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संत पापा  फ्राँसिस ने प्रकृति की सुरक्षा पर नया दस्तावेज़ जारी किया संत पापा फ्राँसिस ने प्रकृति की सुरक्षा पर नया दस्तावेज़ जारी किया  (REUTERS)

जलवायु संकट पर प्रतिक्रिया हेतु संत पापा की पुकार "लौदाते देउम"

संत पापा फ्राँसिस का प्रेरितिक प्रबोधन "लौदाते देउम" (ईश्वर की महिमा) प्रकाशित हो चुका है जो 2015 के विश्वकोश को निर्दिष्ट और पूरा करता है। वे कहते हैं, हम पर्याप्त प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं, हम टूटने की स्थिति के करीब हैं। उन्होंने जलवायु परिवर्तन से इनकार करने वालों की आलोचना करते हुए कहा कि ग्लोबल वार्मिंग की मानव उत्पत्ति अब निर्विवाद है। हमारे सामान्य घर की देखभाल की प्रतिबद्धता ख्रीस्तीय विश्वास से उत्पन्न होती है।

वाटिकन न्यूज

वाटिकन सिटी, गुरुवार 5 अक्टूबर 2023 (वाटिकन न्यूज, रेई) : ''परमेश्वर की महिमा'' इस प्रेरितिक प्रबोधन का शीर्षक है। क्योंकि जब मनुष्य ईश्वर का स्थान लेने का दावा करते हैं, तो वे स्वयं अपने सबसे बड़े शत्रु बन जाते हैं।” इस प्रकार संत पापा फ्राँसिस ने 4 अक्टूबर, असीसी के संत फ्रांसिस के पर्व दिवस पर प्रकाशित अपने नए प्रेरितिक प्रबोधन को समाप्त किया।

यह उनके 2015 के विश्वपत्र 'लौदातो सी' की निरंतरता में एक पाठ है, जिसका दायरा व्यापक है। छह अध्यायों और 73 परिच्छेदों में संत पापा ने अभिन्न पारिस्थितिकी पर उस पिछले पाठ को स्पष्ट करने और पूरा करने का प्रयास किया है, साथ ही जलवायु आपातकाल के सामने एक चेतावनी और सह-जिम्मेदारी का आह्वान भी करते हैं। विशेष रूप से, प्रबोधन कोप 28 की प्रतीक्षा कर रहा है, जो नवंबर के अंत और दिसंबर की शुरुआत के बीच दुबई में आयोजित किया जाएगा।

लौदाते देउम

संत पापा लिखते हैं: "समय बीतने के साथ, मुझे एहसास हुआ कि हम पर्याप्त प्रतिक्रिया नहीं करते हैं, जबकि विश्व जहाँ हम निवास करते हैं, अपने में गिर रही है और शायद टूटने की स्थिति में पहुंच रही है। इस संभावना के अलावा, यह निर्विवाद है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कई व्यक्तियों के जीवन और परिवारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा” (2)

यह "समाज और वैश्विक समुदाय के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों में से एक है" और "जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सबसे कमजोर लोगों को भुगतना पड़ता है, चाहे वह घर पर हो या दुनिया भर में।" (3)

जलवायु परिवर्तन के संकेत तेजी से स्पष्ट हो रहे हैं

पहला अध्याय वैश्विक जलवायु संकट को समर्पित है।

संत पापा कहते हैं, "इस मुद्दे को नकारने, छुपाने या सापेक्ष करने के सभी प्रयासों के बावजूद, जलवायु परिवर्तन के संकेत यहाँ हैं और तेजी से स्पष्ट हो रहे हैं। हाल के वर्षों में हमने पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में चरम मौसम की घटनाएं, लगातार असामान्य गर्मी, सूखा औरअन्य संकट देखा है," एक "मूक बीमारी जो हर किसी को प्रभावित करती है।"

इसके अलावा, संत पापा फ्राँसिस कहते हैं, "यह सत्यापित है कि मानवता द्वारा उकसाए गए विशिष्ट जलवायु परिवर्तन चरम घटनाओं की संभावना को बढ़ा रहे हैं जो तेजी से लगातार और तीव्र हो रही हैं।"

अब,यदि वैश्विक तापमान दो डिग्री से अधिक बढ़ जाता है, तो "ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह से पिघल जाएगा, जिसका बेहद गंभीर परिणाम सभी को भोगना होगा।" (5)

जलवायु परिवर्तन को नजरअंदाज करने वालों के बारे में संत पापा कहते हैं: "वर्तमान में हम जो अनुभव कर रहे हैं वह वार्मिंग में असामान्य तेजी है, इतनी तेज गति से कि इसे सत्यापित करने में केवल एक पीढ़ी लगेगी - सदियां या सहस्राब्दी नहीं।"

"संभवतः कुछ वर्षों में इन तथ्यों के कारण कई आबादी को अपना घर बदलना पड़ेगा।" (6)

अत्यधिक सर्दी भी, "उसी कारण की वैकल्पिक अभिव्यक्तियाँ" हैं। (7)

गरीबों का दोष नहीं

संत पापा फ्राँसिस लिखते हैं, "वास्तविकता को सरल बनाने के प्रयास में, ऐसे लोग भी हैं जो गरीबों पर जिम्मेदारी डालते हैं, क्योंकि उनके कई बच्चे हैं और यहां तक कि कम विकसित देशों में महिलाओं को विकृत करके समस्या को हल करने का प्रयास करते हैं।"

“हमेशा की तरह, ऐसा लगता है कि सब कुछ गरीबों की गलती है। फिर भी वास्तविकता यह है कि ग्रह का अधिक समृद्ध प्रतिशत विश्व की कुल आबादी के सबसे गरीब 50% से अधिक को प्रदूषित करता है और अमीर देशों का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन गरीब देशों की तुलना में बहुत अधिक है।”

"हम यह कैसे भूल सकते हैं कि अफ्रीका, जहां दुनिया के आधे से अधिक सबसे गरीब लोग रहते हैं, ऐतिहासिक उत्सर्जन के न्यूनतम हिस्से के लिए जिम्मेदार है?" (9)

संत पापा ने उन लोगों को भी चुनौती दी, जो कहते हैं कि जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करके जलवायु परिवर्तन को कम करने के प्रयासों से "नौकरियों की संख्या में कमी आएगी।"

वास्तव में, जो हो रहा है वह यह है कि "जलवायु परिवर्तन के विभिन्न प्रभावों के कारण लाखों लोग अपनी नौकरियां खो रहे हैं: समुद्र के बढ़ते स्तर, सूखा और ग्रह को प्रभावित करने वाली अन्य घटनाओं ने कई लोगों को भटका दिया है।"

साथ ही, "उचित रूप से प्रबंधित ऊर्जा के नवीकरणीय रूपों में संक्रमण" विभिन्न क्षेत्रों में अनगिनत नौकरियां पैदा करने में सक्षम है। राजनेताओं और व्यापारिक नेताओं को अब भी इसके बारे में चिंता करनी चाहिए।" (10)

असंदिग्ध मानव उत्पत्ति

संत पापा कहते हैं, "जलवायु परिवर्तन का मानव - 'मानवजनित' - उत्पत्ति पर संदेह करना अब संभव नहीं है।" "वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता... उन्नीसवीं सदी तक स्थिर थी... लेकिन पिछले पचास वर्षों में, यह वृद्धि काफी तेज हो गई है।" (11)

साथ ही, वैश्विक तापमान "अभूतपूर्व गति से बढ़ा है, जो पिछले दो हज़ार वर्षों में किसी भी समय से अधिक है। इस अवधि में, प्रवृत्ति प्रति दशक 0.15 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि थी, जो पिछले 150 वर्षों की तुलना में दोगुनी है ... इस दर पर, यह संभव है कि केवल दस वर्षों में हम 1.5 डिग्री सेल्सियस की अनुशंसित अधिकतम वैश्विक सीमा तक पहुंच जाएंगे। (12)

इसके परिणामस्वरूप समुद्रों का अम्लीकरण और ग्लेशियर पिघल रहे हैं।

इन घटनाओं और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि के बीच संबंध को "छिपाना संभव नहीं है।" संत पापा ने कहा, "जलवायु संकट वास्तव में ऐसा मामला नहीं है जो महान आर्थिक शक्तियों के हित में है, जिनकी चिंता न्यूनतम लागत और कम से कम समय में अधिकतम संभव लाभ के साथ है।" (13)

अधिक भयानक क्षति से बचने के लिए बमुश्किल समय है

संत पापा फ्राँसिस आगे कहते हैं, "मैं इन स्पष्टीकरणों को देने के लिए बाध्य महसूस करता हूँ, जो स्पष्ट लग सकते हैं, कुछ खारिज करने वाली और शायद ही उचित राय के कारण, जो मुझे काथलिक कीसिया के भीतर भी मिलती है।"

फिर भी, "हम अब इस बात पर संदेह नहीं कर सकते हैं कि इन खतरनाक परिवर्तनों की असामान्य तीव्रता का कारण एक ऐसा तथ्य है जिसे छुपाया नहीं जा सकता है: विशाल नवीनताएँ जो पिछली दो शताब्दियों में प्रकृति पर अनियंत्रित मानवीय हस्तक्षेप से संबंधित हैं।" (14)

दुर्भाग्य से, इस जलवायु संकट के कुछ प्रभाव पहले से ही अपरिवर्तनीय हैं, कम से कम कई सौ वर्षों तक और "ध्रुवों के पिघलने को सैकड़ों वर्षों तक उलटा नहीं किया जा सकेगा।" (16)

तो फिर, इससे भी अधिक भयानक क्षति से बचने के लिए हमारे पास मुश्किल से ही समय है। संत पापा लिखते हैं कि "कुछ सर्वनाशकारी निदान शायद ही उचित या अपर्याप्त रूप से आधारित प्रतीत हो सकते हैं", लेकिन "हम निश्चितता के साथ नहीं बता सकते" कि क्या होने वाला है। (17)

इसलिए, "एक व्यापक परिप्रेक्ष्य की तत्काल आवश्यकता है... हमसे जो पूछा जा रहा है वह उस विरासत के लिए एक निश्चित जिम्मेदारी के अलावा और कुछ नहीं है जिसे हम इस दुनिया से चले जाने के बाद पीछे छोड़ देंगे।" (18)

कोविड-19 महामारी के अनुभव को याद करते हुए, संत पापा फ्रांसिस दोहराते हैं कि "सब कुछ जुड़ा हुआ है और कोई भी अपने को अकेले नहीं बचा सकता है।" (19)

तकनीकी प्रतिमान: बिना किसी सीमा के इंसान का विचार

दूसरे अध्याय में, संत पापा तकनीकी प्रतिमान की बात करते हैं जिसमें यह सोचना शामिल है कि "वास्तविकता, अच्छाई और सच्चाई स्वचालित रूप से तकनीकी और आर्थिक शक्ति से बहती है" (20) और "राक्षसी रूप से खुद को खिलाती है" (21), बिना किसी सीमा के इंसान के विचार से इसकी प्रेरणा लेता है।

संत पापा आगे कहते हैं, "मानवता के पास कभी भी अपने ऊपर इतनी शक्ति नहीं थी," फिर भी कोई भी चीज़ यह सुनिश्चित नहीं करती है कि इसका उपयोग बुद्धिमानी से किया जाएगा, खासकर जब हम विचार करते हैं कि वर्तमान में इसका उपयोग कैसे किया जा रहा है ... मानवता के एक छोटे से हिस्से के लिए यह बेहद जोखिम भरा है।" (23)

दुर्भाग्य से - जैसा कि परमाणु बम द्वारा भी प्रदर्शित किया गया है - "हमारा विशाल तकनीकी विकास मानवीय जिम्मेदारी, मूल्यों और विवेक में विकास के साथ नहीं हुआ है।" (24)

संत पापा ने पुष्टि की कि "जिस दुनिया में हम रहते है वह शोषण, बेहिसाब उपयोग और असीमित महत्वाकांक्षा की वस्तु नहीं है।" (25) संत पापा हमें याद दिलाते हैं कि हम भी प्रकृति का हिस्सा हैं और यह "इस विचार को खारिज करता है कि मनुष्य बाहरी है, एक विदेशी तत्व है जो केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में सक्षम है। मनुष्य को प्रकृति के एक भाग के रूप में पहचाना जाना चाहिए” (26); "मानव समूहों ने अक्सर एक वातावरण 'बनाया' है।" (27)

सत्ता का नैतिक पतन: विपणन और फर्जी समाचार

हमने "प्रभावशाली और अद्भुत तकनीकी प्रगति की है और हमें यह एहसास भी नहीं हुआ है कि एक ही समय में हम अत्यधिक खतरनाक प्राणियों में बदल गए हैं, जो कई प्राणियों के जीवन और हमारे स्वयं के अस्तित्व को खतरे में डालने में सक्षम हैं।" (28)

"वास्तविक शक्ति का नैतिक पतन विपणन और झूठी जानकारी के कारण छिपा हुआ है, जनता की राय को आकार देने के लिए अधिक संसाधनों वाले लोगों के हाथों में उपयोगी उपकरण हैं।"

इन उपकरणों के माध्यम से, उन क्षेत्रों में लोगों को धोखा दिया जाता है जहां प्रदूषणकारी परियोजनाएं लागू की जानी हैं, उन्हें विश्वास दिलाया जाता है कि आर्थिक और रोजगार के अवसर पैदा होंगे, लेकिन "उन्हें स्पष्ट रूप से नहीं बताया जाता है कि परियोजना के परिणामस्वरूप ... एक उजाड़ और कम रहने योग्य परिदृश्य होगा" (29) और जीवन की गुणवत्ता में स्पष्ट गिरावट आयेगी।

“न्यूनतम लागत पर अधिकतम लाभ की मानसिकता, तर्कसंगतता, प्रगति और भ्रामक वादों के रूप में छिपी हुई, हमारे आम घर के लिए किसी भी ईमानदार चिंता और हमारे समाज द्वारा त्याग दिए गए गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता के बारे में किसी भी वास्तविक चिंता को असंभव बना देती है... इससे आश्चर्यचकित और उत्साहित हूँ कितने भी झूठे भविष्यवक्ताओं के वादों के कारण, गरीब स्वयं कभी-कभी उस दुनिया के भ्रम का शिकार हो जाते हैं जो उनके लिए नहीं बनाई जा रही है।” (31)

तो फिर, "उन लोगों का शासन मौजूद है जो अधिक संभावनाओं और लाभों के साथ पैदा हुए हैं।" (32) संत पापा फ्राँसिस इन व्यक्तियों को खुद से पूछने के लिए आमंत्रित करते हैं, "उन बच्चों को ध्यान में रखते हुए जो उनके कार्यों से होने वाले नुकसान की कीमत चुकाएंगे" (33), उनके जीवन का अर्थ क्या है।

कमजोर अंतरराष्ट्रीय राजनीति

प्रबोधन के अगले अध्याय में, संत पापा अंतरराष्ट्रीय राजनीति की कमजोरी को संबोधित करते हुए "राज्यों के बीच बहुपक्षीय समझौतों" को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर देते हैं। (34)

वे बताते हैं कि "जब हम कानून द्वारा विनियमित किसी प्रकार के विश्व प्राधिकरण की संभावना के बारे में बात करते हैं, तो हमें व्यक्तिगत प्राधिकरण के बारे में सोचने की ज़रूरत नहीं है" बल्कि "अधिक प्रभावी विश्व संगठनों के बारे में सोचना चाहिए, जो, जो वैश्विक आम भलाई, भूख और गरीबी के उन्मूलन और मौलिक मानवाधिकारों की सुनिश्चित रक्षा प्रदान करने की शक्ति से सुसज्जित हैं।"

वे कहते हैं, इन्हें "वास्तविक अधिकार से संपन्न होना चाहिए, जिससे कि कुछ आवश्यक लक्ष्यों की प्राप्ति सुनिश्चित हो सके।" (35)

संत पापा फ्राँसिस ने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि "वैश्विक संकटों को यूंही गवां दिये जा रहे हैं जबकि वे लाभकारी परिवर्तन लाने के अवसर हो सकते हैं। 2007-2008 के वित्तीय संकट और फिर कोविड-19 संकट में यही हुआ, जिसके कारण "अधिक व्यक्तिवाद, कम एकीकरण और वास्तव में शक्तिशाली लोगों के लिए स्वतंत्रता में वृद्धि हुई, जो हमेशा बच निकलने का रास्ता ढूंढते हैं।" (36) .

"पुरानी बहुपक्षवाद को बचाने से अधिक, ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान चुनौती नई दुनिया की स्थिति को ध्यान में रखते हुए इसे पुन: आकार देने और पुन: बनाने की है," (37)  यह मानते हुए कि कई नागरिक समाज एकत्रीकरण और संगठन अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की कमजोरियों की भरपाई करने में मदद करते हैं। संत पापा बारूदी सुरंगों पर ओटावा प्रक्रिया का हवाला देते हैं, जो उनके अनुसार दिखाता है कि कैसे नागरिक समाज कुशल गतिशीलता बनाता है जिसे संयुक्त राष्ट्र हासिल नहीं कर पाता।

बेकार संस्थाएँ जो सबसे मजबूत को संरक्षित करती हैं

संत पापा फ्राँसिस जो प्रस्ताव दे रहे हैं वह "निम्न स्तर का बहुपक्षवाद" है और केवल सत्ता के अभिजात वर्ग द्वारा निर्धारित नहीं है... आशा की जानी चाहिए कि जलवायु संकट के संबंध में ऐसा होगा। इस कारण से, मैं दोहराता हूं कि "जब तक नागरिक राजनीतिक शक्ति - राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और नगरपालिका - को नियंत्रित नहीं करते हैं, पर्यावरण को होने वाले नुकसान को नियंत्रित करना संभव नहीं होगा।" (38)

मानव व्यक्ति की प्रधानता की पुष्टि करने के बाद, सभी परिस्थितियों में मानवीय गरिमा की रक्षा की बात करते हुए संत पापा फ्राँसिस कहते हैं कि "यह राजनीति को प्रतिस्थापित करने का मामला नहीं है, बल्कि यह पहचानने का है कि उभरती ताकतें तेजी से प्रासंगिक हो रही हैं।"

वे कहते हैं, "सच्चाई यह है कि समस्याओं का उत्तर किसी भी देश से आ सकता है, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, बहुपक्षवाद को एक अपरिहार्य प्रक्रिया के रूप में प्रस्तुत करता है।" (40)

इसलिए, “प्रभावी सहयोग के लिए एक अलग ढांचे की आवश्यकता है। केवल शक्ति संतुलन के बारे में सोचना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि नई समस्याओं पर प्रतिक्रिया देने और वैश्विक तंत्र के साथ प्रतिक्रिया करने की आवश्यकता भी है”; यह "वैश्विक और प्रभावी नियम स्थापित करने" का मामला है। (42)

"यह सब निर्णय लेने के लिए एक नई प्रक्रिया के विकास का अनुमान लगाता है," जो आवश्यक है वह है "बातचीत, परामर्श, मध्यस्थता, संघर्ष समाधान और पर्यवेक्षण के लिए स्थान और अंत में, वैश्विक संदर्भ में एक प्रकार का बढ़ा हुआ "लोकतांत्रिकीकरण", ताकि विभिन्न स्थितियों को व्यक्त और शामिल किया जा सके। सभी की परवाह किए बिना अधिक शक्तिशाली लोगों के अधिकारों को संरक्षित करने के लिए संस्थानों का समर्थन करना अब हमारे लिए कोई फायदे का नहीं है।” (43)

जलवायु सम्मेलन

इस अध्याय में, संत पापा फ्राँसिस अब तक आयोजित विभिन्न जलवायु सम्मेलनों का वर्णन करते हैं।

वे पेरिस में हुए समझौते को याद करते हैं, जो नवंबर 2016 में लागू हआ। हालांकि "एक बाध्यकारी समझौता, इसके सभी स्वभाव सख्त अर्थों में दायित्व नहीं हैं और उनमें से कुछ चिंतन के लिए पर्याप्त जगह छोड़ते हैं।" (47) इसके अलावा, दायित्वों को पूरा करने में विफलता के लिए कोई प्रतिबंध नहीं हैं और समझौते को लागू करने के लिए प्रभावी उपकरणों की कमी है, साथ ही कोई वास्तविक प्रतिबंध नहीं है और अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कोई प्रभावी उपकरण नहीं हैं।

इसके अतिरिक्त, "निगरानी के लिए ठोस प्रक्रियाओं को मजबूत करने और विभिन्न देशों के उद्देश्यों की तुलना के लिए सामान्य मानदंडों को सुविधाजनक बनाने के लिए काम अभी भी चल रहा है।"(48)

संत पापा ने मैड्रिड कोप से अपनी निराशा का उल्लेख किया और याद दिलाया कि ग्लासगो कोप ने कई "सिफारिशों" के साथ पेरिस लक्ष्यों को पुनर्जीवित किया, लेकिन "ऊर्जा के वैकल्पिक और कम प्रदूषणकारी रूपों में तेजी और प्रभावी संक्रमण सुनिश्चित करने वाले प्रस्तावों में कोई प्रगति नहीं हुई।"(49)

2022 में मिस्र में आयोजित कोप 27, "बातचीत की कठिनाई का एक और उदाहरण" था, और भले ही इसने "जलवायु आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित देशों में 'नुकसान और क्षति' के वित्तपोषण के लिए एक प्रणाली को मजबूत करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाया", यह कई बिंदुओं पर "अस्पष्ट" रहा।(51)

संत पापा ने निष्कर्ष निकाला कि अंतर्राष्ट्रीय वार्ताएँ उन देशों द्वारा अपनाए गए रुख के कारण महत्वपूर्ण प्रगति नहीं कर सकती हैं जो अपने राष्ट्रीय हितों को वैश्विक आम भलाई से ऊपर रखते हैं। हम जो छिपाने की कोशिश कर रहे हैं उसका परिणाम जिन्हें भुगतना पड़ेगा वे विवेक और जिम्मेदारी की इस विफलता को नहीं भूलेंगे।” (52)

दुबई कोप से क्या उम्मीद करें?

आने वाले कोप की प्रतीक्षा करते हुए संत पापा फ्राँसिस लिखते हैं कि "यह कहना कि आशा करने के लिए कुछ भी नहीं है, आत्मघाती होगा, क्योंकि इसका मतलब पूरी मानवता, विशेष रूप से सबसे गरीब लोगों को जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों के संपर्क में लाना होगा।"(53)  हमें उम्मीद करते रहना चाहिए कि कोप 28 निरंतर निगरानी के अधीन प्रभावी प्रतिबद्धताओं के साथ, ऊर्जा संक्रमण के निर्णायक तेजी लाने की अनुमति देगा। यह सम्मेलन दिशा परिवर्तन का प्रतिनिधित्व कर सकता है।” (54)

संत पापा का मानना है कि "पवन और सौर ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर आवश्यक परिवर्तन और जीवाश्म ईंधन के परित्याग की दिशा पर गति बहुत ज्यादा आगे नहीं बढ़ रही है। परिणामस्वरूप, जो कुछ भी किया जा रहा है उसे केवल ध्यान भटकाने की चाल के रूप में देखे जाने का जोखिम है।” (55)

हम केवल अपनी समस्याओं के तकनीकी समाधान की खोज नहीं कर सकते हैं: "हम दरारों पर चिपकाने और कागज लगाने की मानसिकता में फंसे रहने का जोखिम उठाते हैं, जबकि सतह के नीचे लगातार गिरावट होती रहती है जिसमें हम योगदान देना जारी रखते हैं।" (57)

पर्यावरण संबंधी सवालों का उपहास नहीं उड़ाया जाए

संत पापा फ्राँसिस ने हमसे "उस गैर-जिम्मेदाराना उपहास को समाप्त करने के लिए कहा है जो इस मुद्दे को पूरी तरह से पारिस्थितिक, "हरित", रोमांटिक, अक्सर आर्थिक हितों द्वारा उपहास के अधीन पेश करेगा।"

“अंततः आइए, हम स्वीकार करें कि यह किसी भी स्तर पर एक मानवीय और सामाजिक समस्या है। इस कारण से, इसमें सभी की भागीदारी आवश्यक है।”

समूहों द्वारा विरोध प्रदर्शन को "नकारात्मक व कट्टरपंथी के रूप में चित्रित किया जाता है।"

 संत पापा फ्राँसिस ने इस बात की पुष्टि की कि "वास्तव में वे समग्र रूप से समाज द्वारा खाली छोड़ी गई जगह को भर रहे हैं, जिस पर एक स्वस्थ "दबाव" होना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक परिवार को यह महसूस करना चाहिए कि उनके बच्चों का भविष्य दांव पर है।"(58)

“सम्मेलन में भाग लेने वाले ऐसे रणनीतिकार हों जो कुछ देशों या व्यवसायों के अल्पकालिक हितों से अधिक, सामान्य भलाई और उनके बच्चों के भविष्य पर विचार करने में सक्षम हों। इस तरह वे राजनीति की कुलीनता का प्रदर्शन करें, उसके शर्म का नहीं। शक्तिशाली लोगों के लिए, मैं केवल यह प्रश्न दोहरा सकता हूँ: "इस स्तर पर, किसी को सत्ता पर बने रहने के लिए क्या प्रेरित करेगा, केवल कार्रवाई करने में असमर्थता के लिए उन्हें याद किया जाएगा जबकि कार्यवाई करना ऐसा करना अत्यावश्यक और आवश्यक था?" (60)

एक प्रतिबद्धता जो ख्रीस्तीय विश्वास से आती है

अंत में, संत पापा अपने पाठकों को याद दिलाते हैं कि इस प्रतिबद्धता की प्रेरणा ख्रीस्तीय विश्वास से आती है, जो "अन्य धर्मों के मेरे भाइयों और बहनों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करती है।" (61)

"ब्रह्मांड की यहूदी-ईसाई दृष्टि ईश्वर के सभी प्राणियों के अद्भुत संगीत कार्यक्रम के बीच मनुष्य के अद्वितीय और केंद्रीय मूल्य की रक्षा करती है," लेकिन "ब्रह्मांड के हिस्से के रूप में, हम सभी अदृश्य बंधनों से जुड़े हुए हैं और एक साथ मिलकर एक प्रकार का निर्माण करते हैं" सार्वभौमिक परिवार का, एक उत्कृष्ट मिलन जो हमें पवित्र, स्नेहपूर्ण और विनम्र सम्मान से भर देता है।” (67)

“यह हमारी अपनी इच्छा का उत्पाद नहीं है; इसका मूल कहीं और है, हमारे अस्तित्व की गहराई में, जहाँ ईश्वर ने हमें हमारे चारों ओर की दुनिया से बहुत करीब से जोड़ा है।” (68)

संत पापा फ्राँसिस लिखते हैं, "याद रखने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि सांस्कृतिक परिवर्तनों के बिना, समाज के भीतर जीवन शैली और दृढ़ विश्वासों की परिपक्वता के बिना कोई स्थायी परिवर्तन नहीं होते हैं और व्यक्तिगत परिवर्तनों के बिना कोई सांस्कृतिक परिवर्तन नहीं होते हैं।"(70)

“घरों द्वारा प्रदूषण और अपशिष्ट को कम करने और विवेक के साथ उपभोग करने का प्रयास, एक नई संस्कृति का निर्माण कर रहे हैं। एकमात्र तथ्य यह है कि व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामुदायिक आदतें बदल रही हैं ... समाज के भीतर से उठने वाली परिवर्तन की बड़ी प्रक्रियाओं को लाने में मदद मिल रही है।” (71)

संत पापा ने अपने प्रबोधन को एक अनुस्मारक के साथ समाप्त किया कि "संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन चीन में रहने वाले व्यक्तियों की तुलना में लगभग दो गुना अधिक है और सबसे गरीब देशों के औसत से लगभग सात गुना अधिक है।"

वे आगे पुष्टि करते हैं कि “पश्चिमी मॉडल से जुड़ी गैर-जिम्मेदाराना जीवनशैली में व्यापक बदलाव का महत्वपूर्ण दीर्घकालिक प्रभाव होगा। परिणामस्वरूप, अपरिहार्य राजनीतिक निर्णयों के साथ-साथ, हम एक-दूसरे की वास्तविक देखभाल के मार्ग पर प्रगति कर रहे होंगे।” (72)

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05 October 2023, 16:55