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संत पापाः धर्मसभा का शुभारम्भ, पवित्र आत्मा के साथ चलें

संत पापा फ्रांसिस ने वाटिकन, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में नये कार्डिनलों के संग मिस्सा बलिदान अर्पित करते हुए सिनोड, धर्माध्यक्षों की धर्मसभा की शुरूआत की। उन्होंने अपने प्रवचन में पवित्र आत्मा से संग चलने का आहृवान किया।

वाटिकन सिटी

संत पापा फ्राँसिस ने नये कार्डिनलों के संग यूख्रारिस्तीय बलिदान अर्पित करते हुए सिनोड, धर्माध्यक्षों के धर्मसभा की शुरूआत की।  

संत पापा ने अपने प्रवचन में कहा कि सुसमाचार जिसे हमने अभी सुना येसु की प्रेरिताई का एक कठिन पड़ाव है जिसे हम “प्रेरितिक हताशी” की संज्ञा दे सकते हैं। योहन बपतिस्ता इस बात पर संदेह करते हैं कि येसु ही मुक्तिदाता है, उन्होंने बहुत सारे शहरों का भ्रमण किया, उनके चत्मकारों से बावजूद, लोगों में मनफिराव नहीं हुआ। जनता उन्हें पेटू औऱ मतवाला कहकर दोषारोपण करती है, जबकि लोगों ने योहन बपतिस्ता के बारे में भी शिकायत की क्योंकि वह एक बहुत कठोर जीवन जीता था (मत्ती. 11.2-24)। इन सारी चीजों के बावजूद हम येसु में उदासी को नहीं पाते हैं, बल्कि वे अपनी आंखें आकाश की ओर उठाते और अपने पिता के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकट करते हैं क्योंकि उन्होंने राज्य के रहस्यों को निरे बच्चों के लिए प्रकट किया है। “पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं तेरी स्तुति करता हूँ क्योंकि तूने इन सब बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा कर निरे बच्चों के लिए प्रकट किया है” (मत्ती.11.25)। निराशा के इस क्षण में भी येसु अपनी निगाहों में परे देखने की क्षमता रखते हैं- वे अपने पिता की प्रज्ञा की प्रंशसा करते हैं और उन अच्छी बातों की परख करते हैं जो गुप्त रूप में विकसित होती हैं, वचन रुपी बीज जिसका स्वागत साधारण लोगों के द्वारा होता है, ईश्वर का राज्य अंधेरे में भी हमारा मार्ग दर्शन करता है।

सिनोड मिस्सा की धर्मविधि
सिनोड मिस्सा की धर्मविधि

हमारा दृष्टिकोण

प्रिय कार्डिनल, धर्माध्यक्षों, भाइयो एवं बहनो, संत पापा ने कहा कि हम सिनोड पर अपनी धर्मसभा की शुरूआत कर रहे हैं। हमें यहाँ एक शुद्ध प्रकृति दृष्टि की जरुरत नहीं है, जो मानवीय तौर-तरीकों,  राजनीतिक गणनाओं या वैचारिक लड़ाइयों से बनी है। हम यहाँ संसदीय संगोष्टी या नवनीकरण की योजना को संचालित करने हेतु जमा नहीं हुए हैं। ऐसी नहीं है। हम सभी यहाँ ईश्वर की निगाहों में एक साथ चलने के लिए हैं, जो पिता को धन्य कहते और उनका स्वागत करते, जो अपने में प्रताड़ित और चिंतित हैं। अतः आइए हम येसु की निगाहों से शुरू करें, जो कृतज्ञता और स्वागत की निगाहें हैं।

येसु की निगाहें

संत पापा ने, प्रथम विन्दु येसु की निगाहों के बारे में कहा जो धन्य कहती हैं। यद्यपि तिरस्कार का अनुभव करने के बाद भी, जहाँ वे लोगों के कठोर हृदय को देखते हैं, येसु अपने को निराशा में कैद होने नहीं देते हैं, वे अपने में कटुता का अनुभव नहीं करते हैं, वे प्रंशसा करना नहीं छोड़ते हैं। यह पिता के संग उनके हृदय का जुड़े रहने को व्यक्त करता है, अतः वे अपने तूफानों की घड़ी में भी शांत रहते हैं।

संत पापा मिस्सा अनुष्ठान के दौरान
संत पापा मिस्सा अनुष्ठान के दौरान

ईश्वर की यह निगाह जो प्रंशसा के भाव प्रकट करती हमें एक कलीसिया होने का निमंत्रण देती है, जहाँ हम हृदय में खुशी लिये ईश्वर के कार्यों और वर्तमान बातों का आत्म-परीक्षण करते हैं। ऐसा करना हमारे विचलित करने वाले क्षणों में, हमें निराशा नहीं करता, और हम आदर्श बातों की खोज नहीं करते, अपने को पूर्वकालिक धारणओं में फंसा नहीं पाते, अपने को सुविधाजनक समाधानों का शिकार नहीं होने देते, हम दुनिया को अपने में हावी होने नहीं देते हैं। यह कलीसिया का आध्यात्मिक विवेक है, जिसे संत योहन 13वें संक्षेपित करते हुए कहते हैं, “यह सर्वप्रथम जरूरी है कि कलीसिया कभी भी आचार्यों से प्राप्त सत्य की पवित्र विरासत से अपने को दूर न करे। लेकिन साथ ही उसे वर्तमान की ओर भी देखना चाहिए, नई परिस्थितियों और जीवन के नए रूपों को जिसे आधुनिक दुनिया पेश करती है, जो काथलिक प्रेरिताई हेतु नये मार्ग को खोलते हैं।”

कलीसिया का बुलावा

येसु की निगाहें जो धन्य कहती हैं, हमें एक कलीसिया होने का निमंत्रण देती है जो आज की चुनौतियों और मुसीबतों को एक निर्णयक और विवादास्पद भाव से सामना नहीं करती है, इसके विपरीत, वह अपनी आँखों को ईश्वर ओर अभिमुख करती जो एकता हैं, वह आश्चर्य और नम्रता में, उन्हें धन्य कहती और  उनकी आराधना करती है, यह स्वीकारते हुए कि वे एकमात्र ईश्वर हैं। हम उनके हैं- हम इस बात को याद रखें- हमारा जीवन सिर्फ उन्हें दुनिया में लाने के लिए है। जैसे प्रेरित संत पौलुस हमें कहते हैं, हमारे लिए येसु मसीह को छोड़कर और कोई महिमा नहीं है (गला.6.14)। यह हमारे लिए काफी है। हमें दुनियावी महिमा को कोई जरुरत नहीं है, हम अपने को दुनिया की निगाहों में आकर्षक नहीं बनाना चाहते हैं, वहीं हम इसकी ओर सुसमाचार की सांत्वना में पहुंचना चाहते हैं, ईश्वर के अनंत प्रेम का साथ देते हुए, एक बेहतर रुप में और सबों के लिए। वास्तव में, संत पापा बेनेदिक्त 16वें ने धर्मसभा से संबंधित एक बात विशिष्ट रुप में कहा है, “हमारे लिए सवाल यह हैः ईश्वर ने हमसे बातें की हैं, उन्होंने सचमुच में अपने बृहृद मौन को भंग किया है, उन्होंने अपने को प्रकट किया है, लेकिन हम इस सच्चाई को कैसे वर्तमान में लोगों के सामने प्रकट कर सकते हैं, जिससे यह मुक्ति बन सकेॽ” यह मूलभूत सवाल है। और धर्मसभा का मुख्य कार्य यही हैः ईश्वर की निगाहों में ध्यान केन्द्रित करना, एक कलीसिया होना जो मानवता को करूणा की निगाहों से देखती है। एक कलीसिया जो एकता और भातृत्व में बनी रहती, जो सुनती और वार्ता करती है, एक कलीसिया जो धन्य कहती और प्रोत्साहित करती है, वह उनकी मदद करती जो ईश्वर की खोज करते हैं, जो प्रेम से विभिन्नताओं को मिलाती है, जो मार्गों को खोलता जिससे लोग विश्वास की सुन्दर की ओर अग्रसित हो सकें। एक कलीसिया जो ईश्वर को केन्द्र विन्दु में रखती इस भांति आंतरिक रुप से विभाजित नहीं होती और बाह्य रुप में कभी कठोर नहीं होती है। येसु ख्रीस्त अपनी वधू, कलीसिया को इसी रुप में होने की चाह रखते हैं।

सिनोड मिस्सा की धर्मविधि में विश्वासीगण
सिनोड मिस्सा की धर्मविधि में विश्वासीगण

ईश्वरीय निगाहों का प्रभाव 

स्वागत करने वाले ख्रीस्त की निगाहों, दूसरे विन्दु की चर्चा करते हुए संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि वहीं जो अपने को बुद्धिमान समझते हैं ईश्वर के कार्यों को समझने में असफल होते हैं। येसु पिता पर इस बात की खुशी को प्रकट करते हैं क्योंकि वे अपने को निरे बच्चों के लिए, साधारण लोगों, दीनहीनों के लिए प्रकट करते हैं। इसके परिणाम स्वरुप वे अपना पूरा जीवन सबसे कमजोर, दुखित और परित्यक्त लोगों के स्वागत हेतु समर्पित करते हैं। वे उनके लिये अपने इन शब्दों को घोषित करते हैं, “थके-मंदे और बोझ से दबे हुए लोगों तुम सब के सब मेरे पास आओ, और मैं तुम्हें विश्राम दूंगा” (मत्ती.11.28)।

संत पापा ने कहा कि स्वागत करने वाले येसु की निगाहें हमें भी एक स्वागतार्थ कलीसिया बनने का निमंत्रण देता है। हमारे समय की कठिन परिस्थिति में, जहाँ हम नयी संस्कृति और प्रेरितिक चुनौतियों को उभरता हुआ पाते हैं हमसे उत्साह और विनम्र आंतरिक मनोभाव की माँग करती है जिससे हम हर किसी से भयमुक्त मिल सकें। सिनोडल वार्ता में, जहाँ हम ईश प्रजा के रुप में “पवित्र आत्मा के संग यात्रा” यह सुन्दर यात्रा करते हैं, हम येसु के संग एकता और मित्रता में बढ़ सकें जिससे हम आज की चुनौतियों को उनकी निगाहों से देख सकें, एक कलीसिया बन सकें जिसके बारे में संत पापा पौल 6वें उत्तम रुप में कहते हैं, “अपने में वार्ता कर सकें।” एक कलीसिया “जो अपने एक हलके जूए” के साथ, जो दूसरों पर भार नहीं डालती है और जो हरएक जन के लिए यह दुहराती है, “तुम जो थंके-माँदे और बोझ से दबे हुए हो, मेरे पास आओ, तुम जो अपने में खो गये हो या दूर चले जाने का अनुभव करते हो, मेरे पास आओ, तुम जो अपनी आशा के दरवाजों को बंद कर दिये हो- कलीसिया यहाँ तुम्हारे लिए है।” कलीसिया का द्वारा सबों के लिए खुला है।

ईश्वर की आशीष-कृपा का प्रभाव

संत पापा ने कहा कि ईश्वर की पवित्र प्रज्ञा, उनकी आशीष हमें जीवन की चुनौतियों और कठिनाइयों में भयवाह प्रलोभनों में गिरने से बचाती हैं- हम कठोर सैद्धानतिक कलीसिया, जो दुनिया से विरूध हथियार उठाती और पीछे देखती है, कुनकुनी कलीसिया होने से बचाती है। प्रकाशना ग्रँथ हमें कहता है कि वे हमारे दरवाजों को खटखटाते हैं जिससे हम उनके लिए खोलें, लेकिन बहुत बार वे कलीसिया के अंदर से द्वारा खटखटाते हैं जिससे वे बाहर निकल कर अपने सुसमाचार को घोषित कर सकें।

सिनोड मिस्सा में नये कार्डिनलगण
सिनोड मिस्सा में नये कार्डिनलगण

हम एक साथ मिलकर, नम्रता, जोश और खुशी में चलें। हम आसीसी के संत फ्रांसिस के पद चिन्हों का अनुसरण करें। वे दरिद्रता और शांति के संत हैं, “ईश्वर के लिए मूर्ख” जिन्होंने अपने शरीर में येसु के पवित्र घावों को वहन किया, उन्होंने अपने को सभी रूपों में वस्त्रविहीन कर दिया जिससे वे उन्हें धारण कर सकें। अपने को आंतरिक और वाह्य रुप में खाली करना हमारे लिए और हमारे संस्थानों के लिए कितना कठिन है। संत बोनाभेतूरा इस संदर्भ में कहते हैं, जब वे प्रार्थना कर रहे थे तो क्रूसित येसु ने उनसे कहा, “जाओ और मेरी कलीसिया की मरम्मत करो।” धर्मसभा हमारे लिए इसी बात की याद दिलाती हैः हमारी माता कलीसिया को सदैव शुद्धिकरण, “मरम्मत” की आवश्यकता है, क्योंकि हम सभी पापी हैं जिन्हें पापों से क्षमा मिली है, हमें सदैव अपने स्रोत येसु की ओर लौटने की जरुरत है जहाँ हम अपने को पवित्र आत्मा के मार्ग में स्थापित करते जो हमें सुसमाचार को सभों के बीच ले जाने को मदद करते हैं। आसीसी के संत फ्रांसिस ने अपने जीवन की कठिन परिस्थितियों में किसी की आलोचना या शिकायत नहीं की। उन्होंने सुसमाचार के हथियारों- नम्रता और एकता, प्रार्थना और प्रेमपूर्ण कार्य को अपने में धारण किया, हम भी वही करें।

पवित्र आत्मा हमारे नायक

और यदि दुनिया भर की ईश प्रजा अपने चरवाहों के संग अपेक्षाओं, आशा में बन रहते और यहाँ तक की कुछ धर्मसभा की शुरूआत से भयभीत होते तो हम निरंतर इस बात की याद करें कि यह कोई राजनीतिक संगोष्ठी नहीं है, बल्कि पवित्र आत्मा में एक वार्ता है, यह ध्रवीकृत संसद नहीं वरन् कृपा और एकता का एक स्थल है। पवित्र आत्मा बहुधा हमारी अपेक्षाओं को तोड़ देते हैं जिससे वे कुछ नयी चीजों का निर्माण कर सकें जो हमारी भविष्यवाणियों और नकारात्मक से परे जाती हैं। संत पापा ने कहा कि शायद मैं कह सकता हूँ कि धर्मसभा में सबसे उपयोगी क्षण प्रार्थना के होते हैं, यहाँ तक कि प्रार्थना का माहौल भी, जिसके माध्यम प्रभु हमारे बीच कार्य करते हैं। आइए हम अपने आप को उनके लिए खोलें और उसका आह्वान करें: हमारे नायक, पवित्र आत्मा हैं। हम उन्हें धर्मसभा का नायक बनने दें। और आइए हम विश्वास और आनंद में उनके साथ चलें। 

संत पापाः सिनोड, धर्मसभा का मिस्सा बलिदान

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04 October 2023, 13:15