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संत पापा फ्रांसिस और इटली धर्मप्रांतों के धर्मसभा में  सहभागी प्रतिनिधियों का दल संत पापा फ्रांसिस और इटली धर्मप्रांतों के धर्मसभा में सहभागी प्रतिनिधियों का दल   (ANSA)

संत पापाः सिनोडल कलीसिया सभों के लिए खुली है

संत पापा फ्रांसिस ने संत पापा पौलुस 6वें के सभागार में इतालवी धर्मसभा में सहभागी हो रहे धर्मप्रांत के प्रतिनिधियों से मुलाकात की, अपने निर्देश में उन्होंनेः आपस में सुनते हुए चलना जारी रखने, धर्माध्यक्षों, पुरोहितों और लोकधर्मियों के बीच सह-जिम्मेदारी को बढ़ावा देने के साथ-साथ युवाओं, महिलाएं और गरीब की आवाज बढ़ावा देने की बात कही।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, गुरूवार, 25 मई 2023 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने इतलावी धर्मप्रातों से धर्मसभा में सहभागी हो रहे धर्माध्यक्षों, पुरोहितों और लोकधर्मियों के प्रतिनिधियों के भेंट की और उन्हें अपने संदेश कहा कि युवाओं, महिलाओं और गरीबों की आवाज को सुनें बिना “कलीसिया कुछेक की कलीसिया” बन कर रह जाती है।

एक साथ चलना

संत पापा ने प्रतिनिधियों को अपने संबोधन में एक साथ चलने पर बल दिया। उन्होंने कहा, “ख्रीस्तीय जीवन एक यात्रा है अतः आप पवित्र आत्मा के निर्देशन में इसे सदैव जारी रखें।” उन्होंने विनम्रता, निःस्वार्थता और धन्य वचनों को कलीसियाई समुदाय के तीन महत्व गुण बतलाये। कलीसिया इसलिए सिनोडल है क्योंकि वह पुनर्जीवित ख्रीस्त के साथ इतिहास में आगे बढ़ते जाती है जो स्वयं अपने हितों की रक्षा करने के लिए नहीं,  बल्कि उदारता की भावना में सुसमाचार की सेवा, स्वतंत्रता और रचनात्मकता को बढ़वा देते हुए ईश्वर के प्रेम सुसमाचार की गवाही देती है। संरचनाओं, नौकरशाही, औपचारिकता से दबी कलीसिया को इतिहास में चलना मुश्किल है, यदि ऐसा होता है तो पवित्र आत्मा के साथ कदम मिला कर उसे वर्तमान समय के पुरुषों और महिलाओं के संग चलने में कठिनाई होगी।

कलीसियाई एकता

संत पापा ने कलीसिया की एकता को दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य स्वरुप घोषित किया। द्वितीय वाटिकन महाधर्मसभा के साठ साल बाद आज हम इसकी आवश्यकता महसूस करते हैं। प्रत्येक बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति कलीसिया के जीवन और इसके प्रेरितिक कार्य में सक्रिय रूप से भाग लेने को बुलाया जाता है, जिसकी शुरूआत हम स्वयं अपने कार्यों से, दूसरों के संग अपने संबंध और अन्य आदर्शों के साथ करते हैं जो हमें पवित्र आत्मा द्वारा सभों के हित में दिया जाता है। हमें ख्रीस्तीय समुदायों की आवश्यकता है जहाँ सबों के लिए स्थान हो, जहाँ हर कोई एक घर में होने का अनुभव करता हो, साथ ही सह-जिम्मेदार और खुशी का अनुभव करता हो। इस अर्थ में, हमें पवित्र आत्मा से निवेदन करने की जरुरत है जो हमें कलीसिया में अपने जिम्मेदारियों को वहन करने की समझ और ज्ञान से भरते हैं।

कलीसिया खुली हो

कलीसिया के लिए तीसरी आवश्यकता को संत पापा फ्रांसिस ने इसका खुला होना कहा। उन्होंने कहा कि कलीसिया को सभों के लिए खुला रहने की जरुरत है। वे जो अब भी कलीसिया में अपनी उपस्थिति के लिए संघर्ष करते हैं, जिनकी कोई आवाज़ नहीं है, जिनकी आवाज़ को दबा दिया जाता या अनदेखा किया गया है, जो अपर्याप्त महसूस करते हैं। हम यह याद रखें: कलीसिया का दिल सभी के लिए खुला होना चाहिए। संत पापा ने विवाह भोज के दृष्टांत की याद दिलाते हुए कहा कि जब आमंत्रित अतिथि नहीं आए तो वे “चौराहों के हर जन को बुला लाने को कहते हैं। कलीसिया में हर किसी के लिए एक स्थान है।”

हाशिये के लोगों को स्थान दें 

संत पापा ने कहा कि हमें अपने आप से पूछने की जरुरत है कि हम अपने समुदायों के युवाओं, महिलाओं, गरीबों, निराश लोगों, जो अपने जीवन में दुःखी हैं और जो कलीसिया से नाराज हैं, हम उनकी आवाज को कितना स्थान देते हैं, हम वास्तव में, उन्हें कितना सुनते हैं। उन लोगों की उपस्थिति पूरी कलीसियाई में छिटपुट रहती तो यह धर्मसभा की कलीसिया नहीं होगी, यह कुछके की कलीसिया बन कर रह जायेगी।

आत्म-संदर्भित एक बीमारी

संत पापा ने कहा कभी-कभी हम अपने समुदायों, पल्लियों को आत्म-संदर्भित पाते हैं। यह अपने में दर्पण के ईशशास्त्र-सा होता है जो कलीसिया में एक बीमारी की भांति है। धर्मसभा हमें एक कलीसिया बनने के लिए बुलाती है जो खुशी से, विनम्रतापूर्वक और रचनात्मक रूप से चलती है, यह जानते हुए कि हम सभी कमजोर हैं और हमें एक दूसरे की जरूरत है। संत पापा ने धर्मसभा को संवेदनशील शब्द पर ध्यान देना को आग्रह किया। उन्होंने कहा कि हमें जीवन उत्पन्न करने की कोशिश करनी है,  आनंद को बढ़ाना है, न कि उस आग को बुझाना जिसे आत्मा हमारे दिलों में जलाते हैं। यह कितने दुःख की बात है जब कोई पुरोहित जीवन को बुझा देता है। हम बुझाने के लिए नहीं, बल्कि अपने भाइयों और बहनों के दिलों को रोशन करने के लिए भेजे गये हैं।

बेचैन कलीसिया

संत पापा ने वर्तमान समय की चिताओं में कलीसिया को “बेचैन कलीसिया” होने का निमंत्रण दिया। हम कलीसिया के रुप में इतिहास की चिंताओं को एकत्रित करने और अपने में सवाल किये जाने, उन्हें ईश्वर के सामने लाते हुए उनके पास्का में डूबोने को कहे जाते हैं। इस मार्ग में हमारे लिए सबसे बड़ा शत्रु भय है।

कैदखानों में धर्मसभा समूहों के गठन का अर्थ मानवता को सुनना है, जो घायल हैं जिन्हें मुक्ति की आवश्यकता है। एक कैदी के लिए, अपनी सजा पूरी करना ईश्वर के दयालु चेहरे का अनुभव करने का अवसर बन सकता है, और इस प्रकार वह एक नया जीवन शुरू कर सकता है। संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीय समुदाय को यह चुनौती दी जाती है कि वे पूर्वाग्रहों से दूर रहें, वे उन लोगों की तलाश करें जो वर्षों की कैदखाने में हैं, वे उनसे मिले, उनकी गवाही सुनें, और उनके साथ ईश्वर के वचनों को बांटें। यह एक बेचैनी भरी भलाई है जिसे आप मुझे दे सकते हैं।  

सिनोडल कलीसिया के नायक पवित्र आत्मा

संत पापा ने अपने संबोधन के अंत में सभों को एक साथ यात्रा करने पर पुनः जोर दिया। “हम पवित्र आत्मा पर विश्वास करते हुए, जो हममें अपने कार्यों को जारी रखते हैं, आगे बढ़ें। वे सिनोडलिटी के नायक हैं।” यह वे हैं जो हमारे समुदाय को, हमें व्यक्तिगत रुप में खोलते हैं जो वार्ता को फलदायक बनते हैं। वे हमारी आत्म-परिक्षण प्रक्रिया को आलोकित करते हैं, हमारे निर्णयों और चुनावों में हमारी मदद करते हैं। हमारी धर्मसभा आगे बढ़ेगी यदि हम अपने को उनके लिए खोलते हों।

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25 May 2023, 16:47