमने पवित्र आत्मा में अपने मिलन को पाया है जैसे कि पौलुस इसका जिक्र करते और दूसरी जगह इसे,“पवित्र आत्मा के प्रथम फल” घोषित करते हैं। हमें इसे विकसित करना है, हमें इसके फलों का रसास्वादन करने की जरुरत है न कि उन कृपाओं और गुणों को दबाकर रखना है।

संत पौलुस अपने शिष्य तिमथी को हस्तारोपण द्वारा ईश्वर से मिले उपाहर को प्रज्वलित करने का आहृवान करते हैं। इसमें उपयोग की गई क्रिया पवित्र आत्मा के रुप को व्यक्त करती है जो हममें फूंकते हुए अपनी आग जलाते हैं। जयंती वर्ष में यह हमारे लिए एक अच्छा लक्ष्य होगा। हम अपनी आदत और तटस्थ रहने वाली राख को हटायें, और ओलंपिक मशालवाहकों की तरह, पवित्र आत्मा की लौ के धारक बनें। आत्मा हमें इस दिशा में कुछ कदम उठाने में मदद करे!

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30 अक्तूबर 2024, 14:27
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