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संत पापा फ्रांसिस संत घोषणा की धर्मविधि मिस्सा बलिदान में संत पापा फ्रांसिस संत घोषणा की धर्मविधि मिस्सा बलिदान में  (ANSA)

संत पापाः मरिया अंतोनिया अर्जेटीना की प्रथम लोकधर्मी संत

संत पापा फ्रांसिस ने 11 फरवरी 2024 को अर्जेटीना की लोकधर्मी मरिया अंतोनिया को संत घोषित किया जो देश का प्रथम लोक विश्वासी नारी संत हैं।

वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने वाटिकन के संत पेत्रुस महागिरजाघर में संत घोषणा की धर्मविधि का यूखारीस्तीय बलिदान अर्पित करते हुए अर्जेटीना की मरिया अंतोनिया को संतों में सूची में शामिल किया।

उन्होंने अपने प्रवचन में कहा कि आज का पहला पाठ और सुसमाचार कोढ़ग्रस्त व्यक्ति के बारे में कहता है। यह एक ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति को आज भी शारीरिक रुप में असक्षम बना देती है, आज भी कई स्थानों में कुष्ट रोगियों की देख-रेख बहिष्कृत रुप में की जाती है। येसु इन बुराइयों को दूर करते हुए सुसमाचार में कोढ़ग्रस्त व्यक्ति को चंगाई प्रदान करते हैं।

कुष्ठ रोगी की स्थिति

संत पापा ने कहा कि कोढ़ी को शहर के बाहर रहने को बाध्य किया जाता था। अपने लोगों के द्वारा सहायता किये जाने के बदले इस बीमारी से कमजोर वह अपने को परित्यक्त पाता है जो उसे बृहद रुप में सामाजिक बहिष्कृत होने का एहासस दिलाता है। क्योंॽ सर्वप्रथम क्योंकि उसे डर है, डर की यह बीमारी दूसरों को अपने गिरफ्त में कर ले। “ईश्वर ऐसा न करें कि यह बीमारी हमें भी लगे, हम अपने लिए जोखिम न लें, अपने को दूर रखें।” संत पापा ने कहा कि भय के बाद हम लोगों में पूर्वाग्रह की भावना को पाते हैं, लोग सोचते थे कि “यदि उसे यह भयानक बीमारी है, तो यह निश्चित रुप से उसके लिए ईश्वर की ओर से उसके पापों की सजा है, यह उसके लिए उचित है।” अंततः यह उस समय की झूठी धार्मिक सोच थी कि मृत व्यक्ति का स्पर्श करना धार्मिक रुप में लोगों को अशुद्ध करता है और कुष्ठ रोगी मृत चलते-फिरते व्यक्ति की भांति देखे जाते थे। उसके संग कोई  भी संबंध उन्हें उसकी तरह ही अशुद्ध कर देगा। यह एक विकृत धार्मिकता थी जो दीवार खड़ा करती और लोगों को अपने में तरस खाने को बंद कर देती थी।

भय, पूर्वाग्रह और झूठी धार्मिकता- वर्तमान “कुष्ठरोग”  

संत पापा ने कहा कि भय, पूर्वाग्रह और झूठी धार्मिकता ये तीनों अपने में बृहृद अन्य के कारण हैं। ये आत्मा के लिए तीन “कुष्ठरोग” हैं जो कमजोरों के लिए दुःख का कारण बनता और अंततः उन्हें अस्वीकार कर देता है। भाइयो एवं बहनों हम इन्हें अतीत के तीन निशानियों के रुप में केवल न देखें। हम आज भी अपने शहर की चाहरदीवारी में कितने ही नर और नारियों को पीड़ित पाते हैं। कितने ही भयों, पूर्वाग्रहों और अनियमिताओं के कारण हम उन्हें और भी घायल करते है, यह आज भी ख्रीस्तीय विश्वासियों के द्वारा होता है। इन दिनों भी हम अपने बीच कितने ही बहिष्कृत, दीवारों को गिराने वाली घटनाओं को देखते हैं जो कुष्ठ रोग की भांति चंगाई की मांग करती है। इस संबंध में संत पापा ने येसु के दो कार्यों- स्पर्श और चंगाई पर चिंतन प्रस्तुत किया।

येसु की कार्य शैली

संत पापा ने चंगाई के बारे में जिक्र करते हुए कहा कि येसु उस व्यक्ति की पुकार को सुनते जो मदद की मांग करता है। वे करूण से द्रवित होते हैं, वे रुकते, उसकी ओर आते और उसे छूते हैं। वे इस बात से पूरी तरह वाकिफ हैं कि उसे छूना उन्हें समाज-च्युत करेगा। यहां हम दो विरोधभाव को पाते हैं, जो अपने में उल्ट जाता है- पहला कुष्ट रोग से शुद्ध किया गया व्यक्ति अपने को पुरोहितों के सामने प्रस्तुत करते हुए समाज में पुनः शामिल किया जायेगा, वहीं दूसरी ओर येसु शहर में प्रवेश नहीं कर पायेंगे। येसु उस व्यक्ति को छूने से दूर रह सकते थे, वे केवल दूर से ही उसे चंगा कर  सकते थे। लेकिन यह ख्रीस्त की कार्यं शैली नहीं है। हम उनके कार्य में प्रेम को पाते हैं जो उन्हें दुःखित व्यक्ति के निकट लाता, जहाँ वे उसके संग एक संबंध में प्रवेश करते और उसके घावों को छूते हैं। हमारे ईश्वर अपने को दूर स्वर्ग में नहीं रखते हैं, प्रिय भाइयो एवं बहनों, लेकिन येसु में हम उन्हें मनुष्य के रुप में पाते जो हमारी द्ररिद्रता का स्पर्श करते हैं। कुष्ट रोग से भी अधिक बुरा पापों के लिए वे क्रूस पर, शहर की चाहरदीवारी के बाहर, एक निष्कासित पापी की भांति मरने से नहीं हिचकिचाते हैं, जिससे वे हमारी मानवता की सत्यता को गहराई से छू सकें।

हमारे मनोभाव क्या हैंॽ

संत पापा ने कहा कि और हम जो येसु को प्रेम करते और उनके पीछे चलते हैं, क्या हम उनके “स्पर्श” का अनुसरण करते हैंॽ यह हमारे लिए सहज नहीं है, हम अपने हृदय की देख-रेख करें कहीं ऐसा न हो कि हम उनकी मनोभावनाओं “निकट आने” और “दूसरे के लिए एक उपहार बनने” के बदले एक विपरीत राह में चलें। उदाहरण के लिए जब हम दूसरे से दूर होते हुए केवल अपने बारे में केवल सोचते हैं, जब हम अपने आराम तक ही सीमित होकर रह जाते, जब हम दूसरों को सदैव केवल मुसीबतों की तरह देखते हैं... तो ऐसी स्थिति में हमें अपने “हृदय के कोढ़” की चिकित्सा करना जरूरी है, यह एक बीमारी है जो प्रेम और करूणा के प्रति हमें दृष्टिहीन कर देती है, यह हमें अपने स्वार्थ, पूर्वाग्रह, उदासीनता और असहनशीलता के कारण नष्ट कर देती है। अपनी सचेतना में यदि हम इन बातों की चंगाई न करें जैसे कि हम कुष्ठ की पहली निशानी में करते हैं, तो संक्रमण बढ़ेगा और विनाशकारी होगा। लेकिन क्या इसका कोई उपचार हैॽ

हम येसु के पास आयें

येसु के द्वारा आने वाली चंगाई पर चिंतन करते हुए संत पापा ने कहा कि उनका स्पर्श हमारे लिए केवल निकटता मात्र नहीं बल्कि चंगाई हेतु शुरूआत की एक प्रक्रिया है। एक बार जब हम अपने को येसु के द्वारा स्पर्श होने देते तब हममें चंगाई शुरू होती है, यह हमारे हृदयों में होती है। यदि हम प्रार्थना और आराधना के द्वारा अपने को उन्हें स्पर्श करने देते, यदि हम संस्कारों के माध्यम उन्हें अपने जीवन में कार्य करने देते हैं, तो यह संबंध को सही रुप में परिवर्तित करता है। यह हमें पापों से चंगाई दिलाती है, हम अपने में खोये रहने से मुक्त होते हैं, हम उन बातों के परे जाते हैं जहाँ हम अपनी शक्ति और प्रयासों से अपने में कुछ नहीं कर सकते हैं। हमारे घावों, हमारे हृदय की कमजोरियों को हमें येसु के पास लाने की जरुरत है। प्रार्थना हमारे लिए यह पूरा करती है, अमूर्त और सूत्र रूपी प्रार्थनाओं का दुहरावा नहीं बल्कि हृदय की अनुभूति और सजीव प्रार्थना जो हमारी तुष्टियों, कमोजरियों, असफलताओं और भयों को येसु के चरणों तले लाती है। इस भांति हम अपने में पूछ सकते हैं क्या मैं येसु को अपने “कोढ़” का स्पर्श करने देता हूँ जिससे मुझे चंगाई मिलेॽ

येसु में हमारा नया जन्म

येसु के “स्पर्श” में हमारा नया जन्म होता है, हमारे हृदय की कोशिकाओं का निर्माण पुनः शुरू होता है, प्रेम से पोषित हममें सजीव रक्त का संचार शुरू होता है, हमारे अतीत में गलतियाँ रुपी घावों की चंगाई होती और हमारे संबंधों का चर्म नया और स्वास्थ्य होता है। सुन्दरता जिसे हम अपने में वहन करते हैं, हममें जो सुन्दरता है वह पुनः स्थापित होती है। येसु के प्रेम के प्रति हम कृतज्ञ हैं, जिसकी बदौलत हम बिना भय और पूर्वाग्रह के अपने को दूसरों के लिए देते हैं, अपने मंद और कुंठित धार्मिकता का परित्याग करते तथा दूसरों को उदारता में और स्वार्थरहित प्रेम करते हैं।

संत पापा ने कहा कि इस भांति हम धर्मग्रंथ के उस शानदार पृष्ट की भांति होते जो हड्डियों की सूखी घाटी को भाइयो एवं बहनों के रुप में एक सजीव शरीर का एक समुदाय बनती है। फिर भी यह सोचना भ्रामक होगा कि यह चमत्कार भव्य और शानदार तरीकों से होता है। यह हमारे लिए गुप्त रूप में अपने दैनिक जीवन के प्रेममय कार्यों में होता है जिसे हम परिवारों, कार्य स्थलों, पल्लियों और स्कूल, गलियों, हमारे दफ्तरों और रोजगार के स्थानों में करते हैं। हमारे कार्य जिसे विज्ञापन और तालियों की जरुरत नहीं होती क्योंकि उसके लिए प्रेम अपने में काफी होता है। येसु हमें इस तथ्य को कोढ़ग्रस्त चंगाई प्राप्त किये व्यक्ति को यह कहते हुए स्पष्ट करते हैं “किसी से कुछ नहीं कहो”, यहाँ हम निकटता और सतर्कता को पाते हैं। येसु हमें भी उसी भांति प्रेम करते हैं, और यदि हम अपने को उनके द्वारा स्पर्श होने देते हैं तो हम भी उनकी आत्मा की शक्ति से, उनके मुक्तिदायी प्रेम के साक्षी बनेंगे।

पवित्र आत्मा की संचारिका संत

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि आज हम मरियम अंतोनिया दे सन जोसे, “ममा अंतुला” के बारे में चिंतन करते हैं। वह पवित्र आत्मा की एक संचारिका थी। उन्होंने मरूभूमियों, और खतरनाक मार्गों में हजारों मील की पैदल यात्रा करते हुए ईश्वर को लोगों तक पहुंचाया। आज वे हमारे लिए प्रेरितिक उत्साह और जोश का एक उदाहरण हैं। जब येसु समाजियों को निष्कासन के दौर से होकर गुजरना पड़ा, पवित्र आत्मा ने उनमें ईश्वरीय दिव्यता में विश्वास और निष्ठा की ज्वाला प्रज्वलित की। उन्होंने संत योसेफ और संत गेटानो थिएर की मध्यस्थता का आहृवान किया। अतः 18वीं सदी में उनकी पहली प्रतिमा बोयन्स आईरस पहुंची जिसकी आराधना शुरू हुई। हम उनके प्रति अपनी कृतज्ञता के भाव अर्पित करते हैं जिन्होंने ईश्वर से विनय करते हुए घरों, पड़ोसों, वहनों, दुकानों, कारखानों और हृदयों में एक मार्ग तैयार किया जिससे कार्य के द्वारा मानवीय सम्मान, न्याय और गरीबों को भोजन मिल सके। आज हम संत मरिया अंतोनिया, दे पास संन जोसे से निवेदन करते हैं कि वे हमारी सहायता करें। उनके माध्यम ईश्वर हममें आशीष दें। 

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12 February 2024, 11:42