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संत पापाः मानवीय शहादत जीवन देने में है

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह की धर्मशिक्षा माला में शहादत का अर्थ स्पष्ट करते हुए जीवन को दूसरों के लिए जीने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।

सुसमाचार प्रचार और इसके प्रेरितिक उत्साह की चर्चा करने के उपरांत हमने संत पौलुस के साक्ष्य पर चिंतन किया, जो प्रेरितिक उत्साह के संबंध में सच्चे “चैंपियन” हैं। आज हम किसी एक व्यक्ति पर नहीं अपितु शहीदों, हर अवधि, देश और भाषा-भाषियों के नर और नारियों पर अपना ध्यान अंकित करेंगे जिन्होंने ख्रीस्त के लिए अपने प्राण अर्पित किये, जिन्होंने ख्रीस्त को घोषित करने हेतु अपने रक्त बहाये। प्रेरितों की पीढ़ी के बाद, वे अपने में सर्वोत्कृष्ट सुसमाचार के साक्ष्य रहे। शहीदों में हम सर्वप्रथम संत स्तीफन को पाते हैं जिन्हें येरुसालेम के बाहर पत्थरों से मार डाला गया। शहीदों के लिए उपयोग किया जाने वाला शब्द “मार्टर” यूनानी भाषा के “मारतरिया” से आती है जिसका शब्दिक अर्थ “साक्ष्य” है, अतः शहीद साक्ष्य देने हेतु अपना रक्त बहाता है। यद्यपि कलीसिया में अति शीघ्र मार्टर शब्द उन लोगों की ओर इंगित करने के लिए किया जानने लगा जो लोहू बहाने तक अपना साक्ष्य देते हैं, अर्थात यह हर दिन की गवाही हो सकती है कि वो शहीद है, लेकिन बाद में इसका प्रयोग उसने लिए किया जाने लगा जो खून बहाते हैं, जो अपना जीवन देते हैं।

जीवन बांटें

संत पापा ने कहा कि शहीदों को, यद्यपि “नायकों” की तरह नहीं देखा जाता है, जो व्यक्तिगत रूप में कार्य करते हैं, जैसे की एक मरूभूमि में फूलों का खिलना हो, लेकिन यह वह परिपक्व और उत्कृष्ट फल होता है जो ईश्वर की वाटिका, कलीसिया में विकसित होती है। ख्रीस्तीय, विशेषकर, यूखरिस्त महोत्सव में सहभागी होते हुए पवित्र आत्मा के द्वारा संचलित होते थे जहाँ उनका जीवन प्रेम के रहस्य में आधारित होता था, मुख्यतः इस सच्चाई पर की येसु ख्रीस्त ने उनके लिए अपने जीवन को दिया है, और इसलिए उनसे यह आशा की जाती है और उन्हें चाहिए कि वे ईश्वर के लिए और अपने भाइयों-बहनों के लिए अपने जीवन को समर्पित करें। साक्ष्य के मार्ग में यह ख्रीस्तियों के लिए एक बड़ी उदारता को प्रकट करता है। संत अगुस्टीन बहुधा जीवन के इस आयाम को कृतज्ञता में आपसी आदान-प्रदान की संज्ञा देते हैं। उदाहरण के लिए, यहाँ हम संत लौरेन्स के पर्व दिवस में उनके प्रवचन में देखते हैं, “संत लौरेन्स रोमन गिरजाघर के उपयाजक थे। उस कलीसिया में... उन्होंने उपयाजक का कार्यभार संभाला, वहाँ उन्होंने ख्रीस्त के पवित्र रक्त के कटोरे का वितरण किया, वहीं उन्होंने ख्रीस्त के नाम में स्वयं अपने रक्त को बहाया।” धन्य प्रेरित संत योहन स्पष्ट रुप में येसु के अंतिम व्यारी भोज के रहस्य को यह कहते हुए प्रकट करते हैं, “जिस तरह येसु ख्रीस्त ने हमारे लिए अपना जीवन अर्पित किया, उसी भांति हमें भी अपने भाइयों के लिए अपना जीवन अर्पित करना चाहिए” (1 यो.3.16)। संत लौरेन्स ने इस तथ्य को समझा और उन्होंने ऐसा किया, और इस भांति उन्होंने निःसंदेह उन्हीं चीजों को तैयार किया जिसे वे स्वयं ख्रीस्त की उस मेज में ग्रहण करते थे। उन्होंने अपने जीवन में ख्रीस्त को प्रेम किया, उन्हें अपनी मृत्यु में उनका अनुसरण किया” (Sermons 304, 14; PL 38, 1395-1397)। इस भांति संत अगुस्टीन ने आध्यात्मिक आयाम की व्याख्या की जो शहीदों को प्रेरित करता है।

कलीसिया के शहीद

संत पापा ने कहा कि प्रिय भाइयो एवं बहनों, आज हम उन सभी शहीदों की याद करें जिन्हें हम कलीसिया के जीवन में पाते हैं। जैसे कि मैंने पहले बहुत बार कहा है, पहली शताब्दी की तुलना में आज उनकी संख्या हमारे लिए अधिक है। आज कलीसिया में उनकी संख्या बहुत अधिक है, क्योंकि ख्रीस्तीय विश्वास को घोषित करने के कारण उन्हें समाज से बाहर निकाला जाता है या उन्हें कैदखानों में डाला जाता है...। द्वितीय वाटिकन महासभा हमें याद दिलाती है कि, “कलीसिया शहादत को एक अद्वितीय उपहार और प्रेम का पूर्ण साक्ष्य समझती है। शहादत के द्वारा एक शिष्य अपने गुरू की तरह ही अपने रुप को परिवर्तित करता है जिन्होंने संसार की मुक्ति हेतु स्वेच्छा से अपनी मृत्यु को स्वीकार किया”(Lumen gentium, 42)। शहीदगण ख्रीस्त का अनुसरण और उनकी कृपा से, अपने ऊपर हिंसा की स्थिति को अनंत प्रेम की घोषणा में बदल देते हैं, जो उत्पीड़कों को क्षमा दान हेतु अग्रसर होता है। यह अपने में दिलचस्प बात है, शहीदगण सदैव अपने सताने वालों को क्षमा कर देते हैं। प्रथम शहीद मरने के पहले प्रार्थना करते हैं, “हे प्रभु, तू उन्हें क्षमा कर दे, वे नहीं जानते की वे क्या कर रहे हैं”।

शहादत की कृपा कुछेक को 

संत पापा ने कहा कि शहादत की कृपा केवल कुछेक लोगों को मिलती है, “यद्यपि हम सभों को चाहिए की हम लोगों के बीच येसु को घोषित करने हेतु तैयार रहें। हमें चाहिए हम सतावटों के मध्य भी अपने विश्वास का साक्ष्य दें, कलीसिया में हम इसकी कमी को कभी नहीं पायेंगे, जो क्रूस का मार्ग है।” लोहूगवाह हमें यह दिखलाते हैं कि हर ख्रीस्तीय जीवन का साक्ष्य देने हेतु बुलाया गया है, यह हमारे लिए खून बहाने तक न भी हो, लेकिन हम येसु ख्रीस्त के अनुसरण में अपने को दूसरों के लिए ईश्वर का उपहार बनाने हेतु बुलाये गये हैं।

वर्तमान के शहीद

संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला के अंत में वर्तमान परिस्थिति में दुनिया के हर कोने में ख्रीस्तियों के साक्ष्य का स्मरण किया। उन्होंने यमन की याद की, एक भूमि जो सालों से युद्ध प्रभावित है जिसके कारण कितनों की मौत हुई है और अब भी बहुत से लोग मारे जा रहे हैं, विशेषकर बच्चे। इस भूमि ने अपने तेजस्वी विश्वास का साक्ष्य दिया है जिसे हम मिश्नरी सिस्टर्स ऑफ चैरीटी धर्म समाज की धर्मबहनों में देख सकते हैं। वे आज भी यमन में कार्यरत हैं जहाँ वे बीमार बुजुर्गों और असक्षम लोगों को अपनी सेवाएँ दे रही हैं। उन्होंने अपने जीवन को समर्पित कर दिया है। उनमें से कुछ को शहादत मिली है लेकिन वे जोखिमों के बीच भी आगे बढ़तीं और अपने कामों को जारी रखती हैं। वे धर्मबहनें, अपने बीच में सब धर्मों के लोगों का स्वागत करती हैं क्योंकि करूणा और भ्रातृत्व की कोई सीमा नहीं है। सन् 1998 के जुलाई महीने में सिस्टर अलेत्ता, सिस्टर जेलिया और सिस्टर माईकेल जब मिस्सा बलिदान में भाग लेकर घर लौट रही थीं, एक सिरफिरे ने उन्हें राह में ही मार डाला, क्योंकि वे ख्रीस्त का अनुसरण करती थीं। फिलहाल युद्ध की शुरूआत और अब तक इसके जारी रहने की स्थिति, सन् 2016 के मार्च महीने में, सिस्टर असेलेम, सिस्टर मार्गरिता, सिस्टर रेजीनेत्ते और सिस्टर जुदित को कुछ लोकधर्मियों के संग मार डाला गया क्योंकि वे अति गरीब लोगों की सहायता कर रही थीं। मारे गये उन लोगों में ख्रीस्तियों के साथ कुछ मुस्लिम विश्वासी भी थे जो धर्मबहनों के संग कार्य करते थे। यह देखना हमें प्रभावित करता है कि कैसे शहादत विभिन्न धर्मों के लोगों को एकजुगट करता है। ईश्वर के नाम में किसी को जान से मारा नहीं जाना चाहिए क्योंकि हम उनके लिए सभी भाई-बहनों की तरह हैं। लेकिन हम एक साथ मिलकर दूसरों के लिए अपना जीवन दे सकते हैं।

संत पापा ने कहा कि हम सब एक साथ प्रार्थना करें कि सुसमाचार का साक्ष्य देने में कभी न थकें, यहाँ तक की जीवन के तकलीफ भरे क्षणों में भी। सभी संतगण हमारे लिए शांति और मेल-मिलाप के बीज बनें, वे मानवता और भ्रातृत्व के कारण बनें, जैसे कि हम ईश्वरीय राज्य के आने की प्रतीक्षा करते हैं, जहाँ वे हमारे लिए सब कुछ होंगे। 

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19 April 2023, 15:37