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धर्माध्यक्षों का सिरावरण धर्माध्यक्षों का सिरावरण 

पोप ने सिनॉड में मतदान के लिए पूर्वी कलीसियाओं के धर्माध्यक्षों की आयु सीमा निर्धारित की

'मोतू प्रोप्रियो' (अर्थात् स्वप्रेरणा से लिखित पत्र) के रूप में जारी एक प्रेरितिक पत्र में, संत पापा फ्राँसिस ने पूर्वी रीति की कलीसियाओं के कानून में संशोधन करते हुए कहा है कि 80 वर्ष की आयु पूरा करनेवाले सेवानिवृत धर्माध्यक्ष अब धर्माध्यक्षीय धर्मसभाओं में मतदान करने में सक्षम नहीं होंगे, जिसके वे सदस्य हैं, हालांकि यह नियम उन लोगों पर लागू नहीं होता जो पहले से पद पर हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

सोमवार को प्रकाशित नये मोतु प्रोप्रियो में संत पापा फ्राँसिस ने पूर्वी कलीसिया के कानून में संशोधन किया है जिसके अनुसार 80 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद मतदान निर्णयों से संबंधित धर्माध्यक्षों की धर्मसभा के सदस्य हैं, वे मतदान से बाहर होंगे।

पोप का निर्णय "कुछ प्राधिधर्माध्यक्षों, महाधर्माध्यक्षों और धर्माध्यक्षों" द्वारा किए गए एक लंबे समय के अनुरोध को पूरा करता है, जैसा कि मोतू प्रोप्रियो का शीर्षक "लाम प्राइदेम" ("अभी कुछ समय के लिए", लैटिन में) में कहा गया है।

प्रेरितिक पत्र में कहा गया है कि परिवर्तन की आवश्यकता "पितृसत्तात्मक कलीसियाओं और प्रमुख महाधर्माध्यक्षीय कलीसियाओं के बिशपों की धर्मसभाओं में सेवानिवृत धर्माध्यक्षों की संख्या से, उत्पन्न कठिनाइयों के कारण हुई, जो उनमें सक्रिय भाग लेते हैं, विशेष रूप से, धर्माध्यक्षों और उनके संबंधित स्वायत्त कलीसियाओं के प्रमुखों के चुनाव में।”

इन कठिनाइयों ने कलीसियाओं के प्रमुखों को एक नए नियम की मांग करने के लिए प्रेरित किया है, जिसे पोप फ्राँसिस ने रविवार, 16 अप्रैल को मोतू प्रोप्रियो के माध्यम से जारी किया, जो पूर्वी कलीसियाओं के 66, § 1, 102, 149 और 183 के कैनन कोड को संशोधित करता है।

दस्तावेज निर्दिष्ट करता है कि नया कानून, जो एक महीने के अंदर लागू होगा, "उन प्राधिधर्माध्यक्षों,  महाधर्माध्यक्षों और धर्माध्यक्षों पर "लागू नहीं होगा" जो वर्तमान में "अस्सी वर्ष की आयु पहुंचने के बावजूद" पदों पर कार्यरत हैं।

 

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18 April 2023, 16:42