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सिनॉड की 16 वीं महासभा की 18वीं बैठक में हस्ताक्षेप करते संत पापा फ्राँसिस सिनॉड की 16 वीं महासभा की 18वीं बैठक में हस्ताक्षेप करते संत पापा फ्राँसिस  (Vatican Media)

पोप : मैं कलीसिया को ईश्वर की निष्ठावान प्रजा के रूप में सोचना पसंद करता हूँ

बुधवार दोपहर की महासभा की शुरुआत में दिए गए एक हस्तक्षेप में, पोप फ्राँसिस ने कलीसिया को ईश्वर की वफादार प्रजा, विश्वास में अचूक लोगों के रूप में वर्णित किया है।

धर्माध्यक्षीय धर्मसभा की 16वीं महासभा की

18वीं बैठक में

पोप फ्राँसिस का हस्तक्षेप

मैं कलीसिया को ईश्वर की वफादर प्रजा, संत और पापी के रूप में सोचना पसंद करता हूँ, एक ऐसी प्रजा जो धन्यताओं और संत मती 25 की शक्ति से जीने के लिए बुलाई और आमंत्रित की जाती है।

येसु ने अपनी कलीसिया के लिए अपने समय की कोई भी राजनीतिक योजना नहीं अपनाई: न फरीसी, न सदूकी, न रहस्यवादियों, न ही उग्रपंथियों की। कोई "बंद निगम" नहीं; वे बस इस्राएल की परंपरा को अपनाये: "तुम मेरी प्रजा होओगे और मैं तुम्हारा ईश्वर होऊँगा।"

मैं कलीसिया को ऐसे सरल और विनम्र लोगों के रूप में सोचना पसंद करता हूँ जो प्रभु (ईश्वर की वफादार प्रजा) की उपस्थिति में जीते हैं। यह हमारे विश्वासियों का धार्मिक अर्थ है। और मैं विश्वासियों से कहता हूँ कि वे उन कई वैचारिक दृष्टिकोणों और योजनाओं में न पड़ें जिनके साथ ईश प्रजा की वास्तविकता "कम" हो जाती है। वह सिर्फ विश्वासी या "ईश्वर की पवित्र प्रजा", संतता के रास्ते पर और पापी कही जा सकती है। और यही कलीसिया है।

इस विश्वासी प्रजा की एक विशेषता है इसकी अचूकता; जी हाँ, यह विश्वास में अचूक है ("इन क्रेदेंदो फल्ली नेक्विट", एलजी 9)। और आप इसकी व्याख्या इस प्रकार कर सकते हैं : “जब आप जानना चाहते हैं कि पवित्र माता कलीसिया क्या विश्वास करती है, तब आप धर्मशिक्षा देखें, क्योंकि सिखाने की जिम्मेदारी इसकी है; लेकिन जब आप जानना चाहते हैं कि कलिसया कैसे विश्वास करती है, तब आप विश्वासियों के पास जाएँ।”

मेरे मन में एक तस्वीर उभरती है : विश्वासी लोग एफेसुस के महागिरजाघर के प्रवेश द्वार पर एकत्रित हैं। कहानी (या किंवदंती) यह है कि जब जुलूस में धर्माध्यक्षों ने महागिरजाघर में प्रवेश किया तो लोग सड़क के दोनों किनारों पर खड़े थे, और भजन में गा रहे थे: "ईश्वर की माँ", वे अधिकारियों से उस धर्मसिद्धांत को घोषित करने की मांग कर रहे थे जो सच है जो ईश प्रजा के रूप में उनके पास पहले से ही मौजूद है। (कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने अपने हाथों में डंडा लिया और उन्हें धर्माध्यक्षों को दिखाया)। मुझे नहीं पता कि यह इतिहास है या किंवदंती, लेकिन तस्वीर मान्य है।

विश्वासी, ईश्वर की पवित्र प्रजा के पास एक आत्मा होती है, और चूँकि हम लोगों की आत्मा के बारे में बात कर सकते हैं, हम एक व्याख्यात्मक, वास्तविकता को देखने के तरीके के बारे में, एक अंतःकरण के बारे में बात कर सकते हैं। हमारे विश्वासी अपनी गरिमा के प्रति सचेत हैं, वे अपने बच्चों को बपतिस्मा देते हैं, वे अपने मृतकों को दफनाते हैं।

हम याजक वर्ग उसी प्रजा के बीच से आते हैं और हमने उसी प्रजा से विश्वास को पाया है, खासकर, अपनी माँ एवं दादी से। संत पौलुस तिमोथी से कहते हैं, “आपकी माता और दादी”, महिलाओं की बोली से हस्तांतरित विश्वास, जैसे मकाबियों की माता, “बोली में” उसके बच्चों तक पहुँचती है। और मैं यहाँ रेखांकित करना चाहता हूँ कि ईश्वर की पवित्र एवं विश्वासी प्रजा के बीच, विश्वास को बोली में हस्तांतरित की गई और खासकर, नारी बोली में। यह केवल इसलिए नहीं कि कलीसिया माता है तथा महिलाएँ ही उसे सबसे अच्छी तरह प्रतिबिंबित करती हैं; (कलीसिया महिला है) बल्कि इसलिए भी क्योंकि ये महिलाएँ ही हैं जो इंतजार करना जानती हैं, जो कलीसिया के संसाधनों को खोजतीं, विश्वासियों को खोजना जानती हैं, जो सीमा से परे जोखिम उठाती हैं, शायद डर के साथ लेकिन साहस से, और प्रकाश में एवं एक दिन की शुरुआत के धुंधलेपन में, वे इस अंतर्ज्ञान के साथ एक कब्र के पास पहुंचती हैं (जहां उम्मीद नहीं है) कि वहाँ जीवन हो सकता है।

ईश्वर की पवित्र और विश्वासी प्रजा महिला कलीसिया का प्रतिबिंब है। कलीसिया नारी के रूप में है, वह एक पत्नी है, एक माँ है।

जब सेवक (याजक) अपनी सेवा से बहुत दूर भटक जाते हैं और ईश्वर की प्रजा के साथ दुर्व्यवहार करते हैं, तो वे मर्दाना और तानाशाही रवैये से कलीसिया का चेहरा खराब कर देते हैं (यह सीनियर लिलियाना फ्रेंको के हस्तक्षेप को याद करने के लिए पर्याप्त है)। कुछ पल्ली कार्यालयों में सुपरमार्केट की तरह धार्मिक सेवाओं की "मूल्य सूची" देखना दर्दनाक है। कलीसिया या तो ईश प्रजा के रूप में आगे बढ़ रही है, संत है और पापी है, या यह विभिन्न सेवाओं की कंपनी बनकर रह जाती है। और जब प्रेरितिक कर्मचारी इस दूसरे रास्ते को अपनाते हैं, तो कलीसिया मुक्ति का सुपरमार्केट बन जाता है और पुरोहित एक बहुराष्ट्रीय निगम के कर्मचारी बन जाते हैं। यह एक बड़ी हार है जिसकी ओर याजकवाद हमें ले जाता है। और यह बहुत दुखद और निंदनीय है (युवा पुरोहितों द्वारा सूटान और टोपी या अल्ब्स और लेस से ढके वस्त्रों की कोशिश करने के ठोकर को देखने के लिए रोम में कलीसियाई दर्जी की दुकानों में जाना काफी है)।

याजकवाद एक कोड़ा है, यह एक अभिशाप है, यह सांसारिकता का एक रूप है जो ईश्वर की दुल्हन के चेहरे को अपवित्र और नुकसान पहुँचाता है; यह ईश्वर की पवित्र और विश्वासी प्रजा को गुलाम बनाता है।

और ईश प्रजा, ईश्वर की पवित्र प्रजा, संस्थागत याजकवाद के तिरस्कार, दुर्व्यवहार और हाशिए पर जाने को सहन करते हुए, धैर्य और विनम्रता के साथ आगे बढ़ती है। और हम कितने स्वाभाविक रूप से कलीसिया के राजकुमारों, या धर्माध्यक्षीय पदोन्नति को कैरियर में उन्नति के रूप में बात करते हैं! दुनिया के आतंक, सांसारिकता जो ईश्वर की पवित्र और विश्वासी प्रजा के साथ दुर्व्यवहार करती है।

संत पापा ने अपनी टिप्पणियाँ स्पानी भाषा में की हैं।

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26 October 2023, 16:44