संत पापाः अमूर्त रूप में सुसमाचार का प्रचार नहीं होता
वाटिकन सिटी
संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।
आज मैं पूर्व के दो प्रसिद्ध संत भाइयों, सिरिल और मेथोदियुस के बारे में जिक्र करूँगा, जो अपने में “स्लाव के प्रेरितगण” कहे जाते हैं। नवीं शताब्दी में यूनान के एक कुलीन परिवार में जन्मे दोनों ने एक राजनीतिक पेशा का परित्याग कर अपने लिए मठवासी जीवन का चुनाव किया। लेकिन उनका एकांत में जीवन जीने का सपना थोड़े समय के लिए रहा। वे प्रेरिताई के लिए बृहद मारोविया भेजे गये, जो उस समय विभिन्न तरह के लोगों को अपने में समाहित करता था, जिसमें कुछ को सुसमाचार सुनाया गया था, लेकिन उनके बीच बहुत से गैर-ख्रीस्तीय रीति-रिवाज और परंपराओं का प्रचलन था। वहाँ के राजकुमार एक शिक्षक की मांग करते हैं जो ख्रीस्तीय विश्वास को उनकी भाषा में व्याख्या कर सके।
संतों के कार्य
सिरिल और मेथोदियुस का इस भांति प्रथम कार्य वहाँ के लोगों की संस्कृति का गहराई से अध्ययन करना था। संत पापा ने कहा कि हमें सदैव इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि हमें विश्व की संस्कृति के अनुरूप अपने को ढ़ालने और उस संस्कृति के अनुसार सुसमाचार प्रचार करने की जरुरत है। सिरिल ने यह पूछा की यदि उनकी कोई एक वर्णमाला है और उन्हें बतलाया गया कि ऐसा कुछ भी नहीं है। इसके जवाब में उन्होंने कहा, “कौन पानी में एक प्रवचन को लिख सकता हैॽ” वास्ताव में, सुसमाचार की घोषणा करने हेतु, किसी व्यक्ति को एक उचित, सुयोग्य, विशेष साधन की आवश्यकता है। अतः उसने ग्लैगोलितिक वर्णमाला की खोज की। उसने धर्मग्रँथ बाईबल और धर्मविधि के पाठों को उसके अनुरूप अनुवाद किया। लोगों ने इस बात का अनुभव किया कि ख्रीस्तीय विश्वास कोई “अपरिचित” नहीं बल्कि यह उनके विश्वास जीवन का एक अंग है, जो उनकी मातृ भाषा में व्यक्त की जाने लगी। संत पापा ने कहा कि हम इस बात पर विचार कर सकते हैं कि दो यूनानी मठवासियों ने स्लावी वर्णमाला की खोज की। हृदय के इस खुलेपन ने वहाँ के लोगों के जीवन में सुसमाचार की जड़ों को मजबूत किया। वे दोनों भाई अपने में भयभीत नहीं हुए बल्कि वे सहास में बने रहे।
कलीसिया में संघर्ष का कारण
तुरंत ही, यद्यपि कुछ लातीनियों के द्वारा इसका विरोध किया गया जो अपने में इस बात का अनुभव करते हैं कि स्लावी लोगों को प्रवचन देने के एकाधिकार से वे अपने को वंचित होता पा रहे हैं। हम इस लड़ाई को सदैव कलीसिया में पाते हैं। उनका विरोध धार्मिक था, लेकिन यह केवल देखने में ऐसा था। उन्होंने कहा, “ईश्वर की प्रशंसा केवल तीन भाषाओं- ईब्रानी, यूनानी और लातीनी में ही की जा सकती है जो क्रूस पर अंकित था।” उनका एकाधिकार हाथों से छिना जा रहा था। यह उनकी बंद मानसिकता को व्यक्त करता है जो अपने में एकाधिकार को धारण किये रहने की चाह रखते हैं। लेकिन सिरिल ने इसका जवाब बलपूर्व दिया, “ईश्वर अपने सभी लोगों से यह चाह रखते हैं कि वे अपनी भाषा में उनकी स्तुति करें।” उन्होंने अपने भाई मेथोदियुस के संग मिलकर संत पापा से अपील की और स्लाविक भाषा में धर्मविधि के ग्रंथों को स्वीकृति मिली। वे उन्हें मरिया मेजर के गिरजाघर की बेदी में स्थापित किया और ईश्वर की स्तुति उन पुस्तिकों के आधार पर किया। इसके कुछ ही दिनों बाद सिरिल की मृत्यु हो गई और उनकी निशानियों की आराधना आज भी यहाँ रोम में, संत क्लेमेंट के महागिरजा घर में की जाती है। मेथोदियुस वहीं धर्माध्यक्ष नियुक्त किये गये और उन्हें स्लाभ के प्रांतों में वापस भेजा गया। वहाँ उन्हें बहुत दुःख सहना पड़ता है, यहाँ तक कि वे बंदीगृह में डाल दिये जाते हैं, लेकिन ईश वचन को कैद कर नहीं रखा जा सकता था और यह वहाँ के लोगों में चारो ओर फैल गया।
संत पापा ने कहा कि इन दो संतों के साक्ष्य को देखते हुए संत जोन पौल द्वितीय ने उन्हें यूरोप के सह-संरक्षक संतों का दर्जा प्रदान किया और जिन पर उन्होंने विश्वपत्र स्लावोरूम अपोस्तोली प्रकाशित किया जिसमें हम तीन महत्वपूर्ण बातों को पाते हैं।
स्लावोरूम अपोस्तोली की तीन महत्वपूर्ण बातें
सर्वप्रथम हम उसमें एकता को पाते हैं। यूनानी, संत पापा, स्लावी लोग उस समय यूरोप में अविभाजित ख्रीस्तयता को व्यक्त करते थे, जो सुसमाचार प्रचार के लिए सहयोगी था।
एक दूसरी महत्व बात कि हम उसमें संस्कृतिकरण को पाते हैं- सुसमाचार का प्रचार और संस्कृति आपस में एक-दूसरे से गहरे रुप में संयुक्त है। हम एक अमूर्त, आसवित सुसमाचार का प्रचार नहीं कर सकते हैं, ऐसा नहीं होता है, सुसमाचार को संस्कारित किया जाना चाहिए और इसकी अभिव्यक्ति संस्कृति में भी होनी चाहिए।
इसका तीसरा पहलू स्वतंत्रता है। संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि प्रवचन देने में स्वतंत्रता की आवश्यकता होती है लेकिन स्वतंत्रता हेतु हमेशा साहस की आवश्यकता होती है, एक व्यक्ति जितना अधिक साहसी होता है उतना ही स्वतंत्र होता है और वह खुद को बहुत-सी चीजों के बंधन में बंधने नहीं देता जो उसकी स्वतंत्रता को उससे छीन लेती है।
प्रिय भाइयो एवं बहनो, हम संत सिरिल और मेथोदियुस, स्लाव के प्रेरितों से निवेदन करें कि वे हमें दूसरों के लिए “स्वतंत्र करूणा” का माध्यम बनने में मदद करें। हम अपनी रचनात्मकता, स्थिरता और विनम्रता में बने रहते हुए, प्रार्थना के संग और को सेवा दे सकें।
Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here