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संत पापाः संत अंद्रेयस का प्रेरितिक उत्साह अदम्य

अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा फ्रांसिस ने कोरिया के संत अंद्रेयस के जीवन की चर्चा करते हुए ख्रीस्तियों को निरंतर सुसमाचार प्रचार के मार्ग में आगे बढ़ने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

इस धर्मशिक्षा माला की कड़ी में हम कुछ संतगणों के कार्य शैली से अपने को अवगत होंगे जो हमारे लिए प्रेरितिक उत्साह का ज्वल्लंत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। हम इस बात की याद करें कि हम प्रेरितिक उत्साह का जिक्र कर रहे हैं जो सुसमाचार की घोषणा हेतु हमारे लिए आवश्यक है।

संत पापा ने कहा कि सुसमाचार के प्रति प्रेरितिक उत्साह के संबंध में आज हम अपने को सुदूर कोरिया की कलीसिया में व्यवस्थित करते हुए कोरिया के प्रथम शहीद पुरोहित संत अंद्रेयस किम ताये-गोन के जीवन की चर्चा करते हैं। लेकिन कोरिया में सुसमाचार का प्रचार लोकधर्मिकयों के द्वारा हुआ। वे बपतिस्मा प्राप्त ख्रीस्तीय थे जिन्होंने विश्वास को आगे बढ़ाया क्योंकि वहाँ कोई पुरोहित नहीं था, उनका आगमन बाद में हुआ। अतः प्रथम सुसमाचार का प्रचार लोकधर्मियों के द्वारा हुआ। क्या हम ऐसा करने के योग्य हैंॽ यह अपने में अति सुन्दर है हम इस पर विचार करें। संत अंद्रेयस को हम पहले पुरोहित के रुप में पाते हैं जिनका जीवन हमारे लिए सुसमाचार की घोषणा में एक उद्दीप्त साक्ष्य को प्रस्तुत करता है।

आज से करीबन 200 साल पहले, कोरिया की भूमि ख्रीस्तीय के लिए एक घोर प्रताड़ना का एक रंगमंच था, वहाँ ख्रीस्तियों को सताया और मार डाला जाता था। उस समय येसु ख्रीस्त में विश्वास करना कोरिया के लोगों के लिए, अपनी शहादत हेतु तैयार रहने के समान था। संत पापा ने कहा कि संत अंद्रेयस किम के जीवन से संबंधित हम विशेष रुप से दो ठोस बातों पर चिंतन करते हैं।

संत अंद्रेयस की कार्य शैली

पहली बात उनका विश्वासियों भक्तों के संग मिलन की शैली। अति भयभीत करने वाली परिस्थितियों में भी संत अंद्रेयस ख्रीस्तियों से विवेकपूर्ण तरीके से मिलते और सदैव उनके बीच में उपस्थित रहते थे। ख्रीस्तियों को पहचानने के लिए संत अंद्रेयस एक खास शैली का उपयोग किया करते थे, जहाँ पहले उनकी पहचान हेतु एक निशानी निर्धारित की जाती थी, जिसके बाद वे उन्हें गुप्त रुप में सवाल करते थे, “क्या आप येसु ख्रीस्त के शिष्य हैंॽ” क्योंकि दूसरे उनकी वार्ता को सुनते थे अतः संत बातें करने वालों को बहुत ही धीमी आवाज में बोलते थे। केवल कुछ ही शब्द जो केवल अति जरुरी होती थी। अतः संत अंद्रेयस किम के लिए ख्रीस्तियों की पहचान को पूर्णरूपेण “ख्रीस्त के शिष्य” में संक्षिप्त किया जा सकता है। ये सारी बातें दबी हुई आवाज में हुआ करती थीं क्योंकि यह जोखिम भरा था।

ख्रीस्त का अनुसारण, ख्रीस्तीय पहचान

वास्तव में, येसु के शिष्य होने का अर्थ उनका अनुसरण करना है, उनकी राहों में चलना। ख्रीस्तीय अपने में एक उपदेशक है जो ख्रीस्त का साक्ष्य देता है। हर एक ख्रीस्तीय समुदाय इस पहचान को पवित्र आत्मा के द्वारा प्राप्त करता है जिसे हम कलीसिया में पेंतेकोस्त के दिन पाते हैं। यह पवित्र आत्मा हैं जिनमें हम अपने लिए उत्साह को पाते हैं, सुसमाचार के प्रति उत्साह, जो हमें पवित्र आत्मा की ओर से एक महान उपहार स्वरूप प्राप्त होता है। और यद्यपि हमारे लिए परिस्थितियाँ अच्छी नहीं रहने पर भी वह उत्साह हममें नहीं बदलता है जैसे कि अंद्रेयस किम के साथ हुआ, इसके विपरीत, यह अपने में और भी बृहृद होता जाता है। संत अंद्रेयस और अन्य कोरियाई विश्वासियों ने इस बात को दिखलाया है कि सतावट के समय में सुसमाचार का दिया गया साक्ष्य अपने में और भी अधिक फलप्रद होता है।

सुसमाचार प्रचार में सदैव हमारी मदद

दूसरी बिन्दु के बारे में जिक्र करते हुए संत पापा ने कहा कि संत अंद्रेयस गुरूकुल में ही थे, तब उन्होंने गुप्त रुप से विदेशी प्रेरितों को स्वागत करने का एक मार्ग खोज निकाला था। यह अपने में एक सहज कार्य नहीं था जैसे कि उस समय का शासन, किसी विदेशी को अपने प्रांत में प्रवेश करने को लेकर एकदम सक्त था। प्रेरिताई हेतु एक पुरोहित का आना अपने में बहुत कठिन था अतः प्रेरिताई के कार्य लोकधर्मियों द्वारा ही किये गये। एक बार वे बिना खाये, बर्फीली यात्रा कर रहे थे, यह यात्रा इतनी लम्बी थी कि वे थक कर भूमि में गिर पड़े, बर्फ में बेहोश वे करीबन मरण स्थिति में थे। उस स्थिति में उन्हें अचानक एक आवाज सुनाई पड़ी, “उठो औऱ चलो”। उस आवाज को सुनकर अंद्रेयस को होश आया, उन्होंने देखा कि एक छाया की भांति कोई उनका मार्ग प्रदर्शन कर रहा है।

ईश्वर हमें उठाते हैं

कोरिया के संत का यह महान अनुभव हमें प्रेरितिक उत्साह के संबंध में एक अति महत्वपूर्ण तथ्य को समझने में मदद करता है। संत पापा ने कहा कि मुख्य रूप से हमारे उठने के संबंध में, साहस को लेकर जब हम अपने में गिर जाते हैं। उन्होंने कहा कि लेकिन क्या संतगण गिरते हैं। उन्होंने संत पेत्रुस की याद दिलाई जिन्होंने बड़ा पाप किया, लेकिन वे ईश्वर की करूणा से मजबूत किये गये जिसके फलस्वरुप वे पुनः खड़े हो गये। संत अंद्रेयस में हम इसी शक्ति को देखते हैं, वे शारीरिक रूप में गिर हुए थे लेकिन उनमें शक्ति का संचार हुआ और वे ईश्वर के संदेश हेतु आगे बढ़े, और बढ़ते ही गये। चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हों, हमें हार नहीं मानना है बल्कि अपने ख्रीस्तीय जीवन के संबंध में जरुरी बातों को आगे बढ़ाना है जो कि सुसमाचार का प्रचार है।

सुसमाचार का प्रचार अपने संदर्भ में 

संत पापा ने कहा यही हमारा मार्ग है। हम से हर कोई इसके बारे में विचार करे, “मैं कैसे सुसमाचार का प्रचार कर सकता हूँॽ” आप बड़ों की ओर निगाहें फेरते हुए अपने छोटे कार्यों के बारे में विचार करें। संत पापा ने सुसमाचार प्रचार के छोटे रूप पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हम अपने परिवार में सुसमाचार का प्रचार करें, अपने पड़ोसियों में, हम येसु के बारे में बातें करें। हम येसु के बारे में बातें करते हुए अपने हृदय की पूर्ण खुशी में सुसमाचार की घोषणा करें, हम अपनी सारी शक्ति से ऐसा करें। उन्होंने कहा कि ऐसे करने की शक्ति हमें येसु ख्रीस्त से मिलती है। हम अपने को तैयार करें जिसे हम आने वाले पेन्तेकोस्त के दिन पवित्र आत्मा को ग्रहण कर सकें। हम उनसे कृपा की याचना करें, प्रेरितिक साहस, सुसमाचार प्रचार की कृपा, हम येसु के संदेश को सदैव आगे ले चलने की कृपा मांगें।

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24 May 2023, 13:40