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संत पापाः सुसमाचार प्रचारक येसु के सुन्दर चरण हैं

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय धर्मशिक्षा माला में प्रेरितिक उत्साह की चर्चा करते हुए सुसमाचार प्रचार हेतु उत्साहित बनने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के  प्रांगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

दो सप्ताह पहले हमने सुसमाचार के प्रति संत पौलुस के व्यक्तिगत उत्साह के बारे में सुना, अब उसके द्वारा वर्णित सुसमाचार के प्रति उत्साह के बारे में गहराई से चिंतन करेंगे जिसकी चर्चा वे हमारे लिए अपने पत्रों में करते हैं।

उत्साह में विकृति

अपने अनुभव के आधार पर, संत पौलुस सुसमाचार के प्रति उस विकृत उत्साह के प्रति सजग हैं तो हमें दिग्भ्रमित करती है। वे दमिशक की राह में दैवी पतन के पूर्व वे स्वयं इस खतरे के शिकार हुए थे। कभी-कभी ख्रीस्तीय समुदाय के रुप में हमें मानवीय और अप्रचलित मानदंडों के पालन में हठधर्मिता भरी एक गलत उत्साह से निपटना पड़ता है।

“संत पौलुस लिखते हैं, “जो लोग आपकी कृपा प्राप्त करने में लगे हैं वे अच्छे उद्देश्य से ऐसा नहीं कर रहे हैं” (गला.4.17)। हम उस उत्कंठा को नहीं भूल सकते हैं जिसके द्वारा कुछ लोग ख्रीस्तीय  समुदाय के भीतर भी गलत कार्यों के लिए समर्पित होते हैं,  वास्तव में उत्साहपूर्ण ढ़ंग से सुसमाचार प्रचार के संबंध में कोई भी झूठा दिखावा कर सकता है जबकि वह अपने घमंड या स्वयं के विश्वासों को प्रसारित करता है।

सच्चे सुसमाचार की विशेषताएं

सच्चे सुसमाचार प्रचार की मुख्य विशेषताएं संत पौलुस के अनुसार क्या हैंॽ धर्मग्रंथ के पद जिसे हमने शुरू में सुना इस संदर्भ में हमारे लिए सहायक हैं। संत पौलुस आध्यात्मिक लड़ाई हेतु हमारे लिए “हथियारों” की एक सूची प्रदान करते हैं। इन सारी बातों में, सुसमाचार फैलाने की त्पपरता को कुछ लोगों ने “उत्साह” के रूप में अनुवाद किया है- जो “जूते” के रुप निर्दिष्ट किया गया है, सुसमाचार के प्रति उत्साह को पैरों में पहनने वाले जूते की उपमा क्यों दी गई हैॽ यह लक्षणा हमें नबी इसायस के ग्रंथ से संयुक्त करता है जहाँ हम सुनते हैं, “जो शांति घोषित करता है, सुसमाचार सुनाता है, कल्याण का संदेश लाता और सियोन से कहता है, तेरा ईश्वर राज्य करता है, इस प्रकार शुभ संदेश सुनाने वाले के चरण पर्वतों पर कितने रमणीय हैं” (इसा. 52.7)।

सुसमाचार प्रचार, आगे बढ़ना की मांग

संत पापा ने कहा कि यहाँ भी, हम सुसमाचार सुनाने वालों के संबंध में पैरों का जिक्र पाते हैं, क्योंॽ उन्होंने कहा, क्योंकि वह जो सुसमाचार घोषित करता उसे अपने में आगे बढ़ने, चलने की जरुरत है। लेकिन हम इस पद में संत पौलुस के इस बात की भी याद करें जो पैरों के जूतों को एक उचित सुरक्षा कवच की भांति प्रस्तुत करते हैं, जो हमारे लिए एक सैनिक के संदर्भ को प्रस्तुत करता है जो युद्ध की तैयारी में अपने को सुसज्जित होना है- युद्ध में हमारे पैरों को सुदृढ़ रखने की जरुरत है, यह हमें ऊबड़-खाबड़ भूमि से बचाये रखता है, क्योंकि विरोधी अक्सर युद्ध के मैदान को जाल से भर देता है; और दौड़ने और सही दिशा में चलने के लिए हमें शक्ति की जरुरत होती है। अतः हमारे पैरों में जूते हमें शुत्र की इन सारी चीजों से बचाये रखते हैं।

सुसमाचार प्रचारक येसु के चरण

सुसमाचार की घोषणा उत्साह पर आधारित है, और सुसमाचार प्रचार करने वाले एक तरह से येसु के चरणों की भांति हैं जो कलीसिया है। हम गतिशीलता के बिना, “बाहर जाये बिना”, पहल किये बिना सुसमाचार प्रचार को नहीं पाते हैं। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई अपने से बाहर निकल कर सुसमाचार प्रचार करने हेतु नहीं जाता तो वह ख्रीस्तीय नहीं है, बिना यात्रा किये हम सुसमाचार प्रचार को नहीं पाते हैं। कोई अपने में बंद होकर, स्थिर रुप में, कार्यालय या कम्प्यूर में बंद होकर, विचारों को यहाँ वहाँ से लेकर,कट-पेस्ट के माध्यम सुसमाचार का प्रचार नहीं कर सकता है। सुसमाचार का प्रचार करने हेतु हमें अपने में चलने, यात्रा करने की आवश्यकता है।

सुसमाचार प्रचार का आहृवान

धर्मग्रंथ में संत पौलुस के द्वारा उपयोग किया गया जूता रूपी शब्दावली एक यूनानी शब्द है जो हमारे लिए तैयार रहने, तैयारी, मुस्तैदी को व्यक्त करता है। यह सुस्तीपन के विपरीत है जो प्रेम के संग मेल नहीं खाता है। वास्तव में संत पौलुस कहते हैं, “आप लोग बिना थके, अथक परिश्रम तथा आध्यात्मिक उत्साह से प्रभु की सेवा करें” (रोम. 12.11)। इस मनोभाव को हम पास्का के मुक्ति बलिदान महोत्सव निर्गमन ग्रंथ की पुस्तिका में पाते हैं, “तम लोग चप्पल पहन कर, कमर कस कर तथा हाथ में डण्डा लिये खाओगे। तुम जल्दी-जल्दी खाओगे, क्योंकि यह प्रभु का “पास्का” है। उसी रात मैं, प्रभु मिस्र देश का परिभम्रण करूँगा...(नि.12.11-12)।

एक संदेशवाहक जाने हेतु अपने में तैयार रहता है, और वह जानता है कि ईश्वर एक आश्चर्यजनक रुप में आते हैं। उसे चाहिए कि वह परियोजनाओं से स्वंतत्र रहे जिससे वह अपने को अनिश्चित और नये कार्यों के लिए तैयार पाये। वह जो सुसमाचार की घोषणा करता है उसे संभावना के पिंजरों में जीवाश्म नहीं बनाया जा सकता है, कहने का तत्पर्य यह है कि हम इस विचार से ग्रस्ति नहीं रह सकते कि “चीजें सदैव ऐसी ही की जाती रही हैं”, बल्कि वह एक विवेक का अनुसारण हेतु तैयार रहता जो इस दुनिया की नहीं हैं, जैसे कि संत पौलुस अपने संबंध में, इसके बारे कहते हैं, “मेरे प्रवचन तथा मेरे संदेश में विद्वता पूर्ण शब्दों का आकर्षण नहीं, बल्कि आत्मा का समर्थ्य था, जिससे आप लोगों का विश्वास मानवीय प्रज्ञा पर नहीं बल्कि ईश्वर के सामर्थ्य पर आधारित हो” (1. कुरि. 2.4-5)।

सुसमाचार प्रचार, बदलाव की मांग

संत पापा फ्रांसिस ने कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, यही कारण है कि यह महत्वपूर्ण है कि हम सुसमाचार की नवीनता हेतु सदैव तैयार रहें, यह हमें पहल करने, सबसे आगे जाने की मांग करता है। यह शांति के सुसमाचार का प्रचार करने के अवसरों को हाथ से नहीं जाने देना है, वह शांति जिसे मसीह संसार से अधिक और बेहतर रूप में हमें देना जानते हैं। उन्होंने कहा कि मैं आप से बिना भयभीत हुए आगे बढ़ने, येसु की सुन्दरता को आगे ले जाने का आहृवान करता हूँ जो हर चीज को नवीनता से भर देती है। हम अपने हृदय में परिवर्तन लायें, येसु को इसमें बदलाव लाने दें। संत पापा ने कहा कि क्या हम ऐसा करते या अपने में कुनकुना बने रहते हैं एक ख्रीस्तीय जो आगे नहीं बढ़ता है, हम इन बातों पर विचार करें। 

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12 April 2023, 15:35