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संत पापाः ईश्वर के बिना विश्व का भविष्य नहीं

संत पापा फ्राँसिस ने लिस्बन, विश्व युवा दिवस के अवसर पर पुर्तगाल की अपने प्रेरितिक यात्रा के दौरान पुर्तगाल महाविद्यालय में युवाओं से भेंट करते हुए उन्हें अपने संदेश में कहा कि ईश्वर के बिना विश्व का भविष्य नहीं है।

वाटिकन सिटी

पुर्तगाल, गुरूवार, 03 अगस्त 2023 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने पुर्तगाल की अपनी प्रेरितिक यात्रा के दूसरे दिन पुर्तगाल के महाविद्यालय में युवाओं से मुलाकात की।

संत पापा फ्रांसिस ने “तीर्थयात्री” एक सुन्दर शब्द पर चिंतन करते हुए युवाओं से कहा कि सही अर्थ में तीर्थयात्री होने का अर्थ अपने दिनचर्या की बातों से अपने को अलग करना और एक अलग मार्ग में चलने हेतु निकल पड़ना है। यह अपने आरामदायक स्थल से नई क्षितिज की ओर बढ़ना है। तीर्थयात्री के विचार मानवीय जीवन की परिस्थिति को अच्छी तरह परिभाषित करता है। तीर्थयात्रियों के रुप में हम बहुत सारे सवालों का सामना अपने जीवन में करते हैं जिसका तुरंत जवाब हमें नहीं मिलता बल्कि यह हमें अपनी यात्रा में बने रहने की चुनौती प्रदान करता है, जहाँ हम अपने से ऊपर उठते और वर्तमान स्थिति से आगे बढ़ते हैं। संत पापा ने कहा, “यह महाविद्यालय के हर विद्यार्थी के लिए एक प्रक्रिया है, क्योंकि इसके द्वारा हम ज्ञान अर्जित करते हैं। इसके द्वारा आध्यात्मिक यात्रा की भी शुरूआत होती है।” हम सभी तुरंत और सहज जवाबों की आशा करते हैं जो सवालों की गहराई में उतरे बिना हमारे लिए समस्याओं का समाधान लाती है। येसु ख्रीस्त के द्वारा एक मूल्यवान मोती का दृष्टांत, उस व्यक्ति को प्राप्त होता है जो उसे पाने की चाह में सभी तरह की जोखिम अपने ऊपर उठा लेता है (मत्ती.13. 45-46)। संत पापा ने खोजना और जोखिम उठाने पर प्रकाश डाला जो तीर्थयात्रियों की यात्रा की व्याख्या करता है।

हमारी आंतिरक प्यास

संत पापा फ्रांसिस ने पेस्सोय की बातों को उदृधृत करते हुए कहा,“असंतोष होना मानवीय है।” हमें इस बात का अनुभव और विचार करने हेतु नहीं डरना चाहिए कि हम जो कर रहे हैं वह अपने में काफी नहीं है। अपने में खराब अनुभव करना, अपने में आत्मनिर्भरता और संकीर्णता की धारणा एक अच्छा प्रतिकारक है। खोज करने वालों और यात्रियों के रुप में हम सदैव अपने में कुछ बेचैन रहते हैं, जैसे कि येसु हम कहते हैं, हम संसार में हैं लेकिन संसार के नहीं हैं (यो.17.15-16)। हम कुछ बड़ा करने के लिए बनाये गये हैं और हम जबतक अपने में उड़ने की कोशिश नहीं करते हम अपने में कभी सफल नहीं होंगे। अतः यदि हममें एक आंतरिक प्यास है, एक बेचैनी है, भविष्य के लिए अतृप्त चाह है तो हम न घबरायें। हम अपने में शिथिल न हो बल्कि सजीव रहे। हमें सिर्फ अपने में तब चिंता करने की जरुरत है जब हम दर्द भरे और विचलित करने वाले सवालों से अपनी राह को छोड़ने के प्रलोभन में पड़ जाते हैं।

लक्ष्य प्राप्ति हेतु आगे बढ़ें

संत पापा ने युवाओं को प्रोत्साहन देते हुए कहा कि आप अपनी खोज जारी रखें और जोखिमों को अपने में लेने हेतु तैयार रहें। वर्तमान समय में हमारी दुनिया बहुत बड़ी मुसीबतों का सामना कर रही है और हम अपने बहुत सारे भाई-बहनों के दुःखदायी पुकार को सुनते हैं। इसके बावजूद हम दुनिया को मृत्यु की पीड़ा स्वरूप न देखें लेकिन जन्म देने वाली एक प्रक्रिया के रुप में देखें, जो अंत में नहीं बल्कि इतिहास के बड़े नये अध्याय में होती है। अतः नृत्य की नयी शैली के लिए कार्य करें, एक जो व्यक्ति को केन्द्र बिन्दु में रखते हुए जीवन के नृत्य का सम्मान करता है। व्यक्तिगत आरक्षण अपने में एक प्रलोभन है, जो हमारी भय की तीव्र प्रतिक्रिया है जो सच्चाई को कुरूप कर देती है। यदि बीज अपने को सुरक्षित रखता तो वह अपने विकास की शक्ति को नष्ट कर देता और हमें भूखमरी का शिकार बना देता है। यदि सर्दी अपने में रूक जाती तो हम बसंत का लुफ्त नहीं उठा पाते। अतः आप अपने दुविधाओं को सपनों में परिवर्तित करें, आप अपने भय के गुलाम बनें न रहें बल्कि अपनी अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कार्य करें।

शिक्षा का सही अर्थ

संत पापा ने कहा कि जबतक शिक्षा को उत्तरदायित्व के रुप में आलिंगन नहीं किया जाता यह न्यूतम फल उत्पन्न करता है। यदि आप अपनी उच्च शिक्षा से समाज के लिए कुछ ऩया करने का प्रयास नहीं करते तो अपने को मिली शिक्षा के महत्व और उपहार को सही रुप में नहीं समझते हैं। उत्पत्ति ग्रंथ में ईश्वर सबसे पहला सवाल कहते हुए यह कहते हैं “तुम कहाँ हो”ॽ और “तुम्हार भाई कहाँ हैं”ॽ अपने में यह पूछा कितना अच्छा है कि मैं कहाँ हूँ। क्या मैं अपने खोया हूँ या क्या मैं अपनी सुरक्षा का परित्याग करते हुए एक निष्ठावान ख्रीस्तीय बनता हूँ जो दुनिया में न्याय और सुन्दरता को स्थापित करने का प्रयास करता है। मेरा भाई या बहन कहाँ हैॽ हमारे शैक्षणिक प्रशिक्षण केवल हमारे लिए व्यक्तिगत बेहतरी का माध्यम न हों बल्कि यह पूरे समाज के विकास का एक कारण बने। संत पापा ने पुर्तगाल के एक महान कवि को पूछे गये सावल के बारे में कहा कि उन्हें एक साक्षत्कार में पूछा गया कि आप क्या चाहे की पुर्तगाल इस नये दौर में अपने लिए क्या हासिल करे। उन्होंने बिना झिझक के कहा कि मैं चाहूँगी की पुर्तगाल में सामाजिक न्याय स्थापित हो, और धनी तथा गरीब के बीच की दूरियाँ कम हों। संत पापा ने इसी सवाल को युवाओं के सामने रखते हुए कहा कि “शिक्षा के यात्रियों” स्वरुप आप पुर्तागाल और दुनिया में क्या हालिस करना चाहेंगे। आप किन परिवर्तन देखना चाहेंगेॽ और इसके लिए ख्रीस्तीय महाविद्यालय क्या योगदान कर सकते हैंॽ

विकास और प्रगति के नये अर्थ

संत पापा युवाओं के द्वारा साझा किये गये साक्ष्य के संबंध में उनके प्रति कृतज्ञता के भाव व्यक्त करते हुए कहा कि आप मानवता के शिक्षक, करूणा, इस पृथ्वी में ऩये अवसरों और आशा के शिक्षक बनें। उन्होंने धरती सामान्य घर और उसमें निवास करने वालों कि देख-रेख हेतु सच्चे हृदय और आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन से जुड़े मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण में परिवर्तन की बात कही जो हमारे लिए अत्यंत जरूरी है। “हमें विकास और प्रगति के अर्थ को नये रुप में परिभाषित करने की आवश्यकता है। हमने उन्नति करने के बदले में बहुत बार अवनति की है।” उन्होंने कहा कि आप की पीढ़ी इस बड़ी चुनौती को अपने में ले सकती है। आपके पास वैज्ञानिक और तकनीकी विकास के सर्वोतम साधन हैं लेकिन आप उनमें अदूरदर्शी और आंशिक दृष्टिकोण के शिकार न हों। हमें आज समग्र पर्यावरण की आवश्यकता है जो पृथ्वी और गरीबों की तकलीफों का ध्यान रखता हो। हमें मरुस्थलीकरण की त्रासदी को शरणार्थियों की त्रासदी के साथ, बढ़ते प्रवासन के मुद्दे को घटती जन्म दर के साथ जोड़ने की जरूरत है, और जीवन के भौतिक आयाम को आध्यात्मिकता के बड़े दायरे में देखने की जरूरत है। ध्रुवीकृत दृष्टिकोण के बजाय, हमें एक एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है, एक ऐसा दृष्टिकोण जो समग्रता को गले लगाने में सक्षम हो।

विश्वासनीय बनें

संत पापा ने कहा कि एक सच्चा समग्र पर्यावरण ईश्वर के बिना संभव नहीं है यह ईश्वर के बिना भविष्य की चर्चा करने के समान है। अतः आप अपने चुनावों के आधार पर विश्वास को सशक्त बनायें। क्योंकि जबतक विश्वास विश्वासनीय जीवनशैली को जन्म नहीं देता यह विश्व को “खमीरा” नहीं बनायेगा। हम ख्रीस्तीयों का विश्वासी होना काफी नहीं है हमें विश्वासीय होने की जरुरत है। हमारे कार्य को चाहिए कि वे आनंद और मूलता सुसमाचार की सुन्दरता को प्रकट करें। उन्होंने कहा कि ख्रीस्तीय ऊंची दीवारों से घिरे किले के अंदर नहीं रह सकते हैं जो उन्हें विश्व से अलग करता है। हर सदी में ख्रीस्तीयों का एक मुख्य कार्य शरीरधारण के अर्थ को फिर से खोजना है। इसके बिना ख्रीस्तयता अपने में आदर्श रह जाती है, वहीं यह हमें येसु ख्रीस्त की सुन्दरता को  देखने और आश्चर्यचकित होने के योग्य बनाती है जिसे वे हमारे हर भाई-बहन, हर नर-नारी में प्रकट करते हैं। समाज में नारियों के योगदान की महत्वपूर्णतः का जिक्र करते हुए संत पापा ने कहा कि धर्मग्रँथ में हम परिवार की अर्थव्यवस्था को नारियों के हाथों में समर्पित पाते हैं। परिवार के प्रमुख स्वरुप विवेक से पूर्ण उन्होंने न केवल लाभ की बात सोची बल्कि सेवा, सह-अस्तित्व, भौतिकता तथा आध्यात्मिक सभी बातों में गरीबों और अपरिचितों का ध्यान रखा। इस संदर्भ में अर्थशास्त्र का अध्ययन करना हमें रोमांचित करता है क्योंकि यह मानवीय सम्मान की चिंता करता है ऐसा न हो कि यह अनियंत्रित बाजारों का शिकार हो जाये।

वैश्विक शिक्षा समझौता के सात मुख्य बिन्दु इन बातों को अपने में सम्माहित करते हैं जो सामान्य निवास की चिंता से शुरू होते हुए नारियों की सहभागिता और अर्थव्यवस्था, राजनीति विकास और प्रगति की नई समझ पर जोर देता है। संत पापा ने युवाओं को वैश्विक प्रभाव पर अध्ययन करने का सुझाव दिया जो स्वीकृति और समावेशन के बारे में शिक्षण की बात कहता है जिसकी चर्चा हम संत मत्ती के सुसमाचार अध्ययाय 25 में पाते हैं। “मैं अपरिचित था और तुमने मेरा स्वागत किया” (35)। जब कभी कोई किसी के लिए स्वागत के भाव प्रकट करता तो यह हमें एक परिवर्तन हेतु तैयार करता है।

संत पापा फ्रांसिस ने पुर्तगाल महाविद्यालय के सजीव शैक्षिणक सुंदर वातावरण हेतु अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा, “जैसे-जैसे आप ज्ञान और शैक्षिणक विशेषज्ञता हासिल करेंगे, आप एक व्यक्ति के रूप में, आत्म-ज्ञान और अपने भविष्य के मार्ग को समझने की क्षमता में विकसित होंगे। तो, आगे बढ़ें, आप साहस में सदैव आगे बढ़ते जायें।”

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03 August 2023, 13:03