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संत पापा युवाओं के संग लुबेन में संत पापा युवाओं के संग लुबेन में  (ANSA)

संत पापाः आशा में बने रहते हुए भविष्य के लिए कार्य करें

संत पापा फ्राँसिस ने बेल्जियम की अपनी प्रेरितिक यात्रा के तीसरे दिन लुबेन महाविद्यालय के विद्यार्थियों से भेंट की।

वाटिकन न्यूज

संत पापा ने युवाओं को दिये गये अपने संदेश में कहा कि मैं आपके शब्दों में उत्साह और आशा का अनुभव कर सकता हूँ, न्याय की एक चाह और सत्य की खोज।

उन्होंने युवाओं के द्वारा उठाये गये मुद्दों भविष्य के बारे में सोच और चिंता पर जोर देते हुए कहा कि हम सहज ही देख सकते हैं कि हिंसा और ढीठाई रूपी बुराई किस तरह से लोगों और पर्यावरण को नष्ट करती है। इसे हम न केवल अति कुरूप युद्ध में पाते बल्कि यह आधुनिक समय के भ्रष्टचार और गुलामी स्वरुपों में भी व्याप्त है। कभी-कभी ये बुराइयाँ धर्म को भी भ्रष्ट कर देती है, यह वर्चस्व के एक साधन में बदल जाती है। यह अपने में ईशनिंदा की भांति है जहाँ ईश्वर पिता का नाम जो एक रहस्य है जिसके द्वारा हमें चंगाई प्राप्त होती है, उसके प्रेम को अपनी हठधार्मिकता में गुलामी का साधन बना लेते हैं। जबकि ईश्वर पिता हैं, न की स्वामी, वे पुत्र और भाई की भांति हैं, तानाशाह नहीं, ईश्वर प्रेम के आत्मा हैं, न की वर्चस्व।

बुराई का अंत निश्चित

संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीयों के रुप में हम जानते हैं बुराई अपने में अंतिम नहीं है। हम कह सकते हैं कि उसके दिन अपने में गिने हुए हैं। हमारी निष्ठा को कम करने के बदले बुराई इसे  मजबूत करती है क्योंकि हमारे उत्तरदायित्व में आशा है। इस संदर्भ में ख्रीस्तीयता और पारिस्थितिकी के बीच संबंध के बारे में पूछे गये सवाल का उत्तर संत पापा ने तीन शब्दों- कृतज्ञता, प्रेरिताई और निष्ठा में दी।

कृतज्ञता के मनोभाव

उन्होंने कहा कि हमारा सबसे पहला मनोभाव कृतज्ञता का हो क्योंकि हमारा सामान्य निवास हमें दिया गया है। “हम अपने में स्वामी नहीं बल्कि अतिथि हैं जो इस पृथ्वी पर यात्रा कर रहे हैं। यह ईश्वर हैं जो सबसे पहले इसकी चिंता करते हैं वैसे ही जैसे कि वे हमारी देख-रेख करते हैं। नबी इसायस इसके बारे में कहते हैं, “ईश्वर ने उसे इसलिए नहीं बनाया कि वह उजाड़ रहे, बल्कि इसलिए कि लोग उस पर निवास करें।” वहीं स्त्रोत में हम कृतज्ञता के भाव का बखान पाते हैं, “जब मैं तेरे बनाये हुए आकाश को देखता हूँ तेरे द्वारा स्थापित तारों और चन्द्रमा को तो सोचता हूँ कि मनुष्य क्या है, जो उसकी सुधि लेॽ हम आकाश के तारों और इस पृथ्वी पर जीवन के लिए पिता ईश्वर का धन्यवाद दें।

प्रेरिताई की भावना

संत पापा फ्रांसिस ने प्रेरिताई की भावना का जिक्र करते हुए कहा कि जबतक हम इस दुनिया में हैं हमारा कर्तव्य इसी सुन्दरता की रक्षा और सभों की भलाई हेतु इसका उपयोग करना है विशेषकर इस बात का ख्याल रखते हुए कि हमारे बाद अन्य लोग आने वाले हैं। यह कलीसियाई “पारिस्थितिकी कार्यक्रम” है। हमारे अंदर व्याप्त ढीठाई, हिंसा और विरोधभावी विचारों के कारण कोई भी विकास की योजना कभी सफल नहीं होगी। हमें अपने हृदय की गहराई में जाने की जरुरत है जो सारी चीजें का उद्गम स्थल है। वास्तव में, पारिस्थितिकी मुद्दे अपने में अति जरूरी हो गए हैं, क्योंकि शक्तिशाली लोगों के दिलों में अहंकार की उदासीनता घर कर गई है, जो अक्सर आर्थिक हितों को प्राथमिकता देती, जिसके अनुसार वित्तीय बाजार ही एकमात्र मध्यस्थ बनता जो यह तय करता है कि किसी अपील को स्वीकार किया जाए या उसे दबा दिया जाए। जब तक बाजार को प्रथामिकता दी जायेगी हमारा सामान्य निवास अन्याय से ग्रस्ति रहेगा। फिर भी सृष्टि की सुन्दरता जो हमें उपहार स्वरुप  दी गई है हमें एक बड़े उत्तरदायित्व के निर्वाहन हेतु आहृवान करती है क्योंकि हम अतिथि हैं, तानाशाह नहीं। इस संदर्भ में संत पापा ने सभी विद्यार्थियों को इस बात के लिए निमंत्रण दिया कि वे संस्कृति के निर्माण बने न कि उसे आदर्श के रुप में धारण करें, इसके साथ ही विश्व के विकास हेतु जोर दिया।

निष्ठा

इस भांति समग्र विकास हेतु निष्ठा तीसरे बिन्दु की चर्चा करते हुए संत पापा ने कहा कि यह ईश्वर और हर नर तथा नारी के प्रति जरुरी है। वास्तव में, यह विकास सभी तरह के शोषण और लोगों का  परित्याग करने से ऊपर उठने की मांग करता है। कलीसिया ऐसे शोषणों का विरोध करती और अपने को सभों के विकास हेतु समर्पित करती है जिससे उन्हें न्याय और सच्चाई प्राप्त हो। इस अर्थ में समग्र विकास हमसे पवित्रता की मांग करती है जो न्याय और खुशी की एक बुलाहट है।

संत पापा ने कहा कि यह हम पर निर्भर करता है कि हम तोलमोल के स्वभाव या इसे अपने में विकसित करने का चुनाव करते हैं। यह हमारे लिए अपने मानवीय स्वभाव से शुरू होता जो सुजनन विज्ञान, साइबरनेटिक जीव और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रश्न को हमारे सामने लेकर आता है।

कलीसिया एक नारी है

मानवीय पारिस्थितिकी पर चिंतन करना हमारे हृदय के निकट रहने वाले एक मुद्दे-कलीसिया में नारियों की भूमिका को हमारे लिए लेकर आता है। इस संदर्भ में हम बहुत सारी चीजों को देखते हैं जो हिंसा और अन्याय के साथ वैचारिक पूर्वाग्रह को हमारे लिए लाता है। संत पापा ने कहा कि यह हमें आधारभूत विषय की ओर अग्रसर करता है- नारी कौन हैं और कलीसिया कौन हैॽ कलीसिया ईश्वर की प्रजा है न की बहुराष्ट्रीय सहकारिता। ईश्वरीय प्रजा के रुप में नारी ईश्वर की एक पुत्री, बहन, माता है जैसे कि एक पुरूष बेटा, भाई, एक पिता है। ये सारे संबंध हैं जो हमारे लिए इस वास्तविकता को व्यक्त करते हैं कि हम सभी ईश्वर के प्रतिरुप बनाये गये हैं। कलीसिया में नर और नारी शुरू से ही प्रेम करने और प्रेम पाने हेतु आमंत्रित किये गये हैं। यह हमारे लिए बुलाहट और प्रेरिताई दोनों है जिसकी भूमिका हमें समाज और कलीसिया दोनों में देखने को मिलती है।

नारित्व नारी की विशिष्टता

महिलाओं में उनकी सच्ची नारित्व उन्हें विशिष्टता प्रदान करती है,  वह आम सहमति या विचारधाराओं द्वारा निर्धारित नहीं होती है, ठीक उसी तरह जैसे गरिमा स्वयं कागज पर लिखे कानूनों से नहीं, बल्कि हमारे हृदयों में अंकित किये गये असल कानून से सुनिश्चित होती है। सम्मान एक अमूल्य चीज है, एक अंतनिर्मित गुण जिसके कोई मानवीय कानून दे या ले नहीं सकता है। इस मूलभूत साझा सम्मान में, ख्रीस्तीय संस्कृति, अपने विभिन्न संदर्भों में पुरुषों और महिलाओं की बुलाहट और प्रेरिताई तथा एक दूसरे के लिए उनके आपसी सहयोग की हमेशा नई समझ विकसित करने का प्रयास करती है। वे प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं, बल्कि वास्तव में एक दूसरे के लिए हैं।

मुक्ति इतिहास में नारियों की उपस्थिति की ओर इंगित करते हुए संत पापा ने कहा कि हम उस “हाँ” के लिए मरियम के प्रति अपनी कृतज्ञता के भाव प्रकट करते हैं जिसके फलस्वरुप ईश्वर दुनिया में आये। नारित्व हमें स्वागत करते हुए, उसे पोषित करने और निष्ठा में जीवन देने की बात कहती है। हम दैनिक जीवन में प्रेम की विभिन्न अभिव्यक्तियों मित्रता, उत्तरदायित्व निर्वाहण, वैवाहिक जीवन में मातृत्व या कुंवारी द्वारा दूसरों की सेवा से लेकर ईश्वरीय राज्य के निर्माण के प्रति सचेत रहे।

संत पापा ने कहा, “आप स्वयं यहाँ नर और नारियों के रुप में विकसित होने के लिए जमा हैं। आप एक यात्रा में हैं, मानवीय प्रशिक्षण की प्रक्रिया में। यही कारण है कि आपके शैक्षणिक अध्ययन में विभिन्न क्षेत्र: अनुसंधान, मित्रता, सामाजिक सेवा, नागरिक और राजनीतिक जिम्मेदारी, कलात्मक अभिव्यक्ति, इत्यादि शामिल हैं।

संत पापा ने युवाओं को प्रशिक्षण के संबंध में तीन बातों पर प्रकाश डाला- अध्ययन कैसे किया जायेॽ क्यों किया जाये और किसके लिए किया जायेॽ  

अध्ययन कैसे करें

अध्ययन कैसे किया जाये पर संत पापा ने कहा कि यह हर विज्ञान की भांति जो अपने में एक जैसा नहीं है बल्कि एक अलग शैली है। “हर व्यक्ति अपने में एक अलग शैली का विकास कर सकता है। वास्तव में, अध्ययन अपने में स्वयं को जानने का एक द्वार है।” यद्यपि पूरा महाविद्यालय एक सामान्य शैली को अपने आलिंगन करता है। हम दूसरों के संग मिलकर एक साथ अध्ययन करते हैं और हम उनके लिए कृतज्ञता के भाव व्यक्त करते हैं जो हम से पहले चले गये हैं, प्रध्यापक और छात्रगण। संस्कृति को हम अपनी देख-रेख के रुप में पाते हैं जो हमें दूसरों की चिंता करने की बात कहती है।

क्यों अध्ययन

क्यों अध्ययन किया जायेॽ संत पापा ने इसे एक प्रेरणा कहा जो हमें अपने एक लक्ष्य की प्राप्ति हेतु आगे बढ़ने को मदद करता है। यद्यपि ये सारी चीजें हमारे लिए अच्छी होनी चाहिए क्योंकि वे हमें अध्ययन के मर्म को समझने में मदद करती और हमारे जीवन को दिशा प्रदान करती है। कभी-कभी हम नये कार्य की खोज हेतु अध्ययन करते हैं लेकिन यह हमारे जीवनअर्जन का साधन बना जाता है और हम औजार स्वरूप बन कर रह जाते हैं। हम कार्य करने के लिए न जीयें बल्कि जीने के लिए कार्य करें। यह कहने में सहज है लेकिन इसके अभ्यास हेतु हमें निरंतर प्रयास करने की जरुरत है।

किसे लिए अध्ययन

किसे लिए अध्ययन करें, अपने लिएॽ दूसरों के प्रति उत्तरदायी होने हेतुॽ हमें दूसरों की सेवा और उन्हें शिक्षित करने के लिए अध्ययन करने की जरुरत है। हम विश्वास और योग्यता में दूसरों की सेवा करें। खुद से यह पूछने से पहले कि क्या पढ़ाई किसी काम की है, हमें पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि यह किसी के लिए उपयोगी है। ऐसे होने से विश्वविद्यालय की डिग्री जन भलाई हेतु सेवा करने की क्षमता का संकेत देगी।

संत पापा ने विद्यार्थियों से कहा कि इन बातों को आप के संग साझा करने मुझे आनंद की अनुभूति देती है। इन बातों पर चिंतन करते हुए हम एक बृहृद सच्चाई से अपने को आलोकित होता पाते हैं जो सत्य है। सत्य के बिना हमारा जीवन अपना अर्थ खो देता है। हमारा अध्ययन तब अर्थपूर्ण होता है जब हम इसके द्वारा सत्य की खोज करते हैं, और ऐसा करते हुए हम इस बात को समझते हैं कि हम इसकी खोज के लिए बनाये गये हैं। हमें सच्चाई को खोजने की जरुरत है क्योंकि यह हमें निमंत्रण देती है, यह हासिल के योग्य और उदार है। लेकिन यदि हम सच्चाई की खोज करना छोड़े देते तो हमारा अध्ययन करना शक्ति हासिल करने का साधन बन जाता है, दूसरों को नियंत्रित करने का माध्यम बन जाता है, इसके द्वारा सेवा नहीं होती बल्कि वर्चस्व स्थापित होता है। जबकि सत्य हमें स्वतंत्र करता है। क्या आप स्वतंत्र होने की चाह रखते हैंॽ यदि ऐसी बात है तो आप सच्चाई की खोज करें और उसका साक्ष्य दें। आप अपने दैनिक जीवन की छोटी चीजों में विश्वासनीय और सत्य के धारक बनें। ऐसा करने के द्वारा आप का महाविद्यालय वह बनेगा जो यह है एक ख्रीस्तीय महाविद्यालय।

संत पापा ने इस मिलन हेतु सभो के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकट किये और सभों पर आशीष का आहृवान करते हुए विद्यार्थियों को उनके प्रशिक्षण हेतु शुभकामनाएं प्रदान की। 

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28 सितंबर 2024, 18:47
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