कलीसिया एवं कलाकारों के बीच सम्बन्ध स्वाभाविक, सन्त पापा
जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 23 जून 2023 (रेई, वाटिकन रेडियो): वाटिकन संग्रहालय में आधुनिक कला के समावेश के उद्घाटन की 50 वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में शुक्रवार 23 जून को सन्त पापा फ्रांसिस ने कलाकारों से मुलाकात कर उन्हें सम्बोधित शब्दों में कहा कि कलीसिया एवं कलाकारों के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध एक विशिष्ट एवं स्वाभाविक सम्बन्ध है।
स्वाभाविक मैत्री
सन्त पापा ने कहा, आपके साथ रहकर मैं खुश हूँ। कलीसिया का हमेशा से कलाकारों के साथ एक रिश्ता रहा है जिसे प्राकृतिक और विशेष दोनों के रूप में वर्णित किया जा सकता है। यह एक स्वाभाविक मित्रता है, इसलिये कि कलाकार मानव अस्तित्व, हमारे जीवन और दुनिया के जीवन की समृद्धि को गंभीरता से लेते हैं, जिसमें इसके सौन्दर्य के साथ-साथ इसके विरोधाभास और इसके दुखद पहलू भी शामिल रहते हैं। उन्होंने कहा, यह समृद्धि कई विशिष्ट विषयों की दृष्टि से गायब होने का जोखिम उठाती है, जो तत्काल जरूरतों को तो पूरा करते, लेकिन जीवन को एक बहुफलक, एक जटिल और बहुआयामी वास्तविकता के रूप में देखना मुश्किल पाते हैं।
सन्त पापा ने कहा, कलाकार हमें याद दिलाते हैं कि जिस आयाम में हम चलते हैं, भले ही अनजाने में, वह हमेशा आत्मा का ही आयाम होता है। आपकी कला एक पाल की तरह है जो आत्मा की हवा से प्रवाहित रहती है और हमें आगे बढ़ाती है। इस प्रकार कला के साथ कलीसिया की मित्रता काफी स्वाभाविक है।
एक खास सम्बन्ध
उन्होंने कहा कि कला के साथ कलीसिया का सम्बन्ध एक खास सम्बन्ध भी है, विशेषकर यदि हम इतिहास के उन कई कालखंडों के बारे में सोचें जिनमें हमने एक साथ यात्रा की है और जो सभी की, चाहें वे आस्तिक हों या नास्तिक, विरासत का हिस्सा हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, उन्होंने कहा, आइए हम वर्तमान समय के समृद्ध फलों के एक नए मौसम की प्रतीक्षा करें, जो सुनने से तथा स्वतंत्रता और सम्मान के माहौल से उत्पन्न होता है, क्योंकि आज ऐसे ही फलों की लोगों को नितान्त आवश्यकता है।
मृत्यु की ओर नहीं, जीवन की ओर
सन्त पापा ने कहा कि कलाकार एक बालक के सदृश होते हैं, जो मौलिकता, नवीनता और रचनात्मकता को स्वतंत्रतापूर्वक मुक्त करते और इस तरह दुनिया में कुछ नया और अभूतपूर्व लाते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा कर, कलाकार इस झूठ का पर्दाफाश करते हैं कि मनुष्य "मृत्यु की ओर अग्रसर प्राणी" है। हमें, निश्चित रूप से, अपनी नश्वरता पर काबू पाना होगा, क्योंकि हम मृत्यु की ओर नहीं, बल्कि जीवन की ओर जाने वाले प्राणी हैं।
सन्त पापा ने स्मरण दिलाया कि बाईबिल धर्मग्रन्थ के प्रकाशना ग्रन्थ में हम प्रभु ईश्वर के इन शब्दों को पाते हैं, "देखो, मैं सब कुछ नया बना रहा हूँ।" उन्होंने कहा कि जिस तरह सृष्टिकर्त्ता ईश्वर सब कुछ को नया करते, उसी प्रकार एक कलाकार से अपेक्षा की जाती है कि वह कुछ नये की रचना करे और इस प्रकार ईश्वर की रचना में भागीदार बने।
सन्त पापा ने इस तथ्य की ओर भी ध्यान आकर्षित कराया कि कला का सम्बन्ध आरम्भ ही से सौन्दर्य के साथ रहा है। उन्होंने कहा कि कला और कलाकार की रचना सुन्दरता का एक अनुभव है, क्योंकि कला, सौंदर्य के माध्यम से, आत्मा को जीवंत कर इंद्रियों का स्पर्श करती तथा अच्छी, न्यायसंगत और सच्ची चीजों को प्रतिबिंबित करती है। उन्होंने कहा कि सच्ची सुन्दरता निरर्थक, कृत्रिम और सतही कदापि नहीं होती, अपितु यथार्थ सौन्दर्य में ही हम ईश्वर की तड़प को महसूस करते हैं।
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