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प्रार्थना करते संत पापा फ्राँसिस प्रार्थना करते संत पापा फ्राँसिस  (ANSA)

‘पहले ईश्वर का होना : पोप फ्राँसिस के साथ आध्यात्मिक साधना’ में पोप की प्रस्तावना

पोप फ्राँसिस ने लोयोला प्रेस द्वारा मंगलवार को प्रकाशित ऑस्टेन इवेरेघ की नवीनतम पुस्तक "पहले ईश्वर का होना : पोप फ्राँसिस के साथ आध्यात्मिक साधना" की प्रस्तावना लिखी।

वाटिकन न्यूज

संत पापा ने प्रस्तावना शुरू करते हुए लिखा, “अपने जीवन के अनुभव के कारण, संत इग्नासियुस लोयोला ने स्पष्ट रूप से देखा कि प्रत्येक ख्रीस्तीय एक ऐसे संघर्ष में शामिल है जो उसके जीवन को परिभाषित करता है। यह अपने आप में बंद होने के प्रलोभन पर काबू पाने का संघर्ष है, ताकि पिता का प्रेम हमारे अंदर आ सके। जब हम प्रभु के लिए जगह बनाते हैं जो हमें हमारी आत्मनिर्भरता से बचाता है, तो हम पूरी सृष्टि और हर प्राणी के लिए खुल जाते हैं। हम पिता के जीवन और प्रेम के माध्यम बन जाते हैं। तभी हमें एहसास होता है कि जीवन वास्तव में क्या है: पिता का एक उपहार है जो हमें गहराई से प्यार करते हैं और चाहते हैं कि हम उनके और एक-दूसरे के साथ आत्मीयता बनायें।”

संत पापा ने कहा है कि ईश्वर के गहरे प्रेम के बावजूद मानव जीवन में संघर्ष बना रहता है। “यह संघर्ष येसु ने क्रूस पर अपनी अपमानजनक मृत्यु और अपने पुनरुत्थान के माध्यम से हमारे लिए पहले ही जीत ली है। इस तरह, पिता ने निश्चित रूप से और हमेशा के लिए प्रकट किया कि उनका प्यार इस दुनिया की सभी शक्तियों से अधिक मजबूत है। लेकिन फिर भी यह उस जीत को अपनाने और उसे साकार करने का संघर्ष बना हुआ है।” उन्होंने प्रस्तावना में बतलाया है कि हम सांसारिक तरीके से जीने के लिए, इस भ्रम में रहते हैं कि हम संप्रभु और आत्मनिर्भर हैं। तथा कहा है कि पारिस्थितिक संकट, युद्धों तथा गरीबों एवं कमजोर लोगों के खिलाफ अन्याय जैसी बुराईयों की जड़ें ईश्वर और एक-दूसरे के प्रति हमारी अस्वीकृति में निहित हैं।

कलीसिया हमें उस प्रलोभन के विरुद्ध संघर्ष करने में कई तरह से मदद करती है। इसकी परंपराएँ और शिक्षाएँ, प्रार्थनाएँ, परम्पराएँ और पवित्र मिस्सा बलिदान "कृपा के माध्यम" हैं जो हमें उन वरदानों को प्राप्त करने के लिए खोलते हैं जो पिता हमें प्रदान करना चाहते हैं।

उन परंपराओं में आध्यात्मिक साधनाएँ हैं और उनमें संत इग्नासियुस की आध्यात्मिक अभ्यास भी शामिल है।

एक प्रतिस्पर्धी समाज के निरंतर दबाव और तनाव के कारण, आध्यात्मिक साधना "अपनी बैटरी को रिचार्ज करने" का बहुत लोकप्रिय उपाय बन गया है। लेकिन एक ख्रीस्तीय आध्यात्मिक साधना "अच्छा लगने" के अवकाश से बहुत अलग है। ध्यान का केंद्र हम नहीं बल्कि ईश्वर, भले चरवाहे हैं, जो हमारे साथ मशीनों की तरह व्यवहार करने के बजाय, अपने प्यारे बच्चों की तरह हमारी गहरी जरूरतों को पूरा करते हैं।

संत इग्नासियुस के शब्दों में, आध्यात्मिक साधना, सृष्टिकर्ता का अपनी सृष्टि के साथ सीधे बात करने, हमारी आत्माओं को उनके "प्यार और प्रशंसा" से भरने का समय है ताकि हम "भविष्य में ईश्वर की बेहतर सेवा" कर सकें। प्रेम और सेवा: आध्यात्मिक अभ्यास के दो महान विषय हैं। येसु हमसे मिलने के लिए आते हैं, हमारी बेड़ियाँ तोड़ते हैं ताकि हम उनके शिष्यों और मित्रों के रूप में उनके साथ चल सकें।

संत पापा ने कहा, “जब मैं आध्यात्मिक साधना के फल के बारे में सोचता हूँ, तो मैं देखता हूँ कि येसु बेथज़था के तालाब के पास लकवाग्रस्त रोगी से कह रहे थे: "खड़े हो जाओ, अपनी खाट उठाओ और चलो!" (यो. 5:1-16)। यह एक ऐसा आदेश है जिसका पालन करना आवश्यक है और साथ ही, यह उसका सबसे कोमल और प्रेमपूर्ण निमंत्रण भी है।”

वह व्यक्ति आंतरिक रूप से लकवाग्रस्त था। उसे प्रतिद्वंद्वियों और प्रतिस्पर्धियों की दुनिया में असफलता महसूस हुई। उसे इस बात पर नाराजगी और कड़वाहट थी कि उसे अस्वीकार किया गया था, वह आत्मनिर्भरता के तर्क में फंस गया था, उसे यकीन था कि सब कुछ उस पर और उसकी अपनी ताकत पर निर्भर है। और चूंकि अन्य लोग उससे अधिक मजबूत और तेज़ थे, वह निराश हो गया था। परन्तु येसु वहीं अपनी दया के साथ उससे मिलने आये और उसे अपने आपसे बाहर निकलने के लिए कहा। जैसे ही उसने येसु की चंगाई की शक्ति के लिए अपने आपको खोला, वह आंतरिक और बाह्य दोनों रूप से ठीक हो गया। वह अब आगे बढ़ने के लिए उठ सकता है, ईश्वर की स्तुति कर सकता है और उसके राज्य के लिए काम कर सकता है, आत्मनिर्भरता के मिथक से मुक्त हो सकता है और हर दिन उसकी कृपा पर अधिक निर्भर रहना सीख सकता है। इस तरह वह व्यक्ति एक शिष्य बन जाता है, जो न केवल इस दुनिया की चुनौतियों का बेहतर ढंग से सामना करने में सक्षम होता है, बल्कि उपहार और प्रेम के तर्क के अनुसार दुनिया को संचालित करने की चुनौती भी देता है।

संत पापा ने कहा, “पोप के रूप में, मैं "पहले" ईश्वर के प्रति, फिर सृष्टि के प्रति और मनुष्यों के प्रति, विशेष रूप से उन लोगों के प्रति, जो हमें पुकारते हैं, हमारे संबंध को प्रोत्साहित करना चाहता हूँ। यही कारण है कि मैं हमारे युग के दो महान संकटों को ध्यान में रखना चाहता हूँ: हमारे आमघर का पतन और लोगों का बड़े पैमाने पर प्रवासन और विस्थापन। दोनों ही संकट इन पृष्ठों में वर्णित "आत्मीयता के संकट" के लक्षण हैं। इसी कारण से मैं कलीसिया को धर्मसभा की अपनी परंपरा के उपहार को फिर से खोजने के लिए प्रोत्साहित करना चाहता हूँ, क्योंकि जब यह उस पवित्र आत्मा के लिए खुलता है जो ईश्वर के लोगों में बोलता है, तो पूरी कलीसिया उठ खड़ी होती है और ईश्वर की स्तुति करते हुए, उनके राज्य को लाने में मदद करती है।”

संत पापा ने ‘पहले ईश्वर का होना : पोप फ्राँसिस के साथ आध्यात्मिक साधना’ की किताब की विषयवस्तु के लिए प्रशन्नता व्यक्त की, जो संत इग्नासियुस के चिंतन से जुड़ा है, जिन्होंने उन्हें (पोप) वर्षों से आकार दिया है। ऑस्टिन इवेरेघ ने कई दशक पहले पोप द्वारा दी गई आध्यात्मिक साधना के प्रवचन को एक साथ लाया है। संत पापा ने कहा कि इस प्रकार उन्होंने संत इग्नासियुस के आध्यात्मिक अभ्यासों को प्रकाशित करने और आलोकित होने में मदद की है।

संत पापा ने कहा, “यह समय शांत होकर अपने दरवाजे बंद करने का नहीं है। प्रभु हमें अपने आप से बाहर निकलने, उठने और चलने के लिए बुला रहे हैं। वे हमसे कहते हैं कि हम अपने युग की पीड़ाओं और पुकारों से मुंह न मोड़ें, बल्कि उनकी कृपा के रास्ते खोलते हुए उनमें प्रवेश करें। हममें से प्रत्येक अपने बपतिस्मा के आधार पर एक माध्यम है। सवाल इसे खोलने और खुला रखने का है। उनके प्यार का आनंद लेने के ये आठ दिन हमें दूसरों के लिए जीवन, आशा और अनुग्रह का स्रोत बनने के लिए प्रभु की पुकार सुनने में मदद करें, और इस तरह हम अपने जीवन के सच्चे आनंद की खोज कर सकें।"

 

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13 February 2024, 16:31