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परमधर्मपीठीय बाईबिल आयोग के सदस्य सन्त पापा फ्राँसिस के साथ, 20.04.2023 परमधर्मपीठीय बाईबिल आयोग के सदस्य सन्त पापा फ्राँसिस के साथ, 20.04.2023  (ANSA)

बीमारी का अनुभव हमें ख्रीस्तीय एकजुटता में रहना सिखाता है

"आस्तिक भी कभी-कभी दर्द के अनुभव के सामने लड़खड़ा सकता है। पीड़ित व्यक्ति एक चौराहे का सामना करता है: वह निराशा और विद्रोह तक पहुँच सकता है, या विकास और विवेक के अवसर के रूप में इसका स्वागत कर सकता है।"

जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023 (रेई, वाटिकन रेडियो): "बाईबिल में पीड़ा" विषय पर परमधर्मपीठीय बाईबिल आयोग के सदस्यों ने अपनी वार्षिक पूर्णकालिक सभा के उपरान्त वाटिकन में सन्त पापा फ्राँसिस से मुलाकात कर उनका सन्देश सुना।

बीमारी और दर्द

इस अवसर पर सन्त पापा ने कहा कि "आस्तिक भी कभी-कभी दर्द के अनुभव के सामने लड़खड़ा सकता है। पीड़ित व्यक्ति एक चौराहे का सामना करता है: वह निराशा और विद्रोह तक पहुँच सकता है, या विकास और विवेक के अवसर के रूप में इसका स्वागत कर सकता है।" उन्होंने स्मरण दिलाया कि, "पाप से घायल मानव प्रकृति अपने भीतर सीमाओं, नाजुकता और मृत्यु की वास्तविकता को ढोती है।"

सन्त पापा ने कहा, "रोगवस्था, सभी को, विश्वासियों और ग़ैर-विश्वासियों को समान रूप से चिंतित करती है" और यह विषय "विशेष रूप से उन्हें प्रिय" है क्योंकि आधुनिक युग में इसका अवमूल्यन किया गया है: आधुनिक विचार में बीमारी और सीमितता को अक्सर नुकसान, गैर-मूल्य और सतानेवाली के रूप में माना जाता है जिसे किसी भी कीमत पर कम किया जाना चाहिये और रद्द किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, "हम उसके अर्थ पर सवाल नहीं उठाना चाहते, शायद इसलिए कि हम उसके नैतिक और अस्तित्वगत प्रभावों से डरते हैं। फिर भी इस "क्यों" की खोज से कोई नहीं बच सकता।"

पीड़ा का स्वागत

सन्त पापा ने कहा कि दर्द एक भयावह अनुभव है जो किसी को भी परेशान कर सकता है, यहाँ तक कि विश्वासी को भी, जो विश्वास खोने का जोखिम उठाने तक गिर सकता है। उन्होंने कहा, "आस्तिक भी कभी-कभी दर्द के अनुभव के सामने लड़खड़ा जाता है। यह एक भयावह वास्तविकता है, जब बीमारी हमला करती है, तब वह मनुष्य को उसके विश्वास तक को तोड़ने की हद तक झकझोर कर रख सकती है।"

उन्होंने कहा कि बीमारी और पीड़ा के समय व्यक्ति या तो हताशा और विद्रोह के कारण टूट जाता है अथवा विश्वास के बल पर इस पर विजयी हो सकता है। वह विकास और विवेक के अवसर के रूप में इसका स्वागत कर सकता है तथा जीवन में इसका क्या अर्थ है उसे समझ सकता है।

नवीन एवं प्राचीन व्यवस्थान

सन्त पापा ने  नवीन एवं प्राचीन व्यवस्थान के व्यक्ति में अन्तर दर्शाते हुए कहा, पहले में, ईश्वर के प्रति पूर्ण भरोसा एवं समर्पण है जिसे प्रार्थना के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। नए व्यवस्थान में येसु के माध्यम से मनुष्य पर ईशपिता का प्रेम, उनकी दया, उनकी क्षमा प्रकट हुई है।

सन्त पापा ने कहा कि यह कोई संयोग नहीं कि येसु मसीह की सार्वजनिक गतिविधि काफी हद तक बीमारों के साथ उसके संपर्क से चिह्नित रही है। चमत्कारी चंगाई उनकी प्रेरिताई एवं सेवा की मुख्य विशेषताओं में से एक है।

ख्रीस्तीय एकात्मता

सन्त पापा ने कहा कि प्रभु येसु ख्रीस्त द्वारा दर्शाई गई ईश्वरीय दया एवं अनेक बीमारों को उनके द्वारा प्रदान की गई चंगाई ही हम मनुष्यों के लिये यह चिन्ह है कि ईश्वर ने अपने लोगों की सुधि ली है तथा यह कि स्वर्गराज्य निकट है। उन्होंने कहा कि प्रभु येसु के कार्य ही उनकी दिव्य पहचान, उनके मसीही मिशन और कमज़ोरों के प्रति उनके प्रेम की पहचान है, जिसे वे स्वयं इन शब्दों में प्रकट करते हैं: "मैं बीमार था और आप मुझसे मिलने आए"।

सन्त पापा ने कहा, बाईबिल, बीमारी और मृत्यु के बारे में, सवालों के "तुच्छ और काल्पनिक" उत्तर नहीं देता, अपितु, बाईबिल मनुष्य का साक्षात्कार ईश्वर की निकटता और करुणा साथ कराता है जो उसे दर्द की सार्वभौमिक स्थिति का सामना करने के लिए आमंत्रित करती तथा स्वतः को ईश्वर की असीम दया एवं उनकी चंगाई शक्ति में विश्वास हेतु प्रेरित करती है। अस्तु, सन्त पापा ने कहा, येसु ख्रीस्त के माध्यम से दर्द और पीड़ा का अनुभव प्रेम में परिणत हो जाता तथा सांसारिक चीज़ों का अन्त पुनरुत्थान की आशा में बदल जाता है।  

 

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21 April 2023, 11:04