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संत पेत्रुस का प्रांगण संत पेत्रुस का प्रांगण  (ANSA)

बर्खास्तगी अपील की समय सीमा में बढ़ोतरी

संत पापा फ्रांसिस ने, स्वप्रेरणा द्वारा जारी एक प्रेरितिक पत्र में, समर्पित व्यक्तियों के संबंध में जो संस्थानों से बर्खास्त कर दिये गये हैं, तीस दिनों की समय सीमा बढ़ा दी है, ताकि वे अपने खिलाफ फैसले की अपील कर सकें। इस नई व्यवस्था का उद्देश्य व्यक्ति के अधिकारों की गारंटी देना है।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

समर्पित जीवन के संस्थानों से बर्खास्त किए गए व्यक्तियों के अधिकारों की निश्चितता और पर्याप्त सुरक्षा की गारंटी देने के लिए संत पापा फ्रांसिस ने उस समय को बढ़ाने का फैसला किया है जिस तहत सक्षम प्राधिकारी को अपील प्रस्तुत करना संभव है। ऐसे संस्थानों से बर्खास्त किए गए लोगों के पास अब अपनी अपील पेश करने के लिए “तीस दिन” होंगे, और अब “इसके लेखक को डिक्री के निरसन या सुधार हेतु लिखित रूप में अनुरोध करने" की आवश्यकता नहीं होगी। लातीनी कलीसिया में पिछली समय सीमा दस दिनों के लिए और पूर्वी कलीसियाओं में  पंद्रह दिन निर्धारित थी।

कलीसियाई कानून

संत पापा ने खजूर रविवार, 2 अप्रैल को- एक स्वप्रेरणा, प्रेरितिक पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए कलीसियाई कानून 700 (सीआईसी) और पूर्वी कलीसियाओं के लिए 501 (सीसीएओ) कानूनों पर परिवर्तन लायें, जिसे आज पारित किया गया।

परिवर्तन के कारण

संत पापा फ्राँसिस के अनुसार, मूल समय सीमा “व्यक्ति के अधिकारों के संरक्षण के अनुरूप नहीं कही जा सकती”। इसके बदले वे अपने प्रेरितिक पत्र में लिखते हैं, “अपील के शर्तों की एक कम प्रतिबंधात्मक पद्धति, संबंधित व्यक्ति को उसके खिलाफ आरोपों का बेहतर मूल्यांकन करने में सक्षम होने के साथ-साथ संचार के अधिक उपयुक्त तरीकों का उपयोग करने में सक्षम होने की अनुमति देगा।” इस संबंध में तीस दिन की बढ़ोतरी का निर्णय इन चिंताओं को दूर करता है।

व्यक्तियों के अधिकार

संत पापा ने छठे सामान्य सिद्धांत का हवाला देते हुए अपने निर्णय की व्याख्या की, जिसे अक्टूबर 1967 में धर्माध्यक्षों की धर्मसभा ने कलीसियाई कानून की संहिता में संशोधन कर अपनाया था: “ यह उचित  है कि व्यक्तियों के अधिकारों को उचित रूप से परिभाषित और सुरक्षित किया जाए”। संत पापा कहते हैं, “यह सिद्धांत आज भी मान्य है, व्यक्तिपरक अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण को कलीसिया के कानूनी आदेश में एक विशेषाधिकार स्थान प्रदान करता है"। यह सिद्धांत विशेष रूप से प्रासंगिक है खास कर “कलीसियाई जीवन की सबसे नाजुक घटनाओं में, जैसे व्यक्तियों की कानूनी स्थिति से संबंधित प्रक्रियाएं”।

प्रक्रिया का सम्मान

संत पापा फ्रांसिस “खतरे” को भी स्वीकार करते हैं कि कलीसियाई कानून 697-699 और पूर्वी कलीसियाओं के लिए कानून संहिता 497-499 की प्रक्रिया “हमेशा सही ढंग से पालन नहीं की जा सकती है”। यह प्रक्रिया, अन्य बातों के अलावे, लिखित रूप में या दो गवाहों के सामने, पश्चाताप करने में विफलता की स्थिति में बर्खास्तगी के स्पष्ट अधिरोपण के साथ, व्यक्ति की बर्खास्तगी के कारण को स्पष्ट रूप से सूचित करने और बर्खास्तगी प्रदान करने का अधिकार प्रदान करती है, साथ ही यह उन्हें अपना बचाव करने का पूरा अधिकार देती है। यदि उचित प्रक्रिया का सम्मान नहीं किया जाता है, तो संत पापा जोर देते हैं, कि यह “प्रक्रिया की वैधता और फलस्वरूप बर्खास्त व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा” कर सकता है।

संत पापा के ये नये प्रावधान 7 मई 2023 से प्रभावी होंगे।

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03 April 2023, 16:34